सुशील जोशी

पानी की कठोरता एक ऐसा गुण है जिसे परखना काफी आसान है। जब किसी पानी में साबुन झाग न दे, तो वह पानी कठोर है। जब पानी, साबुन और झाग की बात होती है तो कई सवाल उठते हैं; जैसे झाग क्या है, क्यों बनता है, वैसे ही पानी को हिलाएं तो झाग क्यों नहीं बनता, साबुन में ऐसी क्या बात है। कि वह झाग बनाता है, और कौन-सी ऐसी झाग बनाने वाली चीजें हैं वगैरह। प्रश्नों का दूसरा समूह है कि सफाई में झाग का क्या महत्व है, कठोर पानी झाग क्यों नहीं देता वगैरह। प्रश्नों का तीसरा समूह यह है कि क्या कठोर पानी के कोई अन्य गुणधर्म भी हैं। जैसे क्या दाल पकने और झाग बनने का कोई आपसी संबंध है? और अंत में सवाल आता है कि कहीं का पानी कठोर हो तो क्या करें?
किन्तु झाग से इस लेख का संबंध मात्र इतना है कि आग कठोरता की पहचान के लिहाज़ से उपयोगी है। जो पाठक इस लेख में साबुन व झाग के विश्लेषण की उम्मीद कर रहे हैं वे शायद निराश ही होंगे। पानी में कठोरता मूलतः कैल्शियम व मैग्नीशियम के लवणों के कारण उत्पन्न होती है। इनके कुछ लवण पानी में पर्याप्त घुलनशील हैं जबकि कुछ अत्यल्प मात्रा में घुलनशील हैं।

तरह-तरह की कठोरता  
अलग-अलग लवणों के घुले होने के कारण अलग-अलग किस्म की कठोरता उत्पन्न होती है। कठोरता का वर्गीकरण करने का महत्व यह है कि अलग-अलग किस्म की कठोरता अलग-अलग ढंग से प्रभाव डालती है और कई बार उससे निपटने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं।
सर्वप्रथम तो कुल कठोरता की बात कर लें। पानी में उपस्थित कुल कैल्शियम, मैग्नीशियम लवणों की मात्रा को हम उसकी कुल कठोरता कहते हैं। यहां समस्या यह उठती है कि इन दो धातुओं के तमाम किस्म के लवण पानी में घुले हो सकते हैं। फिर इनकी कुल मात्रा कैसे बताएं क्योंकि मैग्नीशियम के किसी लवण की 0.5 ग्राम और कैल्शियम के किसी लवण की 0.5 ग्राम मात्रा वज़न में तो बराबर है। किन्तु कठोरता की दृष्टि से ये दोनों बराबर नहीं हैं।

एक उदाहरण से इस बात को समझ लेते हैं। मान लीजिए हमारे पास पानी के दो नमूने हैं: 'क' और 'ख'। दोनों एक-एक लीटर हैं। ‘क’ नमूने में 0.5 ग्राम कैल्शियम क्लोराइड और 'ख' नमूने में 0.5 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट घोला गया है। क्या दोनों नमूनों की कठोरता एक समान होगी? मान लीजिए कि हम साबुन का एक घोल बना लेते हैं। अब 'क' व 'ख' दोनों में बूंद-बूंद करके यह घोल डालते हैं। साबुन के साथ लवणों की क्रिया होगी। जब तक लवण शेष है तब तक झाग नहीं बनेगा। क्या दोनों घोलों में लवण को समाप्त करने के लिए बराबर-बराबर साबुन लगेगा? ।
यदि दोनों में बराबर साबुन नहीं लगता तो हम कहेंगे कि दोनों घोल में कठोरता की मात्रा अलग-अलग है। सचमुच होता भी यही है। ऐसी स्थिति में यह कहने का कोई अर्थ नहीं है कि दोनों घोल की कठोरता 0.5 ग्राम प्रति लीटर है।

तो कैसे व्यक्त करें कठोरता की मात्रा? इसका एक तरीका खोजा गया है। हम कठोरता को मात्र कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा के रूप में व्यक्त करते हैं - चाहे उस पानी में कठोरता किसी भी लवण की वजह से हो।
तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो हमें यह पता लगाना होगा कि कठोरता के लिहाज़ से किसी लवण की कितनी मात्रा एक ग्राम कैल्शियम कार्बोनेट के बराबर है।
उदाहरण के लिएः
1 ग्राम कैल्शियम कार्बोनेट = 1.62 ग्राम कैल्शियम बाइकार्बोनेट = 1.2 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट
 
यदि 1 लीटर पानी में 0.5 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट घुला है तो उसकी कठोरता 0.41 ग्राम कैल्शियम कार्बोनेट के बराबर होगी। तो अब हम समस्त कठोरता को ग्राम कैल्शियम कार्बोनेट प्रति लीटर या मिलीग्राम कैल्शियम कार्बोनेट प्रति लीटर जैसी इकाइयों में व्यक्त कर सकते हैं।
मिलीग्राम प्रति लीटर में व्यक्त करना ज्यादा सुविधाजनक है क्योंकि प्रायः कठोरता मिलीग्राम रेंज में होती है। इसका एक फायदा और भी होता है।
संक्षेप में ध्यान रखने की बात यह है कि कठोरता को हम कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में व्यक्त करते हैं। जो भी लवण कठोरता उत्पन्न करते हों, उन सबके द्वारा उत्पन्न कठोरता को कैल्शियम कार्बोनेट की इकाई में व्यक्त किया जाए तो यह कुल कठोरता हुई। इसके बाद आते हैं कठोरता के वर्गीकरण पर।

स्थाई-अस्थाई कठोरता
मान लीजिए हम किसी पानी की कठोरता नाप लें (कैल्शियम कार्बोनेट की इकाई में)। इसका यह मतलब नहीं है कि उस पानी में सिर्फ कैल्शियम कार्बोनेट के कारण कठोरता पैदा हो रही है। अब इस पानी को कुछ समय के लिए उबालकर ठण्डा करके छान लेते हैं और फिर से कठोरता नापते हैं। मान लीजिए कठोरता पहले से कम हो जाती है। जो कठोरता पानी को उबालने के बाद भी बची रहे उसे स्थाई कठोरता कहते हैं। और उबालने पर जो कठोरता दूर हो जाए उसे
अस्थाई कठोरता कहते हैं। अस्थाई कठोरता कैल्शियम, मैग्नीशियम के बाइकार्बोनेट लवणों के कारण होती है। ये लवण काफी अस्थिर प्रकृति के होते हैं तथा गर्म करने या उबालने पर विघटित होकर कार्बोनेट में तब्दील हो जाते हैं। कार्बोनेट अघुलनशील होने के कारण अवक्षेपित हो जाते हैं। | जो कठोरता कार्बोनेट व बाइकार्बोनेट की उपस्थिति की वजह से होती है, उसे कार्बोनेट कठोरता कहते हैं। इसके अतिरिक्त शेष कठोरता को गैर-कार्बोनेट कठोरता कहते हैं।

कठोरता के असर
घरेलू व औद्योगिक उपयोग के लिए कठोर पानी का उपयोग करें तो कई समस्याएं आती हैं। इनमें से एक समस्या से तो सभी परिचित हैं। वह समस्या है कपड़े धोने की। ऐसा बताते हैं कि यदि पानी में 350 मि. ग्रा. प्रति लीटर कठोरता हो, तो प्रति लीटर पानी पर आपको लगभग ढाई ग्राम साबुन ज्यादा खर्च करना होगा। लगातार कठोर पानी में धोए जाने पर कपड़े चलते भी कम हैं। बताते हैं। कि कपड़ा कैल्शियम व मैग्नीशियम के लवण अवशोषित करता है, इस वजह से रेशे खराब हो जाते हैं।
बहरहाल, कपड़ा धोने की समस्या का समाधान तो डिटर्जेंट ने कर दिया है। इसलिए इस पर ज्यादा सिर खपाने की ज़रूरत नहीं है। ऐसी भी रिपोर्ट है। कि कठोर पानी में खाना पकने में समय ज्यादा लगता है। मांसाहारियों के लिए बुरी खबर यह है कि कठोर पानी में मांस पकाने में एक दिक्कत यह है कि मांस का जो प्रोटीन निकलकर पानी में आता है वह अघुलनशील हो जाता है तथा शरीर में इसका पाचन नहीं हो पाता। वैसे यह कितनी हद तक होता है, कहना मुश्किल है।

जब कठोरता के स्वास्थ्य संबंधी असर की बात चली है, तो यह कहना मुनासिब है कि इस बाबत कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं हुए हैं। कई वर्षों पूर्व एक अध्ययन हुआ था जिसमें ‘निष्कर्ष यह था कि अत्यधिक मृदु पानी पीने वालों में हृदय रोग थोड़े ज्यादा होते हैं किन्तु अध्ययन-कर्ताओं ने साथ ही यह भी कहा था कि इसका मतलब यह नहीं है कि सप्लाई से पूर्व पानी को कठोर बनाया जाए।
औद्योगिक दृष्टि से देखें तो पानी की कठोरता एक प्रमुख समस्या के रूप में सामने आती है। आप जानते ही हैं कि उद्योगों में पानी का काफी इस्तेमाल होता है। कई उद्योगों में बॉयलर लगे होते हैं जहां पानी को उबाला जाता है।
सबसे पहली समस्या तो यह आती है कि कठोर पानी का उपयोग किया जाए तो बॉयलर की दीवारों पर एक पपड़ी जमा होने लगती है। यह वैसे तो आम अनुभव भी है। मसलन होशंगाबाद तथा नर्मदा किनारे के अन्य शहरों-गांवों में जिस बर्तन में पानी उबाला जाता है उसमें एक सफेद पपड़ी बन जाती है। यह पपड़ी प्रायः अस्थायी कठोरता की वजह से बनती है। भद्दी दिखने के अलावा इस पपड़ी के कई अन्य असर हैं।

पपड़ी की पहली समस्या यह है कि यह पपड़ी कैल्शियम बाइकार्बोनेट के विघटन से बने कैल्शियम कार्बोनेट की होती है। इसकी ऊष्मा चालकता कम होती है जिसकी वजह से बॉयलर में ईंधन की खपत बढ़ जाती है।
पपड़ी की दूसरी समस्या है- पपड़ी चूंकि ऊष्मा की कुचालक होती है इसलिए पपड़ी के नीचे धातु अत्यधिक गर्म हो जाती है। इसे सुपर हीटिंग कहते हैं। यदि पपड़ी एक समान मोटाई की न हो तो बॉयलर व ट्यूब में जगह-जगह पर फफोले बनने लगते हैं व दरारें पड़ने लगती हैं।

पपड़ी की तीसरी समस्या - पपड़ी में कई जगह दरारें होती हैं। भाप इनमें घुस जाती है और बॉयलर के लोहे से क्रिया करती है, जिससे हायड्रोजन उत्पन्न होती है। यदि पानी में सल्फेट लवण हैं तो हायड्रोजन इनसे क्रिया करके हायड्रोजन सल्फाइड बनाती है जो बॉयलर को क्षति पहुंचाती है। लिहाज़ा कठोर पानी का उपयोग करें तो समय-समय पर बॉयलर को बंद करके पपड़ी खुरचना होती है। बॉयलर को बंद करके फिर से चालू करना भी काफी खर्चीला काम है। कठोरता पैदा करने वाले लवणों में मैग्नीशियम के लवण भी होते हैं। मैग्नीशियम के लवणों के जल अपघटन से पानी की अम्लीयता बढ़ती है। दूसरे शब्दों में, पानी में हायड्रोजन आयनों की सांद्रता बढ़ती है। ये हायड्रोजन आयन बॉयलर को क्षति पहुंचाती हैं।

कठोरता से निपटना
अव्वल तो यदि किसी स्रोत का पानी अत्यंत कठोर है तो बेहतर होगा कि पानी का अन्य स्रोत तलाश लिया जाए। कठोर पानी को बड़े पैमाने पर मृदु बनाना काफी खर्चीला सौदा है। भाप इंजिनों के जमाने में यही किया जाता था कि इंजिन में पानी भरने के


कठोरता दूर करने की रासायनिक विधियां

पानी में अगर बुझा हुआ चूना डाला जाए तो कैल्शियम व मैग्नीशियम के लवण उससे क्रिया करके अवक्षेपित हो जाते हैं। आपने शायद ध्यान न दिया हो मगर ध्यान देने की बात है कि बुझा हुआ चूना वास्तव में कैल्शियम हायड्रॉक्साइड होता है। यानी आप पानी में से कैल्शियम-मैग्नीशियम को दूर करने के लिए ऊपर से कैल्शियम डाल रहे हैं। लिहाज़ा कितना चूना डाला (लगाया) जाए इसका आकलन बहुत सावधानी से करना होता है, अन्यथा कठोरता घटने की बजाए बढ़ भी सकती है। पूरी प्रक्रिया में चूना डालने के बाद अवक्षेप को हटाना एक पेचीदा तकनीकी काम है। अभी हम इसकी टेक्नॉलॉजी में नहीं जा रहे हैं। रसायनिक क्रियाएँ निम्नानुसार हैं :

Ca(HCO3)2 + Ca(OH)2  → 2CaCO3 +  2H2O
Mg(HCO3)2 + Ca(OH)2  → Mg(OH)2 + Ca(HCO3)2
Ca(HCO3)2 +  Ca(OH)2  →  2CaCO3 + 2H2O

इस विधि से मुख्यतः कैल्शियम कठोरता दूर की जाती है। यदि कठोरता गैर-कार्बोनेट किस्म की है तो ऐसे पानी में कपड़े धोने का सोड़ा भी डालना होता है:

CaSO4 + Na2CO3 →CaCO3 + Na2SO4

लगभग यही असर कॉस्टिक सोडा (NaOH) से भी हासिल किया जा सकता है।

Ca(HCO3)2 + 2NaOH → CaCO3 + Na2CO3 + 2H2O
Mg(HCO3)2 + 4NaOH → Mg(OH)2 + 2Na2CO3 + 2H2O


इन क्रियाओं में कपड़े धोने का सोड़ा (Na2CO3) बनता है। यह अन्य गैरकार्बोनेट कठोरता को दूर कर देता है।
परन्तु ऊपर वर्णित विधियों की एक समस्या है। आपने भी गौर किया होगा कि इनमें कठोरताजनक लवणों का स्थान अन्य लवण ले लेते हैं। अतः पानी की कठोरता तो दूर हो जाती है किन्तु लवणों की कुल मात्रा कम नहीं होती। यदि कठोरता दूर करने के साथ-साथ लवणों की कुल सान्द्रता भी कम करनी है तो इसके लिए बेरियम हायड्रॉक्साइड का इस्तेमाल किया जाता है। परंतु बेरियम के लवण बहुत महंगे होते हैं।
स्थान सावधानीपूर्वक चुने जाते थे। उस समय देश के कई स्टेशनों का महत्व मात्र पानी की मृदुता के कारण था। कठोरता दूर करने की कई भौतिक व रासायनिक विधियां उपलब्ध हैं। (रासायनिक विधियां बॉक्स में)
एक भौतिक विधि की चर्चा तो प्रकारांतर से हो ही चुकी है। यदि पानी को गर्म किया जाए तो कार्बोनेट कठोरता कम की जा सकती है। इसके अलावा एक विधि आयने आदान-प्रदान की भी है। ऐसे आयन विनिमय पदार्थ उपलब्ध हैं जो कैल्शियम व मैग्नीशियम के आयनों को सोखकर उनके बदले पानी में अन्य आयन घोल देते हैं। इस विधि का इस्तेमाल करके भी पानी को मृदु बना सकते हैं।


सुशील जोशी: एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान कार्यक्रम व स्रोत फीचर सर्विस से जुटे हैं। साथ ही म्वतंत्र विज्ञान लेखन एवं अनुवाद करते हैं।