अम्बरीष सोनी [Hindi PDF, 79 kB]

स्लग (slug), वास्तव में कम खोल वाले स्थलीय गैस्ट्रोपोड वर्ग के जीवों के लिए इस्तेमाल होने वाला नाम है। ये घोंघे या स्नेल से कई मामले में अलग हैं। घोंघे में एक घुमावदार कवच होता है जिसके भीतर ये जीव अपना पूरा नरम शरीर रख सकते हैं जबकि स्लग में या तो कवच होता ही नहीं या फिर बहुत ही आंशिक रूप में होता है। पहले स्लग के अन्तर्गत सिर्फ जलीय गैस्ट्रोपोड मोलस्क ही शामिल थे लेकिन आगे चलकर इनमें मीठे पानी में पाए जाने वाले (fresh water slug) और खारे पानी या समुद्र में पाए जाने वाले गैस्ट्रोपोड (सी स्लग) भी शामिल हो गए।

‘सी स्लग’ शब्दावली खास तौर पर नुडीब्रैंच के लिए प्रयोग में लाई जाती है। नुडीब्रैंच, समुद्र में पाए जाने वाले मोलस्क संघ के ऐसे सदस्य हैं जो अपना कवच लार्वा की अवस्था में ही खो देते हैं। इनका शरीर बहुत ही कोमल होता है पर इनकी एक महत्वपूर्ण विशेषता है - इनका रंग। ये विविध प्रकार के आकर्षक और चटकीले रंगों वाले होते हैं। इनकी 3000 से अधिक ज्ञात प्रजातियाँ हैं।

समुद्री स्लग के बारे में हाल ही में एकत्र की गई एक जानकारी ने इन्हें सुर्खियों में ला दिया है। जापान के पास एक ऐसा समुद्री स्लग पाया गया है जो मैथुन या समागम के बाद अपना लिंग त्याग कर फिर से नया लिंग प्राप्त कर सकता है। जापानी शोधकर्ताओं ने समागम का यह विलक्षण व्यवहार प्रशान्त महासागर में पाए जाने वाले समुद्री स्लग की एक विशेष प्रजाति क्रोमोडोरिस रेटिकुलेटा में पाया है।

नर और मादा
वैज्ञानिकों के अनुसार यह पहला जीव है जो बार-बार त्याग सकने योग्य लिंग के मार्फत सम्भोग करता है। इस घोंघे कीसमागम प्रक्रिया काफी पेचीदा है। नुडीब्रैंच परिवार के ये जीव उभयलिंगी होते हैं। इसका मतलब है कि इन सभी जीवों में नर और मादा जननांग, दोनों पाए जाते हैं।

आयरलैण्ड के राष्ट्रीय म्युज़ियम में समुद्री अकशेरुकियों के क्यूरेटर पद पर काम करने वाले बर्नार्ड पिक्टन ने बतलाया कि इनके जननांग दाहिनी ओर होते हैं। ऐसे में ये नुडीब्रैंच जब समागम के लिए एक-दूसरे के पास आते हैं तो इनका मुँह वाला हिस्सा उलट दिशा में होता है ताकि इनके दाहिने हिस्से एक-दूसरे को स्पर्श कर सकें। इस तरीके से दोनों अपने नर जननांग को दूसरे के मादा जननांग के सम्पर्क में ला पाते हैं। ये दोनों ही एक-दूसरे को शुक्राणु प्रदान करते हैं। इस प्रजाति ने समागम की प्रक्रिया में एक और जटिलता को जोड़ा है जिसे देखकर सभी घोंघा विशेषज्ञ हतप्रभ हैं। बर्नार्ड पिक्टन का कहना है कि उन्होंने पहले और किसी जीव में ऐसा नहीं देखा।

सेक्शुअल हीलिंग
जापानी शोधकर्ताओं की टीम ने इन स्लग्स को जापान के पास के ही उथले समुद्र में पाई जाने वाली प्रवाल भित्तियों से इकटठा किया था। इस अवलोकन के दौरान जीवों ने 31 बार समागम किया।
इनके बीच समागम की प्रक्रिया कुछ सेकण्ड या कुछ मिनट ही चली फिर दोनों जीव अलग-अलग हो गए। इसके तुरन्त बाद ही उन्होंने अपने लिंगों को शरीर से अलग कर दिया जो वहीं टैंक के फर्श पर पड़े पाए गए। यहाँ तक तो ठीक था पर इसके बाद की घटना से शोधकर्ता हैरान रह गए जब उन्होंने देखा कि 24 घण्टों के अन्दर उनके शरीर में फिर से नर जननांग का विकास हो चुका था और वे फिर से समागम के लिए सक्षम बन चुके थे। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि इनके जननांग काँटों से भरे हैं और सामान्यतया ये जीव 24 घण्टे में एक-दूसरे के साथ लगातार तीन बार समागम कर सकते हैं।
इन जीवों के शरीर रचना विज्ञान का बारीकी से अध्ययन करने पर पता चला कि ये समुद्री स्लग्स अपने नर जननांग का एक बड़ा हिस्सा अपने शरीर के भीतर कुण्डली के रूप में रखते हैं जिसके ज़रिए ये मैथुन के बाद लिंग के त्यागे गए हिस्से की भरपाई करते रहते हैं। पर हाँ, इस बात का पता अभी नहीं चल पाया है कि अगर नर जननांग का सारा हिस्सा जो भीतर कुण्डलित है एक बार खत्म हो जाए तो क्या उस नर का यौन जीवन खत्म हो जाएगा, या कुछ हफ्ते या महीने बाद यह नर जननांग फिर से विकसित हो जाएगा।

यह कोई बड़ा नुकसान नहीं
समुद्री स्लग्स अकेले ऐसे जीव नहीं हैं जो समागम के बाद अपना लिंग त्याग देते हैं। इस  शृंखला में ऑर्ब वीविंग मकड़ी भी है जिसका नर मैथुन के बाद अपना लिंग खो देता है। समुद्री जीव पेरीविंकल और एरिओलिमैक्स प्रजाति के ज़मीनी घोंघे भी ऐसा ही करते हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि क्रोमोडोरिस रेटिकुलेटा का यह त्याग सकने योग्य लिंग जीव को अतिरिक्त यौन लाभ देता होगा।

जापानी वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मैथुन के समय काँटो से भरे लिंग का काम अपने साथी के शरीर से उन शुक्राणुओं को अलग करना होता है जो उसके साथी के साथ उससे पहले सम्भोग करने वाले नर ने छोड़े होंगे। और साथ ही उनका मानना है कि शायद इसी कारण वे इस काँटों वाले लिंग को वापस अपने शरीर में न लेकर उसे त्याग देते हैं। जबकि दूसरे लिंग के ज़रिए वे अपने शुक्राणु अपने साथी में प्रेषित करते हैं और इस तरह वे इस बात को सुनिश्चित भी कर लेते हैं कि उन्होंने अपने जीन्स साथी के शरीर तक पहुँचा दिए हैं। हालाँकि वैज्ञानिक इसके सही कारणों का पता अभी तक नहीं लगा पाए हैं।


अम्बरीष सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।