रवि कान्त     [Hindi PDF, 258 kB]

अगर आप कविता सिखाने का एकमेव तरीका यह मानते हैं कि उसे तोते की तरह रट लिया जाए और पूछने पर वैसे-का-वैसा सुना दिया जाए, इसके साथ अगर यह भी मानते हों कि अभी इस उम्र के बच्चों को कविता का मतलब समझाने की ज़हमत उठाने की कोई ज़रूरत नहीं, इसका मतलब तो वक्त आने पर इन रट्टू तोतों के सामने अपने आप ही उजागर होता रहेगा तो आपके लिए किसी भी उम्र के बच्चों को कोई भी कविता सिखाना यानी रट कर याद करवाना कोई खास मुश्किल काम नहीं है। भले ही वह काम बच्चों के लिए बेहद बोरियत भरा व मुश्किल हो।
लेकिन अगर आप इस बात में यकीन रखते हों कि कोई कविता या कहानी बच्चों को इस तरह से पढ़ाई जानी चाहिए कि बच्चे उसका मतलब समझ पाएँ, उस कविता को सुनकर अपने दिमाग में उससे जुड़ी तस्वीरें गढ़ पाएँ, अपनी कल्पना को पंख लगा पाएँ और पूछने पर इन सब चीज़ों के बारे में बता पाएँ, कविता में आई भाषा का आनन्द उठा पाएँ, उसके साथ खिलवाड़ कर पाएँ और अगर मुमकिन हो तो उसके ज़रिए ज्ञान के किसी खास इलाके में चहलकदमी कर पाएँ, तो ‘टेसू राजा बीच बाज़ार’ कोई आसान कविता नहीं है। किसी भी चिन्तनशील अध्यापिका के सामने यह एक से ज़्यादा तरह की चुनौतियाँ पेश कर सकती है।

अर्थ के स्तर पर चुनौती
इस कविता में सबसे पहली व बड़ी चुनौती अर्थ के स्तर पर है। इस कविता की मुश्किल ही यह है कि यह ज्ञान के एक दूसरे इलाके गणित में पाई जाने वाली गिनने की अवधारणा के साथ भाषाई तरीके से खिलवाड़ करते हुए यह दावा भी पेश करती है कि ज्ञान की सभी किस्मों की बुनियाद भाषा में समाहित हो सकती है। लेकिन इस खिलवाड़ में यह गणित की अवधारणा को तोड़ती-मरोड़ती नहीं है बल्कि उसकी ताकत व कमज़ोरियों को ही उजागर करती है। इस कविता का केन्द्रीय भाव गिनने से बचने के हज़ार बहाने करते हुए गिनने की ऐसी तरकीब खोजना है जिससे कि बिना गिने ही गिनने का काम हो जाए। इसके चलते यह गिनने के ऐसे नुस्खे का इस्तेमाल करती है जिसमें किसी एक समूह की चीज़ों की संख्याओं को गिनने से पीछा छुड़ाने के लिए उसकी दूसरे समूहों की चीज़ों से तुलना की जाती है। यह पूरी कविता, जब तक गिनने से बचा जा सके तब तक उसके लिए वाजिब बहाने तलाशने की एक यात्रा है जो आखिर में एक ऐसी संख्या के मुकाम तक पहुँचती है जिसकी कल्पना भी कर पाना कक्षा-2 के बच्चों के लिए मुश्किल काम है। लेकिन संख्या की उस अवधारणा का नाम गढ़ पाना, उसे समझे बिना भी मुमकिन है। इसके लिए आपको कुछ खास संख्याओं के नामों को एक खास क्रम में बोलना भर है। अध्यापिका के सामने चुनौती यह भी है कि वह ऐसा क्या करे कि कविता के आखिर में बच्चे अपने दिमाग में उस संख्या के नाम से जुड़े अर्थ की कोई साफ-सुथरी तस्वीर देख पाएँ। जब तक यह बात अध्यापिका के सामने साफ नहीं होगी वह इस कविता का अर्थ बच्चों के सामने उजागर कर पाने में काफी हद तक नाकाम ही रहेगी।

भाषा के स्तर पर चुनौती
यह कविता आपके सामने भाषा के स्तर पर भी चुनौती पेश करती है। यह कविता तुक के ज़रिए आगे बढ़ती है या यह कहें कि धकेली जाती है, लेकिन यह तुक पूरी तरह से बेतुकी भी नहीं है। यानी इसमें हर कदम पर तुक सिर्फ आखिरी आवाज़ों के मेल के ज़रिए ही नहीं मिलाई गई है बल्कि हर बार तुक मिलाने का भी कोई-न-कोई तर्क गढ़ा गया है। वही तर्क जो बिना गिने, गिनने का बहाना करने में है। यह तुक इस कविता के अन्तरों को याद रखने में भी मदद करती है। पहले दो अन्तरों से साफ हो जाता है कि यह कविता तुकान्त ही होने वाली है और इसके साथ ही हर अन्तरे में तुक बदलने वाली है। तो इस कविता को सुनते व समझते व याद रखते समय आप पहली पंक्ति में आए आखिरी शब्द के आधार पर तुकान्त वाले शब्द का अनुमान भी लगा सकते हैं। लेकिन यह मनमाना नहीं है बल्कि इसके लिए आपके दिमाग में पूरी पंक्ति का अर्थ साफ होना चाहिए। इस कविता के वाक्य दो समूहों के बीच तुलना करके गिनने का बहाना करने के तर्क की डोर से बँधे आगे की ओर सरकते रहते हैं।

शिक्षाशास्त्रीय चुनौतियाँ
अध्यापिका के लिए इस कविता में आखिरी व सबसे अहम चुनौती शिक्षाशास्त्रीय है। यह कि इसका अर्थ बच्चों के सामने कैसे उजागर किया जाए या उनके दिमाग में इसका मतलब कैसे गढ़ा जाए। यह कविता सिर्फ पढ़ देने भर से समझ में आ जाने वाली नहीं है। वैसे भी सांस्कृतिक बहुलता वाले हमारे देश में हर जगह के बच्चों से यह उम्मीद करना नादानी से ज़्यादा कुछ नहीं कि वे इस कविता को सिर्फ सुनकर समझ लेंगे, जो कि किसी एक खास इलाके में प्रचलित है। सिर्फ सुनकर समझ लेने के रास्ते में आने वाली कई बाधाओं की पहचान ज़रूरी है ताकि उनसे जूझने के तरीके खोजे जा सकें।

पहली, जैसे, जिन इलाकों में यह कविता प्रचलित है वहाँ के बच्चे तो हो सकता है कि इसका अर्थ सुनकर या पढ़कर आसानी से समझने की दिशा में बढ़ जाएँ। हो सकता है कि उन्होंने त्यौहारों में इस किस्म की कई कविताएँ अपनी भाषा में सुन रखी हों लेकिन बाकी दूसरे इलाकों के बच्चों के लिए यह इतना आसान नहीं है। हमारे देश में हिन्दी भाषी माने जाने वाले कई इलाकों में घरों में हिन्दी नहीं बोली जाती फिर भी उन्हें स्कूल की किताबों में हिन्दी और हिन्दी कविताएँ पढ़नी पड़ती हैं। यानी वे उस भाषा के मौखिक स्वरूप से न तो ठीक से परिचित होते हैं और न ही उनका इस पर पूरा अधिकार होता है। इसलिए वे भी इसे सिर्फ पढ़ या सुनकर समझ पाएँ इसकी सम्भावनाएँ कम ही हैं।

दूसरी, यह एक खास शैली की कविता है, इसमें पूरी कविता को सुनकर किसी एक घटना या दृश्य की तस्वीर दिमाग में नहीं उभरती। पहली दो पंक्तियों में कविता का सन्दर्भ बनाने के बाद वाले अन्तरों में हर पंक्ति में एक नया दृश्य बनता है और आखिरी अन्तरों में उस सन्दर्भ को शुरुआती घटना से जोड़ते हुए समेकन किया गया है। बीच में आए अलग-अलग अन्तरों से बनने वाले दृश्यों का आपस में कोई नज़र आने लायक सम्बन्ध दिखाई नहीं पड़ता। बीच के अन्तरों में यह कविता तुक और तर्क की महीन डोर थामे आगे बढ़ती रहती है।

तीसरी, छोटे बच्चों के सामने कविता का अर्थ उजागर करने का एक मशहूर तरीका उस कविता को हाव-भाव से करवाना होता है। इस तरीके का इस्तेमाल यहाँ भी किया जा सकता है लेकिन इस कविता के लिए हाव-भावों को चुनना आसान नहीं है। आपको हर अन्तरे में किसी बिना गिनी संख्या को हावभाव से दर्शाना है। तो यहाँ आपका काम सिर्फ हाव-भाव के ज़रिए कविता का मतलब सम्प्रेषित करने से चलने वाला नहीं है। आपको इस कविता के लिए कुछ अन्य तरीके भी खोजने होंगे, जैसे कविता पर बातचीत करना, कविता की पंक्तियों के अर्थ को समझने में मदद करने के लिए चित्र कार्डों का इस्तेमाल करना, कविता पर कठपुतली का अभिनय दिखलाना, हर अन्तरे पर चित्र बनाना या बनवाना आदि।

इस कविता के अर्थ उजागर करने का एक सबसे बेहतरीन तरीका इस पर बातचीत करना हो सकता है। बातचीत को अधिक सार्थक व विषय केन्द्रित करने के लिए चित्र कार्डों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कविता के हर अन्तरे को पढ़कर, सुनाकर बच्चों के साथ उसके मतलब पर बातचीत की जा सकती है। आप चाहें तो बड़े व पूरे चार्ट पर कम्बल, भेड़ों के झुण्ड, पेड़ के अनगिनत पत्तोंें आदि की तस्वीर बना कर बातचीत के वक्त उनका इस्तेमाल कर सकते हैं। हर कदम पर गिनने की मुश्किलों पर बात करते हुए उस अन्तरे की शुरुआत में दी गई चीज़ गिनना छोड़कर अगली चीज़ को गिनने की बात की जा सकती है और फिर से उसे गिनने में आने वाली मुश्किलों को गिनाया जा सकता है।
इस कविता के आखिर में बच्चों को बीस लाख तेईस हज़ार दानों वाले एक अनार के आकार की कल्पना करवाना एक रोमांचक अनुभव हो सकता है। ज़रा सोच कर देखिए कि कक्षा दो के बच्चों की मुठ्ठी में आ जाए ऐसे किसी अनार में कितने दाने हो सकते हैं, पचास या हद-से-हद सौ। अगर एक सौ दानों वाला अनार बच्चों की मुट्ठी में आ सकता है तो इसका दस गुना यानी एक हज़ार दानों वाले अनार का आकार कितना बड़ा होगा? फिर एक हज़ार दानों वाला अनार इतना बड़ा हो तो उसके दस गुना दानों वाले यानी दस हज़ार दानों वाले अनार का आकार कितना बड़ा होगा? फिर उसके दस गुना दानों यानी एक लाख दानों वाले अनार का आकार कितना बड़ा होगा? इसी तरह आगे बढ़ते हुए दस लाख दानों वाले अनार के आकार और बीस लाख दानों वाले अनार के आकार का अनुमान लगवाया जा सकता है। हर कदम पर आप बच्चों को अपने हाथों की मदद से अनार के आकार को दर्शाने के लिए कह सकते हैं। जब लाखों दानों की बात चल रही हो तो हज़ारों दानों को छोड़ा भी जा सकता है, और न छोड़ना चाहें तो उन्हें भी शामिल कर सकते हैं। आखिर में आप बच्चों को याद दिला सकते हैं कि ऐसा सिर्फ एक नहीं, चार-चार अनार हैं और ऐसे चार अनार लेकर टेसू राजा घर लौट रहे हैं।

लेकिन अभी भी आप को लग सकता है कि अनार की मुकम्मल तस्वीर बनी नहीं। इस संख्या को तस्वीर में तब्दील करने के लिए आप यह कल्पना भी करवा सकते हैं कि किसी बच्चे का पेट कितने दानों वाले अनार से भर जाएगा। इस तरह बड़े होते जाते अनार से वह कितने-कितने दिनों तक बगैर इस बात की परवाह किए अनार खा सकता है कि एक अनार और सौ बीमार। उसका बीस लाख तेईस हज़ार दानों वाला एक ही अनार कई बीमार-तो-बीमार, अच्छे खासे तन्दुरुस्तों के पेट भी भर सकता है।

आप यह भी कल्पना करवा सकते हैं कि अगर इतने बड़े अनार के अन्दर घुसकर खाना शु डिग्री करें तो क्या मज़ा आए, साथ में अपने दोस्तों को भी उसके अन्दर ले जाएँ। अनार के एक-एक हिस्से में रखे दानों को खाना शु डिग्री करें और जब पूरे अनार के हर एक दाने को आप और आपके दोस्त खा चुके हों तो बाहर आकर देखें कि आपने कितने सारे कमरों की इमारत में घूमते हुए अनार के दानों की दावत उड़ाई।
आप देख सकते हैं कि इस कविता का जादू ही इस बात में है कि तीन-चार आवाज़ों के शब्दों में सुनाई देने वाली और अंकों में सूत भर जगह घेरने वाली यह संख्या जब अर्थ में तब्दील की जाती है तो एक विशाल आकार के अनार में बदल जाती है जिसमें एक चटख लाल रंग की गोल इमारत में कई छोटे-छोटे पीले रंग के कमरों में ठुँसे अनार के चमकदार व रसीले दाने नज़र आने लगते हैं। इस तस्वीर में और जान डालने के लिए आप बच्चों को याद दिला सकते हैं कि - ज़रा सोचिए, बीस लाख तेईस हज़ार दानों वाले चार अनार अपने हाथों में थामे घर लौटते टेसू राजा की हथेली खुद कितनी बड़ी होगी और ऐसी हथेली वाले टेसू राजा स्वयं कितने विशालकाय होंगे। तो बन गया न दिमाग का फालूदा।

इस कविता के अर्थ में की गई घुसपैठ शब्दों में लिखी जाने वाली चार इंच लम्बी संख्या को कल्पना में एक विशालकाय अनार के आकार में तब्दील कर देने की ताकत रखती है। अगर कोई अध्यापिका इस कविता को पढ़ाते वक्त इसके अर्थ को बच्चों के सामने उजागर कर पाती है तो कोई वजह नहीं कि वह उनकी आँखों में चमक व चेहरे की दमक से अपने दिल को भी खुशी से धड़कता महसूस न कर पाए। आखिर एक अध्यापिका के लिए इससे बढ़कर खुशी की बात और क्या हो सकती है कि वह लिपि के ज़रिए जिस अपार विस्तार वाली जादुई दुनिया को खुद महसूस कर पाती है, जिसके बारे में सोच समझ पाती है, उसकी एक झलक बच्चों को दिखलाकर, उन्हें भी उस दुनिया में दाखिल करवा पाने में कुछ कामयाबी हासिल कर पाए।


रवि कान्त: शैक्षिक सलाहकार के तौर पर विभिन्न संस्थाओं, अध्यापकों के साथ काम। शिक्षण सामग्री, पाठ्यचर्या व पाठ्यपुस्तकों और प्रशिक्षण सन्दर्शिकाओं आदि का निर्माण, शैक्षिक शोध और अनुवाद। गणित शिक्षण में खास रुचि। जयपुर में निवास।
कविता और तस्वीर एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा प्रकाशित रिमझिम, कक्षा-2 से साभार।