सवालीराम

सवाल: इन्‍द्रधनुष, धनुष के आकार का ही क्‍यों होता है, सीधा या तिरछा क्‍यों नहीं होता?  

जवाब: इन्‍द्रधनुष को लेकर मानव मन में कौतुहल प्राचीन काल से है। कहीं इसे ईश्‍वर का आसन माना गया तो कहीं पृथ्‍वी और स्‍वर्ग को जोड़ने वाला सेतु। ‘इन्‍द्रधनुष’ और अंग्रेज़ी के शब्‍द ‘रेनबो’ में दो बातें झलकती हैं, इसकी धनुष-नुमा आकृति और बारिश के साथ इसका निकट संबंध (इन्‍द्र वैदिक युग में बारि‍श के देवता थे)।

यह तो हम सभी जानते हैं कि इन्‍द्रधनुष साफ मौसम में भी नहीं दिखता हे ओर सूर्य के छिपे रहने पर भी नहीं। इसके लिए बारिश और सूर्य का प्रकाश, दोनों ज़रूरी हैं। ज़रा गौर से देखने पर हमने यह भी पाया होगा कि यह सूर्य की विपरीत दिशा में दिखता है, और ज्‍़यादातर सूर्योदय या सूर्यास्‍त के आगे-पीछे। हमने यह भी देखा होगा कि अगर इन्‍द्रधनुष को एक वृत्‍त का अंश मान लें, तो बैंगनी या नीला रंग वृत्‍त के अन्‍दर की तरफ होता है और लाल रंग बाहर की तरफ। लेकिन क्‍यों? ओर इन सब बातों का धनुष-नुमा आकार से क्‍या संबंध है? आइए, इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करें।

वास्‍तव में इन्‍द्रधनुष के मनमोहक रूप के पीछे है प्रकाश का परावर्तन और अपवर्तन। इन प्रक्रि‍याओं से शायद आप परिचित होंगे।

प्रकाश का किसी सतह से टकराकर वापस परावर्तन कहलाता है (चित्र-1)। जब प्रकाश एक माध्‍यम से दूसरे माध्‍यम में प्रवेश करता है तो वह अपने सीधे पथ से मुड़ जाता है (चित्र-2)। इसे अपवर्तन कहते हैं। अब आप पूछ सकते हैं कि यहां दो माध्‍यम कहां से आ गए। ये हैं हवा और पानी। बारिश के मौसम में हवा में पानी की कुछ मात्रा छोटी-छोटी बूंदों के रूप में होती है। हमारे काम की बूंदें इतनी छोटी होती हैं कि वे बारिश बनकर नीचे नहीं गिरतीं, बल्कि हवा में तैरती रहती हैं। गिरती हुई बड़ी बूंदें बिल्‍कुल गोलाकार नहीं होतीं, खिंचकर लम्‍बी हो जाती हैं (चित्र-3 क); छोटी बूंदें बिकुल गोलाकार होती हैं (चित्र-3)।

इन्‍द्रधनुष बनने के लिए यह ज़रूरी है कि बूंदें ठीक गोलाकार हों।

अब मान लीजिए कि सूर्य का प्रकाश एक गोलाकार पानी की बूंद पर पड़ता है (चित्र-4)। पड़ने वाली या आपतित किरण ‘क’ हवा से पानी में प्रवेश करती है, जिससे वह ‘चित्र-2क’ की तरह मुड़ जाती है। फिर यह किरण ‘ख’ बूंद की अन्‍दर की सतह से टकराती है। इसका एक भाग ‘च’ पानी से हवा में प्रवेश करता है और ‘चित्र-2(ख)’ की तरह अपवर्तित होता है। वहीं दूसरा भाग परावर्तित होता है। यह किरण ‘ग’ अपवर्तित होकर बाहर निकलती है – ‘घ’। इन क्रियाओं के कारण किरण ‘क’ अपने सीध पथ ‘छ’ से विचलित या दिशा-परिवर्तित होती है।

निकलने वाली )या निर्गत) किरण ‘घ’ और आपतित किरण ‘क’ के बीच जो कोण बनता है, वह आपतन कोण पर निर्भर करता है। चित्र-5 मेंदर्शाया गया है किस तरह अलग-अलग किरणों के लिए यह कोण अलग होता है।

इनमें से कोई भी किरण देखने वाले (प्रेक्षक) की आंख तक पहुंच सकती है। अपवर्तन और परावर्तन के नियमों से, थोड़ी-सी त्रिकोणमिति और कलन का सहारा लेकर, हम आपतन कोण और ‘क’ और ‘घ’ किरणों के बीच बनने वाले कोण के बीच में एक गणितीय संबंध स्‍थापित कर सकते हैं। यहां हम उस संबंध को एक ग्राफ के रूप में दर्शाएंगे (चित्र-6)।

इस चित्र से पता चलता है कि किसी भी आपतित किरण और निकलने वाली किरण के बीच के कोण का एक अधिकतम मान है, जो लगभग 420 है। (अब यह 420 कहां से आया? इसका संबंध पानी के अपवर्तनांक से है, जो लगभग 1.33 है।) यही नहीं, अधिकतर किरणों के लिए यह कोण 420 के आसपास ही है।  

अब मान लीजिए कि हम सूर्य की ओर पीठ करके खड़े हैं, जिससे चित्र-4 के ‘घ’ की तरह परावर्तित किरणें हमारी आंख तक पहुंच रही हैं (चित्र-7)।

अलग-अलग बूंदों से अलग-अलग कोणों पर निकलने वाली किरणें आंख तक पहुंचती हैं, पर ऐसी कोई किरण नहीं होगी जिसके लिए यह कोण 420 से ज्‍़यादा हो। यानी आकाश के कुछ हिस्‍से से परावर्तित किरणें हमारी आंख तक पहुंचेंगी (जिससे वह हिस्‍सा चमकीला दिखेगा) ओर बाकी हिस्‍से से नहीं। चमकीले हिस्‍से की सीमा उन किरणों द्वारा निर्धारित होगी, जो 420 के कोण पर हैं।

चित्र-8 में दिखाया गया है कि इस सीमा का आकार क्‍या होगा।

प्रेक्षक ‘प’ ज़मीन पर खड़ा है। ‘प’ से जलकणों की दूरी 1-2 कि.मी. है।  इसलिए सूर्य की किरणें परस्‍पर समान्‍तर हें, जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है। ‘ब’ और ‘म’ दो ऐसी बूंदें हैं, जिनसे किरणें आपतित किरण, यानी सूर्य की दिशा, के साथ 420 का कोण बनाकर ‘प’ की आंख तक पहुंच रही हैं। ऐसे बिन्दुओं को जोड़ने पर एक वृत्‍त का अंश बनता है जैसा कि परकार को 420 पर खेलकर उसकी नोक को स्थिर रखकर पेंसिल को घुमाने से बनता है।

इस वृत्‍त को चित्र में मोटी रेखा द्वारा दर्शाया गया है। यही है चमकीले हिस्‍से की सीमा। चूंकि अधिकतर किरणें लगभग 420 का कोण बनाती हैं, सबसे ज्‍़यादा प्रकाश एक वृत्‍ताकार पट्टी से आएगा। जब सूर्य क्षितिज पर होगा, तो यह पट्पी अर्धवृत्‍ताकार होगी। सूर्य क्षितिज से जितना ऊपर उठेगा, अर्धवृत्‍त का उतना हिस्‍सा कट जाएगा। इसलिए अधिकतर इंद्रधनुष सूर्योदय और सूर्यास्‍त के समय दिखते हैं।

अब प्रश्‍न बचता है कि रंग अलग कैसे होते हैं। वास्‍तव में ‘पानी का अपवर्तनांक’ कोई एक संख्‍या नहीं है, यह अलग-अलग रंगों की किरणों के लिए थोड़ा-थोड़ा अलग होता है – लाल रंग के लिए सबसे कम (1.329) और बैंगनी के लिए सबसे ज्‍़यादा (1.343)। फलस्‍वरूप सबसे अधिक मुड़ाव का कोण भी कम-ज्‍़यादा होता है – लाल के लिए 42.30 और बैंगनी के लिए 40.40 । अत: हमारी आंख तक पहुंचने वाली लाल किरणें जिन बूंदों से परावर्तित हुई हैं, वे आकाश में थोड़ी ज्‍़यादा ऊंचाई पर होंगी और बैगनी किरणों वाली बूंदें कम ऊंचाई पर (चित्र-9) अब अगर इंद्रधनुष को गौर से देखें तो बिल्‍कुल यही दिखता है: ऊपर यानी बाहर की तरफ लाल रंग, उसके बाद पीला, हरा आदि और सबसे अंदर बैंगनी। यही नहीं, वृत्‍त के अंदर का हिस्‍सा बाहर के हिस्‍से के बनिस्‍बत ज्‍़यादा चमकीला दिखता है (चित्र-10)।

दो इंद्रधनुष एक साथ
कभी-कभी एक साथ दो इंद्रधनुष दिखते हैं। दूसरा इंद्रधनुष पहले के बाहर की तरु होता है। इसे द्वितीयक इंद्रधनुष कहते हैं। यह प्राय: पहले के मुकाबले कम स्‍पष्‍ट होता है ओरा इसमें रंगों का क्रम उल्‍टा होता है – लाल अंदर और बैंगनी बाहर (चित्र-11क )। यह उन किरणों से बनता है जो बूंद के अंदर दो बार परावर्तित हुई हैं (चित्र-11ख)।

एक मज़ेदार घटना का उल्‍लेख पार्थ घोष और दीपंकर होम की ‘चाय की प्‍याली में पहेली’ पुस्‍तक में है। बादलों के ऊपर उड़ते हुए हवाई जहाज़ में बैठे एक सज्‍जन ने नीचे झांका तो वहां एक इंद्रधनुष देखा जो पूरे वृत्‍त आकार का था।

ऊपर दिए गए विश्‍लेषण के आधार पर अब हम कह सकते हैं कि उस समय सूर्य लगभग सिर के ऊपर रहा होगा (चित्र-12)। दोपहर के समय इंद्रधनुष देखने का यही एक तरीका है।

एक आखिरी प्रश्‍न - जो किरणें केवल अपवर्तित हुई हैं (जैसे चित्र 4 में ‘च’), उनसे इंद्रधनुष क्‍यों नहीं बनता है? यह यसूर्य की दिशा में – न कि इसके विपरीत दिशा में – बनना चाहिए।

क्‍या आपने कभी ऐसा इंद्रधनुष देखा है? यदि नही तो इसका क्‍या कारण हो सकता है? सोचकर हमें इस पते पर लिखिए;

सवालीराम, द्वारा संदर्भ, एकलव्‍य, कोठी बाजार, होशंगाबाद 461001

वैसे अगली बार जब आपको इंद्रधनुष दिखाई दे तो ज़रा सोचिए कि उसके पीदे प्रकाश के परावर्तन और अपवर्तन की क्‍या प्रक्रिया है। हमें विश्‍वास है कि इस समझ से इंद्रधनुष आपको और भी ज्‍़यादा सुंदर और मनोहारी प्रतीत होगा।

(इंद्रधनुष वाले इस सवाल को पूछा था राजकुमार, कक्षा आठवीं, द्वारा मिश्रीलाल ओनकर, छिपानेर रोड, हरदा, जि़ला होशंगाबाद ने।)


इस लेख के सारे चित्र प्रतीकात्‍मक हैं।