रिचर्ड पी. फाइनमेन

क्या सपने की दिशा को बदला जा सकता है?

क्या फिर कया सपने में डर भी लगता है?

सालों पहले पिताजी ने मेरे सामने एक समस्या रखी - मान लो मंगल ग्रह के कुछ वासी पृथ्वी पर आते हैं; मंगलवासी यानी ऐसे लोग जो सोते नहीं हैं, फिर भी हमेशा सक्रिय रहते हैं। मान लो उन्हें इस खब्ती क्रिया का कुछ भी भान नहीं है जिसे हम नींद कहते हैं। ऐसे में वे तुमसे पूछते हैं - कैसा महसूस होता है तुम्हें जब तुम सो जाते हो? क्या होता है जब तुम सोते हो? क्या सोते वक्त विचार आने एकदम बंद हो जाते हैं कि इधर लेटे और उधर विचारों का दरवाज़ा खट से बंद हो गया या उनके तुम तक पहुंचने की गति धीरे......और.....धी. . . . .  रे. . . . . . औ......र........धी.............रे.............होती जाती है? दिमाग वास्तव में अपने आपको कैसे ऑफ करता है?

अगले चार हफ्तों तक हर दोपहर मैंने इसी मुद्दे पर काम किया। मैं अपने कमरे के सभी परदे गिरा देता, बत्तियां बंद कर देता और नींद के आगोश में जा बैठता। और देखता कि दरअसल क्या हो होता है, जब मैं सो रहा होता हूं। रात को फिर यही किस्सा दोहराया जाता। सो इससे मुझे एक दिन में अवलोकन करने के दो मौके मिलते!

सबसे पहले मैंने बहुत-सी गौण बातों को नोट किया, जिनका सोने की प्रक्रिया से बहुत लेना-देना नहीं था। मसलन मैंने गौर किया कि मैं अपने आप से मन ही मन बातचीत करते हुए बहुत-सा सोचने का काम करता था। उस दौरान मैं चीज़ों की दृश्यमान कल्पना भी कर पाता था।

और जब मैं थक रहा होता तो मैंने पाया की मैं दो चीज़ों के बारे में एक साथ सोच पा रहा हूं। मैंने इस पर गौर तब किया जब मैं मन-ही-मन किसी चीज़ पर विचार कर रहा था और साथ ही उस दौरान यूं ही कल्पना भी कर रहा था कि दो रस्सियां मेरे बिस्तर के कोनों से बंधी हैं। ये रस्सियां फिर एक घिरनी पर से होती हुई एक घूमते सिलिण्डर पर लिपटी हैं; जिससे धीरे-धीरे मेरा बिस्तर ऊपर उठ रहा है। मैं उस तरह की कोई कल्पना कर रहा हूं। इस बात को लेकर मैं तब तक पूरी तरह से अनभिज्ञ था जब तक कि मुझे इस विचार ने चिन्ता में नहीं डाल दिया कि अगर एक रस्सी पर दूसरी रस्सी चढ़ गई तो वो इतनी आसानी से नहीं घूम सकेगी। पर साथ ही मैं अपने आप से यह भी कहता हूं कि रस्सियों का तनाव ऐसा नहीं होने देगा। इस ख्याल ने मेरे मन में चल रहे पहले विचार को अवरूद्ध कर दिया और यह अहसास दिलाया कि मैं दो चीज़ों पर एक साथ विचार कर रहा था।

मैंने यह भी नोटिस किया कि नींद से पहले विचारों का आना-जाना बना रहता है। पर उन विचारों के बीच का तार्किक संबंध धीरे-धीरे कम होता जाता है। ये विचार तार्किक रूप से जुड़े नहीं हैं - इस तरफ आपका ध्यान तब तक नहीं जाता जब तक कि आप खुद से यह सवाल न करें कि मुझे ऐसा सोचने पर किसने उकसाया। और फिर आप उल्टी दिशा में फिर से सोचने लगते हैं, अक्सर वजह याद ही नहीं आती।

विचारों के बीच तार्किक संबंध होने का भ्रम आपको हर पल बना रहता है पर दरअसल विचार एक दूसरे से दूर और असंबद्ध होते चले जाते हैं और आखिरकार आप नींद के आगोश में डूब जाते हैं।

इस तरह चार हफ्तों की नींद के बाद मैं अपने अवलोकनों की व्याख्या कर पाया। ये सब अवलोकन मैंने खुद को सोता देखते हुए किए। अपने लेख में मैंने इस बात का भी ज़िक्र किया कि मैं नहीं जानता कि ‘सोने’ का वह अनुभव कैसा होगा जब मैं खुद को देख नहीं रहा हूं।

अपना लेख लिख लेने के बाद भी इस मामले में मेरी उत्सुकता बनी रही और मैं सोते वक्त इस तरह के अवलोकन करता रहा। एक रात सपने में मैंने खुद का अवलोकन करते पाया!

डर का अनुभव
सपने के पहले हिस्से में, मैं एक रेल के डिब्बे के ऊपर चढ़ा हुआ था और हमारी रेल एक सुरंग की तरफ बढ़ रही थी। मैं डर गया, जल्दी से अपने आप को नीचे खींचा और हमने वह सुरंग पार कर ली, उफ......। मैं अपने आप से कहता हूं, “तो तुम सपने में भी डर का अनुभव कर सकते हो और सुरंग में से गुज़रती रेल की आवाज का फर्क भी सुन सकते हो।” 

हां, एक बात और। कुछ लोग कहते हैं कि वे सपने में सिर्फ काला और सफेद रंग ही देख सकते हैं पर मैं सपनों में रंग भी देख सकता था।

अब तक मैं एक डिब्बे के अन्दर आ चुका था। मुझे रेल कुछ लड़खड़ाती हुई महसूस हुई। “तो सपनों में गति बदलने से पैदा होने वाला अहसास भी महसूस किया जा सकता है।”  मैं खुद से कहता हूं। मैं कुछ कठिनाई से डिब्बे के अंत तक पहुंचता हूं। वहां मुझे एक बड़ी-सी खिड़की दिखाई देती है, किसी दुकान के शो-केस जैसी। झांकता हूं तो पाता हूं कि वहां तो पुतलों की जगह तीन जीती-जागती सुन्दर लड़कियां मौजूद हैं।

दिशा का नियंत्रण भी . . .
मैं अगले डिब्बे की तरफ चलना जारी रखता हूं, फिर खुद से ही कहता हूं, “थोड़ा-सा उत्तेजना का मज़ा भी चख लेना चाहिए।”, और वापस पहले वाले डिब्बे में जाने की बात सोचता हूं। मैंने पाया कि मैं मुड़कर फिर से रेल के अंदर से गुज़र सकता हूं - यानी मैं अपने सपनों की दिशा को नियंत्रित कर सकता हूं। मैं उसी खिड़की से डिब्बे में प्रवेश करता हूं और पाता हूं कि वहां तीन बुजुर्ग वायलिन बजा रहे हैं। पर वे अचानक ही लड़कियों में बदल जाते हैं - तो इसका अर्थ हुआ कि मैं सपनों की दिशा में भी बदलाव ला सकता हूं........पर पूरी तरह से नहीं....।

सपनों के दौरान मैंने कुछ अन्य बातों का भी अवलोकन किया। “क्या मैं सचमुच रंगीन सपने देख रहा हूं?” , अपने आप से हमेशा यह पूछने के अलावा मैं सोचने लगा, “किसी चीज़ को हम कितनी बारीकी से देख सकते हैं?” 

अगली बार  मुझे घास में लेटी एक लड़की का सपना आया। उसके बालों का रंग लाल था। मैंने कोशिश की कि क्या मैं उसके हर-एक बाल को देख सकता हूं। बालों पर जहां से सूरज की रोशनी परावर्तित होती है उतने छोटे-से हिस्से में डिफरेक्शन के कारण रंग दिखाई देते हैं। मुझे वह भी दिखाई दे रहा था! मैं उसके हर बाल को एकदम सफाई से अलग-अलग देख सकता था।

अगली बार मैंने एक सपना देखा जिसमें दरवाजे के फ्रेम में एक पिन घुसी हुई थी। मैंने फ्रेम पर हाथ फेरा और पिन को महसूस किया। लगता है दिमाग के ‘देखने से जुड़े हिस्से’ और ‘महसूस करने वाले हिस्से’ में संबंध है। फिर मैं खुद से कहता हूं, “क्या ऐसा हो सकता है कि इनमें कोई संबंध न हो।”  मैं दोबारा फ्रेम की तरफ देखता हूं, अब वहां पिन नहीं है। मैं फ्रेम पर अंगुलियां फेरता हूं और अब भी पिन को महसूस करता हूं।

मेरे सपनों के एक ओर किस्से पर गौर फरमाइए। एक बार सपने में मैंने सुना ‘खट-खट, खट-खट’, उस वक्त सपने में कुछ ऐसा घट रहा था जिसने इस खटखटाहट को अपने दायरे में शामिल कर लिया, पर पूरी तरह से नहीं - यह आवाज़ एक तरह से बाहरी ही रही। मैं सोचता हूं, “मुझे पूरा यकीन है कि यह आवाज़ सपने के दायरे से बाहर कहीं से आ रही है। इस आवाज़ को दायरे में लाने के लिए ही मैंने सपने के इस हिस्से को ईजाद किया। अब मुझे उठना ही पड़ेगा, आखिर जानना तो है ही कि आखिर माजरा क्या है। ”

आवाज़ अब भर बदस्तूर जारी है। मैं जागता हूं और...मौत का-सा सन्नाटा। बाहर कोई आवाज़ न थी। तो यह आवाज़ बाहर से संबद्ध नहीं थी।

कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि वे बाहरी आवाज़ों को सपनों में समाहित कर लेते हैं। पर मेरे सपने में ऐसा नहीं हुआ।

सपनों का अवलोकन करते समय, नींद से उठने की प्रक्रिया काफी भयंकर थी। जब आप उठने की शुरुआत करते हैं तो एक ऐसी भी घड़ी आती है जब आप पूरी तरह से जकड़े हुए महसूस करते हैं, लगता है आपको बांध दिया गया हो या आप ढेर सारे लिहाफों के नीचे दबे हों। इसकी व्याख्या करना मुश्किल है। पर एक पल ऐसा आता है जब आप महसूस करते हैं कि आप इससे बाहर नहीं निकल पाएंगे। आपको विश्वास नहीं होता की आप जाग सकते हैं। तो जागने के बाद मुझे खुद से कहना पड़ता था कि - यह सब हास्यास्पद है। जहां तक मैं जानता था ऐसी कोई बीमारी नहीं है जिसमें प्राकृतिक तौर पर सोने के बाद व्यक्ति जाग न सके। आप कभी भी जाग सकते हैं। इस तरह कई-बार खुद-से बातें करने के बाद मेरा डर लगातार कम होता गया; बल्कि जागने की प्रक्रिया मुझे अब ज़्यादा रोमांचक लगने लगी, कुछ-कुछ गोल-गोल घूमने वाले बड़े झूले की तरह। थोड़ी देर बाद जब आपको डर लगना बंद हो जाता है तो आप धीरे-धीरे उसका मज़ा लेने लगते हैं।

अब आप शायद यह भी जानना चाहेंगे कि सपनों में ताका-झांकी की मेरी इस प्रक्रिया में रोक कैसे लगी। एक रात मैं हर बार की तरह सपने देख रहा था और ज़ाहिर है उसका अवलोकन भी जारी था। मैं अपने सामने की दीवार पर एक झुमका लटका देखता हूं और पच्चीसवीं बार खुद से कहता हूं, “हां, मैं सपनों में रंग देख रहा हूं।” 

फिर मुझे अहसास होता है कि अब तक मैं अपने सिर के पिछले हिस्से को एक पीतल की छड़ से टिका कर सो रहा था। मैं अपने हाथ से उस हिस्से को छूता हूं और पाता हूं कि वो तो बहुत ही नर्म है। मैं सोचता हूं, “तो इसलिए मैं सपनों में ये सारे अवलोकन कर पाया, इस पीपल की छड़ ने मेरे दिमाग के इस सलदार हिस्से (नियो-कोरटेक्स) को डिस्टर्ब कर दिया था। अब मुझे सिर्फ इतना करना है कि सोते वक्त अपने सिर के नीचे एक पीतल की छड़ रखनी है और बस जब चाहूं मैं अपने सपनों का अवलोकन कर सकता हूं। तो मैं अब इस सपने का अवलोकन बंद कर गहरी नींद सो जाता हूं।”

बाद में जब मैं सो कर उठा तो पाया कि न तो वहां कोई छड़ थी न ही सिर का पिछला हिस्सा नर्म था1 पर अब तक मैं अवलोकन करते-करते थक-सा गया था और मेरे दिमाग ने ऐसा एक झूठा कारण भी ढूंढ लिया था जिससे मुझे आगे अब और ऐसा न करना पड़े।

इन अवलोकनों के परिणामस्वरूप मैंने एक छोटा-सा सिद्धांत बनाया। मेरा सपनों में झांकने का एक कारण तो मेरी जिज्ञासा थी कि सपनों में आप कैसे एक आकृति, एक आदमी को देख सकते हैं जबकि आपकी आंखें बंद हैं और बाहर से कुछ भी अंदर नहीं आ रहा है। आप कह सकते हैं कि यह तंत्रिकाओं द्वारा बेतरतीब उत्तेजना से कोई नियमित पैर्टन कैसे बन सकता है बिल्कुल वैसा मानो वह व्यक्ति जागृत अवस्था में उन चीज़ों को देख रहा हो। तो फिर मैं सोते हुए रंगीन सपना कैसे देख पाया और वो भी इतनी बारीकी से?

मैंने सोचा कि वहां एक मीमांसा विभाग (यानी चीज़ों का अर्थ निकालने वाला विभाग) होना चाहिए। जब आप किसी चीज़ को देखते हैं मसलन एक आदमी, एक लैम्प या एक दीवार, तो आप केवल रंगों के धब्बे ही तो नहीं देखते। कोई चीज़ है जो आप को बताती है कि वो क्या है। उसकी मीमांसा ज़रूरी है। सपनों के दौरान यह मीमांसा विभाग बदस्तूर काम करता रहता है, पर गड्ड-मड्ड तरीके से। वह आपको कहता है कि आप एक आदमी के बाल अत्यन्त बारीकी से देख रहे हैं, जबकि सचमुच में ऐसा कुछ नहीं हो रहा। यह विभाग दिमाग में पहुंचने वाली बेतरतीब फालतू चीज़ों की व्याख्या कर उन्हें एक साफ-सुथरी छवि के रूप में प्रस्तुत करता है।

सपनों के संबंध में एक ओर बात। मेरा दोस्त है, उसकी बीवी मनोविश्लेषकों के परिवार के बारे में विस्तार से बातें करते समय उसने कहा कि सपने अर्थपूर्ण होते हैं। सपनों में कुछ संकेत होते हैं, मनोविश्लेषात्मक तरीके से उनका अर्थ निकाला जा सकता है। इस तरह की ज़्यादातर बातों पर मैं यकीन नहीं करता पर उस रात मुझे एक मज़ेदार सपना आया। हम तीन गेंदो के साथ मेज़ पर एक खेल खेल रहे हैं - एक सफेद, एक हरी और एक सलेटी। यह खेल कुछ इस तरह का है जिसमें गेंदों को मेज़ पर बने छेदों में डाला जाता है। सफेद और हरी तो आसानी से छेदों में जा रही थीं पर सलेटी को मैं न डाल पाया।

जागने पर सपने का मतलब निकालना मुश्किल न था। खेल से इतना संकेत तो मिला कि सब गेंद लड़कियां हैं। सफेद गेंद को पहचानना मुश्किल न था। मैं उन दिनों एक लड़की के साथ अक्सर घूमता था। वह एक दुकान में केशियर का काम करती थी। उसकी ड्रेस का रंग सफेद था। हरे रंग का पहचानना भी कोई मुश्किल काम न था। दो दिन पहले जिस लड़की के साथ मैं पिक्चर देखने गया था उसने हरे कपड़े पहन रखे थे। पर स्लेटी का क्या माजरा है? यह कोई तो होना ही चाहिए..... पर कौन.....। मामला कुछ वैसा ही था कि आप कुछ याद करने की कोशिश में लगे हैं; लगता है वो आपके दिलो-दिमाग में है पर जुबान पर नहीं आता। उस दिन मुझे याद करने में आधा दिन लग गया - कि दो-तीन महीने पहले मैंने एक लड़की को अलविदा कहा था। उसे मैं बहुत चाहता था और अब वह इटली गई है। मैं यह तो नहीं जानता कि उस दिन उसने सलेटी रंग के कपड़े पहने थे; पर इतना तो बिल्कुल साफ है कि जैसे ही मैंने उसके बारे में सोचा मुझे लगा कि मैंने उसके बारे में सोचा मुझे लगा कि स्लेटी गेंद का संबंध उसी से होगा।

मैं अपने दोस्त के पास गया और कहा कि तुम्हारा कहना ज़रूर सच होगा, सपनों में विश्लेषण करने जैसा कुछ तो होता है। पर जब उसने मेरा यह सपना सुना तो कहा, “यह तो बहुत ही ज़यादा सटीक और संक्षिप्त था। अमूमन आपको इससे  ज़यादा विश्लेषण करने की ज़रूरत होती है।” 


रिचर्ड पी. फाइनमेन (1918-1988) - प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री, नोबेल पुरस्कार विजेता। यह अंश उनकी आत्मकथा   से लिया गया है।
अनुवाद : शशि सवलोक, चित्र : उमेश गौर

ज़रा सिर तो खुजलाइए

कई घरों में सीढ़ियों पर लगा बल्ब दो स्विच से जुड़ा होता है - एक सीढ़ी के ऊपर और दूसरा नीचे। दोनों में से किसी भी स्विच से सीढ़ी पर लगा बल्ब जलाया या बुझाया जा सकता है।

ये दोनों स्विच साधारण किस्म के होते हैं। कमाल केवल परिपथ का है। सोचकर ऐसा परिपथ बनाकर भेजिए जिससे ऐसा कर पान संभव हो।

अगर यह सवाल आसान लगे तो आप इस बात पर भी विचार कर सकते हैं कि क्या तीन स्विच से भी ऐसा कर पाना संभव है? और यदि हां, तो किस तरह?