प्रेमकुमार मणि

रतन ने उत्सुकता से सवाल का परचा लिया और बिजली की गति से पढ़ गया। कुल सात सवाल - हाथी या गाय पर लेख, संज्ञा और सर्वनाम की परिभाषा, विपरीतार्थक शब्द सब कुछ आज भोर का पढ़ा। लगता है इस साल फिर वह सब लड़कों को पछाड़कर फर्स्ट होगा। उसका मन फूल की तरह खिल गया।
लेकिन इस फूल जैसे खिले मन में एक शूल चुभने लगा। वह शूल था तीसरा सवाल... अपने पिता के नाम एक पत्र, जिसमें अपने स्कूल के पुरस्कार वितरण समारोह का वर्णन हो।
पिता? रतन का मन परेशान होने लगा। दूसरे-दूसरे सवालों पर वह मन खींचता, लेकिन मन घूम-घामकर तीसरे सवाल पर जम जाता।
रतन अपने स्कूल का सबसे तेज़ और बेचारा लड़का है। दुबला तन और साँवला रंग, देह पर पैबन्द लगी मिरजई और पाँच जोड़ का पैन्ट। लेकिन मिज़ाज इन्द्रधनुष के सातों रंगों से भरपूर। अमीर परिवार के सुन्दर-सजे लड़के मेज़ पर मक्खी मारते रहते और वह हिसाब बनाकर तैयार। ड्रॉइंग, संगीत से लेकर खेल-कूद तक में अव्वल आने वाला लड़का - रतन।

रतन जब माँ के पेट में ही था तब गाँव में मज़दूरी के सवाल को लेकर एक आन्दोलन हुआ था। खेत मज़दूरों ने हड़ताल कर दी थी। भारी कोहराम मचा था। ज़मींदार लोग पूरी मज़दूर बस्ती को जला दिए थे। भारी नरसंहार हुआ था। रतन के पिता इसी लड़ाई में शहीद हो गए थे।

पिता की शहादत के ठीक आठवें दिन रतन का जन्म हुआ। चारों ओर दुख के पहाड़ और बीच में आँसू का समन्दर। माँ के आँचल के सिवा कोई ठिकाना न था। लेकिन प्रकृति का अनोखा राज़ कि आँसू के समन्दर से रतन निकला, तेजस्वी और प्रकाशवान।
रतन के मन में तीसरे सवाल के साथ ही पूरी ज़िन्दगी फिल्म की रील जैसी घूम गई। पिता का तो उसने चेहरा भी न देखा था, उस पिता को वह चिट्ठी कैसे लिखे?

बचपन का मन और बचपन की सोच। उसके पिता स्वर्ग में हैं। आधी रात के बाद कभी-कभी उड़न-खटोला पर सवार होकर धरती पर उतरते हैं और उसे सोए हुए में पुचकारकर चले जाते हैं। माँ कहती है कभी-कभी दिन में भी चिरई-चुरमुन और तितली बनकर उसके पिता आते हैं। इसीलिए संसार भर के चिरई-चुरमुनों और तितलियों से रतन को भरपूर प्यार है। कौन ठीक, किस जीव में उसके पिता का निवास हो।
रतन के मन में माँ के सब किस्से बारी-बारी से उतरने लगे। उड़न-खटोला और चाँद की बुढ़िया। तितलियों के चटक पाँख और चुरमुनों के गुंजार से उसका मन घिरने लगा। और इस सुहावन घेरे के बीच पिता की एक कल्पित तस्वीर उभरने लगी।

हे पिता... उसने कलम मेज़ पर रख दी और उत्तर पुस्तिका ठीक करने लगा। पहले लेख लिख लेना ही ठीक है। गाय पर लेख। उसके मन में भुआली पण्डित की गाय साफ उतर गई। चार पैर, एक पूँछ, दो सींग, चितकबरी और मरखण्ड। उसने कलम ठीक की और विचार में डूब गया। सवाल चुनने वाले लोगों पर उसे तरस आया। गज़ब होते हैं ये सवाल चुनने वाले लोग भी। हाथी पर लेख, गाय पर लेख। वह क्या लिखे, कैसे लिखे हाथी और गाय पर लेख। उसका न हाथी से वास्ता हुआ और न गाय से।

उसके मुहल्ले में केवल भुआली पण्डित गाय पालते हैं और दूध दोनों टाइम बी.डी.ओ. साहब के यहाँ पहुँचा देते हैं। बी.डी.ओ. साहब की तीनों बेटियाँ दूध पी-पीकर मुग्दर बनी हुई हैं। अब बी.डी.ओ. साहब की बेटियों को गाय पर लेख लिखने के लिए कहा जाता तो एक बात थी। हाथी और गाय के साथ यदि माँ पर भी लेख लिखने के लिए दिया जाता तो कितना अच्छा रहता। माँ पर तो वह बहुत अच्छा लेख लिख सकता है। रतन का मन गलबला गया और इसी गलबलाए मन में माँ का एक बहुत भावुक चित्र उभर आया। पहाड़ की तरह उसकी माँ का दुख। गंगा की तरह पवित्र उसका आँचल और परिन्दे के पाँख जैसी स्नेहिल उसकी आँखें। रतन की आँख से एक बूँद टप से मेज़ पर आ गिरी...। उसकी इतनी अच्छी माँ की लोग शिकायत करते हैं। चमगादड़ मिसिर और जटुली सिंग का बेटा तो और-और बुराई करते हैं। परीक्षा में फेल होने पर जब कुछ नहीं मिलता तब उसकी माँ की बुराई करते हैं।
बचपन का छोटा-सा मन और विचारों का इतना रेला। उसका मन भारी हो गया। कण्ठ रुँध गया। कलम मेज़ पर रखकर जब उसने आँखों पर हाथ घुमाया तो पूरा हाथ भीग गया। आगे की बेंच पर जमुना तिवारी की पटनिया पोती बैठी थी, पीछे घूमकर चोरी-चोरी उसने पूछा- “रतन सर्वनाम की परिभाषा बता दो न।”
जमुना तिवारी की बन्दूक से ही रतन के पिता शहीद हुए थे। माँ ने किस्सा बयान किया था। और यह जमुना तिवारी की पोती।

लड़की ने फिर पूछा- “ज़रा बता दो न रतन। तुम्हें खोए की ‘लाई’ दूँगी।” रतन ने बता दिया। लड़की के मन में रतन राजकुमार जैसा खिल गया और रतन का मन अनजाने कर्ण बन गया। रतन ने समय का ख्याल किया और मन जाँतकर जल्दी-जल्दी उत्तर लिखने लगा। लेख, व्याकरण रचना के छहों सवाल घण्टे भर में पूरे हो गए। अब रहा एक सवाल। तीसरा सवाल। पिता को चिट्ठी। क्या लिखे? कैसे लिखे? माँ का दुख लिखे कि जटुली सिंग की बोली। कि चमगादड़ मिसिर का बेहुदा मज़ाक। वह क्या लिखे? पुरस्कार वितरण समारोह के दिन जब सभी लड़के रंग-चुंगकर गए थे तब उसी दिन उसने अपनी मिरजई पर एक और पैबन्द लगवाया था। घर में उस दिन एक दाना भी न था। बहुत जतन से माँ ने साग-भात का जुगाड़ किया था। नहीं तो उपास जाने की ही बारी थी। समारोह में जब वह अपने चिथड़े पोशाक में प्रथम पुरस्कार लेने के लिए आगे बढ़ा था तब बी.डी.ओ. साहब की बेटी ताली पीटकर हँसने लगी थी, और पुरस्कार लेकर जब वापस आया तब चमगादड़ मिसिर ने उसकी माँ पर एक बहुत भद्दा मज़ाक किया था। यही सब लिखे वह चिट्ठी में? पिता को यह सब जानकर कितना दुख होगा। उनकी आँखों में आँसू आ जाएँगे और कलेजा पसीज जाएगा। स्वर्ग का राजा जब पूछेगा कि तुम काहे रोए तब पिता क्या जवाब देंगे? ना, यह सब वह न लिखेगा चिट्ठी में।

पिता के पास तो ऐसी चिट्ठी भेजनी चाहिए जिसमें इन्द्रधनुष का सतरंगापन हो, तितली के पंखों का कसीदा हो, अमराई के मंज़र की गन्ध हो और कोयल के कूक की मिठास हो। पिता को जब चिट्ठी मिले, तब उनकी बाँछें खिल जाएँ और बन्दूक का घाव भर जाए।
बेलगाम कल्पना के उछाह भाव से रतन की साँस तेज़ हो गई। फेफड़े में भरपूर हवा भर गई और आँखों में बिजली जैसी चमक छा गई। मन में एक लाख कनेर के फूल खिले और मन रंगीन हो गया। इतने में वह क्या देखता है कि तिवारी जी की पोती कॅापी जमा करके बाहर निकल गई। अब उसे भान हुआ कि समय बहुत कम है। पत्र का सपना जल्दी से तोड़कर वह परीक्षा पर लौटा। सपने के टूटते ही मन फिर भीग गया। लेकिन परीक्षा, परीक्षा है। इसी भीगे मन में वह चिट्ठी का खाका तैयार करने लगा।
पिताजी... आपको कभी देखा नहीं फिर भी चिट्ठी लिख रहा हूँ। आप तो स्वर्ग में हो, सुना है सब सुख हैं वहाँ। मैं और माँ तो बहुत जैसे-तैसे रहते हैं, पिताजी! माँ कहती है, आप उड़न-खटोले पर सवार होकर धरती पर आते हो और तितली बनकर घूमते हो। एक दिन असली रूप में आओ न पिताजी! केवल आपको भर नज़र देखूँगा। कुछ भी नहीं माँगूँगा। जमुना तिवारी अब आपका कुछ नहीं करेगा पिताजी। कई साल हुए वह मुखिया के चुनाव में हार गया। उसकी बन्दूक भी लोगों ने छीन ली।

पिताजी मेरे स्कूल में पुरस्कार वितरण समारोह बहुत अच्छा हुआ था। मुझे तो पहला पुरस्कार मिला था। एक थुल-थुल देह और मिच-मिची आँखों वाले अफसर ने पुरस्कार बाँटे थे। उसने मुझसे पूछा कि तुम क्या बनना चाहते हो? मैंने कहा- ‘आदमी’... ठीक कहा न पिताजी?...

रतन के मन का प्रवाह चल ही रहा था कि इम्तिहान समाप्ति की घण्टी बज गई... टन-टन। मन की चिट्ठी मन में ही रह गई। एक मास्टर आया और कॉपी छीनकर ले गया।
रतन उदास मन बाहर निकला। ‘रतन रे’ की मीठी आवाज़ सुनकर जब वह घूमा तो देखता है, तिवारी जी की पोती रुमाल में ‘लाई’ लेकर फाटक पर उसके इन्तज़ार में खड़ी है।


प्रेमकुमार मणि - हिन्दी के मशहूर कथाकार। वर्तमान में बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं।
सभी चित्र - उदय खरे: शौकिया चित्रकार, भोपाल में निवास।