मुकेश इंगले

हमारे देश में सांपों के बारे में किस्म-किस्म के कहानी-किस्से प्रचलित हैं लेकिन साथ ही सही और तथ्यात्मक जानकारियों का अभाव बरकरार है। सांप कब सक्रिय होते हैं, उनका भोजन क्या-क्या हो सकता है, किस तरह का तापमान और किस प्रकार का परिवेश उन्हें सुहाता है, वे अपनी जीभ क्यों लपलपाते हैं, कैंचुली क्यों उतारते हैं, अपना भोजन साबुत ही क्यों निगलते हैं, कैसे चलते हैं? आदि अनेकों सवाल हैं जो जिज्ञासापूर्ण
 
रेतीली सतह पर जहां सांप को पकड़ बनाने में कठिनाई होती है वहां चलने के लिए सांपों में कुंडलन विधि (Sidewinding) विकसित हुई है।

होने के साथ-साथ रोचक एवं मजेदार भी हैं। लेकिन सांपों को लेकर लोगों के दिलो-दिमाग में बैठे डर के कारण हम सांपों की दुनिया से कोसों दूर हैं।
फिलहाल हम सांपों के चलने के तरीकों पर गौर फरमाते हैं। जाहिर है कि सांपों के पैर नहीं होते, लेकिन इस कमी के बावजूद वे बिना किसी खास परेशानी के चल लेते हैं और जरूरत पड़ने पर अपनी गति को और अधिक तेज़ भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए धामन और लता-सांप जैसे पतले और अधिक लंबे शरीर वाले सांपों की तेज़ चाल दर्शनीय होती है। और इनकी चुस्ती-फुर्ती ने मुझे कई बार हैरत में डाला है। शायद आप जानते होंगे कि सारे सांप पानी में एक हद तक तैर लेते हैं। सांपों का एक बड़ा हिस्सा ऊंची-ऊंची जगहों पर चढ़ सकता है, और हां, एक सांप तो हवा में मजे से तैर भी लेता है। लाल धामन और अलंकृत सांप आदि में पेड़ पर चढ़ने की खास क्षमता होती है। भला समुद्री सांप कहां पीछे रहने वाले, पानी में अपने शरीर को संचालित करने के लिए उनमें चप्पूनुमा चपटी दुम मौजूद है।

खैर, क्या आपने कभी सोचा है कि सांप चलते कैसे हैं? हालांकि बिना टांगों वाले इस रस्सीनुमा शरीरधारी जीव को देखकर इस संबंध में कुछ-कुछ अंदाज़ लगाया जा सकता है, लेकिन सांपों की चाल-ढाल को ठीक ढंग से समझने के लिए जरूरी है उसके शरीर के भीतर झांक लिया जाए क्योंकि उसके भीतर ही इस चाल के कई सारे राज छिपे हुए हैं।
 
रीढ़ की हड्डी और पसलियां
सांपों के शरीर को समझने के लिए कल्पना करते हैं रबर की एक बेलनाकार लचीली नली की। सांप रीढ़धारी जीवों की श्रेणी में आते हैं और इनकी सुविकसित रीढ़ की हड्डी में आमतौर पर 100-400 कशेरुका (Vertebrae) होती हैं। ये कशेरुका एक-दूसरे से जुड़कर एक चेननुमा आकृति धारण कर लेती हैं। सांप के मुंह वाले सिरे की कुछ कशेरुका को छोड़कर अन्य सब कशेरुकाओं के साथ पसलियों का एक-एक जोड़ा लगा होता है। इन पसलियों का एक सिरा कशेरुका से जुड़ा होने के कारण स्थिर होता है जबकि दूसरा स्वतंत्र होने के कारण चलायमान होता है। पसलियां लंबी, लचकदार, मुड़ी हुई, सिरों पर से नुकीली और प्रायः खोखली होती हैं। तथा आसानी से आगे-पीछे दोनों ओर गति कर सकती हैं।

मोटेतौर पर किसी सांप के चलने की क्रिया को पसलियों व मांसपेशियों की आंतरिक गति का बाहरी निरूपण माना जा सकता है। कहने का आशय यह है कि बाहर से देखने पर सांप के शरीर में होने वाली हलचल सीधे-सीधे पसलियों व मांसपेशियों की स्थिति, गति आदि में होने वाले परिवर्तन की सूचक है। सांप अपनी पसलियों के सिरों पर चलते हैं। इस क्रिया में सांप के पेट के शल्क भी मदद करते हैं। चलने की यह क्रिया सदैव पेट के बाहरी भागों यानी अगल-बगल के हिस्सों से संपादित होती है। उदाहरण के लिए कोई सांप जमीन पर फैला हुआ है, उसके शरीर का नीचे वाला भाग जमीन/सतह के संपर्क में होता है।
सांप चलना प्रारंभ करता है। ऐसे में शरीर के एक ओर के पार्श्व (बगल) की पसलियों का एक खण्ड आगे की ओर गति करता है और इसी समय पेट के शल्कों के किनारे सतह को कसकर थाम लेते हैं। तत्पश्चात् दूसरी ओर के पार्श्व (बगल) की पसलियों का खण्ड उठकर इनके (पसलियों के) सामने की ओर आ जाता है तथा पेट के शल्कों के किनारे पुनः सतह को थाम लेते हैं। यह क्रिया लगातार जारी रहती है जिससे सांप के शरीर का पिछला वाला हिस्सा आगे खींचा जाता है और अगला वाला हिस्सा और आगे धकेल दिया जाता है।

यह सांपों की सामान्य चलन क्रियाविधि है। लेकिन सांप तो तपते रेगिस्तान से लेकर घने वनों में, पेड़ों और पहाड़ों पर, नदी-तालाब और समुद्र में भी यानी पृथ्वी पर लगभग हर जगह मिलते हैं। विभिन्न जगहों पर रहने वाले अलग-अलग सांपों के चलने का आमतौर पर अपना एक
 
सांप की रीढ़, पसलियां और शल्क: सांप की रीढ़ की हड्डी लगभग 100 से 10) कशेरुकों से मिलकर बनती है। कशेरुक एक-दूसरे से जुड़कर एक लंबी श्रृंखला बनाते हैं। इन कशेरुकों से पसलियां जुड़ी होती हैं। पसलियों का एक-एक सिरा कशेरुक से जुड़ा होता है। तथा दूसरा सिरा हलचल के लिए स्वतंत्र होता है। पसलियों की हलचल की वजह से भी कुछ सांप अपने चलने की क्रिया को संपन्न कर पाते हैं।
सांप को पलटकर देखने पर काफी सारे पट्टे दिखते हैं। जिन्हें शल्क कहा जाता है। इन शल्कों के अगल-बगल के हिस्से ज़मीनी सतह को थामकर सांप के चलने-फिरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

खास अंदाज़ होता है।
आमतौर पर सांप चलने के लिए चार तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से वे कौन-सा तरीका अपनाएंगे। या कोई दो तरीकों का मिश्रण अपनाएंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनके आसपास का वातावरण कैसा है।
---पथरीली घासफूस वाली जमीन है, रेत है, वे किसी बिल में घुस रहे हैं। या पेड़ पर चढ़ रहे हैं।

सर्पण गति
नाग और धामन आदि सहित सांपों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा सामान्यतः सर्पण गति (Lateral Undulation) वाले तरीके का उपयोग करता है। चलने की. यह क्रिया इस प्रकार पूरी होती है।
➔    सांप जमीन पर स्थिर है और उसके शरीर का निचला यानी पेट वाला हिस्सा सतह के संपर्क में है।
➔    सांप अपने शरीर को अंग्रेजी के ‘एस' अक्षर जैसे मोड़ लेता है। यानी कुंडलियां बना लेता है।
➔    ऐसा स्वरूप धारण करने के पीछे उसका मकसद है कि जमीन पर कहीं उभरी हुई कुछ स्थिर वस्तुएं मिल जाएं कोई कंकड़, पत्थर, घास आदि जिनसे वो अपने शरीर को सटा सके।
तत्पश्चात् वह अपने आप को (शरीर को) इन सब वस्तुओं पर ज़ोर लगा कर आगे को धकेलता है।
ऐसा करने से होता यह है कि अगल-बगल की दिशाओं में लगने वाला बल एक दूसरे को संतुलित कर देता है (सामने दिया चित्र) और आगे की तरफ लगने वाले बल के कारण सांप आगे की ओर सरक जाता है।

सर्पण गतिः सांप सर्पण से किस प्रकार चलता है यह समझने के लिए एक ऐर्ड पर कुछ बँटियां गाड़ी गईं। फिर बोर्ड पर तीन-तीन इंच की दूरी पर समानांतर रेखाएं खींची गईं। सांप इन खूटियों का सहारा लेकर चल रहा है। चलते हुए सांप के एक-एक सेकंड के अंतराल पर फोटो खींचे गए। चित्र में स्पष्ट दिख रहा है कि दो सेकंड में सांप कितना आगे बढ़ गया है। इसी तरह जमीन पर चलता हुआ सांप खूटियों की जगह पौधों के तनों, घास, पत्थर आदि का सहारा लेता है।
 
सर्पण गति में बलों की भूमिकाः सर्पण गति में चलता हुआ सांप बलों के विज्ञान का बखूबी इस्तेमाल करता है। इस तरीके में सांप को कम-से-कम तीन अवरोधों की जरूरत होती. है। साथ ही यह भी जरूरी है कि इन अवरोधों में से दो अवरोध उसके शरीर के एक ही ओर हों और एक दूसरी ओर। इन्हीं तीन अवरोधों पर बल । लगा कर सांप आगे की दिशा में चल पाता है। सांप अपने शरीर को खूटी की विपरीत दिशा में धकेलता है जिससे उसके शरीर पर खूटी द्वारा उतना ही प्रतिक्रिया बल लगाया जाता है। इस प्रतिक्रिया बल के दो घटक होते हैं - एक सांप की गति की दिशा में और दूसरा उससे लंबवत दिशा में। जैसा कि चित्र से स्पष्ट है चूंकि ये खूटियां सांप के शरीर के दोनों ओर हैं, सांप की गति की दिशा के लंबवत लगने वाले बल के घटक एक दूसरे को निरस्त कर देते हैं और सांप आगे की ओर बढ़ जाता है।

चूंकि सांप इन स्थिर वस्तुओं के विपरीत अपने शरीर को लगातार धका रहा है इसलिए वह लगातार आगे की ओर सरकता जाता है  
1. कुंडलियां ज़रुर वैसे-की-वैसे बनी रहती हैं।
2. आगे बढ़ते-बढ़ते अगर अपने आपको धकाने के लिए जरूरी कोई वस्तु पीछे छूट जाए तो वह आगे अन्य कोई ऐसी वस्तु तलाश लेता है और धक्का मारने के लिए उसे इस्तेमाल करता है।
3. इस तरह की गति के लिए सांप सामान्यतः तीन अथवा चार उभरी हुई वस्तुओं/बिंदुओं का सहारा लेता है। साथ ही यह जरूरी है कि ये सब बिंदु सांप के एक तरफ ही न हों बल्कि दोनों तरफ मौजूद हों, तभी वह इनके सहारे अपने आप को धका सकता है।
4. कुल मिलाकर सांप का शरीर गतिमान हो जाता है और सांप नए संपर्क बिन्दु खोजता हुआ अग्रसर होता जाता है क्योंकि पुराने संपर्क बिन्दु पीछे छूटते चले जाते हैं।

सांप के पेट और ज़मीन की सतह के बीच होने वाला घर्षण सांप की गतिशीलता में बाधा डालता है, लेकिन सांप के पेट के शल्कों के चिकने होने से यह घर्षण काफी कम होता है। यानी कि सर्पण गति में सांप हमारी तरह पैरों को नीचे की जमीन पर बल लगाकर नहीं चलता बल्कि सतह के ऊपर उठी हुई वस्तुओं के सहारे आगे को बढ़ पाता है।
सतह के ऊपर उठे हुए संपर्क बिंदुओं के बिना सांप इस तरीके से चल नहीं सकता। इन संपर्क बिन्दुओं की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि यदि सांप को कांच की किसी समतल सतह पर डाल दिया जाए तो इस तरीके से वह ज़रा भी नहीं चल पाता। क्योंकि अपने पेट के शल्कों को अटकाने या फंसाने के लिए सतह पर कोई भी वस्तु मौजूद नहीं होती।
इस तरीके से चलते हुए किसी सांप. को गौर से देखने पर आप पाएंगे कि इस क्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाली तरंगें सांप के सिर से शुरू होकर उसकी दुम तक चली जाती हैं और तुरंत ही सांप का पूरा का पूरा शरीर एक साथ गतिमान हो उठता है। जमीन पर चलने का सांपों का यह तरीका बड़ा प्रभावशाली है।

कन्सर्टना गति
कुछ सांप, खासकर संकरे बिलों में रहने वाले या पेड़ पर चढ़ने वाले जैसे हरा लता सांप, लाल धामन, अलंकृत सांप वगैरह को ‘सर्पण गति' वाला तरीका रास नहीं आता क्योंकि एकदम सीधी बिल की दीवारों के सहारे वे अपने आपको आगे की ओर धक्का नहीं दे सकते। अतः अपनी ज़रूरत के हिसाब से इन्होंने एक नया तरीका अपना लिया है जिसे कंसर्टिना (Concertina) कहा जाता है।
पेड़ पर चढ़ते हुए वे इस तरीके को कैसे अपनाते हैं उसका वर्णन यहां दिया जा रहा है। बिल में घुसते वक्त बिल की दीवारों के सहारे कुंडलियां बनाकर आगे बढ़ने के तरीके का वर्णन चित्र के साथ दिया गया है।
-- सांप पेड़ पर किसी आधारभूत जगह पर है और उसके शरीर का निचला
 
कसर्टिना गतिः इस किस्म की चाल पेड़ों पर चढ़ने वाले या संकरे बिलों में घुसने वाले सांपों की खास पहचान है। इस चित्र में सांप द्वारा किसी बिल में आगे की ओर सरकने की क्रिया को आठ हिस्सों में दिखाया गया है। सांप के दोनों ओर बने छायादार हिस्से वास्तव में बिल की दीवार है। इस तरीके में हरेक स्थिति में सांप द्वारा बनाई गई कुंडली एक महत्वपूर्ण रोल निभाती है। यही कुंडली बिल की दीवार से सटी रहती है और सांप को गिरने से बचाती है। यहां स्थिति पांच तक सांप के शरीर का अगला हिस्सा आगे की ओर बढ़ रहा है और पिछले हिस्से में नई कुंडलियां बनती जाती हैं जो शरीर को थामे हुए हैं। 6, 7, 8 में सांप अपने शरीर के पिछले हिस्से को खींच रहा है और शरीर के अगले हिस्से में कुंडली बनाकर उसके जरिए अपने आप को थामे हुए है।

यानी पेट वाला हिस्सा इस जगह की सतह के संपर्क में है।
सांप किसी नये आधार की तलाश में है और अपने सिर और गर्दन को खींचकर ऊपर या आगे की ओर उठाता या बढ़ाता है। इस स्थिति में उसके सिर और गर्दन का पेड़ की सतह से कोई संपर्क नहीं है और ये हवा में हैं।
अभी सांप के शरीर का निचला
 
यानी पूंछ की ओर वाला भाग एकदम स्थिर है।
-- सांप नए आधार को ढूंढ लेता है। उसके संपर्क में आने पर सांप अपने सिर और गर्दन को पेड़ के इस सम्पर्क बिन्दु पर रखता है और शरीर के निचले हिस्से को ऊपर या आगे की ओर खींच लेता है। जिससे सांप का शरीर आगे बढ़ जाता है।
-- शरीर का आगे का स्थिर भाग दोहरा होकर या मुड़कर घेरों की शक्ल में आ जाता है और सांप अपने शरीर के इस भाग के घेरों की एक श्रृंखला जैसी बना लेता है।
-- इस प्रकार सांप आगे बढ़ता चला जाता है। उसके सिर और गर्दन पुनः नया आधार खोजते हैं और पीछे वाले भाग के भी पुनः नए नए घेरे बनते चले जाते हैं।
‘सर्पण गति' के समान इस तरीके में सांप को पूरा शरीर एक साथ गतिमान नहीं होता बल्कि सांप अपने शरीर को क्रमशः खींचकर और सिकोड़कर आगे की ओर गति करता है।

सरल रेखीय गति  
अजगर और माटी का सांप जैसे मोटे, गठीले और भारी शरीर वाले सांपों में लंबी-लंबी बलिष्ठ मांसपेशियां होती हैं। सांप के पेट की त्वचा को पसलियों और कशेरुका से जोड़ने वाली ये मज़बूत मांसपेशियां ही सांप के शरीर को आगे-पीछे खींचती हैं जिससे सरल रेखीय गति (Rectilinear Locomotion) संभव हो पाती है। सांप को इस तरह चलने के लिए घर्षण जरूरी है; अगर सतह बहुत ही चिकनी हुई तो उसके पेट वाले शल्क (Scutes) ज़मीन पर अपनी पकड़ नहीं बना पाएंगे। सांप की चारों चाल में से केवल यही एक तरीका है जो अन्य प्राणियों से थोड़ा-बहुत मेल खाता है - यानी कि वो जमीन से घर्षण की मदद से आगे बढ़ता है। आइए देखें सांप इस तरीके से कैसे चलता है।
-- सांप जमीन पर है और उसके शरीर का निचला या पेट वाला हिस्सा सतह के संपर्क में है।
-- वह अपनी मांसपेशियों के जरिए नीचे के कुछ शल्कों (Scutes) को पास-पास ले आता है और संकुचित शल्कों (Scutes) के जरिए जमीन पर अपनी पकड़ जमा लेता है। (चित्र में हिस्से 1, 3 व 5)
-- इन संकुचित हिस्सों के बीच (2, 4) में शल्क काफी दूर-दूर खुले-खुले रहते हैं। और यह हिस्सा जमीन से थोड़ा-सा उठा रहता है।
-- अगले चरण में सांप अपनी गर्दन को आगे को बढ़ाता है जिससे
 
सरल रेखीय गतिः अजगर या ऐसे ही हृष्ट-पुष्ठ मांसपेशियों वाले सांप इस चाल का मज़ा लेते हैं। इस चाल में सांप के शरीर के कुछ बिंदु जमीन के संपर्क में रहते हैं और कुछ ऊपर उठे होते हैं। उसके शरीर का भार जमीन से सटे इन बिन्दुओं पर होता है। इस चित्र में 1, 3, 5 ऐसे ही क्षेत्र हैं। 2 और 4 ऊपर उठे हिस्से हैं। गर्दन को आगे । बढाने पर A मांसपेशियों में खिंचाव की वजह से पहले संकुचित हिस्से '1' से आगे के शल्क (Scutes) ऊपर उठ जाते हैं और B मांसपेशियों की वजह से पीछे के शल्क जमीन के संपर्क में आ जाते हैं। जमीन के संपर्क में जो भी हिस्से हैं उन सबके साथ यही होता है। इस तरह सांप का शरीर आगे की ओर खिसकता रहता है।

संकुचित हिस्से '1' के आगे वाले शल्क खिंचकर ऊपर की ओर उठ जाते हैं (A)। उसी समय संकुचित हिस्से के पीछे वाले शल्क से जुड़ी बलिष्ठ मांसपेशियां (B) खींचकर कुछ और शल्कों को जमीन के संपर्क में ले आती हैं।
यही प्रक्रिया जमीन के संपर्क वाले अन्य हिस्सों (3,5) में भी होती है। हर संकुचित हिस्से में आगे के शल्क खिंचकर ऊपर उठ जाते हैं। और पीछे की ओर से कुछ शल्क खिंचकर जमीन के संपर्क में आ जाते हैं।
इस तरह से गर्दन को आगे बढ़ाने पर जो प्रक्रिया शुरू होती है उसके जरिए सांप लगातार बिना रुके आगे बढता जाता है।
यह क्रिया लगातार जारी रहती है। और सांप के पेट की त्वचा इल्ली (केटरपिलर) की भांति ऊपर-नीचे खिसकती नजर आती है और सांप एक सीधी लाईन में आगे बढ़ता जाता है।
‘सर्पण गति' के समान इस तरीके के दौरान सांप का शरीर टेढ़ी-मेढ़ी तरंगों में नहीं फेंका जाता। चलने का यह तरीका धीमा जरूर है लेकिन है प्रभावी क्योंकि इसमें सांप का शरीर बिना किसी बाधा के एक समान गति से आगे की ओर अग्रसर होता है।
इस तरीके की विशेषता यह है कि इसमें सांप सरल रेखा में गति करता है और अगर जमीन के ऊपर उभरी हुई वस्तुएं न हो तो भी आगे बढ़ सकता है। कभी-कभी शिकार के पीछे लगे हुए सांप भी यही तरीका अपनाते हैं ताकि शिकार को उनकी भनक भी न लगे।

पार्श्व कुण्डलन गति (Sidewinding)
सांपों के चलने का सबसे दर्शनीय और मनमोहक तरीका है पार्श्व कुण्डलन। रेतीले इलाकों में पाए जाने वाले सांप जैसे भारत का फुर्सा (सॉ- स्केल्ड वाइपर) आदि इस तरीके को अपनाते हैं। यह तरीका परिवर्तन शील रेतीली सतह पर सांप को तेजी से और लगातार चलने में मदद करता है। सतह भुरभुरी होने से उस पर सांप की पकड़ ठीक से बन नहीं पाती और न ही ‘सर्पण गति' के लिए यहां उभरे हुए संपर्क बिन्दु मौजूद होते हैं। जिनके सहारे सांप खुद को धकिया सके। साथ ही यहां की सतह जल्द ही इतनी गर्म हो जाती है कि सांप के लिए अपना पूरा-का-पूरा शरीर सतह से सटाकर चलना घातक होगा। अत: झुलसती रेत पर चलते वक्त सांप ये चौथा तरीका अपनाते हैं। पार्श्व कुण्डलन गति से तेजी से चल रहे ये सांप अपने शरीर की गोल-गोल गुत्थियां बनाकर उचकते हुए चलते नजर आते हैं। इस विधि को समझने के लिए आपको दिए गए चित्र गौर से देखने होंगे और उन्हें वर्णन के साथ जोड़कर देखना होगाः

चित्र-1: सांप किसी रेतीली सतह पर है। उसके शरीर के कुछ हिस्से जमीन के संपर्क में हैं और कुछ उठे हुए हैं। उसका सिर अभी जमीन पर टिका ही है, सिर के पीछे का कुछ हिस्सा उठा हुआ है, सांप का बीच का हिस्सा रेत पर टिका हुआ है, अंत की तरफ का हिस्सा हवा में है और पूंछ ज़मीन पर है। दाहिनी-नीचे की ओर वे निशान हैं। जो सांप ने इस प्रकार चलते हुए बनाए हैं और ऊपर-बाईं तरफ की रेखाएं दिखा रही हैं कि इस दिशा में आगे वाले निशान बनेंगे।
चित्र-2: जहां पर सांप ने अपना सिर रखा था वहां अंग्रेज़ी के 'जे' की चुंडी जैसा निशान बन गया है। अगर सांप की पूंछ को देखें तो समझ में आएगा कि उसने इसे हवा में उठा लिया है। और अपने पीछे वाले हिस्से को बीच वाले निशान पर रख रहा है। इसी तरह बीच वाले निशान पर से आगे वाले हिस्से को उठा रहा है जिससे सिर वाले निशान पर अपने शरीर का आगे वाला हिस्सा रख दिया है - और सिर को वह अपनी गति की दिशा में आगे बढ़ा रहा है।
चित्र-3: पूंछ लगभग पूरी ही दूसरे निशान पर आ गई है और वही पूरी प्रक्रिया दोहराने की वजह से आगे वाला काफी हिस्सा आगे बढ़ गया है। और सिर हवा में उठा हुआ है।
चित्र-4: आगे वाला हिस्सा इतना आगे
 
पार्श्व कुंडलन गतिः खासकर रेगिस्तानी इलाकों में सांपों को इस चाल का इस्तेमाल करते देखा जा सकता है। ऊपर के चित्र में स्पष्ट दिख रहा है कि इस चाल के दौरान मांप के शरीर के कुछ हिस्से ज़मीन पर होते हैं और कुछ हवा में उठे रहते हैं। इस चित्र में सांप का सिर और बीच के दो हिस्से हवा में उठे हुए हैं। यानी तीन हिस्से जमीन के संपर्क में हैं और तीन हवा में उठे हुए हैं।
नीचे वाले चित्र में इस तरह चल रहे सांप की पांच स्थितियों को दिखाया गया है - हर स्थिति अलग-अलग तरह की रेखा द्वारा दर्शाई गई है। सांप-चिन्ह तिरछे बन रहे हैं। परन्तु स्पष्टतः सांप ऊपर की तरफ गति कर रहा है।
 
बढ़ गया है कि फिर से एक और निशान की जरूरत है; इसलिए सांप अपना सिर रेत पर टिका देता है जिससे एक बार फिर ‘जे की घुंडीनुमा निशान बन जाता है।
इस तरह की गति की विशेषता यह है कि सांप के चलने के निशान उस दिशा में नहीं होते जिस दिशा में सांप गति कर रहा है, लगभग 60 अंश का कोण होता है इन दोनों के बीच। और केवल चलने के निशान देखें तो बिल्कुल भी समझ में नहीं आता कि कैसे बने होंगे ये - सांप ने एक से दूसरे निशान पर छलांग लगाई होगी क्या?
इस चाल की दूसरी विशेषता यह है कि रेतीले इलाके में जहां जमीन पर उभरी हुई स्थिर वस्तुएं आसानी से नहीं मिल पाती इसलिए सर्पण गति संभव नहीं है - ऐसी जगह भी इस तरीके से सांप गति कर सकता है।
और तीसरी खासियत है कि इस चाल में सांप के शरीर का कोई हिस्सा लगातार ज्यादा समय के लिए जमीन के संपर्क में नहीं रहता - इसलिए तपती हुई रेत पर भी सांप बिना झुलसे चल पाता है।
इस चाल में बने हर निशान की लंबाई ठीक उस सांप की लंबाई के बराबर होती है - आप ही सोचिए ऐसा क्यों होता है?
एक से ज्यादा चाल चले
एक तो सांप बहुत तरह से चल सकता है और कभी-कभी तो वह एक से ज्यादा तरीके एक साथ अपना लेता है। मनुष्य की चाल से ये सब तरीके इतने फर्क हैं कि इन्हें समझना खासा मुश्किल होता है, फिर भी शायद आप लेख पढ़कर ये तो समझ पाए होंगे कि सांप के चलने के ये चारों तरीके एक-दूसरे से किस तरह अलग हैं। पतले लंबे शरीर वाले, मोटे भारी भरकम तथा मध्यम व छोटे आकार के सांपों में अपनी-अपनी शारीरिक बनावट और जरूरतों के अनुसार चलने के अलग-अलग तरीके विकसित हुए हैं।
सांप अरबों सालों से धरती पर रेंगते आए हैं, परंतु शीत रक्त वाले ये प्राणी यह साबित करने में कामयाब रहे हैं कि चलने, दौड़ने, कूदने और तैरने के लिए पैर जैसे अंगों का होना जरूरी नहीं है।


मुकेश इंगले: सांपों के संरक्षण हेतु प्रयासरत। उज्जैन में रहते हैं। म. प्र. दलित साहित्य अकादमी में कार्यरत। सांपों के बारे में लोगों के बीच जानकारी फैलाने के लिए वे जगह-जगह सांप-शो भी आयोजित करते हैं।