अजय शर्मा

हर किसी को अपने जीवन में कई किस्म के झटके झेलने पड़ते हैं। इनमें अगर मैं बिजली के झटकों को भी शामिल करूं तो मुमकिन है आप इंकार न कर पाएं। आखिर कभी न-कभी तो बिजली का झटका खाकर आपके होश भी फाख्ता हुए होंगेइसलिए हम जब भी विद्युत की अवधारणा को पढ़ते-पढ़ाते हैं तो शरीर पर बिजली के प्रभावों को समझने बूझने की जिज्ञासा हमारे जहन में सहज ही उठती है। पर किन्हीं कारणों से अधिकांश पाठ्य-पुस्तकें और शिक्षक इस जिज्ञासा को एक-दो चलताऊ वाक्यों से संतुष्ट करने की आधी-अधूरी कोशिश करके आगे बढ़ जाते हैं। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है, शायद एक विवाद का मुद्दा हो सकता है, पर इतना तय है कि विद्युत की अवधारणा को पढ़ते-पढ़ाते वक्त इस मुद्दे पर चर्चा विद्युत की विषय वस्तु को और अधिक रुचिकर और सार्थक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

यूं तो ये दोनों पंछी अलग-अलग तारों पर बैठे हैं इसलिए महफूज़ हैं लेकिन ये जो चोंच लड़ाने की सोच रहे हैं वह जरूर जान लेवा हो सकती है।

सावधान!! 440 ...
बिजली के झटकों से सावधान करने के लिए ट्रांसफॉर्मर, जनरेटर या बिजली के खंभों इत्यादि पर टंगे बोर्डों में अक्सर सिर्फ वोल्ट का ही जिक्र होता है, जैसे ‘सावधान! 440 वोल्ट', ‘खतरा! 1 100 वोल्ट' आदि। इसलिए अक्सर लोग मान बैठते हैं कि बिजली के झटके का एकमात्र कारण विद्युत वोल्टेज है। पर यह पूर्णतः सच नहीं है। आपको बिजली का झटका खिलाने में विद्युत वोल्टेज का हाथ जरूर होता है, लेकिन सिर्फ एक ज़रूरी शर्त बतौर। दरअसल, हमारे शरीर को बिजली का झटका तभी लगता है जब करंट यानी विद्युत धारा का हमारे शरीर से प्रवाह होने लगता है। विद्युत धारा हमारे शरीर से प्रवाह कर पाए, इसके लिए दो परिस्थितियों का मौजूद होना जरूरी है। पहली, विद्युत धारा को हमारे शरीर के जरिए बहने के लिए एक संपूर्ण विद्युत परिपथ मुहैया होना चाहिए।

दूसरे, शरीर के जिन दो बिंदुओं के बीच करंट को बहना हो, उनके वोल्टेज (विद्युत विभवों) में अंतर होना चाहिए।*

आपने चिड़ियों को मज़े से बिजली के तारों पर बैठे देखकर यह ज़रूर सोचा होगा कि भला, इनको बिजली का झटका क्यों नहीं लगता?

इसका श्रेय जाता है इन तारों को जिनके किन्हीं भी दो नज़दीकी बिंदुओं का विद्युत विभव (वोल्टेज) लगभग एक समान होता है। इस कारण तार पर बैठी किसी भी चिड़िया के दोनों पंजों (जिनके जरिए ही करंट बह सकता था) के वोल्टेज में भी कोई अंतर नहीं


*दो बिंदुओं के बीच विद्युत आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा (करंट) कहते हैं। यह प्रवाह तभी होता है जब दोनों बिंदुओं के विद्युत विभवों (वोल्टेज) में फर्क हो। किसी बिंदु की विद्युत विभव ऊर्जा प्रति आवेश को उसका विद्युत विभव कहा जाता है। विद्युत विभव को वोल्ट और करंट को एम्पीयर नामक इकाइयों में नापा जाता है।


चित्र में ‘वेन डी ग्राफ' जनरेटर को छूता हुआ बच्चा दिखाया गया है। बच्चे के बाल अजीब तरह से एकदम खड़े है। इसका कारण यह है कि गोले को छूने से बच्चे का शरीर आवेशित हो गया है और बाल भी। बालों में समान आवेश आ जाने के कारण वे एक-दूसरे को धकेलने की कोशिश करते हैं। इसी वजह से वे सेही के कांटों की तरह खड़े हो गए हैं।

साथ दिए चित्र में ‘वेन डी ग्राफ' के अंदरूनी हिस्से दिखाए गए हैं। इसमें निचले हिस्से में लगातार इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित हो रहे हैं। इन इलेक्ट्रॉनों को एक बेल्ट की मदद से ऊपर धातु के गोले तक लाया जाता है जिससे गोला लगातार आवेशित होता रहता है।

होता। नतीजतन चिड़ियों के शरीर में विद्युत धारा का प्रवाह हो नहीं पाता और बिजली का झटका नहीं लगता। आप भी अगर हज़ारों वोल्ट के तार को हाथों से पकड़कर लटक जाएं तो सलामत रहेंगे। हां, लेकिन भूलकर भी अगर आपके शरीर का कोई भी अंग किसी दूसरे तार या धरती (जिसका वोल्टेज पहले तार से काफी भिन्न हो) को छू जाए तो बस खैर नहीं ....। वैसे चमगादड़ों या कुछ और पक्षियों का ऐसा हश्र भी कभी-कभार देखने को मिल जाता है।

अनोखा जनरेटर...
कई संपन्न देशों के स्कूलों की प्रयोगशालाओं में अक्सर वेन डी ग्राफ जनरेटर नामक उपकरण उपलब्ध रहता है। इस उपकरण के जरिए धातु की एक गेंद पर इतना विद्युत आवेश इकट्ठा किया जा सकता है कि उस गेंद का विद्युत विभव हज़ारों वोल्ट हो जाए। क्या आप किसी ऐसी गेंद को छूना चाहेंगे? शायद यह जानकर आपके होंसले बुलंद हों कि इन बच्चों को खासा मज़ा आता है इन आवेशित गेंदों को छूकर खुद आवेशित हो जाने में। हो सकता है आप सोचें कि इनको बिजली का करारा झटका क्यों नहीं लगता?

यह इसलिए कि गेंद को छूने से पहले ही सुनिश्चित कर लिया जाता है कि इनका कोई भी अंग धरती के संपर्क में न हो। और साथ ही बच्चों को यह भी सख्त हिदायत होती है कि गेंद को एक ही हाथ से छूएं। लिहाज़ा इनके शरीर के जरिए कोई भी ऐसा संपूर्ण विद्युत परिपथ नहीं बन पाता जिसमें विद्युत धारा का प्रवाह हो सके। यही कारण है कि बच्चे हज़ारों वोल्ट तक आवेशित होने के बाद भी सुरक्षित रहते हैं। बिजली का काम करने वालों को अक्सर सलाह दी जाती है कि काम करते वक्त वे एक हाथ अपनी जेब में रखें। समझ गए न, क्यों?

कितना करंट , कितना प्रतिरोध
अब फर्ज़ कीजिए कि आप झटका लगने की सभी जरूरी शर्तों को पूरी करते हुए जाने-अनजाने में 250 वोल्ट के नंगे तार को छू देते हैं। यकीनन ऐसे में आपके शरीर से करंट बहेगा, पर कितना? यह सवाल अहम है क्योंकि करंट की मात्रा" ही तय करेगी कि आप बहते करंट से बेखबर खड़े रहेंगे या गश खाकर चित हो जाएंगे। और करंट की मात्रा तय होती है आपके शरीर के विद्युत प्रतिरोध से। हमारे शरीर की त्वचा विद्युत प्रवाह में खासा प्रतिरोध डालती है, पर यह प्रतिरोध कितना होगा यह शरीर के हालात से तय होता है।

परिस्थिति अनुसार मानव शरीर का विद्युत प्रतिरोध 100 ओम से बीस लाख ओहम तक हो सकता है। मसलन अगर आप सूखी अंगुलियों से नंगे तारों को छूते हैं तो आपके शरीर का प्रतिरोध लगभग दस लाख ओम होगा, और अगर नमकीन पानी से भीगे हाथों से आप तार पकड़े हुए हैं तो आपका विद्युत प्रतिरोध घटकर 700 ओम तक पहुंच सकता है। यह इसलिए कि साधारण पानी ( साधारण पानी से आशय हमारे आसपास मिलने वाले पानी से है - जैसे नदी, नाले, ट्यूब बेल वगैरह से मिलने वाला पानी, जो आसुत जल नहीं होता।) विद्युत का अच्छा चालक

*विद्युत प्रतिरोध का मापन ओहम () नामक इकाइयों में होता है, तथा विद्युत प्रवाह, विद्युत विभव और प्रतिरोध के बीच इस तरह का संबंध होता है:
करंट = वोल्टेज/विद्युत प्रतिरोध

होता है और नमक घोलने से पानी की चालकता और भी अधिक हो जाती है। यही वजह है कि हमारे शरीर का कोई भी आंतरिक अंग विद्युत प्रवाह में ज़्यादा प्रतिरोध पैदा नहीं करता जबकि त्वचा की सूखी ऊपरी परतों का प्रतिरोध काफी अधिक होता है। अब चूंकि विद्युत धारा प्रतिरोध के विपरीत अनुपात में होती है, जितना कम प्रतिरोध होता है करंट की मात्रा उतनी ही अधिक हो जाती है। मसलन, अगर आपकी त्वचा सूखी है तो 12 वोल्ट के नंगे तार को छूने पर आपको कुछ भी महसूस न होगा। पर इसी तार को अगर गीले हाथों से छूने की जुर्रत करें तो अच्छा-खासा झटका खा बैठेंगे। इसलिए बाथरूम में ऐसे एहतियात बरते जाते हैं कि भूल से भी आपका शरीर किसी नंगे चालू तार के सम्पर्क में न आए।

पसीना छूटने से भी हमारे शरीर का विद्युत प्रतिरोध घट जाता है। बिजली का झटका खाने से कई बार शरीर पसीने से तर हो जाता है। तब स्वाभाविक है कि खतरा और भी अधिक बढ़ जाता है। वैसे अपनी इस क्षमता के कारण आप एक और किस्म की मुसीबत में फंस सकते हैं। वह तब जब आप झूठ बोलने पर आमादा हों और आपका लाई-डिटेक्टर (Lie de tector) द्वारा परीक्षण करवा लिया जाए। अक्सर ऐसा देखा गया है कि जो लोग झूठ बोलने में अनाड़ी होते हैं, झूठ बोलते वक्त उनकी हथेलियां पसीने से नम हो जाती हैं। खासतौर पर तब जब झूठ पकड़े जाने पर वे मुसीबत में फंस सकते हैं। लाइ-डिटेक्टर एक ऐसा उपकरण है जिसके जरिए पसीना छूटने के कारण हथेलियों के विद्युत प्रतिरोध में आए बदलाव को बड़ी ही आसानी से पढ़ा जा सकता है। इसकी मदद से पुलिस अनाड़ियों का झूठ पकड़ लेती है।

तीन किस्म के प्रभाव
अब देखते हैं कि करंट बहने से हमारा शरीर किस तरह प्रभावित होता है। करंट के मानव शरीर पर तीन किस्म के प्रभाव दर्ज किए गए हैं - विद्युत अपघटन (Electrolysis), गर्मी (Heating) और तंत्रिकाओं का उद्दीपन (Stimulation of nerves)। ये तीनों प्रभाव करंट की मात्रा और उसकी आवृति पर निर्भर करते हैं।

विद्युत अपघटन एक गौण प्रभाव है जिसमें शरीर में कमज़ोर विद्युत अपघटनी करंट* का प्रवाह होने लगता है।

मिसाल के तौर पर अगर 100 LA

*इस करंट से हमारा तात्पर्य आयन नामक आवेशित कणों के प्रवाह से है। तारों में बहने वाला करंट इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के कारण होता है, जो कि दूसरे किस्म के कण होते हैं।

(माइक्रो एम्पीयर) का करंट कुछ मिनटों के लिए हमारी त्वचा से प्रवाहित किया जाए तो यह प्रभाव देखा जा सकता है। इस प्रभाव के कारण नंगे तार छूने की जगह पर छोटा-सा घाव हो जाती है, जिसे ठीक होने में काफी समय लग सकता है। अगर शरीर को दिए जाने वाले करंट की आवृति 0.1 Hz ( हट्र्ज )* से ज्यादा है तो शरीर पर इस किस्म का प्रभाव नहीं होती। चूंकि हमारे घरों में बहने वाले करंट की आवृति 50 Hz होती है, इसलिए इस प्रभाव से हम बचे रहते हैं।

दूसरे किस्म का प्रभाव शरीर के किसी खास हिस्से को उष्मा पहुंचाने से संबंधित हैअगर 100 KHz से अधिक आवृति का लगभग एक एम्पीयर करंट शरीर से प्रवाहित कराया जाए, तो जिस हिस्से से करंट बह रहा है उसे काफी उष्मा मिलती है। इससे अधिक मात्रा का करंट प्रभावित स्थल को जला देगा, चाहे आवृति कितनी ही हो। डॉक्टर इस प्रभाव का उपयोग ‘डायथर्मी' नामक विधि में करते हैं जिसके जरिए ऑपरेशनों में बारीक चीर-फाड़ की जा सकती है, और

शरीर पर करंट की मात्रा का प्रभाव व्यक्ति विशेष पर भी निर्भर करता है।

* हट्र्ज़ तरंग की आवृति नापने की इकाई है जिसे Cycle/Second में नापा जाता है।

अंदरूनी अंगों में रक्त के थक्के जमाने (Coagulation) में भी कराया जा सकता

करंट के तीसरे प्रभाव से हम सब परिचित हैं। जी हां, वो है झटका लगना। करंट प्रवाह द्वारा तंत्रिकाओं या मांस पेशियों के कृत्रिम रूप से उद्दीपन (Stimulation) के कारण हमें झटका लगता है। बिजली के इस झटके से हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह कई बातों पर निर्भर करता है। इनमें प्रमुख है करंट की मात्रा। जाहिर है करंट की मात्रा जितनी अधिक होगी, असर उतने ही खतरनाक होंगे। अलग अलग मात्राओं के करंट के प्रभाव तालिका में दर्शाए गए हैं।

चिपकने की वजह
करंट के कारण नंगे तार से ‘चिपकने' के दो कारण हो सकते हैं। पहला तो यह कि आप अपनी मांस पेशियों पर से नियंत्रण खो बैठते हैंइस कारण अगर आप तार के संपर्क में हैं तो उससे अपने आप को अलग नहीं कर सकते

दूसरा कारण, करंट के कारण मांस पेशियों में खिंचाव पैदा होना है।

मिसाल के तौर पर, अगर तार आपकी हथेली से छुआ है तो पेशियों के खिंचाव के कारण आपकी मुठ्ठी बंध जाएगी और तार उसकी गिरफ्त में आ जाएगा। ऐसे में तार को आपसे अलग करना काफी कठिन हो जाता है।

बिजली के झटके से सांस लेने में कठिनाई इसलिए आती है क्योंकि अगर करंट पर्याप्त मात्रा का है तो वह तंत्रिकाओं को प्रभावित करने के अलावा उनके तंत्रिका केन्द्र (Nerve Centre) को भी असंतुलित कर देता है जिसके द्वारा हमारा दिमाग श्वसन को नियंत्रित करता है। इसलिए झटका खाए व्यक्ति को बिजली के संपर्क से हटाने के तुरंत बाद कृत्रिम श्वसन दिया जाता है।

बिजली के झटके का असर इस बात पर काफी निर्भर करता है कि शरीर में करंटे प्रवाह का मार्ग क्या है। करंट को हृदय से होकर बहना सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है। मसलन, 100 mA का करंट अगर हृदय से होकर न बहे तो इंसान आमतौर पर बच जाता है। पर यही करंट अगर दिल से होकर गुजरे तो मृत्यु लगभग निश्चित है।

डायथर्मी विधि के अंतर्गत शरीर को दिया गया करंट भी वैसे तो अच्छी वासी मात्रा का होता है, पर चूंकि उसका शरीर में प्रवाह बहुत ही कम दूरी के लिए होता है, शरीर को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचता।

शरीर पर करंट का प्रभाव करंट की आवृति पर भी निर्भर करता है। यहां एक ग्राफ की मदद से प्रभावी करंट का, आवृति के साथ संबंध दर्शाया गया है। ग्राफ में प्रभावी करंट वह औसत करंट है जिससे ज्यादा मात्रा का करंट लगने पर व्यक्ति तार से ‘चिपक जाते हैं। ग्राफ से स्पष्ट है कि ‘चिपकाने' की दृष्टि से हमारे घरों में बहने वाला. 50 Hz का ए.सी.करंट सबसे अधिक खतरनाक है।

करंट के प्रभाव में लिंग भेद भी देखने को मिलता है। मसलन, जितने करंट से पुरुष तार से चिपके रह जाते हैं. स्त्रियां औसतन उसके दो-तिहाई करंट पर भी अपने आपको तार से अलग करने में असमर्थ पाने लगती हैं।

करंट आपके शरीर से कितने समय बहा है, प्रभाव की दृष्टि से यह बात भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। अगर करंट मात्र एक सेकंड़ के लिए बहे तो लगभग 100 mA का करंट आपके हृदय के स्पदंनों को अस्त-व्यस्त करने के लिए पर्याप्त होगा। पर दुर्भाग्यवश बिजली के तार से अगर आप 16 सेकंडों तक चिपके रह गए तो 30 mA का करंट भी आपके दिल की दुर्गति बनाने के लिए काफी है।

झटके खाने के शौकीन
कृत्रिम तरीकों से पैदा की गई बिजली से झटका खाने का सबसे पहला

ग्राफ में विद्युत धारा की आवृति और चिपकाने के लिए कारगर करंट के बीच संबंध दिखाया गया है। यहां पर वक्र रेखा उस करंट को दर्शा रही है जिस पर व्यक्ति बिजली के तार से चिपकता है। यदि आप ग्राफ को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि लगभग 20 से 100 हट्र्ज आवृति का करंट 20 मिली एम्पीयर से कम पर भी चिपकाने में सक्षम है। चूंकि हमारे घरों में 50 हट्र्ज आवृति वाला करंट प्रवाहित होता है इसलिए यह हमारे लिए खासा खतरनाक है। ग्राफ में देखिए कि अगर आवृति दस हज़ार हट्र्ज हो तो चिपकाने के लिए कम-से-कम कितने करंट की ज़रूरत होगी?

सौभाग्य ( या दुर्भाग्य? ) सन् 1745 में वोन क्लीस्ट नाम के पादरी को नसीब हुआ था। कहा जाता है कि इस अनचाहे यश की प्राप्ति उन्हें तब हुई जब वे घर्षण द्वारा एकत्र किए गए विद्युत आवेश को कील के ज़रिए एक बोतल में समेटने की जद्दोजहद में मशगूल थे। इस घटना के कुछ महीनों बाद ही मन्शेनबॉक नाम के एक और सज्जन को बिजली के संपर्क का अनुभव हासिल हुआ। उनके जरिए यह बात कुछ ही समय में यूरोप के सभी राजदरबारों में पहुंच गई। आज भले ही बिजली का झटका खाने की संभावना ही आपको कंपा दे पर तब नजारा ही कुछ और था। कहते हैं अठाहरवीं सदी के अंतिम दशकों में बिजली के झटके खाना और खिलाना सभी का पसंदीदा शगल बन गया था। आखिर बिजली के झटकों का अनुभव करना राजदरबारों में शान की बात जो बन गई थी। आम दरबारी खुद को या अन्य एक-दो लोगों को मिले इस सौभाग्य का जायज़ा लेकर ही संतुष्ट हो जाते थे, लेकिन फ्रांस के शहंशाह इस तुच्छ उपलब्धि से कैसे संतुष्ट होते! कहते हैं एक बार उन्होंने अपनी फौज की एक पूरी टुकड़ी को एक साथ झटका खिलाने की प्रदर्शनी आयोजित की, जिसमें झटका खाते ही सब सैनिक एक साथ उछल पड़ते थे। आखिर राजा, राजा ही होता है !!


अजय शर्मा : एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से संबद्ध हैं।