नल की धार......

ऊपर मोटी, नीचे पतली क्यों

चौथे अंके में हमने आपसे दो सवाल पूछे थे; नल की बहती धार ऊपर से मोटी और नीचे जाने पर पतली क्यों होती जाती है। और दूसरा कि जब कीप की सहायता से बोतल में द्रव डालते हैं तो थोड़ी देर बाद कीप में से बोतल में गिरने वाली द्रव की धार कमज़ोर पड़ती-पड़ती रुक-सी क्यों जाती है और कीप से द्रव का बोतल में जाना रुक क्यों जाता है? यहां हम दे रहे हैं इन दो सवालों के जवाब और साथ ही नया सिर खुजलाने वाला सवाल।

घर में लगे नल की टोंटी खोलिए। बहती धार को ध्यान से देखिए, धार ऊपर से मोटी और नीचे की ओर जाने पर पतली होती जाती है। ऐसा क्यों?

यह तो सबको पता है कि अगर एक पत्थर को हवा में छोड़ा जाए तो वह गुरुत्व बल के कारण धरती की तरफ गिरता है। आपने शायद इस बात पर भी गौर किया हो कि हवा में छोड़े गए पत्थर पर लगातार गुरुत्व बल लग रहा है इसलिए नीचे की तरफ गिरते-गिरते उसकी गति भी लगातार बढ़ती जाती है। यानी की हवा में छोड़ने के बाद पहली सेकंड में पत्थर जितनी दूरी तय करता है, दूसरी सेकंड में उससे ज़्यादा दूरी तय करेगा, तीसरी सेकंड में उससे भी ज़्यादा ...। सही है न?

आप सोच रहे होंगे कि कोई गलत रिकार्ड चालू हो गया है क्योंकि सवाल नल की टोंटी से बहती धार के बारे में था और ये जनाव कंकड़-पत्थरों की बात करने लगे। जी नहीं, रिकार्ड ठीक ही लगा बस, ज़रूर है थोड़े-से सब्रा की।

कंकड़-पत्थरों की बात करने के बाद, अब इस सवाल का जवाब उल्टी तरफ से शुरू करते हैं - और देखते हैं कि अगर नल से गिर रहे पानी की धार ऊपर मोटी और नीचे पतली होने की बजाय एक जैसी होती तो क्या होता? चलिए, चित्र में बनी ऐसी काल्पनिक धार को दो जगह से देखकर सोचें कि ‘क’ और ‘ख’ स्थान पर क्या स्थिति होगी।

नल से निकला हुआ पानी नीचे गिर रहा है क्योंकि उस पर गुरुत्व-बल लग रहा है। नीचे गिर रहे पत्थर की बात से स्पष्ट है कि ‘ख’ क्षेत्र से जो पानी गुज़र रहा है उसकी रफ्तार क क्षेत्र से गुज़र रहे पानी की बनिस्बत तेज़ होगी।

इसका अर्थ हुआ कि किसी धार में ‘क’ क्षेत्र से एक सेकंड में उससे ज़्यादा पानी गुज़रेगा।

यह सुनकर आप एकदम से कह उठेंगे, “क्या कहा, नल की टोंटी से जितना पानी निकल रहा है, वो नीचे जाते-जाते बढ़ थोड़े ही सकता है।”

एकदम ठीक फरमाया - नल में से निकल रहे पानी की रफ्तार नीचे जाते-जाते (उसी गुरुत्व-बल के कारण) बढ़ती जाएगी परन्तु पानी की मात्रा तो उतनी ही है। और पानी को न तो हवा की तरह दबाया जा सकता है, न ही इलास्टिक की तरह खींचा। उसका आयतन तो उतना ही रहेगा। इसलिए नीचे गिरते-गिरते पानी की धार संकरी होती जाती है, ताकि रफ्तार बढ़ने के बावजूद एक सेकंड में ‘ख’ से उतना ही पानी गुज़रे जितना ‘क’ से एक सेकंड में बह रहा है।

इसका अर्थ यह हुआ कि नल से गिर रही ऊपर मोटी और नीचे संकरी होती जा रही धार में ‘क’ और ‘ख’ से एक सेकंड में बह रहे पानी की मात्रा एक समान ही रहेगी। इसलिए जैसे-जैसे नीचे जाते हुए पानी की रफ्तार बढ़ती  जाती है वैसे-वैसे उसकी धार संकरी होती जाती है। 

क्यों उठाना पड़ा कीप को ....

यह घटना तो शायद आम अनुभव की बात है - कीप को बोतल पर रख दें तो कीप की नली चाहे खूब मोटी हो फिर भी तेल काफी धीरे-धीरे जाता है। यहां तक कि कई बार तो बिल्कुल ही रुक जाता है। परन्तु अगर कीप थोड़ा-सा भी उठा दें तो तेल कीप में से एकदम तेज़ी से गिरने लगता है।

मामला काफी आसान है। बोतल के मुंह पर आपने कीप रख दी और अंदर तेल उड़ेलना शुरू कर दिया। तेल तो अंदर जा रहा है पर बोतल के अंदर भरी हवा का क्या होगा? बोतल में एक छेद था वो तो आपने कीप और तेल से बंद करने रखा है। अगर कीप और बोतल के मुंह के बीच थोड़ी बहुत जगह हुई जहां से हवा बाहर निकल सके तो बोतल की हवा उस दरार में से  धीरे-धीरे बाहर निकलती रहेगी और धीमी रफ्तार से तेल शीशी में गिरता रहेगा।

परन्तु अगर बोतल के मुंह और कीप के बीच बिल्कुल भी जगह न हो तो जैसे ही तेल बोतल में गिरने लगेगा और बोतल तेल से भरने लगेगी - शीशी के अंदर हवा के लिए जगह लगातार कम होती जाएगी। अंदर हवा तो उतनी की उतनी है, तेल भरकर आपने उसकी जगह कम कर दी इसलिए स्वाभाविक है कि बोतल के अंदर की हवा का दबाव बढ़ेगा, तेल को कीप में से घुसने में उतनी ही ज़्यादा मुश्किल होगी और तेल की धार पतली-धीमी होती जाएगी। अगर यही सिलसिला चलता रहा तो कुछ समय बाद बोतल के अंदर हवा का दबाव इतना हो जाएगा कि वो कीप में पड़े तेल के वज़न को संभाल लेगी। ऐसी स्थिति में कीप में से तेल का गिरना बिल्कुल बंद हो जाएगा।

अगर आपके साथ भी ऐसा होता है तो बस कीप को थोड़ा-सा उठा दीजिए। जैसे ही अंदर की हवा को स्वतंत्रता मिली आपकी मुश्किल हल हो जाएगी!

इस बार का सिर खुजलाने वाला सवाल

किसी सिक्के को सतह पर सीधा खड़ा करने की कोशिकश कीजिए; क्या हुआ? सिक्का आसानी से खड़ा नहीं हो रहा न? अच्छा, अब सिक्के को हल्का-सा धक्का लगाकर लुढ़काइए। अरे, ये तो लुढ़कने लगा। अब इतनी आसानी से कैसे खड़ा हो गया जबकि पहले तो गिर-पड़ रहा था? ऐसा क्यों हुआ?

शायद आपके पास इस सवाल का जवाब हो, हमें लिख भेजिए। संदर्भ, द्वारा एकलव्य, कोठी बज़ार, होशंगाबाद 461001 के पते पर। सही जवाबों को हम अगले अंक में प्रकाशित करेंगे।

कशिशे-सिक्ल (गुरुत्वाकर्षण)

यह न्यूटन दरयाफ्त की थी। गालेबन उससे पहले नहीं होती थी। न्यूटन उससे दरख्तों से सेब गिराया करता था। आजकल सीढ़ी  चढ़कर तोड़ लेते हैं। आपने देखा होगा कि कोई शख्स हुकूमत की कुर्सी पर बैठ जाए तो इसके लिए उठना मुश्किल हो जाता है। लोग जबरदस्ती उठाते हैं। यह भी कोशिशे-सिक्ल के बाइस (कारण) हैं।

इब्ने इंशा