सर्वेश्वरदयाल सक्सेना  [Hindi PDF, 198 kB]

कहानी
दुकान पर सफेद गुड़ रखा था। दुर्लभ था। उसे देखकर बार-बार उसके मुँह में पानी आ जाता था। आते-जाते वह ललचाई नज़रों से गुड़ की ओर देखता, फिर मनमसोसकर रह जाता।
आखिरकार उसने हिम्मत की और घर जाकर माँ से कहा। माँ बैठी फटे कपड़े सिल रही थी। उसने आँख उठाकर कुछ देर दीन दृष्टि से उसकी ओर देखा, फिर ऊपर आसमान की ओर देखने लगी और बड़ी देर तक देखती रही। बोली कुछ नहीं। वह चुपचाप माँ के पास से चला गया। जब माँ के पास पैसे नहीं होते तो वह इसी तरह देखती थी। वह यह जानता था।

वह बहुत देर गुमसुम बैठा रहा, उसे अपने वे साथी याद आ रहे थे जो उसे चिढ़ा-चिढ़ाकर गुड़ खा रहे थे। ज्यों-ज्यों उसे उनकी याद आती, उसके भीतर गुड़ खाने की लालसा और तेज़ होती जाती। एकाध बार उसके मन में माँ के बटुए से पैसे चुराने का भी खयाल आया। यह खयाल आते ही वह अपने को धिक्कारने लगा और इस बुरे खयाल के लिए ईश्वर से क्षमा माँगने लगा।

उसकी उम्र ग्यारह साल की थी। घर में माँ के सिवा कोई नहीं था। हालाँकि माँ कहती थी कि वे अकेले नहीं हैं, उनके साथ ईश्वर है। वह चूँकि माँ का कहना मानता था इसलिए उसकी यह बात भी मान लेता था। लेकिन ईश्वर के होने का उसे पता नहीं चलता था। माँ उसे तरह-तरह से ईश्वर के होने का यकीन दिलाती। जब वह बीमार होती, तकलीफ में कराहती तो ईश्वर का नाम लेती और जब अच्छी हो जाती तो ईश्वर को धन्यवाद देती। दोनों घण्टों आँख बन्द कर बैठते। बिना पूजा किए हुए वे खाना नहीं खाते। वह रोज़ सुबह-शाम अपनी छोटी-सी घण्टी लेकर, पालथी मारकर संध्या करता। उसे संध्या के सारे मंत्र याद थे, उस समय से ही जब उसकी ज़बान तोतली थी। अब तो वह साफ बोलने लगा था।

वे एक छोटे-से कस्बे में रहते थे। माँ एक स्कूल में अध्यापिका थी। बचपन से ही वह ऐसी कहानियाँ माँ से सुनता था जिनमें यह बताया जाता था कि ईश्वर अपने भक्तों का कितना खयाल रखते हैं। और हर बार ऐसी कहानी सुनकर वह ईश्वर का सच्चा भक्त बनने की इच्छा से भर जाता। दूसरे भी उसकी पीठ ठोंकते, और कहते, “बड़ा शरीफ लड़का है। ईश्वर उसकी मदद करेगा।” वह भी जानता था कि ईश्वर उसकी मदद करेगा। लेकिन कभी इसका कोई सबूत उसे नहीं मिला था।

उस दिन जब वह सफेद गुड़ खाने के लिए बेचैन था तब उसे ईश्वर याद आया। उसने खुद को धिक्कारा, उसे माँ से पैसे माँगकर माँ को दुखी नहीं करना चाहिए था। ईश्वर किस दिन के लिए है? ईश्वर का खयाल आते ही वह खुश हो गया। उसके अन्दर एक विचित्र-सा उत्साह भर आया क्योंकि वह जानता था कि ईश्वर सबसे अधिक ताकतवर है। वह सब जगह है और सब कुछ कर सकता है। ऐसा कुछ भी नहीं जो वह न कर सके। तो क्या वह थोड़ा-सा गुड़ नहीं दिला सकता? उसे जो कि बचपन से ही उसकी पूजा करता आ रहा है और जिसने कभी कोई बुरा काम नहीं किया। कभी चोरी नहीं की, किसी को सताया नहीं। उसने सोचा और इस भाव से भर उठा कि ईश्वर ज़रूर उसे गुड़ देगा।
वह तेज़ी-से उठा और घर के अकेले कोने में पूजा करने बैठ गया। तभी माँ ने आवाज़ दी, “बेटा, पूजा से उठने के बाद बाज़ार से नमक ले आना।”

उसे लगा जैसे ईश्वर ने उसकी पुकार सुन ली है। वरना पूजा पर बैठते ही माँ उसे बाज़ार जाने को क्यों कहती। उसने ध्यान लगाकर पूजा की, फिर पैसे और झोला लेकर बाज़ार की ओर चल दिया।
घर से निकलते ही उसे खेत पार करने पड़ते थे, फिर गाँव की गली जो ईंटों की बनी हुई थी, फिर बाज़ार की ओर चल दिया।
उस समय शाम हो गई थी। सूरज डूब रहा था। वह खेतों में चला जा रहा था, आँखें आधी बन्द किए, ईश्वर पर ध्यान लगाए और संध्या के मंत्रों को बार-बार दोहराते हुए। उसे याद नहीं उसने कितनी देर में खेत पार किए, लेकिन जब वह गाँव की ईंटों की गली में आया तब सूरज डूब चुका था और अँधेरा छाने लगा था। लोग अपने-अपने घरों में थे। धुआँ उठ रहा था। चौपाए खामोश खड़े थे। नीम सर्दी के दिन थे।
उसने पूरी आँख खोलकर बाहर का कुछ भी देखने की कोशिश नहीं की। वह अपने भीतर देख रहा था जहाँ अँधेरे में एक झिलमिलाता प्रकाश था। ईश्वर का प्रकाश और उस प्रकाश के आगे वह आँखें बन्द किए मंत्र पाठ कर रहा था।

अचानक उसे अज़ान की आवाज़ सुनाई दी। गाँव के सिरे पर एक छोटी-सी मसजिद थी। उसने थोड़ी-सी आँखें खोलकर देखा। अँधेरा काफी गाढ़ा हो गया था। मसजिद के एक कमरे बराबर दालान में लोग नमाज़ के लिए इकट्ठे होने लगे थे। उसके भीतर एक लहर-सी आई। उसके पैर ठिठक गए। आँखें पूरी बन्द हो गईं। वह मन-ही-मन कह उठा, “ईश्वर यदि तुम हो और सच्चे मन से तुम्हारी पूजा की है तो मुझे पैसे दो, यहीं इसी वक्त।”

वह वहीं गली में बैठ गया। उसने ज़मीन पर हाथ रखा। जमीन ठण्डी थी। हाथों के नीचे कुछ चिकना-सा महसूस हुआ। उल्लास की बिजली-सी उसके शरीर में दौड़ गई। उसने आँखें खोलकर देखा। अँधेरे में उसकी हथेली में अठन्नी दमक रही थी। वह मन-ही-मन ईश्वर के चरणों में लोट गया। खुशी के समुद्र में झूलने लगा। उसने उस अठन्नी को बार-बार निहारा, चूमा, माथे से लगाया। क्योंकि वह एक अठन्नी ही नहीं थी, उस गरीब पर ईश्वर की कृपा थी। उसकी सारी पूजा और सच्चाई का ईश्वर की ओर से इनाम था। ईश्वर ज़रूर है, उसका मन चिल्लाने लगा। भगवान मैं तुम्हारा बहुत छोटा-सा सेवक हूँ। मैं सारा जीवन तुम्हारी भक्ति करूँगा। मुझे कभी मत बिसराना। उलटे-सीधे शब्दों में उसने मन-ही-मन कहा और बाज़ार की तरफ दौड़ पड़ा। अठन्नी उसने ज़ोर से हथेली में दबा रखी थी।
जब वह दुकान पर पहुँचा तो लालटेन जल चुकी थी। पंसारी उसके सामने हाथ जोड़े बैठा था। थोड़ी देर में उसने आँख खोली और पूछा, “क्या चाहिए?”

उसने हथेली में चमकती अठन्नी देखी और बोला, “आठ आने का सफेद गुड़।”
यह कहकर उसने गर्व से अठन्नी पंसारी की तरफ गद्दी पर फेंकी। पर यह गद्दी पर न गिर उसके सामने रखे धनिए के डिब्बे में गिर गई। पंसारी ने उसे डिब्बे में टटोला पर उसमें अठन्नी नहीं मिली। एक छोटा-सा खपड़ा (चिकना पत्थर) ज़रूर था जिसे पंसारी ने निकालकर फेंक दिया।
उसका चेहरा एकदम से काला पड़ गया। सिर घूम गया। जैसे शरीर का खून निकल गया हो। आँखें छलछला आईं।
“कहाँ गई अठन्नी!” पंसारी ने भी हैरत से कहा।
उसे लगा जैसे वह रो पड़ेगा। देखते-देखते सबसे ताकतवर ईश्वर की उसके सामने मौत हो गई थी। उसने मरे हाथों से जेब से पैसे निकाले, नमक लिया और जाने लगा।
दुकानदार ने उसे उदास देखकर कहा, “गुड़ ले लो, पैसे फिर आ जाएँगे।”
“नहीं,” उसने कहा और रो पड़ा।

“अच्छा पैसे मत देना। मेरी ओर से थोड़ा-सा गुड़ ले लो,” दुकानदार ने प्यार से कहा और एक टुकड़ा तोड़कर उसे देने लगा। उसने मुँह फिरा लिया और चल दिया। उसने ईश्वर से माँगा था, दुकानदार से नहीं। दूसरों की दया उसे नहीं चाहिए।
लेकिन अब वह ईश्वर से कुछ नहीं माँगता।


सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (1927-1983): जाने-माने हिन्दी के लेखक, कवि, कहानीकार, समीक्षक थे। खूटियों पर टंगे लोग नामक कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित। ये उन सात कवियों में से एक थे जिनको तार सप्तक पत्रिका ने छापा था, जिससे प्रयोगवाद युग की शुरुआत हुई और जिसने आगे जाकर नई कविता आन्दोलन का रूप ले लिया।
सभी चित्र: तनुश्री: आई.डी.सी., आई.आई.टी. बॉम्बे से एनीमेशन में स्नातकोत्तर। स्वतंत्र रूप से एनीमेशन फिल्में बनाती हैं और चित्रकारी करती हैं।