चन्दन यादव

भाषा (हिन्दी) की पाठ्यपुस्तकों के बारे में अक्सर घोषित किया जाता है कि इनका उद्देश्य बच्चे के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना है। ये बस्ते से बाहर निकलकर दैनिक जीवन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगी। इनमें पठित वस्तु को समझने, उस पर विचार करने और भाषा का प्रभावी उपयोग करने के अवसर दिए गए हैं। और ये मानवीय प्रेम, साम्प्रदायिक सद्भाव, प्रकृति तथा पर्यावरण के प्रति संवेदना और राष्ट्रप्रेम की भावना को बढ़ाने वाली हैं। कुल मिलाकर जितने भी उपयोगी और प्रगतिशील विचार सम्भव हैं, किताब को उनका खज़ाना घोषित कर दिया जाता है। हालाँकि यह सवाल पूछने लायक है कि किताब की विषय वस्तु इन उद्देश्यों को पाने में सक्षम है भी या नहीं?

इस सवाल का पूरा सम्मान करते हुए इस लेख में हम सिर्फ इस बात की पड़ताल करेंगे कि पुस्तक में शामिल रचनाओं के अन्त में पूछे गए सवाल किताब के उद्देश्य को पाने में कितने सहायक हो सकते हैं। अव्वल तो यह इसी पर निर्भर करेगा कि बच्चों को खुद सोचने, अपने आस-पास का अवलोकन और विश्लेषण करने, ज्ञान की रचना खुद करने और अपना भाषा कौशल बढ़ाने के कितने अवसर कक्षा में दिए जाते हैं।

सवालों में छिपी हैं सम्भावनाएँ
यह कहा जा सकता है कि विषयवस्तु को पढ़ने और उस पर मनन करने पर बच्चे खुद उसमें निहित भावार्थ को पहचान पाएँगे। मगर इसके लिए भी बच्चों को स्कूल के अन्दर जगह और समय देने की ज़रूरत होगी। परन्तु अगर इसकी गुंजाइश किताब की विषयवस्तु में ही बना ली जाए तो कहना ही क्या! इस सम्बन्ध में मुझे पाठ के अन्त में पूछे जाने वाले प्रश्नों में बहुत सम्भावनाएँ नज़र आती हैं। इन सवालों की मदद से किताब की विषयवस्तु को बच्चों की समझ और अनुभवों से जोड़ा जा सकता है।

एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा विकसित कक्षा पाँचवीं की पाठ्य पुस्तक रिमझिम में एक विज्ञान कथा ‘वे दिन भी क्या दिन थे’ शामिल की गई है। यह आने वाले उस समय की कहानी है जब पढ़ाई आज की तरह स्कूल भवनों में नहीं हो रही होगी। इसकी जगह हर बच्चे के घर में मौजूद मशीन बच्चे को पढ़ाने का काम कर रही होगी। यह मशीन बच्चों को होमवर्क देगी। और बच्चों द्वारा किए गए काम को जाँचने का काम भी करेगी।... उस समय के बच्चों को एक पुरानी किताब मिलती है जिसको पढ़कर उनको पता चलता है कि बहुत पहले स्कूल भवन हुआ करते थे जहां जाकर बच्चे पढ़ते थे। उस समय पढ़ाने का काम जीते जागते इन्सान करते थे। बच्चे यह जानकर बहुत रोमांचित होते हैं और सोचते हैं कि वे दिन कितने अच्छे रहे होंगे।

विश्लेषण का मौका
इस पाठ के साथ दिए गए प्रश्न मुझे सीखने की बहुत-सी सम्भावनाओं के दरवाज़े खोलने वाले महसूस हुए।
तुम मशीन की मदद से पढ़ना चाहोगे, या अध्यापक की मदद से? दोनों के पढ़ाने में किस-किस तरह की आसानियाँ और मुश्किलें हैं?
यह सवाल पूछकर बच्चों को दो अलग-अलग तरीके का विश्लेषण करने का मौका दिया गया है। अध्यापक से पढ़ने का उनको पर्याप्त अनुभव है और मशीन से पढ़ने की वे कल्पना कर सकते हैं। कल्पना करने में अध्यापक से पढ़ने का अनुभव उनकी मदद करेगा। अभी तक बच्चों को सही और गलत ठहराते आए अध्यापक के गुण-दोष देखने का मौका बच्चों को हासिल होगा, जिसकी सत्ता और समझ पर सवाल उठाने की इजाज़त आमतौर पर स्कूलों में नहीं दी जाती। इस तरह यह सवाल अध्यापक और बच्चों के रिश्ते के बीच मौजूद पदानुक्रम की दीवार की कुछ ईंटें गिराने का काम भी करेगा।
इसी पाठ के लिए प्रस्तावित कुछ और प्रश्नों पर गौर कीजिए-

‘वे दिन भी क्या दिन थे,’ बीते दिनों की प्रशंसा में कहे जाने वाली यह बात तुमने कभी किसी से सुनी है? अपने बीते हुए दिनों के बारे में सोचो और बताओ कि उनमें से किस समय के बारे में तुम ‘वे दिन भी क्या दिन थे’ कहना चाहोगे?
नीचे कुछ वस्तुओं के नाम दिए गए हैं। बड़ों से पूछकर पता करो कि बीस साल पहले इनकी क्या कीमत थी, और अब इनका दाम कितना है।
आलू दाल चावल शक्कर दूध
ये दोनों प्रश्न बच्चों को बीते समय के दो अलग-अलग पहलुओं में झाँकने का मौका देते हैं।
अपने और दोस्तों के बारे में सोचने का मौका
‘खिलौने वाला’ कविता में पूछा गया प्रश्न ‘अक्सर तुम किस तरह की बात पर रूठती हो?’ बच्चों को खुद के व्यवहार पर सोचने का मौका देता है। हो सकता है इस बारे में सोचते हुए किसी बच्चे को महसूस हो कि वह जिन बातों पर रूठता रहा है वे ऐसी नहीं हैं जिन पर रूठा जाए। इसका एक और महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यह लड़कियों को सम्बोधित है, जो आमतौर पर किताबों में नज़र नहीं आता। इसी तरह के प्रश्न का एक और विस्तार कविता ‘एक माँ की बेबसी’ में दिखाई देता है।
अपने दोस्तों से पूछकर पता करो, कौन क्या सोचकर और किस काम को करने में घबराता है। कारण भी पता करो।
यह प्रश्न बच्चों को अपने दोस्तों के व्यवहार का विश्लेषण करने का मौका देता है (सम्बन्धित तालिका अगले पृष्ठ पर)।

निहित अर्थ को पकड़ पाना
‘खिलौने वाला’ कविता में पूछा गया प्रश्न जिसमें रामायण से सम्बन्धित कुछ बात कविता में हुई है: अपने आस-पास पूछकर कविता की इन पंक्तियों का सन्दर्भ पता करो-
तपसी यज्ञ करेंगे, असुरों को मैं मार भगाऊँगा।
तुम कह दोगी वन जाने को, हँसते-हँसते जाऊँगा।
यह सवाल कहानी में आए किसी कथन के निहितार्थ (छुपा हुआ अर्थ) को समझने का कौशल बढ़ाता है और बच्चों को सन्दर्भ की सहायता से बात समझने की दिशा में आगे बढ़ाता है।

भाषा कौशल को बढ़ावा
पाठ ‘नन्हा फनकार’ में आया प्रश्न देखिए:
‘बेवक्कूफ खड़ा हो! हुज़ूरे आला के सामने बैठने की ज़ुर्रत कैसे की तूने? झुककर इन्हें सलाम कर।’
महल के पहरेदार ने केशव से यह इसलिए कहा क्योंकि
1. बादशाह के सामने बैठे रहना उनकाअपमान करने जैसा है।
2. पहरेदार यह कहकर अपनी वफादारी दिखाना चाहता था।
3. पहरेदार को बादशाह के आने का पता नहीं चला, इसीलिए वह घबरा गया था।
4. बादशाह का केशव से बात करना पहरेदार को अच्छा नहीं लगा।
यह प्रश्न बच्चों को शब्दों की निराली दुनिया में ले जाता है क्योंकि दिए गए चारों विकल्प लगभग सही हैं तथा यह सवाल कहानी के सन्दर्भ में पहरेदार के कथन का विश्लेषण किए जाने की ज़रूरत पैदा करता है। इस तरह यह प्रश्न बच्चों के भाषा कौशल को बढ़ाता है।

संवेदनशीलता की परख
एक विकलांग लड़की इला के जीवन की कहानी ‘जहाँ चाह वहाँ राह’ में पूछा गया प्रश्न ‘यदि इला तुम्हारे विद्यालय में आए तो उसे किन-किन कामों में परेशानी आएगी?’ बच्चों की संवेदनशीलता को परखता है। इसका और सार्थक विस्तार कविता ‘एक माँ की बेबसी’ में पूछे गए प्रश्नों में दिखाई देता है।
1. रतन की माँ की आँखों में किस तरह की बेबसी झलकती होगी?
2. अपनी माँ के बारे में सोचते हुए निम्नांकित वाक्यों को पूरा करो।
क. मेरी माँ बहुत खुश होती है जब ..........
ख. माँ मुझे इसलिए डाँटती है क्योंकि ..........
ग. मेरी माँ चाहती है कि मैं ..........
घ. माँ उस समय बहुत बेबस हो जाती है जब ..........
ड. मैं चाहती/ता हूँ कि मेरी माँ ..........

इस प्रश्न का उत्तर लिखते समय बच्चों को अपनी माँ के बारे में गहराई से सोचने का मौका मिलेगा।
किसी के मन की थाह लेना
कहानी ‘राख की रस्सी’ में शामिल प्रश्न - मंत्री ने बेटे से कहा, ‘पिछली बार भेड़ों के बाल उतारकर बेचना मुझे ज़रा भी पसन्द नहीं आया।’ क्या मंत्री को सचमुच यह बात पसन्द नहीं आई थी? कहानी को समझते हुए अपने उत्तर का कारण भी बताओ।

यहाँ भी बच्चों को सोच-विचार करके, किसी के दिल में उठ रहे मनोभावों के बारे में अन्दाज़ लगाना है।
ऐसे ढेर सारे उदाहरण हो सकते हैं जहाँ सवाल पूछने के मूल उद्देश्यों की पूर्ति होती है। बच्चों के लिए प्रश्न सोचते समय अगर हम प्रश्न पूछने के उद्देश्य के बारे में सचेत रह सकें तो ऐसे बहुत-से सवाल बना सकेंगे। ये सवाल बच्चों के लिए रोचक तो होंगे ही, भाषा को अपने परिवेश और अनुभवों को समझने का माध्यम मानकर, बच्चों को भाषा की बनावट के सार्थक प्रयोग करने की दिशा में ले जाने वाले भी होंगे।


चन्दन यादव : प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में पिछले 15 वर्षों से सक्रिय। बच्चों की शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर लेखन में रुचि। वर्तमान में एकलव्य, भोपाल के शिक्षा समूह में कार्यरत।