लेखक :  डी. बालसुब्रमण्यन
अनुवाद: सुशील जोशी

राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद ने वर्ष 2008 में एक बढ़िया कार्यक्रम हाथ में लिया था - अन्तर्राष्ट्रीय पृथ्वी ग्रह वर्ष। परिषद ने देश भर के 40 सामुदायिक विज्ञान समूहों से आव्हान किया था कि वे ऐसे प्रोजेक्ट्स व कार्यक्रम बनाएँ जिनमें स्कूली बच्चों को शामिल किया जाए।
ऐसी उम्मीद की गई थी कि इन गतिविधियों से बच्चों को अपनी धरती माता को समझने व उसका आदर करने की प्रेरणा मिलेगी। समझने व सराहने की बात यह है कि एक ओर तो हमारी धरती के कुछ विशेष गुण हैं जिनके चलते वह जीवन को सहारा देती है, तथा दूसरी ओर, मानवीय व अन्य गतिविधियों की वजह से उसकी हालत पतली भी होती जा रही है।

इसी सिलसिले में मुझे भी इन सामुदायिक विज्ञान समूहों से बातचीत का अवसर मिला था। जब मुझसे यह पूछा गया कि मासूम बच्चों को अपने ग्रह के विशेष गुणों तथा तथ्यों के बारे में सोचने को उकसाने के लिए क्या किया जा सकता है, तो मेरे मन में यह विचार आया कि क्यों न उनसे कुछ ऐसे सवाल पूछे जाएँ जिनमें उनकी दिलचस्पी हो।

छोटे बच्चों में कल्पनाशीलता स्वाभाविक रूप से होती है। लिहाज़ा, उन्हें कल्पना करने और ‘ख्याली प्रयोग’ करने को कहें तो उन्हें काफी मज़ा आएगा। यह कम-से-कम शिक्षकों द्वारा सुझाए गए ढर्रेनुमा प्रोजेक्ट्स व मॉडल निर्माण से तो बेहतर ही होगा। तो ये थे - मेरे बारह सवाल।

1. लगता है कि ब्रह्माण्ड के समस्त पिण्डों में से जीवन सिर्फ पृथ्वी पर ही है। अर्थात हम एक ‘अकेले ग्रह’ के वासी हैं। क्या वाकई ऐसा है? धरती में ऐसी क्या खास बात है कि यहाँ जीवन सम्भव हुआ है?
क्या ऐसे कोई अन्य ग्रह या उपग्रह (चाँद) हैं जहाँ जीवन मौजूद हो? यदि हम चाहें, तो उनसे सम्पर्क कैसे बना सकते हैं? किस तरीके और किस भाषा में सम्पर्क करें ताकि हमारा सन्देश मात्र शोरगुल नहीं, एक संकेत हो, जिसे ‘वे’ समझ सकें?
2. हम इन्सान पृथ्वी पर पाई जाने वाली कई प्रजातियों में से एक हैं। करोड़ों अन्य प्रजातियाँ हैं - सूक्ष्मजीव, कीट, पेड़-पौधे, जानवर वगैरह। कुल कितनी प्रजातियाँ हैं -10 लाख या एक करोड़ या एक अरब? इसका अनुमान कैसे लगाया जाए? क्या कोई संख्या अन्तिम कही जा सकती है?

 
3. सजीवों को ऑर्गेनिक (कार्बनिक) क्यों कहते हैं? गौरतलब है कि अँग्रेज़ी में ऑर्गेनिक शब्द का उपयोग ऐसे अणुओं, पदार्थों व उनके संकुलों के लिए किया जाता है जिनका ढाँचा मूलत: कार्बन से बना होता है।
सौ से अधिक तत्वों में से एक कार्बन इतना अनोखा क्यों है? क्या ऐसे जीवों की कल्पना की जा सकती है जिनका ढाँचा मूलत: कार्बन के अलावा किसी अन्य तत्व से बना हो? 
4. पृथ्वी पर मौजूद करोड़ों जीवों में से कौन-सा या कौन-से सबसे महत्वपूर्ण हैं? क्यों? इनमें से कुछ तो पृथ्वी से सदा के लिए विदा भी हो चुके हैं - जैसे डोडो पक्षी और डायनासौर।
इन्सानों की कृपा से कुछ अन्य जैसे बाघ और व्हेल - जल्दी ही गायब हो जाएँगे। हो सकता है कि इनमें से कुछ हमें नुकसान पहुँचाते हों, मगर क्या हम उनका सफाया कर देंगे? बाघ, साँप या बिच्छू किस काम के हैं?

 

5. क्या हमें समूचे जीवन की रक्षा करनी चाहिए? क्या ज़हरीले पौधों, साँपों, घातक मकड़ियों, और बुरे लोगों को भी बचाया जाना चाहिए?

6. ऐसा क्यों है कि ताड़ के पेड़ सिर्फ कटिबंधीय क्षेत्रों में और समुद्र तट पर ही पाए जाते हैं? क्यों कंगा डिग्री सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में, जैगुआर्स सिर्फ दक्षिणी अमेरिका में, सफेद भालू सिर्फ आर्कटिक में और मैन्ग्रोव सिर्फ कुछ समुद्र तटों पर दिखते हैं?

 
7. इकोसिस्टम यानी परितंत्र किसे कहते हैं? जैसे तमिलनाडु में पाँच इकोसिस्टम्स हैं - मुल्लई, मरूताम, पालई, सोलई, और कराई। तुम्हारे अपने राज्य में कितने इकोसिस्टम्स हैं? और पूरे भारत में?

8. क्या इन सब इकोसिस्टम्स की ज़रूरत है? क्यों न अपनी ज़रूरत और पसन्द के हिसाब से इन्हें एक-सा बना दिया जाए? क्या इन सबकी रक्षा करना ज़रूरी है? कैसे?

 
9. जलवायु परिवर्तन की बातें खूब सुनने में आती हैं। क्या यह हमेशा होता आया है? क्या यह कुदरती चक्र है? क्या हमने जलवायु को प्रभावित व परिवर्तित किया है? इस तरह के जलवायु परिवर्तन के असर क्या होंगे?समुद्र तल क्यों बढ़ेगा? कितना बढ़ेगा? यदि ऐसा हुआ तो टापुओं और देशों पर क्या असर होगा? हमारे इलाके के कौन-से देश सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे? यदि समुद्र तल बढ़ता गया तो क्या इन देशों का अस्तित्व बचेगा?
 
10. इस सबको देखते हुए, क्या हमें जलवायु परिवर्तन को धीमा करने के प्रयास करने चाहिए? इन देशों और लोगों को कैसे बचाएँ? यदि कोई विशाल उल्का पिण्ड पृथ्वी से टकराने वाला हो, तो पृथ्वी को कैसे बचाएँ?

11. धरती माता ने जीवन के करोड़ों रूपों को जन्म दिया है और उनका पालन-पोषण किया है। इसी की बदौलत और अपनी जीवन शैली के चलते हमारी संख्या बहुत बढ़ गई है।

 
जब तुम्हारे दादा-दादी, नाना-नानी का जन्म हुआ था तब हिन्दुस्तान में इन्सानों की संख्या 30 करोड़ थी और पूरी दुनिया में सिर्फ 160 करोड़ लोग थे। आज भारत में 110 करोड़ और पूरी दुनिया में 650 करोड़ लोग हैं। धरती माता कितने लोगों को सम्भाल सकती है? हमें कौन-से प्राकृतिक संसाधनों की ज़रूरत है? धरती की वहन क्षमता कितनी है?

12. सारे लोग ‘कार्बनिक’ हैं। सब एक ही तरह से जन्म लेते हैं, खाते हैं, बढ़ते हैं, बच्चे पैदा करते हैं, जीते और मरते हैं। हम अलग-अलग दिखते हैं, अलग-अलग चीज़ें खाते हैं, अलग-अलग रीति-रिवाज़ मानते हैं, और अलग-अलग ढंग से सोचते हैं। मगर जीवन की बुनियादी रासायनिक प्रक्रियाएँ, हमारी जैविक प्रक्रियाएँ और क्रियाविधियाँ एक-सी हैं। हम सबके शरीर का ‘ऑपरेटिंग सिस्टम’ एक-सा है जिसे जीनोम या डी.एन.ए. कहते हैं।जातियाँ, देश, जनजातियाँ, नस्लें हमारी जैविक क्रियाओं या डी.एन.ए. में विविधता के आधार पर नहीं बने हैं। ये तो मुर्दा आदतों के जीवाश्म हैं। फिर क्यों हम भेदभाव करते हैं, सोचते हैं कि एक समूह दूसरे से श्रेष्ठ है? क्या यह गलत नहीं है?

इस तरह के सवाल बच्चों को विज्ञान की विधि और विज्ञान के उन नियमों के बारे में सोचने को मजबूर कर देते हैं, जो उन्होंने स्कूल में सीखे हैं। इसके अलावा, ऐसे सवाल उन्हें सोचने और कल्पना के घोड़े दौड़ाने में भी मदद करते हैं।
ऐसे सवालों की मदद से वे यह सोचने लगते हैं कि हमारे जीने के लिए पृथ्वी ही एकमात्र जगह है। इसलिए उसका आदर करना, उसका आनन्द लेना और उसकी रक्षा करना ज़रूरी है। इनमें से कुछ सवालों के निश्चित जवाब भी नहीं हैं और न ही ये पाठ्यक्रम के अंग हैं। पाठ्य पुस्तकें या इन्टरनेट आपको जवाब मुहैया नहीं कराते, सिर्फ जवाब की ओर बढ़ने में मदद करते हैं।

तो ये 12 सवाल हैं सोचने के लिए। ये सारे एक ही समय पर नहीं पूछे जा सकते। इन्हें अलग-अलग समय पर पूछकर बच्चों के साथ विचार-विमर्श करना होगा। भाषा उतनी महत्वपूर्ण नहीं है। मॉडल्स भी ज़्यादा मायने नहीं रखते। आइए, उपनिषदों की परम्परा को आगे बढ़ाएँ, एक वार्तालाप शु डिग्री करें। हो सकता है कि समय-समय पर जवाब हमें अचरज में डाल दें, या चकरा दें। तो शु डिग्री करें


डी. बालसुब्रमण्यन: सी.सी.एम.बी. (सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी), हैदराबाद के पूर्व निदेशक तथा अभी एल.वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट, हैदराबाद में अनुसंधान निदेशक हैं। जन सामान्य के बीच विज्ञान के लोकव्यापीकरण के लिए अखबारों में विभिन्न विषयों पर नियमित लेखन। लगभग तीन सौ लेख और छह किताबें प्रकाशित। पद्मश्री सम्मान भी मिला है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी। एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान लेखन में रुचि।
यह लेख अप्रैल 2008 स्रोत से साभार।