स्निग्धा मित्रा

जितनी आसानी से भीगे हुए चने में बीजपत्र, अंकुर, प्रांकुर देखा जा सकता है, क्या उतनी ही सहजता से मक्के में भी बीजपत्र दिखाई देते हैं? शायद मामला थोड़ा फर्क है ... सवाल शायद यह है कि आखिर बीजपत्र है क्या?

चना, मूंग, तूअर आदि का बीज लिया और बस उसे तोड़ने या भीगो कर खोलने भर से दोनों बीजपत्र दिख जाते हैं। यही नहीं, भिगोए हुए बीज में तो अंकुर यानी मूलांकुर और प्रांकुर भी अक्सर बहुत स्पष्ट होते हैं। आमतौर पर जितने सहज सरल तरीके से द्विबीजपत्री बीज में ये सब दिख जाते हैं क्या उतनी ही सरलता से किसी एकबीजपत्री बीज में अंकुर और बीजपत्र दिखाए जा सकते हैं?

मोटे तौर पर समझ यही है कि जिन बीजों में एक बीजपत्र पाया जाता है वे एकबीजपत्री कहलाएंगे और द्विबीजपत्री समूह के बीज में दो बीजपत्र होते हैं। अक्सर यह वर्गीकरण सिर्फ बीजपत्र की संख्या के आधार पर ही नहीं मगर कई अन्य गुणों को भी ध्यान में रखते हुए - जैसे कि जड़ का प्रकार, पत्तियों का विन्यास इत्यादि से जोड़कर - किया जाता है।

द्विबीजपत्री बीज का अध्ययन अगर आप करना चाहें तो सेम, अरंडी, चना इत्यादि बहुतेरे उदाहरण हैं जिनमें आप स्पष्ट रूप से बीजपत्र और अंकुर देख सकते हैं। मगर एकबीजपत्री समूह में अध्ययन करने हेतु आपके पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं। अगर सुपारी, खजूर इत्यादि लें तो बीज इतना कठोर है कि उसे काटना ही मुश्किल होगा। गेहूं और धान तो बहुत छोटे हैं और कठोर भी। फिर आपके पास बचता है, मक्का

द्विबीजपत्र बीज के दो उदाहरण: सेम के बीज को खोलने पर बीजपत्र के साथ जुड़ा हुआ अंकुर दिखाई दे रहा है। जिस हिस्से से जड़ बनेगी उसे मूलांकुर कहते हैं। और जिससे तना बनेगा उसे प्रांकुर; मूलांकुर और प्रांकुर को मिलाकर अंकुर कहते हैं। और अंकुर व बीजपत्र मिलकर भ्रूण (Embryo) कहलाते हैं। सेम के बीजपत्र अंकुर की तुलना में काफी बड़े व पोषक पदार्थों से युक्त होते हैं। चना, सेम, मूंग, तूअर जैसे बीजों में पौधे को शुरुआती विकास के लिए भोजन बीजपत्र में मौजूद पोषक पदार्थों से ही प्राप्त होता है, जब तक कि पौधा अपना भोजन खुद न बनाना शुरू कर दे।

अरंडी का बीज खोलने पर भी बीज के दो भाग तो हो जाते हैं परन्तु अंदर की रचना काफी फर्क होती है। इसमें बीजपत्र बहुत ही पतले-पतले होते हैं और उनके बाहर की ओर बीज का दलदार हिस्सा दरअसल में भ्रूणपोष है यानी वो हिस्सा जो भ्रूण को पोषक पदार्थ देगा। अरंडी जैसे बीजों में बीजपत्रों में खुद के पास पोषक पदार्थ नहीं होता परन्तु वे भूणपोष से इन्हें लेकर अंकुर तक पहुंचाते हैं। चीकू का बीज भी ऐसा ही एक और उदाहरण है। यह आसानी से घुल जाता है और उसमें भ्रूणपोष से चिपके हुए पतले-से बीजपत्र आसानी से दिख भी जाते हैं और थोड़ा सा खरोंचकर अलग निकाले जा सकते हैं।

जिसके विस्तृत अवलोकन दिखाते हुए अंदरुनी संरचना के चित्र कई किताबों में मिल जाते हैं। चलिए देखते हैं कि पुस्तकों में क्या विवरण मिलता है और बीजपत्र कहां होता है उसमें। अगर साथ में खुद भी प्रयोग कर पाएं तो और भी मदद मिलेगी।

इसके लिए किसी ताजे भुट्टे में से कड़े बीज निकाल लीजिए या पूरे दो दिन तक भिगोए हुए मक्के के बीज लीजिए। जिस तरफ आपको पीले भाग में धंसा हुआ सफेद भाग नज़र आए और सफेद भाग के बीच में एक रेखा सी दिखे, बीज के ऊपर से ब्लेड द्वारा उसी तरफ का एक पतला-सा हिस्सा काट लीजिए। इस पतली काट पर आप

मक्के के बीज की काट: मक्के के पानी में भिगोए बीज को चित्रानुसार जमाकर किसी ब्लेड की मदद से खड़ी काट लेनी है। इसके बाद इस कोट पर आयोडीन के हल्के घोल की दो-तीन बूंदें डालकर थोड़ी देर इंतज़ार कीजिए। जिस भाग का रंग काला हो जाता है वह भ्रूणपोष है और जिस हिस्से का रंग पीला ही रहता है वह भ्रूण है।

आयोडीन के हल्के घोल की कुछ बूंदें टपका दीजिए। बीज का एक हिस्सा काला हो जाएगा जबकि एक हिस्सा पीला-सा रहेगा। इसी पीले हिस्से के बीचों-बीच एक रेखा-सी नजर आएगी।

जो हिस्सा पूर्ण रूप से काली हो गया है वह तो भूणपोष है। अंकुर के लिए पोषक पदार्थ इसी हिस्से में होता है। अनाज वाले बीजों में यह पोषक पदार्थ खासतौर से मण्ड के रूप में पाए जाते हैं। अन्य बीजों में मण्ड के अलावा प्रोटीन या वसा के रूप में भी पोषक पदार्थ मिल सकता है।

अब सवाल उठता है कि मक्का के बीज में आखिर बीजपत्र कहां है। कुछ पुस्तकों में अक्सर उस हिस्से को जो आयोडीन का घोल डालने पर पीला ही रहता है, बीजपत्र कह दिया जाता है। परन्तु यही तो वह हिस्सा है जिससे प्रांकुर और मूलांकुर निकलते हैं यानी

भ्रूणपोष कैसे बनता है?

परागण क्रिया के अंतिम चरण में दो नर कोशिकाओं में से क, मादा जनन कोष को निषेचित करती है और भ्रूण बन जाता है। दूसरी नर जनन कोशिका भ्रूणपोष बनाने के लिए अंडाशय की एक अन्य कोशिका जिसमें दो केन्द्रक हैं से जाकर मिल जाती है और इससे भ्रूणपोष बनता है। यानी भ्रूण और भ्रूणपोष का विकास बीजांड में अलग हिस्से व अलग कोशिकाओं से होता है। इसके विपरीत बीज पत्र का विकास भ्रूण की कोशिकाओं से ही होता है। जिन बीजों के परिपक्व होने तक भ्रूण अपने विकास हेतु भ्रूणपोष से सारा पोषक पदार्थ अवशोषित कर लेता है ऐसे बीजों में भ्रूणपोष नहीं मिलता मगर बीजपत्र में सारे पोषक पदार्थ इकट्ठा हो जाते हैं। जैसे सेम, चना, मूंग इत्यादि। जिन बीजों में भ्रूण पूर्ण रूप से विकसित होने के लिए भ्रूणपोष में से सारा पोषक पदार्थ अवशोषित नहीं करता ऐसे बीजों में भ्रूणपोष पाया जाता है। जैसे मक्का, गेहूं इत्यादि।

कि अंकुर भी इसी हिस्से में है। तो क्या मक्के में उस तरह से बीजपत्र अलग निकालकर नहीं देख सकते जैसे हम द्विबीजपत्री बीजों यानी चना, सेम, अरंडी आदि में अलग कर पाते हैं? यह सवाल भी उठ सकता है कि एकबीजपत्री बीजों में क्या बीजपत्र होता भी है; और अगर नहीं होता तो फिर उन्हें एकबीजपत्री कहते ही क्यों हैं?

एक क्षण के लिए तो लगता है कि जब हर जगह एक बीजपत्री और द्विबीजपत्री के वर्गीकरण का इस्तेमाल होता है तो जरूर इन सवालों का सामान्य सा हल होगा। परन्तु जैसे ही थोड़ा गहराई में जाएं तो समझ में आता है कि मसला उतना आसान नहीं है।

सबसे पहले तो यही पता चलता है कि एकबीजपत्री बीजों में बीजपत्र अलग से नहीं निकलता। फिर यह कि मक्का के बीज में जो सफेद-पीला-सा हिस्सा होता है उसमें अंकुर भी है। यह तो कोई बड़ी बात नहीं हुई, हो सकता है कि एकबीजपत्री बीजों में बीजपत्र और अंकुर साथ में जुड़े रहते हों। परन्तु यहां एक और समस्या है। कि किताबों में एक-बीजपत्री बीजों में, मुख्यतः मक्के के बीजपत्र के साथ जुड़े इस भाग को बीजपत्र नहीं कहते, स्कूटेलम कहते हैं। परन्तु उसका भी

बीज से स्कुटेलम तकः

(क) मक्का का बीज जिसमें बीच में भ्रूण दिखाई दे रहा है।
(ख) पहले चित्र को टूटी रेखा से खड़ा काटने पर - मक्का के बीज की खड़ी काट। भ्रूण नीचे की ओर दाहिनी तरफ दिखाई दे रहा है।
(ग) बीच वाले चित्र के भ्रूण वाले हिस्से को बड़ा करके देखने पर; दाहिनी ओर अंकुर है और बाईं ओर स्कूटेलम जिसे कुछ लोग बीजपत्र भी कहते हैं। स्कूटेलम अंकुर को चारों ओर से घेरे रहता है और उसका काम है भ्रूणपोष से पोषक पदार्थ लेकर अंकुर तक पहुंचाना।

काम वही है - भ्रूणपोसे पोषक पदार्थ लेकर अंकुर तक पहुंचाना। इस रचना को ऊपर दिए चित्र में थोड़ा विस्तार से देखिए।

अक्सर यह माना जाता है कि बीजपत्र विशेष प्रकार की पत्तीनुमा संरचना है। परन्तु स्कुटेलम के संबंध में एक बात जो बेझिझक रूप से कही जा सकती है कि इसकी पत्तीनुमा संरचना बिल्कुल अस्पष्ट है। फिर भी स्कुटेलम को बीजपत्र का स्वरूप शायद इसलिए माना गया है क्योंकि इसका कार्य भ्रूणपोष में से भोजन अवशोषित करना है। ऐसा ही कार्य कई द्विबीजपत्री बीजों, जैसे अरंडी, चीकू इत्यादि, में बीजपत्र करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि भुट्टा भूनते हुए जो भाग चिटककर बाहर को आ जाता है उसे सिर्फ बीजपत्र नहीं कह सकते। इसमें तो स्कूटेलम समेत प्रांकुर, मूलांकुर आदि सब हैं।


स्निग्धा मित्राः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान कार्यक्रम से संबद्ध।