माधव केलकर

मेरी एक शिक्षक प्रशिक्षक से बातचीत हो रही थी। हम चर्चा कर रहे थे कि एन.सी.एफ. 2005 के मुताबिक बच्चों को कक्षा में पढ़ाते समय उनके पूर्वज्ञान और किसी अवधारणा पर बच्चे पहले से क्या जानते हैं, को भी कक्षा में स्थान मिलना चाहिए। इसके लिए पहल शिक्षक को करनी होती है कि वह बच्चों को बोलने के मौके दें, बच्चे क्या सोचते हैं उसे व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें। हमारी आपसी चर्चा में बात यहाँ आकर उलझने लगी थी कि यदि बच्चों का पूर्वज्ञान विज्ञान सम्मत न हो या संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ जाता हो तो कक्षा में द्वन्द्व की स्थिति बन सकती है। क्या तब भी उस पूर्वज्ञान को कक्षा में व्यक्त करने की अनुमति शिक्षक को देना चाहिए या बच्चे को अपनी बात कहने से वंचित रखना उचित होगा?

थोड़ी देर की बहस के बाद हमारी इस बात पर सहमति बनने लगी कि पूर्वज्ञान का सृजन बच्चे ने अपने परिवेश से किया है। वह परिवेश सामाजिक या प्राकृतिक हो सकता है। इस परिवेश से ही बच्चे का लेन-देन होता रहता है इसलिए इस ज्ञान को सिर्फ इसलिए रोकने में कोई तुक नहीं है कि वह अवैज्ञानिक है, छद्म विज्ञान है या संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। वह बात कक्षा में आ जाए, हम कक्षा में उस पर चर्चा करें और अगर ऐसा हो तो उस अवैज्ञानिक तथ्य को इंगित करें। कौन-सी बात संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ जाती है, इस पर बातचीत करके बच्चों को अपने पूर्वज्ञान में संशोधन करने का मौका देना चाहिए।
मेरे मित्र ने पूछा, “क्या आपके साथ कभी ऐसे हालात बने हैं जब कक्षा में ऐसी कोई जानकारी आई हो और आप ऐसी उलझन में फँसे हों?”
मैंने कहा, “हाँ, ऐसा मेरे साथ हुआ है। मैं आपको इसके बारे में थोड़ा तफ्सील से बताता हूँ।”

कक्षा-अवलोकन एवं चर्चा
पिछले दिनों एकलव्य द्वारा उठाए गए एक काम के तहत मैं महाराष्ट्र की एक शासकीय आश्रमशाला की कक्षा छठवीं में कक्षा-अवलोकन के लिए गया था। शिक्षक से दो-चार मिनट चर्चा के बाद वे मुझे कक्षा में बिठाने के लिए सहर्ष तैयार हो गए। उन्होंने अनुरोध किया, चूँकि प्रयोग-गतिविधि करवाते समय मदद की ज़रूरत होगी इसलिए मैं उनकी मदद करूँ और बीच-बीच में कक्षा में किसी मुद्दे पर चर्चा में सक्रिय भागीदारी भी निभाऊँ। मैंने भी उनके अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
शिक्षक आज कक्षा को - चुम्बक के मज़ेदार खेल - पाठ पढ़ाने वाले थे। उन्होंने चर्चा शुरू की, “किस-किस विद्यार्थी ने चुम्बक देखा है?” क्या वे देखे गए चुम्बक का चित्र बोर्ड पर बना सकते हैं?
बच्चों ने बोर्ड पर छड़ चुम्बक, नाल चुम्बक व चकती चुम्बक के चित्र बनाए। आम तौर पर पाठ्यपुस्तक में इन तीनों चुम्बकों के चित्र बने होते हैं इसलिए इन्हें देखकर मैंने पूछा, “क्या आप सभी ने वास्तव में इन चुम्बकों को देखा है और अगर देखा है, तो कहाँ?” कुछ-कुछ जवाब आने शुरू हो गए। काफी बच्चों ने कहा कि उनके घर पर चुम्बक रखा था।

चूँकि ज़्यादातर बच्चे आदिवासी अंचल के दूर-दराज़ के गाँवों में रहने वाले थे इसलिए मेरी सहज जिज्ञासा हुई यह जानने की कि बच्चों के घरों पर चुम्बक का क्या काम हो सकता है। सो मैंने पूछ ही लिया, “आपके घर पर चुम्बक का क्या काम है? आप चुम्बक से क्या करते हो?”
कुछ बच्चों ने बताया कि घर पर यदि किसी को बिच्छू काट ले तो काटे हुए स्थान पर चुम्बक को कुछ देर पकड़कर रखने से बिच्छू का ज़हर उतर जाता है।
मुझे यह बात रोचक लगी कि चुम्बक का इस तरह भी उपयोग हो सकता है। मैंने बच्चों से पूछा, “आप इन तीन चुम्बक (छड़, नाल व चकती) में से कौन-से चुम्बक का उपयोग बिच्छू का ज़हर उतारने में करते हो?”
बच्चों ने बताया कि वे लोग ज़हर उतारने में चकती चुम्बक का उपयोग करते हैं।
आजकल बढ़ते शहरीकरण के बाद बिच्छू दिखाई देने व बिच्छू काटने की घटनाएँ ज़्यादातर ग्रामीण इलाकों में ही होती हैं। मुझे लगा इस मुद्दे पर थोड़ी और बात करनी चाहिए। इसलिए मैंने पूछा, “आप में से कितने बच्चों को बिच्छू ने काटा है?”
कक्षा में चार-पाँच बच्चों ने हाथ लहरा दिए।
मैंने पूछा, “आपको बिच्छू ने कहाँ काटा था?”
जवाब में दो ने ‘हाथ’ में बताया। दो ने बताया ‘पाँव’ में।
लेकिन इन सभी ने बताया कि बिच्छू ने उन्हें घर पर छुट्टियों के दौरान काटा था, आश्रमशाला में नहीं। सभी ने बिच्छू काटी जगह पर चुम्बक को देर तक लगाकर रखने की बात कही। कोई और इलाज हुआ या नहीं, इसके बारे में उन्हें याद नहीं था। कक्षा के कुछ और बच्चों ने भी यही जानकारी दी।

चुम्बक के साथ गतिविधि
मैं पशोपेश में था कि इस बिच्छू-चुम्बक प्रकरण को आगे बढ़ाया जाए या चुम्बक के अध्याय पर आगे चलते रहें। आखिरकार, मुझे व शिक्षक को चुम्बक की अन्य अवधारणाओं पर आगे जाना ही उचित लगा। हमने शिक्षक की मदद से चुम्बक के गुणधर्मों पर गतिविधि जारी रखते हुए कक्षा व आसपास चुम्बक से चिपकने वाली और न चिपकने वाली वस्तुओं को पहचाना और उनकी सूची बनाना शुरू किया।
इस सूची में मिट्टी देखकर आपको हैरत हो रही होगी। दरअसल, हुआ कुछ यूँ था कि आसपास के चुम्बकीय व अचुम्बकीय पदार्थों की सूची बनाते समय कुछ बच्चों ने चुम्बक को मिट्टी में घूमाया और देखा कि मिट्टी के कुछ कण चुम्बक से चिपक रहे हैं। बच्चों के दो समूहों ने आपसी चर्चा से ही इस बात का निर्णय ले लिया कि मिट्टी के कुछ कण चुम्बक से चिपकते हैं। पूरी मिट्टी नहीं चिपक रही है। इसलिए मिट्टी को न चिपकने वाली सूची में लिखना चाहिए।

बिच्छू व उसका ज़हर
बिच्छू ऑर्थोपोडा संघ का सदस्य है। इसकी आठ टाँगे होती हैं, दो चिमटे जैसी पकड़ वाली भुजाएँ, पीछे एक ऊपर उठा हुआ भाग जिसमें डंक होता है। आम तौर पर डंक अपने शिकार या दुश्मन को पस्त करने के लिए होता है। बिच्छू की कई प्रजातियाँ पाईं जाती हैं, इनमें से बहुत ही कम प्रजातियाँ प्राण लेने जैसी ज़हरीली होती हैं। आम तौर पर वयस्क व्यक्तियों पर बिच्छू के ज़हर का एकदम स्थानीय प्रभाव पड़ता है जैसे दर्द, जलन, सूजन, कभी-कभी बेचैनी आदि। बिच्छू के डंक से ज़्यादा नुकसान बच्चों को होता है। लेकिन तुरन्त इलाज मिल जाए तो मौत का खतरा खत्म हो जाता है। बिच्छू के डंक से इन्सानों की मौत की सम्भावना बेहद कम है।   

इसी तरह लड़कियों के एक समूह ने बैंच-डेस्क पर चढ़कर कक्षा में पंखे की पत्तियों पर चुम्बक सटाकर इस बात की तस्दीक कर ली कि पंखे की पत्तियाँ चुम्बक से चिपकती हैं और पंखे का बीच वाला गोल हिस्सा भी। (बच्चों द्वारा पंखे को छूने से पहले शिक्षक ने मुझे आश्वस्त कर दिया था कि बिजली नहीं होने से जोखिम नहीं है। दूसरी बात पंखे का बटन भी बन्द है।)
चुम्बक से चिपकने वाली व न चिपकने वाली वस्तुओं की सूची में एक नाम छड़ चुम्बक भी था। बच्चों से पूछा गया, “इसका क्या मतलब हुआ?” तो बच्चों ने दो छड़ चुम्बक हाथ में लेकर दिखाया, “देखिए, ये दो सिरे आपस में चिपक रहे हैं और इन दो सिरों को पास लाने पर चुम्बक चिपकना बन्द हो गया है।”
विज्ञान शिक्षक ने बच्चों का ध्यान इस बात पर दिलाया, “आप चुम्बक के सिरों पर लिखे अक्षर ‘एन’ और ‘एस’ पर भी ध्यान दीजिए और बताइए कि किन सिरों को पास लाने से चुम्बक आपस में चिपकते हैं और किन सिरों को पास लाने पर नहीं चिपकते।”
जल्द ही बच्चों ने छड़ चुम्बक की मदद से इसे करके देखा और बताया, “एन-एन या एस-एस सिरों को पास लाने से चुम्बक आपस में नहीं चिपकते। लेकिन एन-एस सिरे को पास लाने पर चुम्बक चिपकते हैं।”

शिक्षक ने चुम्बक के आकर्षण-विकर्षण के गुण पर चर्चा की। फिर नाल चुम्बक व चकती चुम्बक में आकर्षण-विकर्षण के गुण को देखा। यहाँ तक आकर हमने चुम्बक के रुटीन अध्याय को रोका।
एक बार फिर चुम्बक से चिपकने या न चिपकने वाली सूची पर आए। इस सूची में सभी वस्तु या पदार्थ ठोस थे। इसलिए एक बोतल में पानी लेकर उसे चुम्बक के पास लाकर देखा कि क्या चुम्बक पानी को अपनी ओर खींच रहा है जैसे लोहे की वस्तुओं को खींच रहा था। हमारे पास तेल, दूध जैसे तरल नहीं थे इसलिए हम तेल व दूध से चुम्बक चिपकाकर नहीं देख पाए। लेकिन विज्ञान शिक्षक ने कहा कि वे बाद में बच्चों के साथ इसे करके देखेंगे। इसी तरह बच्चों का ध्यान इस ओर भी दिलवाया गया कि क्या चुम्बक उनकी अँगुलियों से चिपक रहा है, क्या बालों से चिपक रहा है, क्या कान से चिपक रहा है, क्या पाँव से चिपक रहा है आदि। बच्चों ने इसे करके देखा और बताया कि चुम्बक अँगुली, बाल, हाथ, पाँव -- किसी से भी नहीं चिपक रहा है। यानी इन्सानी शरीर को चुम्बक अपनी ओर नहीं खींचता।

चुम्बक और बिच्छू का ज़हर
इतनी चर्चा हो जाने के बाद एक बार फिर हम बिच्छू के काटने और चुम्बक के उपयोग की ओर आ गए। बच्चों से पूछा, “क्या आपके गाँव में बिच्छू काटने की वजह से किसी की मौत हुई है? क्या लोग चुम्बक लगाने की बजाए अस्पताल भी जाते हैं?” कुछ बच्चों का कहना था, “हाँ, अस्पताल भी जाते हैं। लेकिन किसी की मौत की जानकारी नहीं है।”
कुछ बच्चों ने, जिन्होंने बताया था कि उन्हें बिच्छू ने डंक मारा था, उन्होंने बताया कि डंक वाली जगह पर दर्द, जलन होती है, डर लगना, बेचैनी, पसीना छूटना वगैरह होता है। बच्चों का ध्यान फिर एक बार इस तथ्य की ओर दिलवाया कि चुम्बक इन्सानी शरीर से न चिपकता है और न शरीर को दूर ढकेलता है। यानी जैसा लकड़ी या प्लास्टिक के साथ होता है वैसा ही इन्सानी शरीर के साथ भी। इसी तरह हमारे आसपास के तरल पदार्थों जैसे पानी, दूध, तेल वगैरह को भी चुम्बक न अपनी ओर खींचता है, न परे ढकेलता है।
हो सकता है बिच्छू द्वारा डंक मारी जगह पर चुम्बक लगाने से दर्द में कुछ राहत मिलती हो, डर कम हो जाता हो, बेचैनी भी कम हो जाती हो, मन को सुकून मिलता हो। जहाँ आसानी-से डॉक्टर उपलब्ध न हो वहाँ बीमार इन्सान के मनोबल को बनाए रखना भी ज़रूरी है।   

अभी तक हमने जो कुछ करके देखा है उससे तो नहीं लगता कि बिच्छू के ज़हर को उतारने में चुम्बक की कोई भूमिका होती होगी। तो बेहतर होगा कि हम बिच्छू के काटने और चुम्बक से उसकी चिकित्सा पर कुछ और अध्ययन और प्रयोग करके देखें, बिच्छू के ज़हर पर कुछ जानकारी पढ़ें, गाँव में बिच्छू का ज़हर उतारने के लिए और किस तरह के इलाज किए जाते हैं, इसे मालूम करें, गाँव से कुछ आँकड़े जमा करें कि बिच्छू के ज़हर से कितनी मौत हुई हैं आदि। इतना सब करने के बाद हमें किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए। विज्ञान ऐसे ही तर्क, तथ्यों, आँकड़ों, व अनुसन्धान से आगे बढ़ता है।
ज़ाहिर-सी बात है कि मेरे प्रशिक्षक मित्र को यह अनुभव अच्छा लगा। उन्होंने भी अपना एक अनुभव सुनाया, उसे अगली बार के लिए मुल्तवी करते हैं।

बिच्छू का ज़हर उतारने हेतु प्रचलित सामान्य उपचार
महाराष्ट्र के विविध आदिवासी व ग्रामीण अंचल में बिच्छू के काटने पर जो उपचार किए जाते हैं, उससे सम्बन्धित जानकारी हमारे प्रोजेक्ट में कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं ने अलग-अलग आश्रमशालाओं के बच्चों, शिक्षकों व स्थानीय लोगों से बातचीत करके प्राप्त की है। इसमें खास बात यह है कि यदि आश्रमशाला में किसी बच्चे को बिच्छू डंक मारे तो बच्चे को डॉक्टर के पास लेकर जाते हैं क्योंकि आश्रमशाला प्रशासन के पास एम्बुलेंस, डॉक्टर वगैरह की व्यवस्था आसानी-से हो जाती है। लेकिन घर-परिवार में ऐसी घटना हो तो लोग डॉक्टर के पास जाने के अलावा कुछ और तरीकों की सहायता से उपचार की कोशिश करते हैं।
•    आश्रमशाला के बच्चों ने बताया कि जब बिच्छू काटता है तो चुम्बक को हल्का गरम करके घाव वाली जगह पर घिसते या लगाते हैं।
•    कभी-कभी बिच्छू द्वारा डँसी जगह को सुई से टोंचकर वहाँ से खून निकाल देते हैं जिससे ज़हर नहीं चढ़ता।
•    कई मौकों पर डॉक्टर के पास भी लेकर जाते हैं।
•    शिक्षक से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया की बिच्छू के काटने पर ज़्यादातर लोग पुजारी (बाबा) के पास ले जाते हैं, जो झाड़फूँक करते हैं।
•    बिच्छू ने जहाँ काटा है वहाँ फिटकरी भी लगाई जाती है। कुछ शिक्षकों का कहना था कि फिटकरी गर्म करके लगाते हैं। (कुछ शिक्षकों का कहना था कि फिटकरी के बारे में सुना हुआ है इसलिए दूसरों को बता देते हैं। उनका अपना कोई अनुभव नहीं है।)
•    एक शिक्षक के मुताबिक किसी को बिच्छू काट ले तो उस व्यक्ति के पेट पर  हँसिया (एक लोहे का औज़ार) गर्म करके लगाते हैं जिससे वो ठीक हो जाता है।
•    एक शिक्षक ने बताया कि बिच्छू काटी जगह पर इमली का बीज घिसकर लगाया जाता है।
•    किसी बिच्छू को मारकर उसका लेप डँसी हुई जगह पर लगाया जाता है।
•    अम्बाड़ी भाजी के पत्तों को पीसकर डँसी हुई जगह पर लगाया जाता है।
•    बिच्छू काट ले तो किसी बिच्छू को मारकर, जलाकर उसकी राख को बिच्छू डँसी जगह लगाने से ज़हर उतर जाता है।
बिच्छू के डंक मारने पर सबसे पहला असर जो दिखता है, वह है तेज़ दर्द देने वाला घाव जिसके साथ घबराहट, बेचैनी, जलन, सूजन और कभी-कभी खुजली। कभी-कभी साँस लेने में दिक्कत महसूस होना। लेकिन किसी बिच्छू के डंक मारे व्यक्ति का प्राथमिक उपचार तो यही होना चाहिए न कि उसका दर्द कम हो जाए, घबराहट-बेचैनी कम हो, वो खुद को बेहतर महसूस करे।
ऊपर बताए गए तरीकों को भी इसी नज़रिए से देखना चाहिए कि आदिवासी गाँवों में लोग अपने पारम्परिक चिकित्सा-ज्ञान का उपयोग मरीज़ के मनोबल को बढ़ाने में, दर्द से राहत दिलवाने में करते हैं। यदि काटने वाला बिच्छू ज़हरीला न हुआ तो पारम्परिक चिकित्सा से ही इलाज हो जाता है। यदि बिच्छू ज़हरीला है तो मरीज़ को पारम्परिक तरीकों से चिकित्सा करने के बाद आगे के इलाज के लिए किसी डॉक्टर के पास ले जाने में संकोच नहीं करते। आखिरकार, हर चिकित्सा पद्धति की रोगों से निपटने की अपनी सीमाएँ हैं और इस तरह की चिकित्सा पद्धति का उपयोग करने वाले लोग इन सीमाओं से भलीभाँति वाकिफ होते हैं।

माधव केलकर: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
सभी फोटो: माधव केलकर।