फ्रेक्टल ज्यामिति

विवेक कुमार मेहता

इस गणितीय फसाने की शुरुआत एक लाइन से करते हैं, एक सीधी-सरल लकीर।

मान लेते हैं कि इस लकीर की लम्बाई नौ से.मी. है, अब इस लकीर में हम एक फेरबदल कर एक नई आकृति बनाते हैं। फेरबदल यह है कि लकीर के बीच के हिस्से को हटाकर, उसकी जगह उसी लम्बाई के दो अन्य टुकड़ों को कुछ इस तरह चित्र में शामिल किया जाए (चित्र-2)।



इस आकृति में शामिल चार रेखा-खण्डों की कुल लम्बाई होगी 12 से.मी.। अब हम फिर से अपने साथी फेरबदल के पास चलते हैं और उसे इस आकृति के तमाम रेखा-खण्डों पर लागू करते हैं। ऐसा करने पर हमें चित्र-3 वाली आकृति मिलेगी।


इसमें 1 से.मी. की लम्बाई के कुल सोलह रेखा-खण्ड हैं और उनकी कुल लम्बाई होगी 16 से.मी.। चित्र-3 को कुछ इस तरह भी देखा जा सकता है कि यह चित्र-2 के चार लघु-स्वरूपों (scaled-down) से मिलकर बना हुआ है।  चित्र-3 के इन लघु-स्वरूपों की आकृति हूबहू चित्र-2 की आकृति से मिलती है, है न!

अब अगर हम अपने फेरबदल को चित्र-3 की आकृति और फिर उसके बाद मिलने वाली आकृति और फिर उसके बाद की, बाद की, बाद की तमाम आकृतियों पर लागू करें, तो हमें कुछ ऐसा चित्र मिलेगा (चित्र-4)।


चित्र-4 अपने आप में एक बहुत ही खास आकृति है। वैसे इस आकृति में शामिल तमाम रेखा-खण्डों की कुल लम्बाई क्या होगी? अगर इसके किसी भी छोटे हिस्से को बड़ा करके देखा जाए तो हम पाएँगे कि यह आकृति हर अनुमाप (scale) पर अपने आप को दोहराती है। गणितीय भाषा में ऐसी आकृतियों या वस्तुओं को फ्रेक्टल (Fractal) कहा जाता है और हर अनुमाप में एक जैसे होने के गुण को सेल्फ-सिमिलेरटी (Self-similarity)। फ्रेक्टल्स की यह खूबी उन्हें इतना खूबसूरत और अनोखा बनाती है कि देखने वाला भले ही इनके पीछे के गणित से परिचित न भी हो तब भी वाह-वाही किए बगैर नहीं रह सकता।

इस बिन्दु पर शायद एक सवाल आपके दिमाग में चल रहा हो कि अगर हम पेन और कागज़ लेकर इस आकृति को बनाना चाहें तो ज़्यादा दूर तक नहीं जा पाएँगें, क्योंकि कुछ फेरबदलों के बाद रेखा-खण्डों की लम्बाई इतनी छोटी हो जाएगी कि मामूली पेन की मदद से तो उनको खींच पाना नामुमकिन होगा।
बात बिलकुल सही है, चित्र-4 में दिखलाई गई आकृति को पेन और कागज़ पर हाथ से बना पाना नामुमकिन होगा। ऐसे में एक कम्प्यूटर ही हमारी मदद कर सकता है। यहाँ भी हमने एक कम्प्यूटर की मदद से ही यह चित्र बनाया है।

फ्रेक्टल्स का वास्तविकता से सम्बन्ध
लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि फ्रेक्टल्स मात्र एक गणितीय अवधारणा है और इनका हमारी ज़मीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। आप किसी पेड़ या गोभी के फूल में भी सेल्फ-सिमिलेरटी का यह गुण देख सकते हैं। लेकिन यह सेल्फ-सिमिलेरटी एक सीमा के बाद दिखाई नहीं देती क्योंकि इन भौतिक वस्तुओं में फेरबदल कुछ चरणों तक ही हो पाता है। अलग शब्दों में कहें तो इन भौतिक वस्तुओं को किसी गणितीय फ्रेक्टल का एक सन्निकटन (approximation) कहा जा सकता है। ऐसे फ्रेक्टल्स से हमारा संसार भरा पड़ा हुआ है। और तो और ये फ्रेक्टल्स हमारे-आपके शरीर में भी विराजमान हैं। हमारे शरीर का वाहिकातंत्र या फेफड़े भी इसी श्रेणी में आते हैं। सवाल बनता है कि आखिर हमारे शरीर में ऐसे फ्रेक्टल्स की क्या दरकार है? इस पर आगे बात करेंगे। उससे पहले चलिए, एक दुनियाई फ्रेक्टल को निहार लेते हैं।

कुछ साल पहले, मैं अपनी यूनिवर्सिटी के पास एक गाँव में गया था। असल में, गया तो था मैं अपने एक मित्र के घर पर खाने की दावत पर, लेकिन खाने के बाद मन किया कि जब गाँव आए हैं तो कुछ ताज़ी सब्ज़ियाँ वगैरह ले ली जाएँ। मैं अपने मित्र प्रदीप के साथ निकल पड़ा गाँव की सैर पर। प्रदीप मुझे अब्दुल भाई के खेतों में ले गए। सब्ज़ी के अलावा एक और वजह थी अब्दुल भाई के खेत में जाने की। प्रदीप ने मुझे बताया कि अब्दुल भाई के खेत में एक ऐसी गोभी फली है जिसे देखने गाँव भर के लोग आ रहे हैं। मेरी भी उत्सुकता बढ़ी। लेकिन खेत में जो मुझे मिलने वाला था, उसकी कल्पना तो मैंने सपने में भी नहीं की थी।

गोभी का सीज़न खत्म होने वाला था, तो अब्दुल भाई ने गोभी के खेतों में अपनी गाय एक लम्बी रस्सी से बाँधकर छोड़ रखी थी। गाय अपने पहुँच के घेरे में जहाँ-तहाँ घूम-घूम कर बची-खुची गोभियाँ निपटाने में लगी हुई थी। अब्दुल भाई से दुआ-सलाम होने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या आप भी वही देखने आए हैं?” मेरे हामी भरने के साथ ही वे मुझे गाय की पहुँच से दूर वाले खेत के उस हिस्से की ओर ले गए जहाँ वह गाँव-विख्यात गोभी लगी हुई थी। मैंने जो अद्भुत नज़ारा देखा, आप भी देखिए (चित्र-5)।
है तो ये गोभी का ही फूल लेकिन गणितीय भाषा में इस पर उभरे हुए पैटर्न का नाम है फिबोनैकी डबल स्पाइरल (Fibonacci Double Spiral) और यह लगभग एक फ्रेक्टल है क्योंकि यहाँ फिबोनैकी डबल स्पाइरल पैटर्न की पुनरावृत्ति कुछ चरणों तक हो रही है। लेकिन जो भी हो, ये है बड़ा ही खूबसूरत। जाने इस फूल का फिर हुआ क्या। किसी गाय ने खाया या इन्सान ने।

निर्माण के नियम
गणितज्ञों ने फ्रेक्टल्स बनाने के कई अनोखे नियम खोज निकाले हैं। माईकल बार्नस्ली नाम के एक गणितज्ञ ने तो सिर्फ बिन्दुओं की मदद से सुन्दर फ्रेक्टल्स बनाने के आसान नियम दिए हैं। चित्र-6 की आकृति जिसे सियरपिन्स्की (Sierpinski) त्रिभुज कहा जाता है, भी एक ऐसे ही आसान-से नियम के आधार पर बनाई गई है।
इसे बनाना शुरू करने के लिए हमें चाहिए होंगे कोई ऐसे तीन बिन्दु जो कि एक सीधी रेखा पर ना हों।  इन्हें पहचान के लिए कुछ नाम दे दीजिए (1, 2, 3 या A, B, C )। सियरपिन्स्की त्रिभुज बनाने की इस प्रक्रिया में ये तीन शुरुआती बिन्दु स्थाई रहेंगे। इसके बाद हमें चाहिए एक पासा और एक अन्य बिन्दु जिसका नाम फिलहाल हम ‘S’ रख देते हैं। अब पासा फेंकिए। अगर एक या दो आए तो बिन्दु ‘S’ व पहले स्थाई बिन्दु के ठीक मध्य में एक नया बिन्दु स्थापित कीजिए। अब इस नए बिन्दु को ‘S’ नाम दे दीजिए। ठीक इसी तरह अगर पासे में तीन या चार आए तो बिन्दु ‘S’ व दूसरे स्थाई बिन्दु के ठीक मध्य में नया ‘S’ स्थापित कीजिए। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि अगर पासे में पाँच या छः आए तो क्या करना होगा। इस प्रक्रिया को दोहराते जाइए। हाथ से पेन-कागज़ पर करने से थोड़ी देर में आप बोर हो सकते हैं। इसीलिए यहाँ कम्प्यूटर का इस्तेमाल सही रहेगा। चित्र-6 भी कम्प्यूटर की मदद से तैयार किया गया है और इसमें 50,000 बिन्दु हैं। पर देखिए तो ज़रा, क्या खूबसूरत पैटर्न उभर कर आया है। आप किन्हीं भी तीन बिन्दुओं से शुरू कीजिए, नतीजा ऐसा ही मिलेगा। हाँ, आपके चुने हुए बिन्दुओं के अनुरूप आपका सियरपिन्स्की त्रिभुज कुछ टेढ़ा-मेढ़ा हो सकता है।

अब ज़रा चित्र-7 पर गौर फरमाइए। चित्र के बाईं ओर वाली तस्वीर मेरे घर के ठीक सामने उग आए एक फर्न या पर्णांग की है। इसे असमिया भाषा में बिहलागौनि कहते हैं। माना जाता है कि यह जोड़ों के दर्द को कम करने में मदद करता है। इसी की तरह दिखने वाली एक साग धेकिया को खाया भी जाता है। इसे अण्डे की भुर्जी के साथ पकाया जाता है और इसका ज़ायका शानदार होता है। इस तस्वीर में दाईं ओर के चित्र को कम्प्यूटर पर 50,000 बिन्दुओं से बनाया गया है। सियरपिन्स्की त्रिभुज के जैसे ही लेकिन एक थोड़े पेचीदा नियम से। इस चित्र को हम किसी भी अनुमाप (scale) पर देखें तो पाएँगे कि हर अनुमाप में फर्न की आकृति एक जैसी ही है। तो कल को अगर कोई आपसे पूछे कि पर्णांग की आकृति क्या है, तो बतलाना मत भूलिएगा कि यह दुनियाई यानी कि लगभग फ्रेक्टल है।

महत्ता
अब वैसे तो फ्रेक्टल अपने आप में ही खूबसूरत होते हैं, लेकिन पूछने वाले ये सवाल भी करते हैं कि आखिर इस तरह की आकृतियों की और क्या खूबियाँ हैं। क्यों ये फ्रेक्टल्स प्रकृति में इतने आम हैं? मसलन, आखिर क्या कारण है कि हमारे फेफड़े फ्रेक्टल आकृति के रूप में विकसित हुए? ये और ऐसे तमाम सवालों ने कई लोगों को उलझाकर रखा हुआ है। कुछ के जवाब पूरे या अधूरे मिल चुके हैं। कुछ की तलाश जारी है।
यहाँ एक उदाहरण के तौर पर चलिए इन्सानी फेफड़े की बात करते हैं। फेफड़े हमारी श्वसन प्रणाली के मुख्य अंग हैं। चन्द टेनिस गेंदों के आयतन के बराबर जगह घेरने वाले हमारे इन फेफड़ों का तल-क्षेत्रफल (surface area) एक टेनिस कोर्ट के बराबर होता है। सवाल बनता है कि आखिर यह कैसे सम्भव हुआ? और जवाब है फ्रेक्टल ज्यामिति से।
इस बात को समझने के लिए हम अपने पहले उदाहरण की मदद लेंगे।
बस इस दफे फर्क यह होगा कि एक

लकीर की जगह हम शुरुआत एक त्रिभुज से करेंगे और फिर अपना पुराना फेरबदल इस त्रिभुज की तीनों भुजाओं पर लगाते जाएँगे (चित्र-8)। अब अगर कोई प्रश्न करे कि इस तरह मिलने वाली आकृति की परिधि की लम्बाई क्या होगी तो आपका जवाब क्या होगा? जवाब के बारे में सोचने से पहले आपका ध्यान उस बात पर फिर से दिला दूँ कि मिलने वाली आकृति एक फ्रेक्टल होगी - यानी कि एक ऐसी आकृति जो कि हर अनुमाप में एक जैसी होगी। हम
परिधि को जितने भी करीब से देखें, हमें चित्र-4 वाली आकृति अपने छोटे स्वरूपों में मिलती जाएगी। अब ऐसी हालत में तो परिधि असीमित होगी, लेकिन क्षेत्रफल का क्या? क्षेत्रफल तो सीमित ही है क्योंकि चित्र-8 में मिले फ्रेक्टल को मैं एक सीमित क्षेत्रफल के वर्ग, आयत, वृत्त या आकृति के घेरे में रख सकता हूँ। यह तो गज़ब ही हो गया। एक ऐसी आकृति जिसका क्षेत्रफल तो सीमित है, लेकिन परिधि असीमित। और ऐसा इस आकृति के फ्रेक्टल हो पाने के कारण ही सम्भव हो पाया है। यही बात तीन आयामों में हम आयतन और तल-क्षेत्रफल के सम्बन्ध में भी कह सकते हैं। फ्रेक्टल ज्यामिति के चलते एक ऐसी आकृति या आकार सम्भव है, जिसका आयतन तो कम हो लेकिन उसकी तुलना में तल-क्षेत्रफल काफी ज़्यादा।
फ्रेक्टल्स से जुड़ी कई अवधारणाएँ हैं जिनके बारे में जानने के लिए आप लेख के आखिर में दिए गए स्रोतों की मदद ले सकते हैं। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ, फ्रेक्टल्स आपको हमारे इस संसार को देखने के लिए नई नज़र देंगे और शुरुआत तो आप कर ही चुके हैं। अगली बार गर कोई गणितज्ञ आपको यह कहता दिखाई या सुनाई दे कि गणित खूबसूरत है - ‘Mathematics is beautiful!', आप भी कहिएगा, “यकीनन।”


विवेक कुमार मेहता: आई.आई.टी कानपुर से मेकेनिकल इंजिनीयरिंग में पीएच.डी. की है एवं तेजपुर विश्वविद्यालय, असम में पढ़ा रहे हैं।
सन्दर्भ:
1. Fractals: A graphic guide, Nigel Lesmoir-Gordon, Will Rood & Ralph Edney
2. Fractals: A very short introduction, Kenneth Falconer