प्रियदर्शिनी कर्वे

इस किताब के लेखक, रॉबर्ट एहरलिच, अमेरिका की जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। यह लेख इस किताब के कुछ हिस्सों पर आधारित है। उनकी कुछ अन्य किताबें हैं - 'द कॉस्मॉलॉजिकल मिल्क शेक', 'वॉट इफ यू कुड अनस्क्रेबल एन एग' और 'टर्निग द वर्ल्ड इनसाइड आऊट एंड 174 अदर सिंपल फिज़िक्स डेमॉन्स्ट्रेशन्स' आदि।

सिद्धांतों की जांच-परख के संदर्भ में अक्सर यह कहा जाता है कि खुद से मॉडल तैयार करके देखो। जैसे ही मॉडल का सुझाव दिया जाता है तुरंत सामने से सवाल आता हैइतनी सब मगज मारी किसलिए? आप लोगों में से स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को प्रयोगशालाओं में इस्तेमाल होने वाला सामान खरीदने के लिए पैसों की समस्या का अहसास होगा।
घर में तैयार किए गए मॉडल काफी सस्ते में तैयार हो जाते हैं और किसी अन्य महंगे उपकरण की तरह विश्वसनीय तरीके से काम करते हैं। इससे भी आगे जाकर कहें तो मॉडल डिजाइन करते हुए आप मूल मॉडल में सुधार कर सकते हैं, साथ ही जरूरत के हिसाब से बदलाव भी कर सकते हैं।

कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि एकदम सरल और साधारण से दिखने वाले मॉडल के कारण बच्चों में अरुचि आती है। लेकिन मेरी राय इसके एकदम विपरीत है। भौतिक विज्ञान कोई अमूर्त, रोज़मर्रा की जिंदगी से कटा हुआ विज्ञान नहीं है। अपनी जानी पहचानी, साधारण चीजों के इस्तेमाल से भौतिक विज्ञान को जिंदगी से जोड़ा जा सकता है। लेकिन महंगे उपकरणों का इस्तेमाल करने पर भौतिक विज्ञान हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से दूर होता जाता है। जब एकदम ही जरूरी हो तो महंगे-जटिल उपकरणों का इस्तेमाल किए जाने का मैं विरोधी नहीं हूं। लेकिन जहां तक हो सके जटिल उपकरणों के इस्तेमाल से बचना चाहिए ऐसी मेरी धारणा है।

खुद मॉडल तैयार करने का एक खास फायदा है - वह है हम खुद मॉडल का बेहतर ढंग से आकलन कर सकते हैं, साथ ही हमें इसकी सीमाओं और कमी-बेशी का भी अंदाज़ा होता है। लेकिन इन सब से भी बढ़कर इसके पीछे छुपे विज्ञान को समझ पाते हैं। कई बार तो एकदम आसान मॉडल से उभरे निष्कर्षों से अनुभवी भौतिक शास्त्री भी अचरज में डूब जाते हैं।
मॉडल शिक्षकों को खुद तैयार करना चाहिए, बने -बनाए मॉडल खरीदने का उतना महत्व नहीं है। इसके पीछे कारण यह है कि खुद बनाया गया मॉडल शिक्षक द्वारा कक्षा में इस्तेमाल होने की संभावना कहीं ज्यादा होती है। भौतिक विज्ञान पढ़ाने वाले अनेक शिक्षकों को अच्छे मॉडल देखने में रुचि होती है, लेकिन यही मॉडल अपनी कक्षा में दिखाना खासा कसरत का काम लगता है। पहले सामग्री एकत्रित करो, जोड़ो और फिर अगर मॉडल काम न कर रहा हो तो गलती खोजो, कक्षा को समझाओ कि गलती कहां हुई थी।

जिस किताब की चर्चा हम यहां कर रहे हैं उसमें जरूरी लगभग सभी सामग्री घर में या आसपास आसानी से मिल जाती है। इनमें से काफी मॉडल तो आप जेब में रखकर कक्षा में ले जा सकते हैं। और इन मॉडलों से न्यूटन के नियम के बदले मर्फी का नियम सिद्ध होने का खतरा भी नहीं है। आखिर अपनी सृजनशीलता को आगे बढ़ाने के लिए, अपनी कल्पनाओं को और लोगों तक पहुंचाने के लिए तो आपको मॉडल बनाना ही चाहिए। हो सकता है आपको भौतिक विज्ञान पर कोई कार्यक्रम तैयार करना हो, या हाथों से तैयार किए गए मॉडलों की प्रदर्शनी बनानी हो, या अपने द्वारा तैयार किए गए मॉडल के बारे में कुछ लिखना हो। उद्देश्य कुछ भी हो आपका मॉडल बताए मुताबिक काम करेगा। इसकी जांच ज़रूर कर लीजिए क्योंकि ऐसे कई सारे प्रायोगिक मॉडल होते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे आसानी से बन जाएंगे लेकिन वास्तव में उन्हें तैयार करके चला पाना खासा मुश्किल काम होता है; और इन पर काफी समय लगाने के बाद ही इन मुश्किलों को समझा जा सकता है, उन्हें दूर किया जा सकता है।

वैसे मैं अपनी इस गलती को महसूस करता हूं कि मेरी पहले की किताबों में कुछ ऐसे मॉडल दिए हैं जिन्हें मैंने भी बनाकर नहीं। देखा लेकिन मुझे ऐसा महसूस हुआ कि इनमें गलती होने की संभावना नहीं है। वैसे यह सच है कि खुद प्रायोगिक मॉडल बनाकर देखने से बेहतर दुसरा कोई रास्ता नहीं है; आखिर अनुभव बेशकीमती चीज़ है।


यहां 'हाय टोस्ट लैंडूस जेली साइड डाउन' किताब में से दो प्रयोग दिए जा रहे हैं और साथ ही उनके पीछे मौजूद सिद्धांतों की जांचपड़ताल भी की जा रही है।


प्रयोग-1

स्ट्रों की मदद से बोतल में से पानी पीना जितना आसान लगता है उतना आसान है नहीं।
ज़रूरी सामानः खूब सारी स्ट्रॉ पाइप, सेलो टेप, एक गिलास पानी, एक प्लास्टिक की बोतल जिसका ढक्कन अच्छे से बंद होता हो। इस ढक्कन में एक इतना ही बड़ा छेद बनाना है। जिसमें एक स्ट्रॉ पाइप फंसाया जा सके।
आप जब स्ट्रों से कोई तरल पदार्थ पीते हैं तब तरल पदार्थ की ऊपरी सतह पर लगने वाले दबाव के कारण तरल स्ट्रॉ में चढ़ता है। स्ट्रों में द्रव पदार्थ ऊपर चढ़कर मुंह तक आए इसके लिए जरूरी है कि आपके मुंह में दबाव, तरल पदार्थ की ऊपरी सतह पर लगने वाले दबाव से कम हो। या दूसरे शब्दों में तरल पदार्थ की ऊपरी सतह पर लग रहा दबाव ज्यादा होना चाहिए। कम-से-कम इतना ज्यादा तो होना ही चाहिए जितना स्ट्रों में चढ़े द्रव के वज़न से दबाव बन रहा है। इस बात को आप चार अलग-अलग तरीके से दिखा सकते हैं।
सबसे पहले एक गिलास में पानी लीजिए। इस पानी को स्ट्रॉ से तो पी ही सकते हैं। फिर इस पहली स्ट्रॉ पर एक और स्ट्रॉ जोड़ दीजिए, चिपका दीजिए। दोनों स्ट्रॉ चिपकाते समय इस बात का ध्यान रखिए कि कोई छेद या दरार न रह जाए। अब इस स्ट्रॉ से पानी पीकर देखिए। फिर से एक और स्ट्रॉ जोड़ दीजिए, चिपका दीजिए.... इस तरह एक-एक स्ट्रों चिपकाते जाइए और गिलास से पानी पीकर देखते जाइए कि कितनी ज्यादा-से-ज्यादा ऊंचाई से आप स्ट्रों की मदद से पानी खींच सकते हैं।

1.  वायु मंडलीय दाब यानी 10 मीटर ऊंचे पानी के स्तंभ का दबाव। यदि आप एक मीटर लंबे स्ट्रों से गिलास का पानी पी सकें तो इसका मतलब यह हुआ कि आपके मुंह के भीतर का दबाव वायु मंडलीय दबाव के 1/10 हिस्से तक कम हो गया है। यानी दसवां हिस्सा कम हो गया है। इसी तरह जैसे-जैसे आपके स्ट्रों की लंबाई एक-एक मीटर बढ़ते जाएगी वैसे-वैसे आपके मुंह के भीतर 1/10, 1/10 वायुमंडलीय दबाव कम होता जाना चाहिए। वैसे आप इस बात को जल्द समझ जाएंगे कि एक खास ऊंचाई के बाद पानी पी पाना संभव नहीं हो पाएगा।

2.  मुंह में दो स्ट्रॉ पकड़िए। एक स्ट्रॉ पानी में डुबोइए तथा दूसरा स्ट्रॉ हवा में ही रहने दीजिए। अब आप पानी में डूबे स्ट्रॉ से पानी को खींचिए। आप कितनी भी जोर आज़माइश कर लीजिए आप पानी नहीं पी सकेंगे। शायद वजह आप भी समझ गए होंगे कि एक स्ट्रों हवा में खुला होने की वजह से आपके मुंह का संपर्क वायु मंडल से है, इसलिए वायुमंडलीय दबाव से कम दबाव मुंह में कभी बन ही नहीं सकता।

3.  प्लास्टिक की बोतल में थोड़ा पानी लीजिए। बोतल के ढक्कन में एक इतना बड़ा छेद बनाइए जिसमें सिर्फ स्ट्रॉ पाईप ही फंसाया जा सके। अब आप स्ट्रॉ से पानी पीकर देखिए। लेकिन आप ज्यादा पानी नहीं पी पाएंगे क्योंकि बोतल में से थोड़ा पानी पीने के बाद बोतल में मौजूद हवा फैल जाएगी, और बोतल के पानी पर लग रहा दबाव कम हो जाएगा। कुछ ही देर के बाद बोतल के भीतर के दबाव से कम दबाव मुंह में बना पाना आपके लिए मुश्किल हो जाएगा।

4.  इस प्रयोग को आप फूटी के डिब्बे के साथ करके देख सकते हैं। यदि फुटी के डिब्बे में स्ट्रॉ फंसाने के बाद आप बिना रुके फूटी पीते जाएं तो धीरे-धीरे डिब्बा पिचकने लगता है, लेकिन एक खास सीमा पर आकर डिब्बे में से फूटी का मुंह में आना बंद हो जाएगा। खैर, आप स्ट्रों से अपना मुंह हटा लीजिए, हवा को भीतर जाने दीजिए - अब फिर से स्ट्रॉ से आप फूटी पी सकते हैं।

प्रयोग-2

जैम लगाया हुआ ब्रेड का टुकड़ा जब टेबल पर से ज़मीन पर गिरता है तो जैम वाला हिस्सा ही ज़मीन छूता है।
ज़रूरी सामानः सिका हुआ बेड़ का टुकड़ा, एक एल्यूमीनियम की पन्नी।
यदि मेज़ से गिर जाने पर ब्रेड का जैम लगा हिस्सा ही ज़मीन को छूता है तो इसके लिए कोई बदकिस्मती नहीं वरन् न्यूटन के नियम ज़िम्मेदार हैं। जब भी ब्रेड का टुकड़ा टेबल पर से फिसलकर गिरता है तो उसे कोणीय गति मिलती है और वह गिरते-गिरते अपने इर्द-गिर्द घूमने लगता है। यह कोणीय गति, फिसलते समय ब्रेड के टुकड़े और टेबल की सतह के बीच के कोण पर निर्भर करती है। सामान्यतः यह कोण 30 डिग्री का होता है। यदि कोण इससे कम होगा तो ब्रेड का टुकड़ा गिरेगा ही नहीं। किसी समतल पटिए पर ब्रेड का टुकड़ा रखकर, पटिए को तिरछा करके आप देख सकते हैं कि ब्रेड का टुकड़ा कब गिरता है।
 
ये सब बातें जितनी आसान लगती हैं उतनी आसान हैं नहीं। क्योंकि गिरते हुए टुकड़े का जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia) और गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से उस पर कार्य करने वाला घूर्णन (Torque) ये दोनों समय के साथ-साथ बदलते जाते हैं। इन सब बातों पर सोच-विचार करके यह पता करने के लिए कि गिरते समय ब्रेड का टुकड़ा कितनी बार हवा में घूमेगा, हम अंत में इस सूत्र तक पहुंचते हैं*---
1.59√(2h/g)+0.083
यहां पर h मेज़ की ऊंचाई है एवं g गुरुत्व त्वरण।
इस सुत्र की मदद से हम किसी भी ऊंचाई के टेबिल पर से गिरता हुआ ब्रेड का टुकड़ा हवा में कितने चक्कर काटने के बाद गिरेगा यह बता सकते हैं।
ब्रेड के टुकड़े की एक सतह पर जैम लगाने से उस सतह का द्रव्यमान थोड़ा बढ़ जाता है। इस प्रयोग को करके देखने के लिए हम ब्रेड का एक सिका हुआ टुकड़ा लेंगे और उसकी एक सतह पर एल्यूमीनियम की पन्नी लगाएंगे (यदि हम इस प्रयोग में हर बार ब्रेड का टुकड़ा और जैम इस्तेमाल करेंगे तो काफी सारा जैम और ब्रेड बरबाद हो जाएगा। इस तरह बन गया हमारा जैम लगा टुकड़ा।

* हम कोणीय वेग पता करने से शुरुआत करते हैं W= 0.956√(g/L)
यहां है गुरुत्वाकर्षण के कारण निर्मित होने वाला त्वरण है और L बेड के टुकड़े की लंबाई है। 32 डिग्री का कोण बनने पर ब्रेड का टुकड़ा फिसलने लगता है ऐसा मान ने तो 3.5 इंच (89 मेमी) जौ बेड के कड़े का कोणीय वेग 1.59 चक्कर/सेकेंड आता है। यदि टेबल की ऊंचाई हो तो टेबल से जन तक पहुंचने में लगने वाला समय होगाः
न्यूटन के नियमानुसार s = ut + at2
(S - विस्थापन, u- प्रारम्भिक वेग, a- त्वरण, t- समय)
हमारे प्रयोग में विस्थापन टेबल की ऊंचाई के बराबर होगा, प्रारंभिक वेग शून्य है और त्वरण गुरुत्वाकर्षण बल से निर्मित होता है। इसलिए t = √(2h/g )
जमीन पर गिरने से पहले यह टुकड़ा अपने चारों ओर wt चक्कर लगाता है, शुरुआती कोण था 30 डिग्री यानी 0.083 चक्कर (360 डिग्री यानी एक चक्कर तो 30 डिग्री का कोण होने पर 30/360 चक्कर)।
टेबल की सतह से जमीन तक आते-आते । समय में बेड का टुकड़ा कुल जितने चक्कर लगा पाता है उसका सूत्र इस प्रकार मिलेगा।
एक सेकंड में 1.59 चक्कर तो t समय में 1.591 चक्कर, और उसमें शुरूआती 30 डिग्री के कोण की वजह से 0.083 चक्कर और मिलाने पड़ेंगे।
अर्थात 1.59t + 0.083 चक्कर
का मूल्य समीकरण में डालने पर 1.5 √(2h/g)+0.083

प्रयोग के लिए ब्रेड के इस टुकड़े को जैम वाली सतह ऊपर रखकर समतल लकड़ी के पटिए पर से धीरे से नीचे गिराते हैं। साथ दी गई तालिका में चार अलग-अलग ऊंचाइयों से टुकड़े को गिराते हुए लिए गए अवलोकन दिए गए हैं। इनमें पहले कॉलम में लकड़ी के पटिए यानी मेज़ की ऊंचाई दी है तो आखिरी कॉलम में हरेक ऊंचाई के लिए ब्रेड का टुकड़ा कितने चक्कर लगाएगा यह बताया गया है। (तालिका अगले पेज पर)। वैसे यह जानकारी पहले बताए सुत्र से आसानी । से मिल जाती है। बीच के तीन कॉलम में प्रयोग के निष्कर्ष दिए गए हैं। यहां ‘ऊपर' यानी ब्रेड का टुकड़ा ज़मीन पर गिरने के बाद जैम वाला हिस्सा कितनी बार ऊपर की ओर था। 'नीचे' यानी टुकड़ा गिरने के बाद जैम वाला हिस्सा कितनी बार नीचे था। और ‘उछाल' यानी ब्रेड का टुकड़ा नीचे गिरने के बाद पल्टी खा गया।

इस तालिका को देखकर समझ में आता है कि सबसे कम ऊंचाई के लिए ब्रेड का टुकड़ा आधा चक्कर लगाकर जब ज़मीन पर गिरता है तो जैम बाली सतह ज़मीन छू लेती है। सूत्र से गणना और प्रयोग के अवलोकन दोनों में एकरूपता है। सबसे ज्यादा ऊंचाई के लिए ब्रेड का टुकड़ा लगभग एक पूरा चक्कर लगाकर जमीन पर गिरता है तब उसकी जैम वाली सतह ऊपर होती है। बीच की दो ऊंचाइयों में लगभग पौन चक्कर लगाकर ब्रेड का टुकड़ा अक्सर किनार पर गिरता है। इसलिए उसके उछलने और पल्टी खाने की संभावना काफी ज्यादा होती है।
हमारे घरों में जो टेबिल इस्तेमाल
 
तालिका: विभिन्न ऊंचाइयों से गिरता ब्रेड का टुकड़ा

ऊंचाई ( मीटरमें) ऊपर    नीचे   पल्टा   चक्करों की संख्या
0.470 0 20 1 0.57
0.775 14 4 33 0.72
0.940 9 8 18 0.78
1.105 20 0   0.84

तालिका देखकर यह साफतौर पर समझ में आता है कि ऊंचाई लगभग आधा मीटर हो तो टोस्ट का जैम वाला हिस्सा ही नीचे की तरफ गिरेगा और टोस्ट पल्टी भी नहीं खाएगा। ऊंचाई 0.8 मीटर के करीब हो टोस्ट का सूखा हिस्सा ज़मीन को छुएगा परन्तु गिरने के बाद उसके पलट जाने की संभावना ज्यादा होती है, इसलिए ज्यादातर जैम वाला हिस्सा ही ज़मीन को छूता मिलेगा। यदि टेबल की ऊंचाई एक मीटर के करीब हो तो जैम वाला हिस्सा ज़मीन की तरफ होने की और पल्टी खाने की संभावना कम होने लगती है।

होते हैं उनकी ऊंचाई तालिका की बीच वाली ऊंचाइयों के आसपास होती है। फिर ऐसे में अभी तक की चर्चा के आधार पर क्या कहा जा सकता है? तालिका से समझ में आता है कि इन ऊंचाइयों के टेबल से गिरने वाले टोस्ट का अक्सर सूखा हिस्सा ज़मीन को छुएगा परन्तु गिरने के बाद उसके पलट जाने की संभावना काफी ज्यादा होती है; इसलिए अंत में इस ऊंचाई से टोस्ट गिरने की ज्यादातर घटनाओं में जैम वाला हिस्सा ही जमीन को छूतः मिलेगा। इसमें एक और बात पर गौर करना चाहिए कि अगर सूखा हिस्सा ज़मीन से टकराएगा तो उसके उचक कर पलट जाने की संभावना अधिक है, बनिस्बत दूसरी स्थिति के जब जैम वाला हिस्सा ज़मीन पर टकराता है। क्योंकि चिपचिपा होने के कारण वह शायद उतनी आसानी से नहीं पलटेगा।
तालिका से यह भी स्पष्ट है कि यदि टेबल की ऊंचाई एक मीटर के करीब हो तो जैम वाला हिस्सा ज़मीन की तरफ होने की संभावना कम होने लगती है।
आप भी चाहें तो इस प्रयोग को करके देख सकते हैं - काफी मजेदार गतिविधि साबित हो सकती है यह।


प्रियदर्शिनी कर्वे: सिंहगढ़ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिग पुणे में पढ़ाती हैं। मराठी संदर्भ के सम्पादन मंडल की सदस्य हैं।
यह लेख मराठी संदर्भ अंकः 7, अगस्त-सितंबर 2000 से साभार। अनुवादः माधव केलकर।