लेखक: उदय मैत्रा [Hindi PDF, 71 kB]
अनुवाद: अम्बरीष सोनी:

ज़्यादातर विद्यार्थियों की पढ़ाई में लगने वाले समय का एक बड़ा हिस्सा परीक्षा में पूछे जाने वाले सवालों के जवाब के लिए खुद को तैयार करने में जाता है। यह तरीका और भी महत्वपूर्ण बन जाता है जब विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे आईआईटी प्रवेश-परीक्षा आदि की तैयारी कर रहा हो। इन परिस्थितियों में, व्यस्त विद्यार्थी सभी सम्भव स्रोतों से मिलने वाले प्रश्न बैंकों को खँगालने की कोशिश करते हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उन्होंने किसी एक थीम पर लगभग सभी सवालों व उनके सभी सम्भव रूपों का अपना एक डेटाबेस तैयार कर लिया है। क्या यह समय-खपाऊ अभ्यास विषय की बेहतर समझ बनाने की ओर ले जाता है? सीधा-सा जवाब है, नहीं। सभी सम्भव विविधताओं के बावजूद, एक के बाद एक सवाल के जवाब देना, वास्तव में विद्यार्थियों को गहराई में सोचने में सक्षम नहीं बनाता जो कि विषय को समझने और उस पर महारत हासिल करने के लिए आवश्यक है। प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छे नतीजे लाना तो अनिवार्य है, लेकिन यह भी ज़रूरी है कि विषय को अच्छी तरह से समझा गया हो। यह महज़ सवालों के जवाब देने भर से नहीं हो सकता है। असल में, विद्यार्थियों को जवाब देने की अपेक्षा सवाल अधिक पूछने चाहिए।

यहाँ पर मैं स्टैनफोर्ड युनिवर्सिटी, अमरीका में रसायनशास्त्र के प्रोफेसर रिचर्ड ज़ारे द्वारा हाल ही में दिया गया वक्तव्य प्रस्तुत करना चाहूँगा। उन्होनें कहा था, “सवाल, सीखने और ज्ञान के निर्माण के केन्द्र में है। अब तक विद्यार्थी जवाब देने को सवाल करने से अधिक महत्व देते आए हैं। पर मैं इसके उलट सोचता हूँ। जवाब की तलाश में बढ़ते हुए सवाल ही वह जगह है जहाँ सीखना होता है, न कि जवाब खुद।”

एक और वैज्ञानिक के कथन के अनुसार, “मेरी माँ ने मुझे वैज्ञानिक बनाया वो भी गैर-इरादतन। ब्रुकलिन की हर दूसरी यहूदी माँ स्कूल से आने के बाद बच्चे से पूछती है, ‘तो, आज कुछ सीखा?’ पर मेरी माँ ऐसा नहीं करती थी! ‘इज़ी’, वो कहती, ‘तुमने आज कोई अच्छा सवाल पूछा?’ इसी अन्तर - अच्छे सवाल पूछना - ने मुझे वैज्ञानिक बनाया।” वैज्ञानिक, और वो भी कैसा वैज्ञानिक? इसिडॉर आइज़ैक राबी, भौतिकी विभाग, कोलम्बिया विश्वविद्यालय, अमरीका। और राबी ने 1944 में अणु के केन्द्रक की चुम्बकीय प्रकृति को रिकॉर्ड करने वाली रेज़ोनेंस विधि के लिए भौतिकी का नोबल पुरस्कार जीता। इस तकनीक को आज एन.एम.आर. के नाम से जाना जाता है। रसायन के क्षेत्र में तो इसका महत्वपूर्ण उपयोग है ही और साथ ही, चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली MRI में भी इसका इस्तेमाल होता है।

यहाँ संक्षेप में कुछ रणनीतियों की चर्चा करना चाहूँगा जो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलू डिग्री में अपने कोर्स के दौरान मैं अपनाता रहा हूँ और ये मुझे विद्यार्थियों की रचनात्मक क्षमताओं को परखने में मदद करती रही हैं। इस कोर्स में बदस्तूर मैं होमवर्क नहीं देता। इसकी जगह उनसे हर 2-3 हफ्तों में एक पेज में एक सवाल और उसका सम्भव उत्तर जमा करने को कहता हूँ। सम्भव या प्रत्याशित इसलिए क्योंकि सवाल का जवाब शायद अब तक ज्ञात ही न हो! मेरी शर्त है कि सवाल किसी पाठ्यपुस्तक या स्कूल/कॉलेज/प्रतियोगी परीक्षा से नहीं होना चाहिए। आदर्श रूप में, मैं कहता हूँ, सवाल का जवाब सीधे किताब से न हो और जवाब देते हुए आपको सोचना होगा।

सालों बाद विद्यार्थियों ने मुझे बताया कि इस तरह के होमवर्क में उन्हें खूब आनन्द आता था। ये उन्हें किताबें, शोध-पत्र पढ़ने को मजबूर करते और सबसे महत्वपूर्ण, सोचने पर। एक शिक्षक के नज़रिए से इसका एक अतिरिक्त लाभ यह है कि प्रत्येक विद्यार्थी का सवाल एकदम अलग होता है। और इस तरह एक-दूसरे से होमवर्क कॉपी करने का सवाल ही नहीं उठता!

मैंने परीक्षा प्रश्नपत्र के लिए इसी में एक बदलाव का प्रयास किया। सामान्य पूछे जाने वाले प्रश्नों के साथ प्राय: मैं एक सवाल रखता जिसमें मेरे द्वारा पढ़ाए जाने वाले विषयसे सम्बद्ध एक ड्रॉइंग देता हूँ और उन्हें इस पर दो सवाल लिखने को कहता हूँ, सवाल जो ड्रॉइंग को देखकर पूछे जा सकते हैं (विषय के अनुरूप यह ड्रॉइंग एक प्लॉट या रासायनिक संरचना या फिर फोटोग्राफ हो सकती थी)। यह मुझे विद्यार्थियों की रचनात्मक क्षमताओं को परखने का भी मौका देता है।

एक तीसरी ट्रिक जो मैं अक्सर ही अपनाता हूँ! मैं जवाब सहित एक सवाल देता हूँ, इस सूचना के साथ कि जवाब पूरा सही हो सकता है, आंशिक सही हो सकता है या फिर पूरी तरह गलत! विद्यार्थियों का काम है जवाब का मूल्यांकन करना और उस पर अंक देना। मैं अन्तत: विद्यार्थियों को इस आधार पर अंक देता कि उन्होंने जवाब का मूल्यांकन कितने सही ढंग से किया है। मेरे विद्यार्थी भी इसे पसन्द करते हैं, क्योंकि यह उन्हें अपने विवेक के रचनात्मक इस्तेमाल का मौका देता है।
मैंने यह महसूस किया कि कई सारी बाधाओं के चलते यह सब स्कूल स्तर पर कर पाना सम्भव नहीं हो सकता।

फिर भी, एक सन्देश जो मैं सभी शिक्षकों तक पहुँचाना चाहता हूँ कि वे अपने विद्यार्थियों को सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करें।
जो शिक्षक एवं विद्यार्थी यह लेख पढ़ रहे हैं, क्या वे साथ दिए गए चित्र-1 को देखते हुए मुझे सवाल लिखकर भेजेंगे?
लेखक से सम्पर्क साधने हेतु This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it. पर ईमेल करें।


उदय मैत्रा: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर में ऑर्गेनिक कैमिस्ट्री विभाग के चेयरमैन और प्रोफेसर हैं। उनकी शोध रुचि है - बाइल अम्ल के रसायन।

अँग्रेज़ी से अनुवाद: अम्बरीष सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
यह लेख ‘रेज़ोनेंस’ पत्रिका के अंक - जनवरी, 2015 से लिया गया है।