कैसे पढ़ाया और कैसे सुधारा - एक अध्यापक की कोशिश

जगह: प्राथमिक शाला, खुर्द, हरदा ज़िला होशंगाबाद;कक्षा: चौथी एवं पांचवी; बच्चों की संख्या: 52; दिनांक: 12 जुलाई 96, गणित शिक्षण

गतिविधि - कार्ड और कंकड़
सभी बच्चों से कहा कि ब्लैक बोर्ड की और देखो और पढ़ों
सवाल करके दिखाने वाले बच्चों की संख्या बहुत कम थी। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि हो सकता है कि बच्चों को:
- मेरी बात समझ में नहीं आई।
- श्यामपट पर लिखा हुआ समझ में नहीं आया।
- बच्चों ने निर्देशों पर ध्यान नहीं दिया।
- या फिर, उन्होंने काम करने में रुचि नहीं ली।
थोड़ी देर सोचने के बाद मैंने बच्चों से कहा, कि बाहर से 20-20 कंकड़ इकट्ठे करके लाओ। जब तक बच्चे कंकड़ बीनकर लाते मैंने एक से नौ तक के 104 अंक-कार्ड फर्श पर फैलाकर रख दिए।

बच्चों ने पूछा, “कंकड़ का क्या करें?” मैंने कहा, “उन्हें अपनी जगह पर रख दो और यहां से दो-दो अंक कार्ड उठाकर ले जाओं। लेकिन ध्यान रखना कि दोनों कार्ड एक जैसे न हों।” 

बच्चों ने वैसा ही किया और पूछा,

“अब क्या करें?” 
मैंने कहा, “अब जो अंक कार्ड, तुम्हारे पास हैं, उनकी बिंदियों पर कंकड़ रखो।” सभी ऐसा करने लगे।

कुछ पल बाद मैंने कहा, “एक कार्ड के ऊपर के कंकड़ गिनकर उठाओं और कार्ड को पलटो, जितने कंकड़ तुमने गिने हैं वह संख्या अंक कार्ड पर पीछे छपी है।” 
“हां, छपा है।” बच्चों की आवाज़ आई।

“इसी तरह दूसरे कार्ड के कंकड़ भी गिनकर कार्ड को पीछे पलटा कर देखो।” 
अब दोनों कार्ड के कंकड़ मिलाकर उन्हें गिनो और स्लेट पर लिखो।

थोड़ी देर बाद मैंने उन्हें खुद यह गतिविधि करके दिखाई - पहले एक अंक कार्ड चुना, कार्ड पर बने बिन्दुओं पर कंकड़ रखे, उन्हें गिना - एक, दो, तीन, चार, पांच। अब कार्ड को पलटा। पीछे अंक 5 छपा था। ब्लैक बोर्ड पर 5 लिख दिया।

इसी तरह मैंने दूसरा कार्ड चुना और बिन्दुओं पर कंकड़ रख कर गिना - संख्या आई 7; मैंने ब्लैक बोर्ड पर सात को पांच के नीचे लिख दिया। धन का निशान लगाया और रेखा खींची।

  5
7  

इन कदमों के बाद दोनों कार्ड (जिनके कंकड़ मैंने गिने थे) के कंकड़ एक जगह रख कर उन्हें फिर से गिना। बच्चे देख-देखकर साथ ही साथ दोहरा भी रहे थे।

इतना सब करने के बाद मैंने बच्चों से पूछा, “पांच और सात कितने हुए।”

जवाब आया, 12 हुए।

ब्लैक बोर्ड पर पांच और सात के नीचे मैंने 12 को इस तरह लिख दिया।

  5
+ 7  
 12

अब बच्चों से कहा:

तुम सब इसी तरह दो अंक कार्ड चुनो, बिन्दियों पर कंकड़ रखो, कंकड़ों को गिनो, कार्ड को पलटो, जितना अंक कार्ड पर छपा है उतने कंकड़ हैं या नहीं देखो, और स्लेट पर अंक लिखो; कुल कितना हुआ यह भी देखो।

जब काम खत्म हो जाए, पहले वाले अंक कार्ड वापस रखकर दूसरे अंक कार्ड ले जाओ।

कम से कम 10 सवाल हरेक को करना है।

कुछ देर बाद मैं कक्षा में घूमा, बच्चों के सवाल देखे और बातचीत की। बच्चों ने इस प्रकार सवाल किए।

इस पूरी गतिविधि को करवाकर मुझे लगा कि बच्चों को ये सब बात सीख हैं;               

- सवाल किस तरह बनाए जाते हैं,
- बिना हासिल के जोड़ते कैसे हैं,
- दो संख्याओं को जोड़ो तो कितना होता है,
- बड़ी संख्या और छोटी संख्या क्या है,
- 1 से 9 तक गिनना, मिलाना,
- 1 से 9 तक की अंक पहचान, आदि अधिकांश बच्चों को आ गया है।

इस पूरी गतिविधि के बाद मैंने ब्लैक पर लिखा।

1 से 9 तक के अंकों में से दो अंक चुनकर संख्या बनाओ। संख्या को पलटो। दोनों संख्याओं को जोड़ो, जोड़ कितना हुआ बताओ।

लिखा हुआ एक बार बच्चों को पढ़ कर सुनाया और बैठ गया।

बच्चो सवाल करने में जुटा गए। कुछ देर बाद एक-एक बच्चे के पास जाकर देखा कि उन्होंने क्या किया है।

अधिकांश बच्चों ने 12, 13, 14, 15, 17, 18, 23, 24, 25, 26, 27, 35, 36, 43, 45 आदि संख्याओं को पलटकर उनका जोड़ सही किया था। वहीं 19, 28, 27, 38, 39, 46, 47, 48, 56, 58, 59, 67, 69, 78, 79, 89 आदि संख्याओं को पलटकर उनका जोड़ अधिकांश ने गलत किया था। गलत करने वाले बच्चों ने इस तरह सवाल हल किए:

इतना सब कुछ करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि 40 प्रतिशत बच्चों को हासिल के जोड़ की तकनीक मालूम है और 60 प्रतिशत बच्चों को हासिल के जोड़ की तकनीक मालूम ही नहीं हैं।

गतिविधि-2: हासिल वाले जोड़
बच्चों में से पांच टोलियां बनानी थीं। मैंने बच्चों से कहा कि कोई भी एक अंक का कार्ड लेकर बाहर जाओ। बच्चों ने पूछा कि अंक कार्ड का क्या करें। मैंने कहा कि जिनके पास एक जैसे कार्ड होंगे वे सब एक टोली में होंगे। ये टोलियां कमरे में गोला बनाकर बैठेंगी। इसके अलावा इस गतिविधि के लिए बच्चों को 20-20 कंकड़ बीनकर लाना था।

टोलियों के बैठने के बाद उनसे कार्ड वापस ले लिए। और हर टोली को एक से नौ तक के अंक कार्ड का एक-एक सेट दे दिया।

शुरू में टोली के किसी एक बच्चे को इस सेट में से दो कार्ड चुनने थे और उनसे संख्या बनानी थी। मैंने उनसे बारी-बारी बोर्ड पर लिख दिया:

लिखने के बाद बच्चों से कहा कि अपनी-अपनी टोली की संख्या को पलटो और उनसे पूछकर इन नई संख्याओं को भी ब्लैक बोर्ड पर लिख दिया:

पहली टोली की संख्या को उलट- पुलट करने से जो सवाल बना उसे मैंने इस तरह जोड़ा:

जोड़ किया ही था कि हासिल के जोड़ का तरीका जानने वाले बच्चे चिल्लाए, “सर, गलत है। सर, गलत है।”

मैंने पूछा, “इस सवाल में गलती कहां है? तुम में से कोई एक आए और बताए।”
मुकेश आया और बोला, “सर, आपने 17 में से इकाई के 1 को दहाई नहीं मिलाया।”
मैंने कहा, कैसे, करके दिखाओ।

मुकेश ब्लैक बोर्ड के पास गया और 17 इकाई का 1 मिटाया और 8 के ऊपर लिखा, और 17 दहाई का 7 मिटाया और 8 लिखा - इस तरह:

कई तरीके गिनने के
मैंने मुकेश से पूछा, “तुमने गिनने का काम कैसे किया? ”

वह बोला, “9 इकाई से आगे (हाथ की अंगुलियों के निशान दिखाते हुए) गिना -
10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17. ”

मैंने पूछा, “तुम्हें कैसे मालूम कि तीसरी अंगुली के इस निशान तक गिनना है। ”
वो बोला कि हर अंगुली में तीन निशान हैं तो दो अंगुली में 6 निशान और तीसरी अंगुली में 2 निशान तक गिना। इसके बाद दहाई जोड़ने के लिए एक और जोड़ा।

अब मैंने बाकी बच्चों से पूछा कि क्या कोई दूसरा तरीका है, जिससे जोड़ का यह सवाल हल कर सकें?
“हां है।”  बच्चों की आवाज़ आई।

आगे आकर समझने के लिए कहने पर मोहन आया और बोला,
“9 में 8 का 1 मिलाया तो 10 हुए। 8 के अब 7 बचे तो 10 और 7 हुए 17। अब हासिल का 1, 8 में मिलाया तो हुए 9 और 9 जोड़ा तो 18 हुए। तरह उत्तर 187 हुआ।”

मोहन ने मौखिक रूप से जो सवाल किया वो शायद इस तरह से था।

मैंने पूछा, बच्चों तुम गिनने का काम किन-किन चीज़ों से करते हो बताओ? बच्चों का जवाब था:

रेखा - अंगुलियों से,
हितेष - अंगुलियों के निशानों से,
गोपाल - रेखा (लाइन) खींचकर,
अनिल - कंकड़ से,
सुनिता - कोई भी वस्तु से,
गोविन्द - 5, 10, 15, 20, 50 100 के समूहों में गिन कर।

पहले की तरह इस बार भी बच्चों से 10-10 सवाल करने को कहा।

बच्चे सवाल करने में जुट गए। कुछ देर बाद मैंने कक्षा में घूमना शुरू किया और हर बच्चे के पास गया बच्चों ने इस तरह से सवाल किए थे:

मुझे गलत सिद्ध करो
मैंने बच्चों से कहा, “जो सवाल तुमने किया हे उसकी ऊपर की संख्या नीचे की नीचे की संख्या को ऊपर रखकर जोड़ो। जांच करो कि अभी जो उत्तर आया है, क्या ऊपर की संख्या को नीचे लिखने से और नीचे की संख्या को ऊपर करने से भी वही आएगा?

मेरा दावा है कि यही उत्तर आएगा। और मेरे दावे को गलत सिद्ध करने के लिए संख्या को नीचे-ऊपर करके जोड़कर देखो। यदि यह उत्तर नहीं आए तो मुझे बताओ?” 

आखिरी में जब इन दोनों गतिविधियों का विश्लेषण किया तो मुझे समझ आया कि:

- बच्चे किस स्तर पर हैं।
- किस बच्चे ने कौन-सी क्षमता हासिल कर ली है।
- गणित अमूर्त संख्याओं का खेल है यह हमें समझना चाहिए।
- गणित सीखने की प्रक्रिया धीरे-धीरे अमूर्त अवधारणाओं की ओर बढ़ती है।
- गणित की अमूर्त अवधारणाओं तक पहुंचने के लिए बच्चों को ठोस वस्तुओं के साथ ठोस गतिविधियां करवाना आवश्यक है।

(लक्ष्मी नारायण चौधरी - होशंगाबाद ज़िले की हरदा तहसील की हरदा खुर्द प्राथमिक शाला में शिक्षक हैं।)

चौधरी जी बताएं
क्या चौथी, पांचवीं कक्षा में अंक पहचानना व गिनना, बड़ी छोटी संख्या, कम ज़्यादा व साधारण जोड़ आदि क्षमताओं का विकास पाठ्यक्रम का हिस्सा है? या आप इस लेख में क्षमताएं गिनाने की परिपाटी में गणित का सारा पाठ्यक्रम यूं ही दोहरा रहे हैं। 60 प्रतिशत बच्चे हासिल के जोड़ में कमज़ोर हैं यह जान लेने के बाद आप सीधे ही 89 का सवाल श्याम पट पर लिख कर आगे की चर्चा शुरू कर सकते थे। आपने दूसरी गतिविधि का लंबा चौड़ा सिलसिला क्यों चलाया? अंक कार्ड बांट कर टोलियां बनबाना, कंकड़ बिनवाना, फिर अंक कार्डों से संख्या दुबारा से बनाना व श्याम पट पर लिखवाना..........?

क्या इसमें समय नष्ट नहीं हुआ?
बहरहाल बच्चों से सवाल बनवाने का प्रयास करना, बच्चों को लंबे निर्देश सुन-समझ कर कार्य करने का अभ्यास देना और बच्चों की विभिन्न विधियों को सम्मान देने का प्रयास जो चौधरीजी की कक्षा में दिखता है, बहुत ज़बरदस्त है ही।

चौधरी जी से आप भी सवाल पूछ सकते हैं व उनकी कक्षा के बारे में सुझाव दे सकते हैं। लिखिए संदर्भ को।
संदर्भ आमंत्रित करती है - वास्तविक कक्षा अनुभवों पर लेख जो बच्चो को सिखाने के आपके संघर्षों को औरों तक पहुंचाएं। औरों की प्रतिक्रियाएं भी आप तक पहुंचाएगी संदर्भ।