पिछले अंक में इस स्तंभ में सवाल पूछा गया था कि एक खाली बोतल में फूंक मारकर सीटी बजाइए और ध्वनि की पिच ( आवाज़ का मोटापन या महीनपन ) पर गौर कीजिए। अब इस बोतल में थोड़ा-सा पानी भरिए और फिर बजाकर देखिए की
सीटी की आवाज़ में फर्क महसूस हो रहा है या नहीं। इसी तरह बोतल में थोड़ा-थोड़ा पानी और डालकर देखिए की सीटी की आवाज़ में क्या फर्क आ रहा है। आपको यह बताना था कि बोतल में पानी की ऊंचाई बढ़ने के साथ सीटी की पिच भी बढ़ती जाती है - ऐसा क्यों होता है?

तीखी होती सीटी

जवाबः जब हम फूंक मारते हैं तो हवा की एक धारा तेज़ गति से बोतल के अंदर घुसती है; इसके कारण बोतल में मौजूद हवा में कंपन होने लगता है। और जैसा कि आप जानते होंगे ध्वनि हमें कंपन की वजह से ही महसूस होती है।

पर आपने यह भी गौर किया होगा कि जरूरी नहीं है कि आपके हर बार फूंक मारने से सीटी बज ही जाए। आपको एक खास अंदाज़ में फेंक मारना पड़ता है सीटी बजाने के लिए। लेकिन ऐसा क्यों?

दरअसल हर वस्तु चाहे वो बोतल की हवा हो या तानपूरे का तार, कंपन कराने पर इनमें से कुछ खास ध्वनियां ही अच्छी तरह से निकल पाती हैं। ढोल बजाने पर अलग आवाज़ आती है और कनस्तर पीटने पर अलग। यह खास ध्वनियां वह हैं जिनपे वाद्य की कंपन करने वाली चीज़ में अनुनाद होता है। इन खास ध्वनियों की आवृतियों ( या दूसरे लफ्जों में पिचों ) को अनुनाद आवृति कहा जाता है।

बोतल से सीटी की आवाज़ भी तभी निकलती है जब आपकी फूंक द्वारा बोतल की हवा में प्रेरित कंपन उसकी किसी अनुनाद आवृति पर हो।

दरअसल, अनुनाद के समय कंपन करने वाली हवा में बोतल के पेंदे की तरफ जाते और पेंदे से लौटते कंपन के टकराव (Superimposition) के कारण बोतल की हवा में स्थिर तरंगे (Standing Waves) पैदा हो जाती है।

(देखे चित्र) स्थिर तरंगों का फायदा यह होता है कि बोतल की हवा एक अच्छे और कुछ समय तक टिकने वाले आयाम को कंपन करने लगती है। जोरदार कंपन के कारण ही आपको सीटी की आवाज़ सुनाई देती है।

चित्र-1: बोतल में बनने वाली प्रथम संनादी तरंग चित्र से स्पष्ट होता है कि इनकी तरंग लंबाई बोतल की लंबाई से चौगुनी होती है।

अब हम आते हैं मूल प्रश्न पर। सीटी की पिच कैसी होगी निर्भर करता है स्थिर तरंगों की तरंगदैर्घ्य पर। यह इसलिए कि

आवृति (ù) = गति(V) / तरंगदैर्घ्य (λ)

और स्थिर तरंगों की तरंगदैर्घ्य तय होती है। बोतल की लंबाई पर से। एक बोतल में जिसका एक सिरा खुला है, सबसे सरलतम - जिन्हें प्रथम संनादी भी कहते हैं - तरंगें तभी पैदा होती है जब इस तरंग की तरंगदैर्घ्य बोतल में मौजूद हवा की लंबाई की चार गुनी होगी (λ = 4L)।

इसका अर्थ यह हुआ कि जैसे-जैसे बोतल में पानी डाल कर आप बोतल की हवा की लंबाई कम करते हैं, उसमें पैदा हो सकने वाले प्रथम संनादी वाली स्थिर तरंगों की तरंगदैर्घ्य भी कम होती जाती है। और चूंकि तरंगदैर्घ्य पिच के विपरीत अनुपाती होती है। पैदा होने वाली सीटी की पिच बढ़ी हुई होती है। ( देखे चित्र ) बढ़ी हुई पिच यानी ज़्यादा तीखी आवाज। क्यों, अनुभव भी यही बताता है न? एक मोटे तौर पर कुल मामला बस यही है।