के. आर. शर्मा

मुझे एक बार खरमोर नामक पक्षी को देखने का अवसर मिला था। उसे देखने हम सब अपने शिक्षक के साथ 1984 में बरसात के दिनों में धार के निकट जैतपुरा गांव से सटे घास के मैदान में गए थे; और पौ फटने से पहले सुबह सुबह इस घास के मैदान में पहुंच गए थे। मुझे बताया गया था कि बरसात के दिनों में खरमोर घास के मैदानों में पहुंच जाता है और आकाश में उछलता है। इस प्रकार जब नर खरमोर उछलता है तो उसकी उपस्थिति का पता चल जाता है।

चौकन्ने होकर हम घास के मैदान में चारों ओर निगाहें दौड़ा रहे थे तभी एक खरमोर ऊंची घास में से अचानक अपने पंखों को फड़फड़ाता हुआ ऊपर की ओर उछला और फिर पैराशूट की भांति गिरते हुए घास में ही गायब हो गया। इस दृश्य को हालांकि हमने काफी दूर से देखा था किंतु मैं रोमांचित हो उठा।

बरसात के दिनों में ऊंची उछाल भरता हुआ नर खरमोर

इस पूरी घटना को देखकर उस समय मेरे जेहन में बहुत सारे सवाल उमड़ रहे थे। उस वक्त मुझे खरमोर के बारे में कुछ जानकारी मेरे शिक्षक ने दी थी। बाद में पक्षियों से संबंधित साहित्य टटोलने पर जो जानकारी मिली उसे यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।

खरमोर (Lesser Florican) देशी मुर्गे के आकार का पक्षी है। यह सोहन चिड़िया (Bustard) परिवार का सदस्य है। इस परिवार में गोंडावण (Great Indian Bustard) भी आता है।

यदि हम जीव-जगत पर नज़र डालें तो पता चलता है कि इनमें प्रजनन के दौरान क्या-क्या नहीं होता - अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए जब नर और मादा जोड़ा बांधते हैं तो कुछ में मार-धाड़ और खून-खच्चर तक की नौबत आ जाती है। कुछ में मादा को आकर्षित करने के लिए नर बड़ी शालीनता से नाच-गाना करते हैं। खरमोर के प्रणय-निवेदन (Court ship) का तरीका बड़ा ही अनूठा है।

खरमोर के बारे में जो जानकारी है उसके मुताबिक यह भारत के मैदानी भागों में बड़ी संख्या में पाया जाता था। किंतु अब इनकी संख्या काफी कम हो गई है।

खरमोर स्थानीय रूप से स्थानांतरण (Local Migration) करते हैं। और बरसात के दिनों में ऐसे स्थान पर पहुंच जाते हैं जहां ऊंची-ऊंची घास के मैदान हों। दरअसल घास के मैदान खरमोर के प्रजनन स्थल हैं। कभी कभी ये घास के मैदान से लगे कपास सोयाबीन आदि फसलों वाले खेतों में भी पहुंच जाते हैं। दक्षिण पश्चिमी मॉनसूनी हवाओं के साथ ही ये घास के मैदानों की ओर कूच कर जाते हैं।

नर खरमोर प्रजनन काल में आकर्षक रूप धारण कर लेता है। उस समय इसकी गर्दन और छाती काले रंग की तथा बगल वाले पंख सफेद होते हैं। माथे पर एक कलगी होती है। मादा खरमोर बारहों मास एक सरीखी रहती है। यह मटमैले रंग की तथा चितकबरी होती है। प्रजनन काल में नर खरमोर काफी सक्रिय हो उठता है जबकि मादा शर्मिली तथा चुप रहती है।

बरसात के दिनों में घास के मैदानों में घास काफी ऊंची उठ जाती है। ऐसे में नर खरमोर मादा को आकर्षित करने तथा अपनी उपस्थिति जताने के लिए ऊपर की ओर उछलता है। ऊपर उछलते वक्त नर खरमोर अपने पंखों को फड़फड़ाता है, अपनी दुम को फुला लेता है और ज़ोर से आवाज़ निकालता है। और फिर पैराशूट की भांति गिरते हुए वापस जमीन पर लौट आता है।

नर खरमोर की आवाज इतनी तेज होती है कि लगभग आधे किलोमीटर के क्षेत्र में गूंजती है। अक्सर नर खरमोर सुबह या शाम को उछलता है। या फिर दिन में घने बादल छाए हों तब भी उछलते देखा गया है।

नर खरमोर इस उछाल के दौरान क्षेत्र रक्षण करता है। नर खरमोर अपने क्षेत्र में किसी दूसरे नर खरमोर की उपस्थिति बर्दाश्त नहीं करता। कभी-कभी बड़ा ही दिलचस्प नज़ारा देखने में आता है। एक ही घास के मैदान में दो या अधिक नर खरमोर में होड़ शुरू हो जाती है। दोनों कोशिश करते हैं कि बेहतर प्रदर्शन करें। जब एक नर खरमोर उछलता है तो दूसरा तभी ऊपर उछलेगा जब पहला खरमोर ज़मीन पर आ जाएगा। दिन भर में एक नर खरमोर 400 बार तक उछलते देखा गया है।

इस दौरान मादा खरमोर घास में ही दुबकी बैठी रहती है।

तत्पश्चात नर और मादा जोड़ा बांधते हैं यानी उनका समागम होता है। मादा खरमोर ज़मीन पर किसी छिछले गड्ढे में 3-4 अंडे देती है।

और फिर उन्हें सेती है। अंडों से जो बच्चे निकलते हैं उनकी देखभाल भी मादा ही करती है। नर खरमोर की अपनी संतान की परवरिश में कोई भूमिका नहीं होती।

खरमोर को लेकर कई पहलू अभी भी पहेली बने हुए हैं। मसलन क्या एक नर एक से ज्यादा मादाओं के साथ जोड़ा बनाता है, मादा अपने बच्चों की परवरिश कब तक करती है, खरमोर प्रजनन काल बीत जाने के बाद कहां चले जाते हैं और वहां क्या करते हैं? वगैरह।

घास के मैदान में दुबकी बैठी मादा खरमोर, अपने दो अंडों के साथ। इन अंडों का रंग हरा होता है।

खरमोर की उछाल: सरदारपुर या सैलाना में बरसात के दिनों में यह दृश्य काफी दुर्लभ है जब एक नर खरमोर घास से ऊपर उछाल मारता है और फिर पंख फैलाकर पैराशूट की तरह ज़मीन की ओर गिरता है। पहले चित्र में नर ने उछाल भरी है तथा दूसरे चित्र में वह पंख फैलाकर ज़मीन की ओर आ रहा है।

लेकिन खरमोर के प्रजनन के साथ एक दुखद पहलू भी जुड़ा है। खरमोर को गेम बर्ड माना जाता है यानी इंसान इसका बहुतायत में शिकार कर रहे हैं। शिकार करने वाले बरसात के दिनों में घात लगाकर बैठे रहते हैं। जब नर खरमोर मादा को रीझाने के लिए उछलता है तो शिकारी उसे निशाना बना देते हैं।

जिससे प्रणय निवेदन किया जा रहा था वह मादा भी वहीं आसपास घास में छिपी होती है। इसलिए मादा भी जान से हाथ धो बैठती है। जिस अनूठे प्रणय निवेदन को नर खरमोर अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए अपनाता है वही उछाल उसकी जिंदगी की आखरी उछाल साबित होती है।

इन्हीं सब कारणों से खरमोर अब इतने कम हो गए हैं कि इन्हें विलुप्तशील पक्षियों की श्रेणी में गिना जाने लगा है।

मध्यप्रदेश के धार जिले में सरदारपुर तथा रतलाम जिले में सैलाना में खरमोर अभ्यारण्य बनाए गए हैं। यहां बरसात के दिनों में खरमोर स्थानांतरित होकर आते हैं। और प्रजनन करके फिर न जाने कहां चले जाते हैं।


के. आर. शर्मा: एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान कार्यक्रम से संबद्ध। उज्जैन में रहते हैं।
सभी फोटो सेंचुरी पत्रिका के जनवरी-मार्च 1987 अंक से सांभार। फोटोग्राफरः रवि शंकरन