इब्ने इंशा

एक प्यासे कौवे को एक जगह पानी का मटका पड़ा नज़र आया। बेहद खुश हुआ। लेकिन यह देखकर मायूसी हुई कि पानी बहुत नीचे - सिर्फ मटके की तह में थोड़ा-सा है। इत्तेफाक से उसने हिकायते-लुकमान1 पढ़ रखी थी। पास ही बहुत से कंकर पड़े थे, उसने एक-एक करके उसमें डालना शुरू किया। कंकर डालते-डालते सुबस से शाम हो गई। प्यासा तो था ही निढाल हो गया।

मटके के अंदर नज़र डाली तो क्या देखता है कि कंकर ही कंकर हैं, सारा पानी कंकरों ने पी लिया है। बेएख्तियार उसकी ज़बान से निकला - हत् तेरे लुकमान की।

फिर  बेसुध होकर ज़मीन पर गिर गया और मर गया।

अगर वह कौआ कहीं से एक नलकी ले आता तो मटके के मुंह पर बैठका-बैठा पानी को चूस लेता। अपने दिल की मुराद पाता, हरगिज़ जान से न जाता।


इब्ने इंशा - प्रसिद्ध उर्दू व्यंगकार
प्यासा कौवा - राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित ‘उर्दू की आखिरी किताब से साभार।’