वैज्ञानिकों ने मानव जीनोम प्रोजेक्ट के तहत पूरे मानव जीनोम को पढ़ लिया है। अब नया प्रस्ताव यह आया है कि इस जीनोम को इसकी इकाइयों से शुरु करके प्रयोगशाला में बनाया जाए और किसी कोशिका में डालकर काम करने के लिए प्रेरित किया जाए।
जीनोम किसी भी जीव के सारे जीन्स की श्रृंखला को कहते हैं। यह जीनोम ही जीव की आनुवंशिक सामग्री है और डीएनए नामक रसायन से बनी होती है। स्वयं डीएनए चार क्षारों से मिलकर बना एक पोलीमर होता है। क्षारों के इसी क्रम में यह सूचना अंकित होती है कि डीएनए का कौन-सा हिस्सा कौन-सा प्रोटीन बनाएगा। इस अर्थ में डीएनए में क्षारों के क्रम से तय होता है कि किसी जीव में कौन-कौन-से प्रोटीन बनेंगे और उस जीव के गुण क्या होंगे।

जीनोम को पढ़ने का मतलब होता है कि हम क्षारों के क्रम का पता लगा लें। यह काम कर लिया गया है। अब नया प्रोजेक्ट है मानव जीनोम परियोजना-लेखन। प्रस्ताव यह है कि एकदम शु डिग्री से शु डिग्री करके (यानी एक-एक क्षार जोड़कर) पूरा मानव जीनोम तैयार किया जाए और जांच की जाए कि क्या वह किसी कोशिका में वे सारे-के-सारे काम कर सकता है जो एक सामान्य डीएनए करता है।
इस प्रस्ताव का खुलासा हाल ही में चंद वैज्ञानिकों ने एक बैठक में किया। बोस्टन के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में इस प्रस्ताव का मसौदा तैयार हुआ और उसे प्रकाशित कर दिया गया है। यह एक प्रकार से किसी चीज़ को समझने के लिए उसके निर्माण करने की प्रक्रिया पर आधारित है। किसी वैज्ञानिक ने कभी कहा था कि यदि आप किसी चीज़ को बना नहीं सकते, तो संभवत: आप उसे पूरी तरह समझे नहीं हैं। जीनोम को पढ़ने के बाद उसे लिखना इसी नज़रिए का द्योतक है।
वैसे इससे पहले वैज्ञानिक वायरस और बैक्टीरिया के कामकाजी जीनोम का संश्लेषण कर चुके हैं। फिलहाल कोशिश चल रही है एक खमीर के जीनोम के निर्माण की जो अगले वर्ष पूरी हो जाएगी। Sc2.0 नामक इस प्रोजेक्ट के तहत खमीर के जीनोम में उपस्थित करीब 1 करोड़ क्षारों का क्रम तैयार किया जा रहा है।

इससे प्रेरित होकर कई वैज्ञानिकों को लगा कि क्यों न मानव जीनोम को लिखा जाए। इसे लेकर बातचीत तो काफी समय से चल रही थी मगर सम्बंधित वैज्ञानिकों ने मामले को गोपनीय रखने में ही भलाई समझी। खैर, धीरे-धीरे विचार परवान चढ़ा और हार्वर्ड की बैठक में 25 वैज्ञानिकों ने मिलकर एक शोध पत्र लिखा जिसमें कहा गया है कि मानव जीनोम परियोजना-लेखन के लिए शुरुआत में 10 करोड़ डॉलर के निवेश की ज़रूरत होगी।
कई वैज्ञानिकों का मत है कि इस प्रस्ताव को शु डिग्री से ही सार्वजनिक विचार-विमर्श के लिए खोला जाना चाहिए था क्योंकि इसके कई कानूनी, नैतिक, सामाजिक निहितार्थ हैं, जिन पर खुली बहस ज़रूरी है। कुछ वैज्ञानिकों का सोचना है कि इस तरह की परियोजना से संभावित लाभ बहुत कम हैं जबकि अन्य मुद्दे बहुत गंभीर हैं।
परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों को लगता है कि यह विधि हमें काफी बड़े पैमाने पर मदद दे सकती है - खास तौर से अलग-अलग जीन्स के अध्ययन में। उनका कहना है कि परियोजना में नैतिक, सामाजिक मुद्दों पर सार्वजनिक विचार-विमर्श के लिए काफी स्थान रखा गया है। (स्रोत फीचर्स)