शर्मिला पाल


वे इस दुनिया के अभागे ही कहे जाएंगे, जो बारिश के सौंदर्य से अनजाने हैं। इसकी हर बूंद जीवन के एक अंग का प्रतिनिधित्व करती है। इन बूंदों को देखकर महान दार्शनिक लाओत्से ने कहा था, “पानी की तरह हो जाओ। जो व्यक्ति पानी की तरह तरल, मृदुल और सहनशील होता है, वह किसी भी बाधा को पार कर सकता है और समुद्र तक पहुंच सकता है।” बारिश तो असल में धरती का उत्सव है। महान साहित्यकार ग्रेबियल गार्सिया मार्केज़ को बारिश और खासकर लगातार घंटों तक होने वाली बारिश बहुत पसंद थी। उन्होंने अपनी कहानियों में ऐसे शहर रचे, जहां बारिश रुकने का नाम ही नहीं लेती।
भारत और मानसून
हमारे देश की मानसूनी बारिश पर यात्रा वृत्तांत की शक्ल में ब्रिटेन के मशहूर यात्रा वृत्तांत लेखक अलेक्ज़ेंडर फ्रैटर ने एक किताब लिखी है- ‘चेज़िंग दी मानसून’। उन्होंने किताब लिखने के लिए केरल से चेरापूंजी तक की यात्रा की। वे कहते हैं, भारत को समझना हो तो मानसून को जाने-समझे बगैर संभव नहीं है। वे आगे कहते हैं, “बारिश को बस, देखें, हो सके तो भीगें। वह टिप टिप बरस रही हो या झमाझम, आप जीवन का आनंद महसूस करेंगे। हो सकता है आप पल भर में जीवन का मर्म समझ जाएं।” झमाझम बारिश ऐसी चीज़ है जिसके लिए लोग तरसते भी हैं और उसे कोसते भी हैं। पर यह ऐसी चीज़ है जिस पर धरती की खुशहाली कायम है।
जून का महीना होते ही भारत ही नहीं, बल्कि पूरा दक्षिण एशिया इस बात की चर्चा में जुट जाता है कि इस बार का मानसून कैसा होगा। मानसून के अच्छे होने के साथ ही शेयर मार्केट का ग्राफ भी चढ़ जाता है और खराब होते ही वित्त मंत्री से लेकर रिज़र्व बैंक के गवर्नर तक अपनी चिंताएं ज़ाहिर करने लगते हैं। मानसून वस्तुत: भारत की अर्थव्यवस्था के केंद्र में है।

मानसून पर मंडराता संकट
पर्यावरण में हो रहे बदलावों के कारण मानसून पर भी खतरे मंडरा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन सम्बंधी सरकारों की समिति (आईपीसीसी) की रिपोर्ट पर गौर करें तो यह स्थिति हमारे देश की कृषि के लिए चिंताजनक हो सकती है। आईपीसीसी के अनुसार कई ऐसी घटनाएं होंगी, जिससे मानसून का मिज़ाज पूरी तरह बदल सकता है। इस दौरान सामान्य बारिश की घटनाएं तेज़ी से कम हो सकती है।
बारिश में उतार-चढ़ाव
 भारतीय क्षेत्र में होने वाली बारिश में हर दशक में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। समुद्र का तापमान बढ़ने से अल नीनो जैसी स्थितियां भी बन रही हैं। अल नीनो ऐसी विशेष स्थिति है जब समुद्र सतह के औसत से अधिक तापमान के कारण पश्चिमी प्रशांत महासागर और हिंद महासागर में अधिक दबाव की स्थिति बनती है। इससे देश में सूखे की स्थिति पैदा होने की आशंका रहती है। इस सदी में करीब 20 साल सूखे के रहे हैं जिनमें से 13 में अल नीनो की स्थिति रही है। यानी अल नीनो हो तो 65 प्रतिशत आशंका है कि कम बारिश होगी। अल नीनो का ज़िक्र सबसे पहले 1923 में मौसम विज्ञानी सर गिल्बर्ट थॉमस वॉकर ने किया था।
ज़्यादा बारिश चाहिए तो ला नीना की दुआ करें। ला नीना की स्थिति अल नीनो से बिल्कुल उलट है। इस स्थिति में प्रशांत और हिंद महासागर में कम दबाव की स्थिति रहती है जो अधिक बारिश की संभावनाएं पैदा करती है। बीते 100 सालों में 13 ‘अधिक बारिश’ वाले वर्ष रहे हैं जिनमें से 6 में ला नीना की स्थिति रही। यानी ला नीना के साथ अधिक बारिश की संभावना 46 प्रतिशत होती है।

क्या है मानसून
सामान्य तौर पर मानसून उन हवाओं को कहा जाता है जो मौसमी तौर पर बहती हैं। यह भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में लगभग चार महीने - जून से सितंबर तक - सक्रिय रहती हैं। मानसूनी वर्षा उसे कहते हैं जो किसी मौसम में किसी क्षेत्र विशेष में होती है। दुनिया के अनेक हिस्से ऐसे हैं जहां ऐसी वर्षा होती है। इस परिभाषा के अनुसार उत्तर और दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका के कुछ भाग, पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया भी मानसूनी क्षेत्र में आते हैं। लेकिन पारंपरिक तौर पर अधिकांश मौसम विज्ञानी भारतीय उपमहाद्वीप को ही मानसूनी क्षेत्र मानते हैं।

शब्द मल्लाहों ने दिया
मानसून शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द मॉनसैओ से हुई है, हालांकि मॉनसैओ शब्द अरबी के मौसिम से निकला है। अरब सागर में बहने वाली मौसमी हवाओं के लिए अरब के मल्लाह इस शब्द का प्रयोग करते थे। उन मल्लाहों ने काफी पहले यह भांप लिया था कि ये हवाएं जून से सितंबर तक गरमी के दिनों में दक्षिण-पश्चिम दिशा से और नवंबर से मार्च तक जाड़े के दिनों में उत्तर-पूर्वी दिशा से बहती हैं।
गर्मी के दिनों में समुद्र की ओर से बहने के कारण ही ये हवाएं पर्याप्त नमी लिए होती हैं जो मौका मिलते ही बरस जाती हैं। इन हवाओं की मदद से प्राचीन काल में नाविक यात्राएं करते थे।

कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि मानसून की शुरुआत 5 करोड़ साल पहले हुई थी जब भारतीय भूभाग तिब्बती पठार की ओर सरकने लगा था। अनेक भूगोलवेत्ताओं का मानना है कि मानसून वर्तमान स्वरूप में 80 लाख साल पहले अस्तित्व में आया। कुछ विशेषज्ञ चीन में मिले वनस्पति जीवाश्म और दक्षिण चीन सागर से मिले पत्थरों के आधार पर कहते हैं कि मानसून की शुरुआत करीब दो करोड़ साल पहले हुई है।

कैसे आती हैं हवाएं
जब सूर्य कर्क रेखा के ऊपर होता है तो भारतीय भूभाग की हवा गर्म होकर ऊपर की ओर उठकर बाहर की ओर बहने लगती है। इससे पूरा क्षेत्र कम दबाव वाला विशाल प्रदेश बन जाता है। यह प्रदेश उच्च दबाव के क्षेत्र से हवाओं को आमंत्रित करता है। इन दिनों भारतीय उपमहाद्वीप को तीन ओर से घेरे समुद्र में उच्च दबाव का क्षेत्र होता है क्योंकि ज़मीन की तुलना में सागर काफी कम गर्म होता है। इस स्थिति में ही उच्च दबाव वाले क्षेत्र से निम्न दबाव वाले क्षेत्र की ओर मानसून के रूप में हवाएं बहने लगती है।

चूंकि सागर में निरंतर वाष्पीकरण होता है इसलिए ये हवाएं नमी से लदी होती हैं। मानसून भारतीय महाद्वीप यानी कन्याकुमारी पर पहुंचकर दो धाराओं में बंट जाता है। एक धारा अरब सागर की ओर तथा दूसरी बंगाल की खाड़ी की ओर आगे बढ़ती है। अरब सागर से चलने वाली मानसूनी हवाएं पश्चिमी घाट के ऊपर से बहकर भारत में घुसती हैं और बंगाल की खाड़ी वाली हवाएं बंगाल और उत्तर पूर्व के राज्यों से होकर। हिमालय और भारत के अन्य पर्वतों से टकराकर ये हवाएं ठंडी होती हैं और लगभग पूरे भारत में लगभग चार महीने तक बारिश करती हैं। (स्रोत फीचर्स)