सवाल: दर्द निवारक दवाएँ कैसे काम करती हैं?     [Hindi PDF, 85 kB]

जवाब: दर्द होता क्या है? सभी जानते हैं क्योंकि हम सभी ने कभी-न-कभी दर्द को महसूस किया है। कुछ दर्द ऐसे होते हैं जो चोट लगने पर एकदम बहुत तेज़ होते हैं पर जैसे ही चोट ठीक होती है तो दर्द भी ठीक हो जाता है। और कुछ दर्द दीर्घकालिक होते हैं मतलब लम्बे समय तक चलते हैं जो हल्के भी हो सकते हैं और तीक्ष्ण भी। कई बार दर्द इतना तीव्र होता है कि क्षतिग्रस्त हिस्से को हिलाया भी नहीं जा सकता। और इन्हीं दर्द से निजात पाने के लिए हम सेवन करते हैं दर्द निवारक दवाओं का।

दर्द का कारण पता लगने और उसका इलाज होने तक मरीज़ को राहत प्रदान करने में दर्द निवारक दवाओं की अहम भूमिका होती है। ये दवाएँ केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र1 (central nervous system) और परिधीय तंत्रिका तंत्र2 (peripheral nervous system) पर विभिन्न तरीकों से काम करती हैं। पहले देखते हैं कि ये कितने प्रकार की होती हैं।

दर्द निवारक दवाएँ तीन तरह की होती हैं - गैर-स्टीरॉइड सूजनरोधी दवाइयाँ (नॉन स्टीरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग्ज़ - NSAIDs), पैरासीटामॉल और ओपीऑइड्स (opioids) - दुनिया की सबसे पुरानी दवाओं में से एक जैसे मॉर्फीन जो अफीम की तरह काम करती है। इनका कई तरह से सेवन किया जाता है जैसे सीरप, गोली या कैप्सूल के रूप में मुँह से, या इंजेक्शन के द्वारा आदि। इनके अलावा दर्द निवारक दवाएँ क्रीम या मरहम के रूप में भी होती हैं। इनके बारे में आगे बात करेंगे। ये सभी दवाएँ अलग-अलग तरह से काम करती हैं।

दर्द निवारकों की कार्यप्रणाली
आइए समझते हैं कि ये विभिन्न प्रकार की दर्द निवारक दवाएँ काम कैसे करती हैं।
NSAIDs - इन दवाइयों की सलाह तब दी जाती है जब मरीज़ को तेज़ दर्द और सूजन हो। ये सूजनरोधी दर्द निवारक दवाएँ गठिया रोग, मोच, सर-दर्द और माइग्रेन आदि के दर्द, सूजन और जलन का इलाज करने में बहुत बढ़िया भूमिका निभाती हैं। इस तरह की दवाओं में आईब्यूप्रोफिन, डाइक्लोफेनेक और नेप्रोज़ेन मिले होते हैं। एस्पिरिन भी इसी का एक उदाहरण है। आईब्यूप्रोफिन और एस्पिरिन शरीर के बढ़े हुए तापमान को कम करने के लिए भी इस्तेमाल किए जाते हैं (वैसे एस्पिरिन का उपयोग खून को जमने से रोकने के लिए भी किया जाता है)। NSAIDs साइक्लो-ऑक्सीजिनेज़ (COX) एंज़ाइम के प्रभाव को बाधित कर देते हैं। साइक्लो-ऑक्सीजिनेज़ एंज़ाइम प्रोस्टाग्लेंडिंस नामक रसायन को बनाने में मदद करते हैं। ये रसायन ज़ख्म वाले स्थान पर दर्द और सूजन उत्पन्न करते हैं। जैसे ही प्रोस्टाग्लेंडिंस के उत्पादन में कमी आती है, दर्द, सूजन और जलन भी कम हो जाती है।

NSAIDs का दुष्प्रभाव

सूजनरोधी दर्द निवारक दवाओं के उपयोग से कभी-कभी आमाशय में अन्दरूनी रक्तस्त्राव होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये दर्द निवारक दवाएँ जिस रसायन (प्रोस्टाग्लेंडिंस) के बनने को कम करती हैं वे रसायन आमाशय के अन्दर पाए जाने वाले अम्लों के गम्भीर प्रभावों से आमाशय को बचाने में मदद भी करते हैं। इसलिए जिनको आमाशय में छाले होते हैं उनके लिए डॉक्टर इस दर्द निवारक दवाई का उपयोग करने की सलाह नहीं देते हैं।

पैरासीटामॉल - पैरासीटामॉल भी दर्द निवारक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और उच्च तापमान को कम करने में भी। लेकिन इससे सूजन पर कोई असर नहीं होता। इसलिए सामान्यत: पैरासीटामॉल की सलाह तब दी जाती है जब दर्द बहुत गम्भीर न हो और मरीज़ को सूजन न हो। ऐसा माना जाता है कि पैरासीटामॉल भी साइक्लो-ऑक्सीजिनेज़ एंज़ाइम को दिमाग और मेरुदण्ड (केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र) में अवरोधित कर देता है।
माना जाता है कि पैरासीटामॉल एक सुरक्षित दर्द निवारक दवाई है लेकिन यदि इसका बहुत अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो स्थाई रूप से लीवर को क्षति पहुँच सकती है जिससे जान भी जा सकती है।

ओपीऑइड्स - ओपीऑइड्स हमारे केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र, हमारी आँत और शरीर के अन्य भागों में कुछ खास ग्राहियों (opioid receptors) से जुड़ जाते हैं। इस वजह से हम जिस तरह से दर्द महसूस करते हैं और दर्द के प्रति जो हमारी प्रतिक्रिया होती है उसमें कमी आ जाती है, और दर्द के प्रति सहनशीलता बढ़ती है। ओपीऑइड्स का इस्तेमाल सामान्यत: गम्भीर दर्द से निवारण के लिए किया जाता है जैसे केंसर से सम्बन्धित दर्द या ऑपरेशन के बाद होने वाला दर्द या जब कोई गम्भीर चोट आई हो।

उबकाई आना, उलटी होना, मुँह सूखना, कब्ज़ होना, सुस्ती होना, घबराहट होना इन दवाइयों के सामान्य दुष्प्रभाव हैं।
ये दर्द निवारक दवाएँ ओपिएट ग्राहियों (opiate receptors) से जुड़कर दिमाग को होने वाली दर्द की अनुभूति को बाधित कर देती हैं। इससे केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र द्वारा दिमाग को भेजे जाने वाले संकेतों में बाधा आती है। नींद लाने वाली दर्द निवारक दवाएँ अवसादक (depressant) होती हैं, मतलब ये केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र पर होने वाले असर को दबा देती हैं और आराम की अनुभूति बढ़ाते हुए दर्द की अनुभूति को कम कर देती हैं।
कुछ दर्द निवारक दवाएँ अन्य दूसरी दवाइयों की कार्यप्रणाली (जिसका सेवन मरीज़ कर रहा हो) को भी प्रभावित कर सकती हैं। इससे इन दवाइयों का एक-दूसरे पर रासायनिक प्रभाव भी हो सकता है या फिर अन्य दूसरे चल रहे इलाज का असर भी कम हो सकता है। इसलिए यदि आप अन्य दवाइयों का सेवन भी कर रहे हैं तो दर्द निवारक दवाई की सलाह लेते वक्त इसकी जानकारी डॉक्टर को ज़रूर दे देनी चाहिए।

तंत्रिकासंचारक व दर्द निवारक दवा

नशीली दर्द निवारक दवाएँ ओपिएट ग्राहियों, जो विशिष्ट रूप से तंत्रिकासंचारक (neurotransmitters - रसायन) से बँधी रहती हैं, से जुड़ जाती हैं। इन दर्द निवारक दवाओं के लम्बे समय तक सेवन सेे शरीर द्वारा स्वाभाविक रूप से होने वाले रसायनों का उत्पादन धीमा हो जाता है और दर्द से खुद-ब-खुद राहत पाने की शरीर की क्षमता कम हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नशीली दर्द निवारक दवाओं की मौजूदगी के कारण शरीर को लगता है कि पर्याप्त मात्रा में रसायन उत्पन्न हो चुके हैं क्योंकि शरीर में तंत्रिकासंचारक की प्रचुरता बढ़ जाती है। मौजूदा तंत्रिकासंचारकों के पास जुड़ने के लिए कुछ नहीं होता, क्योंकि ओपिएट ग्राहियों पर तंत्रिकासंचारकों की जगह ये दवाइयाँ ले लेती हैं। इस वजह से शरीर में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाले तंत्रिकासंचारकों का स्तर गिर जाता है और शरीर की दर्द निवारक दवाओं के प्रति सहनशीलता बढ़ जाती है जिस वजह से समान असर पैदा करने के लिए दवाई की ज़्यादा मात्रा लेने की ज़रूरत पड़ती है। इन दवाओं की ज़्यादा मात्रा मरीज़ को इनकी लत की ओर भी ले जा सकती है। कम असरदार ओपीऑइड्स के कुछ उदाहरण हैं - कोडीन और डाइहाइड्रोकोडीन। अधिक असरदार ओपीऑइड्स के उदाहरण हैं - मॉर्फीन, ऑक्सीकोडोन, पेथीडाइन और ट्रेमाडोल।

टॉपिकल दर्द निवारक
जैसा कि हमने पहले बात की थी कि क्रीम या मरहम को भी दर्द निवारक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें टॉपिकल सूजनरोधी दर्द निवारक कहा जाता है। मतलब, जिसे हम किसी विशेष स्थान सम्बन्धी दर्द होने पर त्वचा पर लगाते हैं। इनसे मांसपेशियों के दर्द, मोच और जकड़न के दर्द में आराम मिलता है। गठिया रोग के दर्द में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी डॉक्टर गोली के रूप में ली जाने वाली दर्द निवारक दवाइयों की बजाए टॉपिकल सूजनरोधी दर्द निवारक की सलाह देते हैं क्योंकि इनके दुष्प्रभाव बहुत कम होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि टॉपिकल दर्द निवारक भी टेबलेट के बराबर ही असरदार होती है।
टॉपिकल एंटी-इंफ्लेमेट्री जैल, स्प्रे और क्रीम के रूप में उपलब्ध होती हैं। ये शोथरोधी दवाइयों जैसे आईब्यूप्रोफिन, डाइक्लोफेनेक, कीटोप्रोफिन से युक्त होती हैं और कई ब्रैंड नामों से उपलब्ध होती हैं।

टॉपिकल सूजनरोधी दवाइयाँ भी अन्य दर्द निवारकों की तरह ही काम करती हैं लेकिन पूरे शरीर पर असर करने की बजाय ये सिर्फ उस जगह पर काम करती हैं जहाँ हमने उसे लगाया है। जब हम लगाते हैं तो हमारी त्वचा इन्हें सोख लेती है। फिर ये शरीर में जहाँ दर्द या सूजन है वहाँ गहराई से जाकर काम करती हैं। जोड़ों और मांसपेशियों पर असर करते हुए ये दर्द से राहत दिलाती हैं और सूजन में भी कमी लाती हैं।
अध्ययन बताते हैं कि इस तरह की क्रीम या जैल का उपयोग करने का मतलब है कि शोथरोधी की बहुत कम मात्रा हमारे शरीर में जा रही है जिसका मतलब यह हुआ कि हमारे लिए इस दवाई के साइड इफेक्ट की सम्भावना भी बहुत कम हो जाती है।
अब देखते हैं कि टॉपिकल दर्द निवारक में सामान्य रूप से पाए जाने वाले घटक कौन से हैं और वो कैसे असर करते हैं:
काउंटर इरिटेंट: मेंथॉल, कपूर, मिथाइल सेलिसायलेट जैसे तत्वों को काउंटर इरिटेंट कहते हैं। इन्हें लगाने से जलन या ठण्डक की अनुभूति होती है जिस वजह से दर्द से हमारा ध्यान भटक जाता है।

स्टीरॉइड्स

इसके अलावा स्टीरॉइड्स भी दर्द निवारक के रूप में लिए जाते हैं। यह बहुत अहम और शक्तिशाली दवाइयों का समूह होता है। वैसे ये शरीर में प्राकृतिक तौर पर हार्मोन के रूप में पाए जाते हैं पर इन्सान इन्हें प्रयोगशालाओं में कृत्रिम रूप से बनाकर, दवाई के रूप में इस्तेमाल करते हैं। स्टीरॉइड्स सूजन के स्थानीय लक्ष्णों जैसे दर्द, सूजन के स्थान पर गर्मी और लालिमा को कम करते हैं। इन्हें मुँह के द्वारा, इंजेक्शन द्वारा ले सकते हैं और मलहम के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। रुमेटिक गठिया जैसे रोगों में इससे दर्द में काफी राहत मिलती है या एक्ज़ीमा जैसे रोग में मलहम के रूप में। कृत्रिम स्टीरॉइड्स शरीर के कुदरती प्रतिरक्षा तंत्र को खराब करते हैं जिससे शरीर में विभिन्न तरह के संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है। लम्बे समय तक स्टीरॉइड्स की अधिक मात्रा के सेवन से शरीर में कुदरती स्टीरॉइड्स का निर्माण कम हो जाता है। लेकिन इंजेक्शन या मुँह के द्वारा लिए गए स्टीरॉइड्स की तुलना में टॉपिकल स्टीरॉइड्स कम नुकसानदेह माने जाते हैं।

सेलिसायलेट: वही सब घटक जो एस्पिरिन को दर्द निवारक होने का गुण प्रदान करते हैं, कुछ क्रीमों में भी पाए जाते हैं। जब त्वचा इसे सोख लेती है तो दर्द में राहत मिलती है, विशेषकर त्वचा के करीब वाले जोड़ों में जैसे उँगलियाँ, घुटने और कुहनी।
केपसेसिन: तीखी काली मिर्ची में पाया जाने वाला मुख्य घटक केपसेसिन, टॉपिकल दर्द निवारक के भी सबसे असरदार घटकों में से एक है। जब केपसेसिन क्रीम को पहली बार लगाया जाता है तो त्वचा पर एक सिहरन-सी या जलन की अनुभूति होती है। पर धीरे-धीरे ये जलन की अनुभूती कम होती जाती है। इसके असर को महसूस करने के लिए इस क्रीम को लगातार कुछ दिनों तक लगाना होता है।
तो हमने देखा कि ये सभी दर्द निवारक दवाएँ किस तरह से काम करती हैं। डॉक्टर आपको कौन-सी दर्द निवारक दवाई लेने की सलाह देगा ये इस पर निर्भर करता है कि किस तरह का और कितना गम्भीर दर्द आपको हो रहा है, या आपके लिए उस दवाई से सम्भव दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं।


इस जवाब को पारुल सोनी ने तैयार किया है।
पारुल सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।


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