स्टुअर्ट थॉम्सन

चेर्नोबिल विभीषिका का पर्याय बन गया है। हाल ही में चेर्नोबिल दुर्घटना को इसी नाम के एक अत्यन्त लोकप्रिय टीवी शो ने वापिस लोगों के सामने ला खड़ा किया। 1986 में घटी इस दुर्घटना की वजह से हज़ारों लोगों को कैंसर हुआ, घनी आबादी वाला यह इलाका भुतहा शहर में तबदील हो गया और इसके परिणामस्वरूप 2600 वर्ग किलोमीटर के इलाके को वर्जित क्षेत्र घोषित करना पड़ा।

    

अलबत्ता, चेर्नोबिल का वर्जित क्षेत्र जीवन से रहित नहीं है। भेड़िए, जंगली सूअर और भालू पुराने परमाणु बिजली घर के आसपास के हरे-भरे जंगल में लौट आए हैं। और जहाँ तक वनस्पति का सवाल है, तो सबसे जोखिमग्रस्त और असुरक्षित पेड़-पौधों को छोड़ दें, तो शेष पादप जीवन कभी मरा ही नहीं था। यहाँ तक कि सर्वाधिक रेडियोसक्रियता ग्रस्त इलाकों में तीन वर्ष के अन्दर पादप जगत लौटने लगा था।

पेड़-पौधों ने सबसे अधिक प्रदूषण वाले इलाकों में जितना विकिरण ग्रहण किया, उतने से मनुष्य व अन्य स्तनधारी व पक्षी तो एक नहीं, कई बार मारे गए होते। तो वनस्पति विकिरण तथा नाभिकीय हादसों के प्रति इतनी सहनशील कैसे है?

इस सवाल का जवाब पाने के लिए पहले तो हमें यह समझना होगा कि नाभिकीय संयंत्रों का विकिरण जीवित कोशिकाओं को कैसे प्रभावित करता है। चेर्नोबिल का रेडियोधर्मी पदार्थ अस्थिर है क्योंकि यह लगातार उच्च ऊर्जा वाले कण और तरंगें छोड़ता रहता है जो कोशिकीय संरचनाओं को तहस-नहस कर देते हैं या ऐसे क्रियाशील रसायन बनाते हैं जो कोशिका की मशीनरी पर आक्रमण करते हैं।

कोशिका के अधिकांश हिस्से क्षतिग्रस्त होने पर बदले जा सकते हैं लेकिन डीएनए एक महत्वपूर्ण अपवाद है। विकिरण की उच्च खुराक हो तो डीएनए विकृत हो जाता है और जल्दी ही कोशिका की मृत्यु हो जाती है। कमतर तीव्रता का विकिरण हो तो डीएनए में उत्परिवर्तन के रूप में छोटे-छोटे बदलाव होते हैं जो कोशिका के कामकाज में बदलाव लाते हैं - उदाहरण के लिए हो सकता है कि कोशिका कैंसर बन जाए, बेलगाम संख्यावृद्धि करने लगे और शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाए।

जन्तुओं में यह आम तौर पर जानलेवा साबित होता है। कारण यह है कि जन्तुओं की कोशिकाएँ और तंत्र अत्यन्त विशेषीकृत और गैर-लचीले होते हैं। जन्तु जीव विज्ञान को एक जटिल मशीन की तरह देखिए जिसमें प्रत्येक कोशिका और अंग का एक स्थान और कार्य है, और जीव के अस्तित्व के लिए सारे हिस्सों को काम करना पड़ेगा और परस्पर सहयोग करना होगा। कोई मनुष्य दिमाग या हृदय या फेफड़ों के बगैर जीवित नहीं रह सकता।

दूसरी ओर पौधे अपेक्षाकृत ज़्यादा लचीले और ऑर्गेनिक ढंग से विकसित होते हैं। चूँकि वे चल-फिर नहीं सकते, इसलिए उनके पास अपनी परिस्थिति से तालमेल बनाने के अलावा कोई चारा नहीं होता। जन्तुओं की तो एक सुपरिभाषित रचना होती है किन्तु पौधे तो धीरे-धीरे अपनी रचना का निर्माण करते हैं। किसी पौधे की जड़ें गहराई तक जाएँगी या उसके तने लम्बे होंगे, यह पौधे के अन्य हिस्सों से तथा ‘वुड वाइड वेब’ से मिलने वाले रासायनिक सन्देशों के साथ-साथ प्रकाश, तापमान, पानी व पोषण की परिस्थितियों के सन्तुलन द्वारा तय होता है।

महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जन्तु कोशिकाओं के विपरीत, लगभग सारी पादप कोशिकाएँ पौधे के लिए ज़रूरी हर किस्म की नई कोशिकाएँ बना सकती हैं। यही कारण है कि आप कलम लगाकर नए पौधे विकसित कर सकते हैं - जो चीज़ कभी तना या पत्ती थी, उसमें से जड़ें निकलने लगती हैं।

इस सबका अर्थ यह है कि जन्तुओं की अपेक्षा पौधे कहीं ज़्यादा आसानी-से मृत कोशिकाओं या ऊतकों की भरपाई कर सकते हैं, चाहे यह क्षति किसी जन्तु के आक्रमण की वजह से हुई हो अथवा विकिरण की वजह से।

यह सही है कि विकिरण या अन्य किस्म की डीएनए क्षति की वजह से पौधों में गठान (ट्यूमर) बन सकती है लेकिन ऐसी उत्परिवर्तित कोशिकाएँ आम तौर पर पौधे के एक हिस्से से दूसरे में फैल नहीं पातीं, जैसा कि कैंसर के मामले में होता है। कारण यह है कि पौधों की कोशिकाओं के आसपास एक सख्त दीवार का आवरण होता है। एक बात यह भी है कि ऐसी गठानें अधिकांश मामलों में जानलेवा साबित नहीं होतीं क्योंकि पौधा उस गड़बड़ ऊतक के बगैर काम चलाने के रास्ते खोज लेता है।

दिलचस्प बात है कि विकिरण के प्रति इस कुदरती सहनशीलता के अलावा, चेर्नोबिल वर्जित क्षेत्र में कुछ पौधे अपने डीएनए को क्षति से बचाने के लिए कुछ अतिरिक्त क्रियाविधियों का सहारा ले रहे हैं। वे डीएनए का रसायन विज्ञान ही बदल दे रहे हैं ताकि वह नुकसान का प्रतिरोधी बन जाए और यदि यह प्रतिरोध काम न करे तो वे उसकी मरम्मत के तंत्र चालू कर देते हैं। सुदूर अतीत में जब शुरुआती पौधों का प्रादुर्भाव हुआ था, उस समय पृथ्वी की सतह पर विकिरण कहीं अधिक था। वर्जित क्षेत्र के पौधे उस काल में हुए अनुकूलनों का उपयोग जीवित रहने हेतु कर रहे हैं।

नया जीवन  
अब चेर्नोबिल के आसपास जीवन फल-फूल रहा है। दरअसल, कई पेड़-पौधों और जन्तुओं की आबादियाँ दुर्घटना से पहले की अपेक्षा ज़्यादा हैं।
चेर्नोबिल दुर्घटना में हुई मानव जीवन की क्षति को देखते हुए आपको प्रकृति का यह पुन: उभरना शायद आश्चर्यजनक लगेगा। विकिरण का पौधों पर असर नुकसानदायक होता है और इसके चलते उस पेड़ या जन्तु की आयु घट सकती है। लेकिन यदि जीवनदायी संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों, और नुकसान का स्तर जानलेवा न हो तो जीवन पल्लवित होगा।

एक अहम बात यह रही कि चेर्नोबिल में विकिरण के कारण हुए नुकसान की बनिस्बत इन्सानों के वह इलाका छोड़कर चले जाने की वजह से होने वाला लाभ कहीं ज़्यादा था। अब यह यूरोप का सबसे बड़ा प्राकृतिक संरक्षण स्थल है और यह पहले से कहीं अधिक जीवन को सहारा दे रहा है, चाहे एक-एक जीव का जीवन-चक्र थोड़ा छोटा हो गया होगा।

दरअसल, चेर्नोबिल दुर्घटना यह उजागर करती है कि इस ग्रह पर हमारा पर्यावरणीय प्रभाव किस हद तक है। नाभिकीय हादसा नुकसानदेह तो था मगर उतना विनाशकारी नहीं था जितने हम रहे थे। अपने आपको उस इलाके से बाहर खदेड़कर हमने प्रकृति के लिए वापसी की गुंजाइश बनाई है।


स्टुअर्ट थॉम्सन: प्लांट बायोकेमिस्ट्री, वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में वरिष्ठ व्याख्याता।

अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।

यह लेख पी.बी.एस. न्यूज़-आर, 22 जून 2019 से साभार।