शिक्षकों की कलम से

होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र में CUBE (Collaboratively Under-standing Biology Education), सहयोग से विज्ञान के प्रयोग करने की एक संस्कृति है। क्यूब की विशेषता यह है कि यहाँ पर हर उम्र और किसी भी कक्षा के छात्र-छात्राओं को विज्ञान के प्रयोग सरल तरीके से विकसित करने और सीखने का अवसर प्राप्त होता है। छात्र अपने सहपाठियों के साथ मिलकर अपनी पाठशाला, कॉलेज या घर में आसानी-से विज्ञान के प्रयोग सैट कर सकते हैं। क्यूब प्रयोगशाला की रचना परिष्कृत उपकरणों के बिना की जाती है क्योंकि यहाँ माना जाता है कि ‘परिष्कार उपकरणों में नहीं बल्कि विचारधारा में होता है'।

उद्देश्य
इस कार्यक्रम में मॉडल-जीवों का उपयोग करके पाठशाला और कॉलेज के छात्र मिलकर खोजी परियोजनाओं पर विज्ञान के प्रयोग करते हैं। कोई भी छात्र केवल रुचि, जिज्ञासा और प्रेरणा के साथ इस कार्यक्रम में शामिल हो सकता है। इसमेें कोई चयन प्रक्रिया नहीं है, कोई परीक्षा आधारित प्रवेश नहीं है, यहाँ तक कि शामिल होने के लिए कोई शुल्क भी नहीं है। केवल स्थानीय घटनाओं का अवलोकन करके जिज्ञासा आधारित प्रश्नों से विद्यार्थी जुड़ते हैं। छात्र गैर-पारम्परिक तरीके से खोज करते हुए अपने सहकर्मियों के साथ विज्ञान सीखते हैं।
क्यूब के केन्द्र केवल स्थानीय क्षेत्रों तक सीमित नहीं हैं बल्कि देशभर की विविध पाठशालाओं और कॉलेजों में स्थापित किए गए हैं। इसलिए किसी भी पाठशाला और कॉलेज में अपने आसपास उपलब्ध सामग्री से क्यूब प्रयोगशाला का निर्माण किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर प्लास्टिक अथवा काँच की पारदर्शक बोतल, पानी, दूध, केला, ककड़ी, कागज़, मिट्टी, पत्ते-घास इत्यादि जैसी अपने पर्यावरण में सहज उपलब्ध होने वाली सामग्री का उपयोग करके प्रयोगशाला तैयार की जा सकती है। इसमें किसी भी प्रकार के तकनीकी उपकरणों की ज़रूरत नहीं है।

जुड़ाव
CUBE में देशभर की पाठशालाओं और कॉलेजों के छात्र आपसी सहयोग के साथ मिलकर प्रयोग करते हैं। वे सभी एक-दूसरे से व्हॉट्सएप, टेलिग्राम, ई-मेल, फेसबुक, ट्विटर इत्यादि द्वारा जुड़ जाते हैं। इस तरह समस्त छात्रों को एक-दूसरे के साथ जुड़े रहने से मार्गदर्शन मिलता रहता है। सभी उत्साह से प्रयोग की विधि के साथ-साथ, उसमें पाई गई गलतियों के बारे में खुलकर चर्चा करते हैं।
क्यूब प्रोजेक्ट में नए माध्यमों (स्मार्टफोन, ईमेल, सोशल मीडिया) का उपयोग केवल खोज पर चर्चा करने के लिए ही नहीं, बल्कि सुझाव एवं विचार का तुरन्त आदान-प्रदान करने के लिए भी किया जाता है। स्मार्टफोन का उपयोग करते हुए छात्र अपने प्रयोग का फोटो-वीडियो बनाते हैं और उस पर चर्चा करने के लिए ग्रुप्स पर पोस्ट कर देते हैं। और तुरन्त ही उन्हें अपने सहकर्मियों, शिक्षकों और वैज्ञानिकों से उनके अभिमत मिल जाते हैं। उल्लेखनीय बात यह भी है कि प्रयोग करते समय यदि किसी प्रकार की गलती होती भी है तो उससे हताश न होकर, उस प्रयोग में परिवर्तन करके छात्र आगे बढ़ जाते हैं। क्यूब लैब द्वारा प्रोत्साहन, तथा विज्ञान की प्रक्रिया को समझने का कौशल प्राप्त होता है। जैसे विज्ञान ने कई त्रुटियों के अनुभवों से गुज़रते हुए प्रगति की है, उसी प्रकार छात्र भी विज्ञान के प्रयोगों में हुई गलतियों से सीखते हैं। इसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया को क्यूब लैब में प्रोत्साहित किया जाता है।

इसके अलावा, छात्रों को अपने प्रयोगों को क्यूब सम्मेलन में प्रस्तुत करने का अवसर भी प्राप्त होता है। ऐसे सम्मेलन में प्रयोग प्रस्तुत करना, प्रयोग का वर्णन करना, सवाल-जवाब का सामना करना, प्रयोग के परिणामों को सबूत द्वारा प्रस्तुत करना, चर्चा करना आदि शामिल है। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।
CUBE लैब में फल-मक्खी यानी ड्रोसोफिला, केंचुआ, घोंघा, मोइना, तितली, हाइड्रा, रोटिफर, नेमाटोड इत्यादि कई प्रकार के मॉडल-जीवों के साथ बहुत ही सरल और प्रभावी तरीके से प्रयोग किए जाते हैं। छात्रों को इन प्रयोगों को करते समय सूक्ष्मदर्शी से अवलोकन करने का अवसर भी मिल जाता है। छात्र अक्सर अपने आसपास के माहौल के बारे में जिज्ञासा से उत्पन्न होने वाले शोध प्रश्नों में संलग्न होते हैं और आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से जुड़ते हैं। उदाहरण के लिए, स्टेम सेल अनुसंधान, आनुवांशिकी, एपिजेनेटिक्स, सीखना और स्मृति, उत्थान, जैविक विकास, जलवायु परिवर्तन आदि विषयों पर किए जा रहे प्रयोगों से बहुत-से विद्यार्थी जुड़े हैं।

इन सभी क्षेत्रों में नोबेल पुरस्कृत अनुसन्धान हो रहे हैं। जब ऐसे प्रयोगों के लिए नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की जाती है जिन्हें छात्रों और उनके सहयोगियों ने भी किया हो, तो वे सब भी उसको जीतने की खुशी महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, हाल ही के वर्षों में कम-से-कम दो ऐसे प्रयोग किए गए हैं जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिले हैं - जैविक घड़ी एवं दिन और रात का चक्र (फलमक्खी का प्रयोग); कोशिकाएँ और ऑक्सीजन का प्रमाण (मोइना का प्रयोग)। इस सब की वजह से विज्ञान शिक्षा में छात्रों का उत्साह बढ़ता है।

क्रियान्वयन
माध्यमिक विद्यालय के छात्र इन खोजी परियोजनाओं पर काम करतेे हैं और प्रोजेक्ट के विषय का चुनाव करते हैं। आम तौर पर कार्यशाला में प्रयोग के विषयों पर चर्चा की जाती है। फलमक्खी और मोइना, जिन दो परियोजनाओं का उल्लेख किया गया है, उन्हें इसलिए चुना गया क्योंकि ये मॉडल-जीव उनके स्थानीय परिवेश का हिस्सा हैं। वे अपने स्कूलों में इन प्रोजेक्ट पर आसानी-से काम कर सकते हैं। इन परियोजनाओं में छात्रों में अवलोकन कौशल उभारना, डेटा संग्रह करना और उसे सारणीबद्ध करना, ग्राफ बनाना, प्रश्न पूछना आदि शामिल हैं। ये सारे आवश्यक वैज्ञानिक कौशल हैं, जो माध्यमिक विद्यालय स्तर के छात्रों द्वारा कोई भी वैज्ञानिक जाँच करने के लिए आवश्यक होते हैं। साथ ही, छात्र इन प्रोजेक्ट का चुनाव इसलिए करते हैं क्योंकि ये आसानी-से अपने साथियों के साथ स्कूल में आयोजित किए जा सकते हैं, और वह भी न्यूनतम आवश्यकताओं के साथ।

उदाहरण
उदाहरण के रूप में, यहाँ दो प्रयोग प्रस्तुत किए जा रहे हैं। पहला प्रयोग है, ‘मोइना में ऑक्सीजन की भूमिका को समझना'। मोइना पारदर्शी सूक्ष्मजीव हैं जो स्थिर पानी या तालाबों में आसानी-से देखने को मिल जाते हैं। पानी से भरी पारदर्शी प्लास्टिक या काँच की बोतल में लगभग 20-25 मोइना को जीवित रखा जा सकता है। चूँकि मोइना पारदर्शी होते हैं, छात्र आसानी-से उनके अन्दरूनी अंगों का, यहाँ तक कि दिल की धड़कन का भी निरीक्षण कर सकते हैं। क्यूब लैब में मोइना में ऑक्सीजन में परिवर्तन, प्रभाव और कमी का निरीक्षण किया जा रहा है। मोइना को पारदर्शी बोतल में 1-2 बूंद दूध देकर, इसका रोज़ाना निरीक्षण करते हैं।

दूध की मात्रा बढ़ने से ऑक्सीजन की मात्रा प्रभावित होती है तथा इससे मोइना जो कि पारदर्शी होते हैं, वे लाल हो जाते हैं। होता यह है कि हाइपोक्सिया की प्रतिक्रिया में, मोइना हीमोग्लोबिन का उत्पादन करते हैं और इसलिए लाल दिखाई देने लगते हैं। विद्यार्थी इन सारी प्रक्रियाओं को पुस्तिका में लिखते हैं। मोइना कितने दिनों में और दूध की कितनी बूंदों से पारदर्शी से लाल होते जाते हैं और क्या वे वापस अपने वास्तविक पारदर्शी रूप में आ सकते हैं, इस प्रकार के प्रयोग विद्यार्थी सरल और सहज तरीके से कर सकते हैं। हाल ही में, वैज्ञानिकों को ऑक्सीजन की मात्रा में बदलाव और मानव जीवन प्रक्रियाओं पर इसके प्रभाव पर किए गए अनुसन्धान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। छात्र क्यूब के माध्यम से मोइना के साथ इसी से सम्बन्धित प्रयोग कर रहे हैं।

फलमक्खी और दिन-रात का चक्र
आम तौर पर फलमक्खी यानी ड्रोसोफिला अपने बाहरी पर्यावरण में ही नहीं बल्कि घर में भी आसानी-से पाई जाती हैं। इसी से जुड़े प्रयोग करने के लिए, हम सहज उपलब्ध होने वाली वस्तुओं का उपयोग करते हैं जैसे कि, प्लास्टिक अथवा काँच की पारदर्शक बोतल, केला व उसका छिलका, रुई का गोला, नोटबुक इत्यादि। इतनी ही सामग्री से प्रयोग शुरू किया जा सकता है। बोतल में केला रखकर, उसे ऐसी जगह रखना है जहाँ पर फलमक्खियाँ गन्ध से आकर्षित हो जाएँ। तकरीबन आधे या एक घण्टे बाद बोतल का अवलोकन करें। बोतल में फलमक्खियाँ आने लगेंगी। अब उस बोतल को एक रुई के गोले से बन्द कर दें, ताकि मक्खियाँ बाहर न निकल पाएँ।

छात्र अवलोकन करके लिखते हैं कि कितने बजे, कितनी फलमक्खियाँ पाई गईं। इस प्रकार से एक-दो दिन के अवलोकन सारणीबद्ध कर, ग्राफ बनाया जा सकता है। यह प्रयोग जब छात्राओं ने किया तो उनका निष्कर्ष यह था कि फलमक्खियाँ दिन में ज़्यादा सक्रिय होती हैं और इस तरह अवलोकन द्वारा उनके दिन-रात के चक्र की खोज की जा सकती है। इसी प्रकार का दिन-रात का चक्र मनुष्य में भी पाया जाता है। इस तरह से फलमक्खी के साथ किए गए प्रयोग पर आधारित निष्कर्षों को नोबेल पारितोषिक भी प्राप्त हुआ है। क्यूब प्रोजेक्ट द्वारा प्राप्त ऐसे अनुभवों से पाठशाला के विद्यार्थियों को विज्ञान शिक्षा में मदद मिलती है।

प्रभाव
छात्रों ने डेटा इकट्ठा कर विश्लेषण किया और उनके प्रयोग के निष्कर्ष काफी असाधारण पाए गए। साथियों के साथ मिलकर छात्रों ने एक वर्ष तक अपने स्कूल में पाई जाने वाली फलमक्खी के दिन और रात के चक्र का डेटा इकट्ठा किया। उनकी टिप्पणियों और डेटा संग्रह पर क्यूब लैब की समूह चर्चा में लगातार बातचीत हो रही थी और व्हॉट्सएप समूहों पर भी, जहाँ उन्हें इस पर बहुत सारी प्रतिक्रिया मिली। छात्रों ने साथियों के साथ मिलकर प्रोजेक्ट पर काम किया और बोतल, केला आदि की व्यवस्था की। जब वे इस पर काम कर रहे थे, तो मेंटर ने उन्हें डेटा को सारणीबद्ध करने में मदद की। छात्रों ने CUBE सम्मेलनों में अपनी जाँच और निष्कर्षों को साझा किया। ऐसे सब प्रोजेक्ट विज्ञान करने की संस्कृति विकसित करने के बारे में हैं। इसलिए छात्रों को सवाल पूछने, प्रयोगों को डिज़ाइन करने, अपने काम को साझा करने आदि पर ज़्यादा ध्यान देना होता है।

माध्यमिक विद्यालय के छात्रों ने अपनी परियोजनाओं, निष्कर्षों, डेटा संग्रह, ग्राफ आदि को व्हॉट्सएप या ऐसे किसी प्लेटफॉर्म पर साझा किया। यह निश्चित रूप से उनके साथियों और यहाँ तक कि कॉलेज के छात्रों को प्रेरित करता है। उनके विश्लेषण ने दिन-रात के चक्र के दौरान पीक (peak) समय को दिखाया और यह भी देखा कि फलमक्खी के लिए यह पीक समय मौसम के अनुसार कैसे बदलता है। व्हॉट्सएप ग्रुप स्कूल, कॉलेज एवं स्नातक छात्रों का मिश्रण है, जो विभिन्न मॉडल जीवों पर काम कर रहे हैं। स्कूल के छात्रों के प्रयोग एवं निष्कर्षों ने स्नातक छात्रों को अन्तर्दृष्टि प्रदान की, जो अलग-अलग प्रश्नों पर काम कर रहे थे लेकिन एक ही मॉडल-जीव से सम्बन्धित थे। स्कूल के छात्र सर्कैडियन रिद््म को समझने पर काम कर रहे थे, जबकि स्नातक छात्र देशी बनाम प्रयोगशाला में विकसित फलमक्खियों में घ्राण (गन्ध की ज्ञानेन्द्री) में अन्तर खोजने की दिशा में काम कर रहे थे। स्कूली छात्रों के अध्ययन में पाए गए पीक टाइम अन्तराल के निष्कर्षों के आधार पर, स्नातक छात्र यह जानने में सक्षम बने कि फलमक्खी कब सक्रिय होती हैं ताकि इस जानकारी को वे अपनी परियोजनाओं पर काम करने के लिए उपयोग कर सकें।

इन लैब में छात्रों को मॉडल-जीवों को जीवित रखना एक रोमांचक चुनौती-सी लगती है। क्यूब की संस्कृति है कि हम जीवित रूपों का अध्ययन करते हैं। उदाहरण के लिए, फलमक्खियों को पारदर्शी बोतलों में केले देकर; मोइना को पानी में दूध की बूंदों के साथ; केंचुओं को सिर्फ नमी के साथ टिशू पेपर से भरे एक पारदर्शी ग्लास में, घोंघे को पानी से भरी ट्रे में ककड़ी खिलाकर; हाइड्रा को बोतल में बिना क्लोरीन वाले पानी में मोइना की खाद देकर जीवित रखना इत्यादि। इस तरह से छात्रों को जीवित मॉडल-जीव का अवलोकन करने का अनुभव मिलता है और विज्ञान के प्रयोगों को करने के महत्वपूर्ण बिन्दुओं के बारे में उन्हें पता चलता है।

CUBE लैब में हर दिवाली, गणपति, क्रिसमस आदि की छुट्टी के समय छात्र अपने समूह के साथ एक-दो सप्ताह तक लगातार प्रयोग के बारे में खोज करते हैं। वे सहकर्मियों से दैनिक मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। हर दिन प्रयोग करके और दैनिक चर्चाओं के माध्यम से उस प्रयोग का विज्ञान सीखते और समझते हैं। छुट्टी के अन्तिम दिन क्यूब सम्मेलन आयोजित किया जाता है जिसमें छात्र अपने सहकर्मियों के साथ बड़े आनन्द से प्रयोग प्रस्तुत करते हैं। इस तरह छात्र अवलोकन करना, रिकॉर्ड करना, प्रयोग को प्रस्तुत करना, सारांश और रेखांकन साझा करना, चर्चा करना, बहस करना, गलतियाँ सुधारकर प्रयोग को बताना, सहयोग करना, धैर्य का प्रयोग करना, प्रयोग के परिणाम दिखाना, सम्मेलन में प्रयोग का अनुभव प्रस्तुत करना इत्यादि जैसे कौशल सीखते हैं।

प्रयास
पाठशाला और कॉलेज के छात्रों के साथ प्रयोग करने के अलावा,  क्यूब प्रोजेक्ट में नागरिक विज्ञान यानी सिटिज़न साईन्स कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। उदाहरण के लिए, पेड़ों, फूलों तथा फलों की मैपिंग और अध्ययन जिसमें नागरिकों द्वारा विभिन्न राज्यों में पत्तियों, फूलों, फलों के आने की ऋतु का नक्शा बनाया जाता है। अन्य प्रोजेक्ट में, चुनाव के दौरान नाखूनों पर लगी अमिट स्याही द्वारा नाखून की वृद्धि का अध्ययन करना, बरसात के मौसम में पाए जाने वाले मच्छर का अध्ययन करना, इत्यादि शामिल हैं।

मेंटर्स की भूमिका
क्यूब में जुड़ने के लिए जब छात्र समूह पहली बार प्रयोग करने के लिए आते हैं, तो एक या आधे दिन की प्रयोग-आधारित कार्यशाला का आयोजन किया जाता है ताकि छात्र स्वयं समूहों में प्रयोग करें। इस दौरान मेंटर जो उनके सहकर्मी होते हैं, उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इस कार्यशाला में विभिन्न मॉडल-जीवों पर प्रयोग करने के लिए छात्रों के समूह बनाए जाते हैं। प्रत्येक समूह कम-से-कम 1-2 घण्टे खोज आधारित प्रयोग करते हैं। फिर अगले 1-2 घण्टों तक प्रत्येक समूह अपने प्रयोगों एवं मॉडल-जीव के बारे में एक प्रस्तुतिकरण करता है। इससे अन्य समूहों के छात्रों को उनके प्रयोगों और जीवों के बारे में जानकारी मिलती है। कार्यशाला के बाद छात्र  क्यूब लैब में आते हैं और रोज़ प्रयोग करते हैं, या अपनी ही पाठशाला, कॉलेज आदि में प्रयोग करना शुरू कर देते हैं। उन्हें तुरन्त ही सोशल मीडिया (व्हॉट्सएप, टेलीग्राम, ई-मेल) द्वारा जोड़ लिया जाता है, ताकि वे विज्ञान करते हुए लगातार चर्चा कर सकें और मार्गदर्शन पा सकें। वर्तमान में, विभिन्न स्तर के लगभग 2000 छात्र, कम-से-कम 50 अलग-अलग व्हॉट्सएप, टेलीग्राम, ई-मेल ग्रुप के माध्यम से जुड़े हुए हैं।

जब छात्र क्यूब से जुड़ते हैं तब मेंटर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मेंटर छात्रों को प्रयोग डिज़ाइन करने एवं प्रयोग के दौरान आने वाले जिज्ञासु प्रश्नों को सुलझाने के लिए मार्गदर्शन देते हैं। इसके अलावा, मेंटर दैनिक सामूहिक चर्चा के दौरान प्रयोगशाला में छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं और छात्रों को अपने दैनिक अपडेट को फोटो और वीडियो के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इससे मेंटर्स को छात्रों के प्रयोग की प्रगति की जानकारी मिलती रहती है। वर्तमान में, सभी छात्र और मेंटर, चैटशाला (संवाद मंच) पर अपनी चर्चा जारी रखे हुए हैं।

सीख
इन परियोजनाओं ने निश्चित रूप से छात्रों को अपने अवलोकन कौशल और प्रयोगों के डिज़ाइन को विकसित करने में मदद की। यहाँ उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि इस सबसे छात्रों में डेटा विश्लेषण और अपने साथियों से निष्कर्ष साझा करने एवं सवाल उठाने का आत्मविश्वास विकसित हुआ। प्रयोग करते समय छात्रों का किसी भी त्रुटि के लिए कभी भी अवमूल्यन नहीं किया जाता है, इसलिए वे एक समझ विकसित करते हैं कि विज्ञान की शिक्षा गलतियों के माध्यम से सम्भव है और यह सीख उन्हें बेहतर प्रयोग प्रदर्शन करने में मदद करती है। इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण विकास होता है कि ये माध्यमिक विद्यालय के छात्र नए छात्रों के मेंटर हो जाते हैं। क्यूब कार्यक्रम में ऊर्ध्वाधर एकीकरण (vertical integration) के कारण, माध्यमिक विद्यालय के छात्र क्यूब में आए कॉलेज के नए छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं।
अपनी पाठशाला या कॉलेज में क्यूब लैब शुरू करने के लिए, या सरल-से विज्ञान प्रयोग के बारे में जानने के लिए, आप भी क्यूब लैब में आकर मिल सकते हैं। या फिर फोन, ई-मेल द्वारा सम्पर्क कर सकते हैं।


मीना खरतमाल: होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र में कार्यरत हैं। स्कूल और कॉलेज स्तर पर शिक्षण मॉड्यूल विकसित करने के लिए भी काम करती हैं।
सभी फोटो: मीना खरतमाल।
CUBE सदस्य: प्रो. नागार्जुन, प्रो. एम.सी. अरुणन, मयूर गायकवाड़, आशुतोष मूले, जयकिशन आडवाणी, किरन यादव, और अनेक स्कूल, कॉलेज छात्र।
यह लेख शिक्षण संक्रमण पत्रिका के अंक - अप्रैल 2020 से साभार।