सवाल: हमारी आंखों से आंसू क्यों निकलते हैं?

अंक 28 में पूछे गए इस सवाल के बाद काफी पाठकों ने अपने जवाब हमें भेजे थेइन में से लीना ओझा, शुजालपुर मंडी, शाजापुर तथा दीपक सोंधिया, पाली, उमरिया ने लगभग सही जवाब दिए हैं। यहां दिया गया उत्तर उनके जवाबों पर आधारित है।

'हमारी आंखों से आंसू क्यों निकलते हैं?' इसका जवाब ढूंढने के लिए पहले तो यही देखें कि आखिर आंसू निकलते कब हैं। सबसे मजेदार बात तो यही है कि दुख एक सीमा से बढ़ जाए तो रोना आता है, और खुशी के मारे हंसी से बेहाल हुए जा रहे हों तो भी आंसू टपकने लगते हैं।

इन आंसूओं में मुख्यतः कुछ तेलीय पदार्थ, लवण, कुछ श्लेष्म (म्युकस) और एक विशेष जीवाणुनाशक एंजाइम होते हैं। इन्हीं लवणों के कारण आंसू का स्वाद खारा होता है।

ये सबकुछ किसी एक ग्रंथि से आंख में नहीं पहुंचता बल्कि हमारी आंखों के आसपास ऊपर की ओर बहुत सी ग्रंथियां होती हैं जिनमें से विभिन्न पदार्थ स्रावित होकर आंसू बनाते हैं। इनमें से पलकों के थोड़ा ऊपर की ओर, कान की तरफ बादाम के आकार की एक ग्रंथि होती है। इसे 'अश्रुग्रंथि कहा जाता है। इस ग्रंथि से 6-12 अश्रु नलिकाएं निकलती हैं, जिनसे होकर अश्रुग्रंथि का पनीला द्रव ऊपरी पलक के एकदम किनारे पर निकलता है।

इसी तरह दो अन्य ग्रंथियों में से श्लेष्म स्रावित होता है; और आंख की पलकों में बिछी हुई ग्रंथियां तेलीय पदार्थ निकालती हैं। जब भी पलक झपकती है तो ये सब ग्रंथियां तीनों तरह के पदार्थ स्रावित करती हैं - इन्हीं सब से मिलकर बनता है वह खारा अश्रुद्रव।

हर बार पलक झपकने के साथ ये द्रव आंख के गोले की ऊपरी सतह पर फैल जाता है। यानी कि जब भी हम पलक झपकाते हैं, पानी में जीवाणु-नाशक मिला हुआ पोछा आंख के गोले पर अपने आप लग जाता है, और साथ ही वह हिस्सा नमीयुक्त भी बना रहता है।

इसका मतलब तो ये हुआ कि हर बार पलके झपकने के साथ हम रोते हैं। जी हां, ये बात कुछ हद तक तो सही है। कुछ हद तक' इसलिए क्योंकि पलक झपकाने से आंखों में आने वाले इन आंसुओं की मात्रा सामान्यतः अत्यधिक कम होती है। दिनभर में केवल एक मिली लीटर। यानी कि एक

आंसुओं का सफरः आंखों के ऊपर आसपास मौजूद अश्रु ग्रंथियों में आंसू बनते हैं और अश्रु नलिकाओं से होते हुए आंखों में आते हैं। फिर पूरी आंख में ये आंसू फैलकर दो नलियों से होते हुए नाक में चले जाते हैं।

दिन में आंख पर हजारों बार पोछा लगाने के लिए केवल पंद्रह-बीस अश्रु पर्याप्त हैं।

अगला स्वाभाविक प्रश्न है कि ये द्रव अंततः कहां जाता है? आंख के गोले के नाक की तरफ वाले प्रत्येक हिस्से में दो छोटी नलियां होती हैं जो नाक के अंदर एक विशेष हिस्से में खुलती हैं। अश्रुग्रंथि से उत्पन्न आंसू अंततः इसी हिस्से में आते हैं। कुछ द्रव भाप बनकर उड़ जाता है।

अब आप कहेंगे कि ये सब तो ठीक है, पर ये क्रिया हमारे लिए क्यों जरूरी है? यदि आंसू बनें ही नहीं तो! आंसुओं' का सबसे बड़ा लाभ तो हमारी आंखों जैसी नाजुक रचना की सफाई और उनमें चिकनाहट व नमी बनाए रखने में है। और फिर जैसे कि हमने शुरू में ही बात की थी आंसू हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का सर्वोत्तम तरीका तो हैं ही।

ज्यादा खुश या ज्यादा दुखी होने पर मस्तिष्क द्वारा अश्रु ग्रंथियों को भेजे गए संकेतों से ही हमारी आंखों से आंसू टपकने लगते हैं। और इसी तरह ज्यादा सर्दी जुकाम होने पर आंख और नाक में स्थित संवेदना कोशिकाएं उत्तेजित हो जाती हैं और उस वजह से आंखों से आंसू निकलने लगते हैं

इसी तरह कोई अवांछित पदार्थ हमारी आंखों में चला जाता है तब भी इन आंसुओं की बढ़ी हुई मात्रा हमारी आंखों की सुरक्षा करती है।

आंसुओं की बात हो रही है तो प्याज की बात कर ही लें क्योंकि यह सब पढ़ते हुए कुछ लोगों के मन में ज़रूर यह सवाल उठ जाएगा कि यह सब तो ठीक है पर प्याज़ काटने पर आंसू क्यों झरने लगते हैं। दरअसल प्याज में एक विशेष प्रकार का वाष्पशील द्रव होता है, जो हमारी अश्रु ग्रंथियों को उत्तेजित करता है। यह पदार्थ पानी में अत्यंत घुलनशील होता है और ढेर सारे आंसुओं के साथ-साथ ये भी आंखों से बाहर निकल जाता है। इसलिए अगर प्याज पानी के अंदर हाथ रखकर काटें या प्याज़ काटते वक्त आंखों के आगे झीना गीला कपड़ा रख लें तो बहुत सुकून मिलता है।

हाथों-हाथ एक और घटना को परख लें - ज्यादा रोने पर नाक में भी पानी बहने लगता है, ऐसा क्यों? आंसुओं के पैदा होकर खत्म होने तक के ‘सफरनामे' में ही स्पष्ट हो गया होगा कि ये कमाल आंख से नासिका में खुलने वाली छोटी-छोटी नलियों का ही है।


इस सवाल को एन. एन. आर. कॉन्वेंट स्कूल, नंदरवाड़ा, सिवनी मालवा कक्षा -6 के कई छात्रों ने पूछा था