मारग्रेट के.टी.

कितनी स्वतंत्रता मिले बच्चों को?

पिछले अंक में आपने मारग्रेट के.टी की रिपोर्ट के पहले हिस्से में पढ़ कि कुंटीग्रामा के अनौपचारिक स्कूल में पहले दि उनके समूह को किस तरह से अनुशासनहीन बच्चों को सलीके से काम सिखाने में परेशानी का सामना पड़ा था। लेकिन इसके साथ ही इस सवाल पर भी गंभीरता का सामना करना पड़ा था। लेकिन इसके साथ ही इस सवाल पर भी गंभीरता से चर्चा की गई कि कक्षा में बच्चों को किस हद तक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए और स्वतंत्रता का मतलब क्या है? इस चर्चा के बाद जो निष्कर्ष निकले उनके अनुसार कक्षा में सीखने के लिए ऐसा माहौल होना चाहिए जिसमें बच्चा सिर्फ चुपचाप बैठा शिक्षक को सुनता ही न रहे बल्कि खुद को भी लगातार सक्रिय रखे।  लेकिन बच्चे की  सक्रियता का यह अर्थ भी नहीं है कि उसे मनमानी करने की छूट है। रिपोर्ट के पहले हिस्से में कक्षा में स्वतंत्रता और अनुशासन के संतुलन पर विचार किया गया था। अगले दिन की पूर्व तैयारी के दौरान गतिविधियों की रूप-रेखा बनाई जा रही थी लेकिन कल क्या होगा इस बात को लेकर आशंका भी थी। खैर दूसरे दिन क्या हुआ, पढ़िए रिपोर्ट के इस हिस्से में।

और अगले दिन

दूसरे दिन की तैयारी में सोचा यह गया बच्चों के तीन समूहों  में से दो में तो वही करेंगे जो उन्होंने पहले दिन किया था। तीसरे समूह के लिए हमने मोटे रूप से कुद गतिविधियां सोच ली थीं।

क . पूराने अखबार पर क्रेयान से चित्र बनाएं। फिर यदि वे निर्दशों का पालन करते हैं तो उन्हें रंगीन चित्र बनाने के लिए साफ कागज़ की पुस्तिका और ऑयल पेस्टल दिए जाएंगे।

ख . ग्रुप के बच्चों के नाम पढ़ना सीखें।

ग . किसी एक चीज़ के छोटे से विवरण को लिखकर चादर या टाट पर लगाया जाए जिसे वे पढ़ने की कोशिश करें।

घ . इसके अलावा चीज़ें बनाने के खिलौनों और बिÏल्डग ब्लॉक की वही गतिविधियां थीं तथा बाहर खेलने के लिए भी वही खेल थे जो पहले दिन हुए थे।

ङ . चित्र बनाने के लिए एक नई क्रिया थी और पिछले दिन बताए नियमों का पालने करने के लिए पुरस्कार स्वरूप कैंची से कागज़ काटकर चीज़ें बनाने की एक नई गतिविधि भी थी।

पढ़ो और इनाम पाओ

अगले दिन जब बच्चे आए तो उन्हें, जब वे चाहें तब, कक्षा में अनियमित ढंग से नहीं घुसने दिया गया। उन्हें बाहर ही अपने-अपने समूह में खड़ा किया गया और पिछले दिन के नियमों को दोहराया गया। उन्हें यह भी बताया गया कि एक नया खेल उन बच्चों को खेलने का मौका मिलेगा जो नियमों का पालन करेंगे। यह नया खेल कौन-सा है यह अभी नहीं बताया जाएगा। लेकिन जिसने भी नियमों का पालन किया उसे यह रोचक खेल खेलने का मौका मिलेगा। नियम उन्हें फिर से बता दिए गए -

अ. उनके लिए जो जगह तय की गई है, उसका उपयोग करें। पूरी कक्षा में न घूमें।

ब. कल जो सामग्री बताई गई थी उसमें से ही चुनना है। कोई और सामान नहीं लेना है।

स. जो सामान जहां से लो वहीं वापस रखो।

इन स्पष्ट निर्देशों को  बच्चे समझ पाए। वे उत्साहित थे और सीखना चाहते थे। काम संजीदगी से शुरू हुआ पर बच्चे स्वत: आपस में बातचीत कर रहे थे, काम कर रहे थे और यहां से वहां जा रहे थे। कक्षा में गति थी, मुर्दानी नहीं ऐसी कक्षा में शिक्षक को सौर बार बच्चों को चुप रहने के लिए नहीं पड़ता और न ही समझाना, पढ़ाना या चिल्लाना होता है। हमने तैयारी में सोचा था कि ऐसी कक्षा निर्मित करने की कोशिश करेंगे जिसमें हम सब भी बच्चों के साथ सीखें, बच्चों को देखें व समझें, उन्हें न तो टोकें, न उन पर कोई टीका-टिप्पणी करें। हम शिक्षक अपने ज्ञान के भण्डार को प्रदर्शित न करें और न ही उसे थोपें बल्कि धैर्यपूर्वक यह देखने की कोशिश करें कि बच्चा क्या कर रहा है।

एक ग्रुप में बच्चों ने पहले अखबार पर क्रेयॉन से चित्र बनाए व उन्होंने अपने चित्रों और क्रेयॉन को ठीक जगह पर रख दिया। वे अपने काम के प्रति गंभीर रहे तो शिक्षिका ने उन्हें लम्बे सफेद कागज़ों वाली कॉपी दी और ऑयल पेस्टल दिए तो बच्चे बहुत खुश हुए। उन्होंने न सिर्फ चित्र बनाए अपितु आत्म-अनुशासन के महत्व का भी एहसास किया। यदि बच्चे निर्देशानुसार कार्य करें तो उसका मूल निष्कर्ष और पुरस्कार यह नहीं है कि ‘अच्छे बच्चे हैं’ या ‘प्यारे बच्चे हैं’ बल्कि निष्कर्ष यह है कि - बच्चे आत्म-अनुशासन सीख रहे हैं।

सभी बच्चों ने बहुत आनंद के साथ उन चमकदार, रंग-बिरंगे पेस्टल से कागज़ पर चित्र बनाए। वैंकटेश ने कल की तरह नारियल का पेड़ बनाया। फिर पेड़ देखने वह शिक्षिका के साथ बाहर गया। इस बार पेड़ पहले से बहुत अच्छा था। टुकड़ों-टुकड़ों में बनाने की बजाए उसने पूरा पेड़ बनाया। शिक्षिका ने नारियल के पेड़ के बारे में चार-पांच वाक्य लिखकर चित्र बोर्ड पर लटका दिया। वाक्यों में कई शब्द बार-बार आए थे। इस तरह विवरण देखनेव उन पर अभ्यास करने से पढ़ना सीखने में मदद मिलती है।

नाम में क्या रखा है

इसके बाद बच्चों को दूसरे हिस्से में ले जाया गया जहां उनके नाम सिखाने के लिए एक बोर्ड था। शिक्षिका ने बच्चों को बताया कि हम सबका एक-एक नामों में फर्क का पता कैसे चलता है? शिक्षिका ने बताया कि हर नाम न हों तो क्या हो या सबका एक ही नाम हो तो क्या हो? चर्चा में बच्चों ने बताया कि नाम से हम एक व्यक्ति को जोड़ते हैं और अलग-अलग व्यक्तियों की पहचान बनाते हैं।

इस तरह की चर्चा में बच्चों को सोचने का मौका मिलता है और उन्हें कक्षा की कार्रवाई में कुछ समझने का मज़ा आता है। सीखना, शिक्षक द्वारा कहा या समझाया जाना और बच्चों द्वारा नकल करना या दोहराना नहीं है। सीखना ही नहीं सिखाना भी एक तरह की क्षमता है। जो खुद के प्रयासों से विकसित की जाती है।

नामों को पढ़ना सिखाने की गतिविधि शुरू करने के साथ बच्चों के नामों को उनकी ध्वनियों पर ज़ोर देते हुए बच्चों के साथ बोला गया। जैसे वैंकटेश के नाम को ‘वैं - क - टे - श’ से बनने वाला बताया गया। हर बच्चे के नाम की छोटी-छोटी ध्वनियों को उनके अक्षरों के रूप में बोर्ड पर लिखा गया। बोलने व लिखने का काम धीरे-धीरे और कई बार किया गया जिससे बच्चे उसे देख लें व कुछ-कुछ समझ लें।

सब बच्चों को उनका नाम लिखे कार्ड दिए गए। उन्हें नाम कार्ड से तुलना करके बोर्ड पर लिखा नाम पहचानना था। इस गतिविधि को करवाते समय नाम-कार्ड और बोर्ड पर लिखे नामों में से प्रत्येक नाम और प्रत्येक अक्षर का रूवरूप एक जैसा होना चाहिए अन्यथा बच्चों को उसी प्रकार का भ्रम या निरुत्साह होगा जैसा वैंकटेश को हुआ जब वह कार्ड से नाम नहीं मिला पाया और कार्ड फेंककर चला गया। उसने कहा उसका नाम-कार्ड और पर पर लिखे नाम में फर्क है। बहरहाल इस गतिविधि को करवाने में बच्चों के लिए ललक की एक और बात भी थी। उनसे कहा गया था कि अगर वे अपना नाम पहचान पाए तो उन्हें उनका नाम-कार्ड घर ले जाने के लिए दिया जाएगा। उन्हें यह भी बताया गया कि यदि वे बारी-बारी से न बोलकर एक साथ बोलेंगे तो उन्हें घर ले जाने के लिए कार्ड नहीं मिलेगा। उन्हें कार्ड घर ले जाना अच्छा ही लगता। ‘कार्ड घर ले जाने के लिए नहीं मिलेगा’ यह एक किस्म की सज़ा ही थी। सज़ा देना अच्छा नहीं है लेकिन यह कक्षा में दी जाने वाली प्रचलित सज़ाओं की तरह नहीं थी। यह उन्हें एक ज़रूरी बात याद करवाने के लिए थी और धीरे-धीरे उनका आत्म-अनुशासन बढ़ाने के लिए थी। जो बच्चा दूसरे के साथ बोलता, वह समझ जाता कि उसे कार्ड ले जाने को नहीं मिलेगा। वह दुखी होता लेकिन समझ जाता क्योंकि उसे मालूम है कि हम उसके साथ न्याय कर रहे हैं। हमें लगा कि उसकी गलती को द्रवित होकर छोड़ना भी ठीक नहीं होगा। फिर भी उस बच्चे को सांत्वना व प्यार तो दे ही सकते हैं।

जब मैं एक बच्चे के साथ उसकी निराशापूर्ण भावनाएं बांट पाई तो उसने कहा, “कोई बात नहीं, मेरे पास एक पुराना कार्ड रखा है और फिर ड्रॉइंग की किताब और चार्ट पर भी तो मेरा नाम लिखा है।” यह इस परिस्थिति को हल करने का एक सार्थक तरीका था1 यह कहने के बाद वह लड़का जोश और खुशी के साथ सभी गतिविधियों में शामिल हो गया। हमें यह प्रयास लगातार करते रहना होगा कि हर बच्चा आत्म-अनुशासन को स्वीकारे व उसे अपने पर लागू कर पाए।

जब मैंने नामों के कार्डों के एक और सैट को बांस की चटाई वाले कमरे में रख दिया तो प्रकाश ने कहा, “वहां मत रखो; वहां बैठकर तो हम पढ़ नहीं सकते, वहां तो ब्लॉक से चीज़ें बनाने की जगह है। कार्ड तो हमारे कमरे में रखो।”  इससे एक ज़रूरी बात सामने आती है कि अगर आप बच्चों को स्पष्ट और अर्थपूर्ण निर्देश देते हैं तो वे उनका ईमानदारी से पालन करेंगे। आप अगर उन्हें अनुशासन सिखाना चाहते हैं तो आपको भी अपने व्यवहार में स्थायित्व लाना होगा।

अभी घर जाना नहीं चाहते

आज की गतिविधियों का इतना हिस्सा करवाने के बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ कि बच्चे थक गए होंगे और उन्हें भूख भी लगी होगी। इसलिए मैंने बच्चों से कहा कि, “तुम थक गए होगे। तुम्हें घर जाना चाहिए और खाना खाकर वापस आना चाहिए।”

उन्होंने जवाब दिया, “इस समय घर में खाना नहीं मिलता। हम घर नहीं जाना चाहते, हम और सीखना चाहते है।” 

मैंने कहा, “थके होने से तुम ध्यान नहीं दे पाओगे।” 

उन्होंने कहा, “नहीं, हम हर काम ध्यान से करेंगे।” 

फिर उनको नया काम दिया गया1 इसमें उन्हें रंग भरना और कागज़ काटना था।

हाथ से काम करने की गतिविधि और सिर्फ मानसिक गतिविधि को एक के बाद एक करना चाहिए। ऐसा न हो कि पहले सभी हाथ-पांव की क्रियाओं वाली गतिविधियां हो जाएं और बाद में सभी सिर्फ दिमागी गतिविधियां एक साथ करवानी पड़ें। इसलिए नाम पढ़ना सीखने के प्रयास, जिसमें बहुत कुछ दिमाग का काम था, के बाद चित्र बनाने का काम दिया गया जिसमें हाथों का इस्तेमाल ज़्यादा था।

मनचाहे रंग भरो

रंग भरने व काटने के लिए कुछ चीज़ों जैसे पत्तियां, पतंग, फूल, घर, आम, लैम्प आदि की बाह्य आकृतियां थीं। शिक्षिका ने इन्हें फर्श पर रख दिया और बच्चों से एक-एक चुनकर उसमें रंग भरने को कहा। उन्हें लाल, नीले, पीले आदि रंगों के क्रेयॉन दिए गए थे और हर बच्चे को अपनी चुनी आकृति में स्वयं चुनकर रंग भरने थे। शिक्षिकाएं इस दौरान बच्चों को देख रही थीं। बच्चे आपस में बहुत-सी रोचक बातें कर रहे थे। इस बातचीत को रोकना नहीं चाहिए। ऐसी बातचीत सुनने से शिक्षकों को बच्चों को और करीब से जानने का मौका मिलता है। आपसी बातचीत के दौरान बच्चे अपने मन की बात को खुलकर कह सकते हैं।

बच्चों को काम करते देखकर और उनके काम के मोटे आकलन से शिक्षिका ने नोट किया कि इन बच्चों की रंग भरने की क्षमता का विकास करने की ज़रूरत है। इसके बाद शिक्षिका ने रंग भरी आकृतियां काटने के लिए बच्चों को कैंची दी। बच्चों ने रंग भरी आकृतियों को काट-काटकर कॉपी में चिपकाया। सही ढंग से चिपकाने में गोंद लगाना, खुरदुरे कागज़ से फैलाना और चिपकाने के बाद कपड़े से दबाकर बराबर करना। हर बच्चे को उचित मात्रा में ज़रूरी सामान दिया गया था इसलिए न समय व्यर्थ गया न लड़ाई हुई।

आमतौर पर कक्षा में शिक्षक व बच्चे में धैर्य, बच्चों के सीखने का समय व्यर्थ न करना, लड़ाई के बिना चीज़ों का बंटवारा आदि बातों पर ज़ोर नहीं दिया जाता और न ही बच्चे के व्यक्तित्व व अह्म जैसी गंभीर बातों पर ध्यान दिया जाता है। जब हर बच्चे के लिए व्यवस्था है तो प्रत्येक बच्चे का महत्व है, अपना स्थान है।

इस गतिविधि को करने के बाद भी बच्चे घर जाना नहीं चाहते थे, वे और सीखना चाहते थे। उन्हें हाथों से बड़े-बड़े कागज़ों पर पेंटिंग करवाई गई। इसमें उन्हें बहुत मज़ा आया। इसके बाद वे संतुष्ट होकर घर गए। जाने से पहले उन्होंने सारा सामान ठीक से जमाया। उन्हें अगले दिन समय पर आना है यह याद दिलवा दिया गया।

सरसरी नज़र आज पर

आज कक्षा में गतिविधियां करवाने के लिए जो सामग्री चाहिए थी उसे यूं ही फैलाकर नहीं रखा गया था। सारी सामग्री एक झोले में रखी गई थी और शिक्षिका एक समय पर उसमें से एक ही चीज़ निकालती थी। इससे बच्चों की जिज्ञासा भी बनी रहती थी कि आगे क्या होगा।

एक गतिविधि खत्म होने के बाद उनकी सामग्री समेटकर रख दी जाती थी और उसके बाद ही अगली गतिविधि शुरू की जाती थी। यह बहुत ज़रूरी है; जब तक शिक्षक स्वयं अनुशासित न हो तब तक बच्चों से अनुशासन सीखने की या अनुशासन में रहने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। आप अनुशासन में रहने का भाषण स्वयं अनुशासन में रहने के बाद ही दे सकते हैं।

आज की गतिविधियों के दौरान ब्लॉक आदि से चीज़ें बनाने वाले समूह के बच्चों ने एक कुर्सी, एक चटाई, एक मेज़ और फूल आदि बनाए। एक लड़के ने सारे ब्लॉक मिलाकर एक आकार बनाया और उसे उपलब्ध जगह में फैलाया। इस लड़के ने यह काम पूरे ध्यान एवं रुचि के साथ किया।

दूसरे और पहले समूह ने पिछले दिन की ही गतिविधियों को दोहराकर उनमें अभ्यास की ज़रूरत को पूरा किया। दूसरे समूह को रंग के आधार पर वस्तुओं को पहचानना और बांटना सिखाया गया। अलग-अलग रंगों की बहुत सारी चीज़ें एक साथ बच्चों को दी गई। बच्चों को इन चीज़ों को छांटकर अलग करना था। इसके बाद प्रत्येक रंग के लिए ऐसी वस्तुओं के नाम खोजने थे जो उस रंग की हों और कक्षा में दिखाई दे रही हों।

तो हमारा क्या होगा?

घर जाने से पहले वैंकटेश ओर प्रकाश पास आए और हमसे पूछा, “क्या आप लोग कल भी आएंगे? ”

मैंने कहा, “नहीं, कल हम नही आएंगे। अब हम अगले महीने आएंगे। ”

उन्होंने कहा, “तो हमारा क्या होगा? मैंने मज़ाक में कहा, “कल तो तुम कह रहे थे कि अगर तुम कल स्कूल आर्इं तो मैं स्कूल आना छोड़ दूंगा। खैर तुम्हें अब तुम्हारी शिक्षिका पढ़ाएंगी। ”

उसने कहा, “कम-से-कम अपनी साथी को तो ज़रूर भेजना। ”

मैंने कहा, “नहीं वह भी नहीं आ सकेंगी। ”

वैंकटेश और प्रकाश शाम को हमें केन्द्र पर मिलने आए।

फीड-बैक सत्र

कक्षा के बाद शिक्षकों के साथ चर्चा हुई। आज उन्होंने अपने अवलोकन ठीक से लिखे थे और उन्हें कार्रवाई की योजना बनाना आ गया था। उन्हें इन दो दिन की कार्रवाई के आधार पर चार सप्ताह की योजना बनाने का काम दिया गया जिसे उन्होंने हमारी मदद से पूरा किया।

पाठ् यक्रम सिखाने के लिए कार्यक्रम व पाठ-योजना ऐसी चीज़ें नहीं हैं जो वयस्क लोग अपने तर्क, बुद्धि व सोच का इस्तेमाल करके बनाएं। इन सबका उद्गम कक्षा है, बच्चे हैं, उनकी रुचि और सीखने की ज़रूरतें हैं। बच्चों में अनुशासन की व सीखने की भावना अंदर से आती है। वे चीज़ों को देखते हैं क्योंकि उनकी सीखने में रुचि है और उन्हें सीखने की ज़रूरत लगती है। यह बाहर से नहीं उनके अंदर से ही उमड़ती है।

कक्षा में उन्हें सीखने, सोचने अपने आप पता करने व खुद करने का अभ्यास व प्रेरणा मिलनी चाहिए, ऐसे वातावरण में जहां बच्चा सृजनशील व गतिशील रहे। गतिशील व खुली कक्षा में प्रतियोगिता नहीं होती, बल्कि आपसी समझ बांटना, सकारात्मक दृष्टि और खुशी जैसी भावनाएं होती हैं। आप भी अपनी कक्षा में इस तरह की गतिविधि करें, तो यह सब शायद महसूस कर पाएंगे।