किशोर पंवार

परीक्षण अम्ल और क्षार का

इस प्रयोग को करने के लिए आसपास के कुछ स्कूल और चंद रसायन ही चाहिए

फूल धारी पौधों की पहचान उन पर खिलने वाले रंग-बिरंगे फूलों से ही है। फूलों के रंग से आकर्षित हो तरह-तरह के कीट-पतंगों और पक्षियों को इनके चक्कर लगाते हुए भी आपने देखा होगा। फूलों पर मंडराने की इस क्रिया में उन्हें प्रोटीन युक्त परागकण और शर्करा से भरपूर मधुरस के रूप में भोजन मिल जाता है। और लगे हाथ इन फूलों का परागण भी हो जाता है। यानी एक फूल के परागकण उसी प्रजाति के अन्य फूलों के स्त्रीकेसर पर इन ‘ट्रेवल एजेंसियों' की सहायता से पहुंच जाते हैं।

फूलों की इन पंखुड़ियों में एक और गुण छिपा रहता है जिसका फायदा हम रसायनशास्त्र सीखने में उठा सकते हैं। बहुत से फूलों की पंखुड़ियां सूचक का काम करती हैं यानी कि उनसे अम्ल और क्षार का परीक्षण किया जा सकता है---उनके रंग में होने वाले बदलाव का हमें पता चल जाता है कि हम जिस पदार्थ की टेस्टिंग कर रहे हैं वह अम्ल है या क्षार। आइए, इसी संबंध में एक व्यवस्थित प्रयोग करके देखें।

सबसे पहले आसपास खिले हुए कुछ फूल जैसे गुलमोहर, जासोन (गुड़हल), पीली गुलमोहर, बोगेन विलिया, नीले फूल वाली गोकर्णी (अपराजिता) और बेशरम बटोर लें।

इसके अलावा नमक का तनु अम्ल, कास्टिक सोड़ा का हल्का घोल, गुलाबी सूचक घोल, नींबू का रस, चार-पांच कांच के गिलास और कुछ परखनलियां जुगाड़ लें। जरूरी नहीं कि आप केवल इन्हीं घोलों से परीक्षण करें, अपनी सुविधा और खोज की दिशा के अनुसार और भी पदार्थ जोड़ सकते हैं।

गुलाबी सूचक घोल अर्थात फिनोफ्थेलीन का घोल जिसमें थोड़ा सा चूना ( क्षार ) डाला गया हो। बाज़ार में दवाई की दुकान पर मिलने वाली परगोलेक्स या वेक्युलेक्स की गोली में केवल फिनोफ्थेलीन होती है इसलिए गुलाबी सूचक घोल बनाने के लिए उसका उपयोग कर सकते हैं।

अब हरेक फूल को अलग-अलग कांच के गिलास में एक चौथाई पानी लेकर अच्छी तरह मसल कर दो-तीन घंटे के लिए रख दें। फिर कपड़े या छन्ना कागज़ से छानकर रंगीन पानी अलग कर लें। इस तरह अलग-अलग गिलासों में आपके पास नीले, पीले व लाल रंग के घोल तैयार हो गए। बस अब हो जाइए तैयार, रंगों का मज़ा लेने के लिए। इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि किस गिलास में कौन से फूल का घोल रखा है।

इन रंगों को चार-पांच परखनलियों में थोड़ा-थोड़ा भर लें। अब सब परखनलियों में दो-तीन बूंद नींबू का रस डालें। देखिए क्या होता है। अगर घोल के रंग में कोई बदलाव आता है तो उसे तालिका में नोट कर लीजिए।

अब अगले हिस्से में फूलों के रंगों को साफ परखनलियों में एक बार फिर लेकर अब इनमें कास्टिक सोड़ा के घोल की दो-तीन बूंद बारी-बारी डालेंयही प्रयोग साबुन के घोल, नमक के अम्ल, आदि के साथ भी दोहराएं और परखनलियों में रंगों को एक-से-दूसरे में बदलते हुए देखने का मज़ा उठाएं। देखिए कि बोगेनविलिया का गुलाबी रंग कैसे देखते-देखते पीला हो जाता है। इसी तरह अपराजिता का नीला रंग कैसे गहरा गुलाबी और गहरा पीला हो जाता है। यानी पदार्थ वही परन्तु अम्ल या क्षार डालते ही कैसे रंग बदल जाता है।

क्या इन प्रयोगों से आप फूलों के रंग और माध्यम की अम्लीयता क्षारीयता के संबंध में कोई निष्कर्ष निकाल सकते हैं? और क्या-क्या संभावनाएं हैं इस प्रयोग में? प्रयोग करके देखिए और सोचकर अपने विचार और अनुभव संदर्भ को लिख भेजिए।


किशोर पवार: शासकीय महाविद्यालय सेंधवा में वनस्पति विज्ञान पढ़ाते हैं।

ज़रा सिर तो खुजलाइए

इस बार इस स्तंभ में देवास के यतीश कानूनगो एक उलझन पेश कर रहे हैं;

1 रुपया = 1 पैसा?

हम जानते हैं कि 1 रुपया = 100 पैसे

= 10 पैसे x 10 पैसे

= 1/10 रुपए x 1/10 X रुपए

= 100 रुपए

= 1