प्राथमिक स्तर के विज्ञान शिक्षक को कितना विज्ञान जानना चाहिए?  

आपको आपके विद्यार्थी जीवन के विज्ञान संबंधी कितने अनुभव याद हैं? अपने विचारों का पुनःनिर्माण करने के लिए आइए यह तरीका आजमाकर देखें। कुछ क्षणों के लिए आप अपने स्कूल के दिनों, जैसे चौथीं या पांचवीं क्लास के दिनों को याद कीजिए। याद कीजिए आपने विज्ञान विषय में क्या-क्या सीखा था। दो-तीन बातें जो याद आएं उन्हें लिख लें व उनका मिलान अपने साथियों के अनुभवों से करें। कौन से अनुभव सकारात्मक थे, कौन-से नकारात्मक? क्या सब के अनुभवों में कुछ समानता दिखती है?
आपके जैसे विद्यार्थियों ने हमें निम्न बातें बताई - किसी नदी के किनारे अध्ययन के लिए भ्रमण, मेंढकों की चीरफाड़, इल्ली से तितली में कायान्तरण की क्रिया का अवलोकन, विभिन्न प्रकार के पत्थरों का संग्रह आदि।

इस बात की काफी संभावना है कि आप में से किसी ने भी निम्न विचारों को अपनी सूची में न शामिल किया हो जैसे ऑक्सीजन के परमाणु की संरचना, क्वार्ट्ज़ के स्फटिक का कड़ापन, मटर के दो पौधों को संकरित कर पीले मटर के दाने प्राप्त करने की संभावना, साधारण मनुष्य की कोशिका में पाए जाने वाले क्रोमोसोम यानी गुणसूत्रों की संख्या, घर्षण की प्रकृति, कैंची द्वारा प्रदर्शित लीवर का प्रकार अथवा डिग्री सेल्सियस में पानी का हिमांक बिन्दु आदि।
यदि आप शाला के अंतिम वर्षों अथवा कॉलेज के दिनों में सीखे हुए विज्ञान के ज्ञान को याद करेंगे तो भी हो सकता है कि आप विज्ञान संबंधी उपरोक्त जानकारी को उस सूची में शामिन न करें। किन्तु इसमें कोई शंका नहीं कि ये सारी बातें आपको विज्ञान विषय में पढ़ाई गई थीं!
उपरोक्त प्रयोग से एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न की और हमारा ध्यान आकृष्ट होता है। जब हम विज्ञान संबंधी उपरोक्त तथ्य, सिद्धांत अथवा जानकारी याद नहीं रख सकते तो यह सब सिखाया क्यों जाता है? (हो सकता है कि हमें यह भी पूछना चाहिए कि यह सब पढ़ाया कैसे जाता है।) इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि तथ्यात्मक जानकारी को पढ़ाने से न तो विज्ञान को लंबे समय तक याद रखा जा सकता है और न ही, इस तरह से विज्ञान के अध्ययन में आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है; और न ही विज्ञान का रसास्वादन किया जा सकता है।

प्राथमिक स्तर के बालकों को विज्ञान कैसे पढ़ाया जाए यह आप सीखना चाह रहे हैं। आप चाहते हैं। कि बालकों ने जो सीखा है उसे वे याद रखें। यदि उन्हें अब से 14 या 15 वर्ष बाद पूछा जाए कि "विज्ञान में आपने क्या सीखा था?" तो आप यह अपेक्षा करते हैं कि आपकी कक्षा में जो उन्होंने सीखा है उसमें से कुछ तो वे याद रखें! आप यह भी चाहेंगे। कि वे विज्ञान का अध्ययन करते समय प्राप्त आनंद को भी याद रखें।
प्राथमिक स्तर के विज्ञान के शिक्षकों में एक धारणा बन जाती हैं। कि उनका काम बच्चों के समक्ष अधिक-से-अधिक विज्ञान के ज्ञान को प्रस्तुत करना है। यह भी आम धारणा है कि विज्ञान स्वभाव से तथ्यात्मक होता है तथा कुछ सिद्धांत, तथ्य, जानकारियां आदि ऐसी होती हैं जिन्हें प्राथमिक स्तर के प्रत्येक बालक के लिए जानना अनिवार्य है। इस लेख में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि ये धारणाएं कितनी सही हैं।

विज्ञान के ज्ञान की मात्रा
विज्ञान शिक्षण में तथ्यात्मक जानकारी पर ध्यान केन्द्रित करने में सबसे बड़ी बाधा है ऐसी जानकारी का विशाल भण्डार। आज विज्ञान संबंधी उपलब्ध जानकारी बहुत ही विशाल है - पचास हजार से अधिक अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्र विद्यमान हैं। विज्ञान संबंधी उपलब्ध जानकारी की सूचना देने हेतु आज 1,20,000 से अधिक तकनीकी पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। गणनाएं करने पर पता चलता है कि अगर कोई चाहे कि वो विज्ञान के इस भंडार से कदम मिलाकर चलना चाहता है तो उसे चालीस लाख शब्द प्रति मिनिट की गति से पढ़ना होगा। सन् 1982 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, "प्रतिदिन विज्ञान से संबंधित छह से सात हजार लेख लिखे जाते हैं।'' वे आगे कहते हैं---

“विज्ञान तथा तकनीकी जानकारी प्रतिवर्ष 13 प्रतिशत की दर से बढ़ती है। इसका अर्थ यह हुआ कि वह 5.5 वर्ष में दोगुनी हो जाती है। जानकारी की वृद्धि की यह गति शीघ्र ही 40 प्रतिशत प्रतिवर्ष होने की संभावना है क्योंकि जानकारी की नई एवं शक्तिशाली प्रणालियां उपलब्ध हो रही हैं, साथ ही वैज्ञानिकों की संख्या में भी तीव्र वृद्धि हो रही है। इसका अर्थ है कि बीस महीनों में ही जानकारी दुगनी हो जाया करेगी।''
उनके अनुसार 1985 तक ही, पिछले कुछ वर्षों की तुलना में, जानकारी का भंडार चार से सात गुना बढ़ जाएगा।
ऐसा अनुमान है कि सन् 2020 तक वैज्ञानिक जानकारी 73 दिनों में ही दुगनी हो जाया करेगी। दूसरे शब्दों में नववर्ष को उपलब्ध जानकारी, मार्च के मध्य तक ही दुगनी हो जाएगी। इस प्रकार आप देख ही रहे हैं कि आज विज्ञान संबंधी जानकारी का बहुत विस्तृत भंड़ार है और इसमें अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती जा रही है।

चूंकि आज विज्ञान संबंधी जानकारी इतनी अधिक मात्रा में उपलब्ध है, हो सकता है कि हमारी कक्षा के बालक हमसे ऐसे प्रश्न करें जिनका उत्तर हमें ज्ञात न हो। उदाहरण के लिए आपने कायान्तरण (मेटामोरफोसिस) पढ़ाने का तय किया है। इसके लिए आप इल्लियों के कायान्तरण की विभिन्न अवस्थाओं संबंधी पाठ कक्षा में प्रस्तुत करने वाले हैं। आप इन अवस्थाओं को याद कर लेते हंल तथा गुबरेलों, पतंगों व तितलियों आदि के कायान्तरण में क्या समानता है, इस संबंध में अध्ययन कर लेते हैं। इस प्रकार आप कायान्तरण के अध्यापन हेतु तैयार हैं। इल्लियों से तितलियों में किस प्रकार कायान्तरण होता है, इम पाठ को आपने पूर्व तैयारी के साथ प्रस्तुत किया। अचानक कोई बालक आपसे कनखजूरे के बारे में प्रश्न पूछ लेता है क्योंकि पिछले कुछ दिनों से उसके घर में इनकी फौज आ धमकी है। अब क्या होगा? आपको अपने अध्यापन के विषय में तो बहुत सारी जानकारी है किन्तु कनखजूरे के बारे में आप नहीं जानते। ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे?
अब हम एक दुसरे परिदृश्य की कल्पना करें। इस बार मान लो कि आप साधारण मशीनों की चर्चा कर रहे हैं। आप बालकों को खुद मशीनों की 'खोज' करने हेतु प्रेरित कर रहे हैं; तभी एक बालक क्रेन के बारे में प्रश्न पूछता है। क्रेन के बारे में आपने अध्ययन नहीं किया है। इस प्रकार आप मुश्किल में पड़ जाते हैं। आप क्या करेंगे?
अब आप अच्छी तरह समस्या समझ गए होंगे। आप विज्ञान का चाहे जितना गहन अध्ययन करें अथवा सीखें, वह कभी भी पर्याप्त नहीं होगा।

अप्रचलित ज्ञान
विज्ञान में तथ्यात्मक जानकारी पर अधिक जोर देने पर एक और कठिनाई सामने आती है। विज्ञान संबंधी ज्ञान अप्रचलित हो सकता है। आज जो बात हम जानते हैं, कुछ वर्ष बाद उसके स्थान पर अलग जानकारी प्रचलन में आ जाती है। उदाहरण के लिए सन् 1956 से पूर्व जीव विज्ञान के शिक्षक अपने विद्यार्थियों को यह याद करने पर जोर देते थे कि सामान्य मानव शरीर की एक कोशिका में 48 क्रोमोसोम (24 जोड़ी क्रोमोसोम) होते हैं। यदि किसी विद्यार्थी को यह तथ्य ज्ञात न हो तो उसकी शामत आ जाती थी। किन्तु सन् 1956 में यह खोज सामने आई कि मानव शरीर में केवल 46 क्रोमोसोम होते हैं, न कि 48! कल्पना कीजिए उन सब जीव-शास्त्र के विद्यार्थियों का क्या हुआ होगा जो दुनिया भर में इस निर्विवाद ज्ञान के साथ घूम रहे हैं कि मानव शरीर में क्रोमोसोम की संख्या 48 होती है। इस तथ्यात्मक गलती के बारे में हम क्या कर सकते हैं?
ऐसा अनुमान है कि इंजीनियरों द्वारा अध्ययन किया गया आधा ज्ञान उनके व्यवसाय के 2-3 वर्ष में ही अप्रचलित हो जाता है और नई जानकारी उसकी जगह ले लेती है। हम पुन: यह प्रश्न प्रस्तुत करते हैं कि क्या ऐसे वैज्ञानिक तथ्यों को सीखना महत्वपूर्ण है जो नई खोजों के आते ही अप्रचलित हो जाते हैं?

ज्ञान में बदलाव
विज्ञान में तथ्यात्मक जानकारी पर जोर देने पर उपरोक्त के अलावा एक और कठिनाई सामने आती है, और वह है वैज्ञानिक ज्ञान में हो रहे बदलाव। वैज्ञानिक खोजों के फलस्वरूप पुर्व में मान्य सिद्धांतों को नकार कर नए सिद्धांत प्रतिपादित किए जाते हैं। अधिक अनुसंधान, नई तकनीकों के विकास, खोज के परिष्कृत तरीके व गहन अध्ययन के कारण बुनियादी तत्वों की हमारी समझ में बदलाव आते रहते हैं। प्रकाश का सिद्धांत इसका एक अच्छा उदाहरण है। आज की विज्ञान पाठ्य-पुस्तकों में यह सिखाया जाता है कि प्रकाश फोटॉन से बना होता है जिसमें कण तथा तरंग दोनों के गुण परिलक्षित होते हैं। किन्तु प्रकाश के ये गुण जिन्हें मैक्स प्लांक, अल्बर्ट आइन्स्टाइन तथा अन्य वैज्ञानिकों ने विकसित किया था, केवल 90 वर्ष पुराने हैं। इससे पूर्व विज्ञान की पुस्तकें प्रकाश को केवल तरंगों के गुण रखने वाला ही मानती थीं।
इसी प्रकार आज मान्य प्लेट टेक्ट्रोनिक्स का सिद्धांत जो बताता है। कि पृथ्वी के महाद्वीप व महासागर प्लेटों पर स्थित हैं जो चलायमान हैं, केवल तीस वर्ष पुराना है। पूर्व में जो सिद्धांत प्रचलित था उसके अनुसार महाद्वीप व महासागरों के तल स्थाई थे। वैज्ञानिक ज्ञान में होने वाले निरंतर बदलाव के अनेकों में से हमने केवल दो उदाहरण ही यहां प्रस्तुत किए हैं।

शिक्षक को कितना ज्ञान ज़रूरी।
उपरोक्त चर्चा से यह प्रदर्शित होता है कि प्राथमिक स्तर के विज्ञान शिक्षकों को पर्याप्त मात्रा में विज्ञान सीखने में तीन प्रमुख कठिनाइयां आती हैं:
1. आज उपलब्ध विज्ञान के ज्ञान की मात्रा इतनी अधिक है कि एक व्यक्ति को समस्त अथवा उसका एक छोटा-सा हिस्सा भी जानना कठिन है।
2. वैज्ञानिक जानकारी जो आज तथ्यात्मक है, सही मानी जाती हैं, वह भविष्य में अप्रचलित हो सकती है।
3. विज्ञान के सिद्धांत समय के साथ बदलते रहते हैं।
ऐसी स्थिति में, प्राथमिक स्तर के विज्ञान शिक्षक को कितने विज्ञान के ज्ञान की आवश्यकता होगी? हम यह किताब की शुरुआत में ही कह चुके हैं। कि इसमें उत्तरों की अपेक्षा प्रश्न ही अधिक होंगे। यह प्रश्न ऐसा पहला उदाहरण है। इस प्रश्न का कोई उत्तर है ही नहीं कि 'प्राथमिक स्तर के विज्ञान शिक्षक को कौन -से वैज्ञानिक ज्ञान की जानकारी होनी चाहिए। न ही इस प्रश्न का कोई सर्वमान्य उत्तर है कि प्राथमिक स्तर के विज्ञान शिक्षक को एक अच्छा विज्ञान शिक्षक बनने के लिए कम-से-कम कितने वैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता है?

राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षा मानदण्डों के अनुसार विज्ञान के शिक्षकों को वैज्ञानिक जानकारियों का इतना विस्तृत ज्ञान होना आवश्यक है कि वे
--- वैज्ञानिक खोज के स्वभाव को, उसकी विज्ञान में मुख्य भूमिका को तथा इसम लगन वाल कौशला व विधियों को समझ सकें।
--- विज्ञान की मुख्य शाखाओं के मूलभूत तथ्यों तथा सिद्धांतों को समझ सकें।
--- विज्ञान की शाखाओं के बीच तथा गणित, तकनीकी व अन्य शालेय विषयों के बीच सैद्धांतिक संबंध स्थापित कर सकें।
--- वैयक्तिक व सामाजिक मुद्दों के संबंध में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपना सकें।
प्राथमिक स्तर के तीन विज्ञान शिक्षकों ने एक लेख में अपने विज्ञान के अध्यापन को किस प्रकार विकसित किया इसका वर्णन किया है। उनका कहना है कि पहले वे विज्ञान पढ़ाने के विशेष उत्सुक नहीं थे क्योंकि वे महसूस करते थे कि वे इसके लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं थे। किन्तु उन्होंने विज्ञान शिक्षण के बारे में अपना तरीका बदला व वे सफल व स्फूर्तिदायक विज्ञान शिक्षक बन गए। ऐसा तब हुआ जब उन्होंने विद्यार्थियों के साथ मिलकर प्रयोग व खोज के माध्यम से सीखने का तरीका अपनाया। पढ़ाने से पहले वे विज्ञान के उन मूलभूत सिद्धांतों के बारे में अपने आपको जरूर परिचित कर लेते थे जिन्हें वे पढ़ाने वाले थे। "इस प्रकार हमने विद्यार्थियों को विज्ञान सीखने हेतु उत्साहित करने के साथ स्वयं का ज्ञान भी बढ़ाया।

प्राथमिक स्तर के विज्ञान शिक्षक को विकास के तीन मूलभूत क्षेत्रों ; विज्ञान, भौतिक विज्ञान व भू-अंतर विज्ञान में अध्ययन करना अच्छा हो जैव-विज्ञान में कोशिकाओं, पौधे प्राणियों, जीवनचक्र, जेनेटिक्स, विकास तथा पर्यावरण का अध्यन शामिल है। भौतिक विज्ञान में तर ऊर्जा तथा रसायन से संबंधित विर शामिल हैं। भू-अंतरिक्ष विज्ञान भूगर्भशास्त्र, पत्थर तथा खनिज, पृथ् समुद्र, मौसम तथा पृथ्वी को आके देने वाली अन्य शक्तियां तथा अंतरि से संबंधित विषयों का समावेश हो है। इस सब के साथ-साथ अभी इतर कहने में ही बुद्धिमानी होगी । 'प्राथमिक स्तर के विज्ञान शिक्षक को विज्ञान को अच्छी तरह से पढ़ा के लिए विज्ञान के विस्तृत ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती।''

मेरे लेखन को आप धर्म निंदा (विज्ञान निंदा!) का आरोप लगा के रद्दी की टोकरी में फेंक दें उससे पहले मैं एक बात स्पष्ट करना चाह? हूं कि विज्ञान में कुछ मूलभूत सिद्धांत ऐसे हैं जिन्हें सभी शिक्षकों को य ऐसा कहें कि सभी नागरिकों को जानना तथा उनसे परिचित होना आवश्यक है। किन्तु प्राथमिक स्तर के शिक्षको को विज्ञान के तथ्यों के संग्रह को सिद्धांतों को, नियमों आदि के आत्मसात करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्हें यह जानने की आवश्यकता है कि बच्चे विज्ञान कैसे सीखते हैं। और उन्हें विज्ञान कैसे पढ़ाया जाए। एक महानुभव ने कहा है कि ''शिक्षक कक्षा में क्या व कैसे करता है यह अधिक महत्वपूर्ण है बल्कि इसके कि वह क्या जानता है व कौन-सा पाठ्यक्रम उपयोग में लाता है।''

इस दुविधा से निकलने का एक रास्ता है। बड़ी मात्रा में वैज्ञानिक जानकारी को जानने से बेहतर होगा यदि विद्यार्थी विज्ञान को कैसे करना यह सीख लें। उन्हें वैज्ञानिक निरीक्षण करना, सृजन करना, नए विचार सामने लाना, संश्लेषण करना, विश्लेषण करना, मूल्यांकन करना आदि बातें सीखनी चाहिए। उन्हें अपने सिद्धांत स्वयं बनाना आना चाहिए। उन्हें उनके लिए क्या महत्वपूर्ण है और क्या महत्वपूर्ण नहीं है इसका ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
विज्ञान शिक्षकों के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे बच्चों के मस्तिष्क में असंख्य तथ्यों, सिद्धांतों को ठूस-ठूस कर भरें। वे ऐसा इस गलत धारणा की वजह से करते हैं कि ऐसा करना बच्चों को कल के समाज में जीवित रहने के लिए आवश्यक है। बच्चों को विज्ञान को ‘करना' सिखाना चाहिए।


हिन्दी अनुवाद: पी. बी. हर्डीकर: सेवानिवृत्त प्राचार्य। शैक्षणिक गतिविधियों में रुचि। फिलहाल भोपाल में रहते हैं।    
यह लेख 'प्राथमिक कक्षाओं में विज्ञान शिक्षण' किताब में लिया गया है।