पूर्व में शोधकर्ताओं द्वारा ऐसे उपकरण विकसित किए जा चुके हैं जो कोनों के पीछे ओझल चीज़ों को देखने के लिए प्रकाश तरंगों का उपयोग करते थे। इस प्रक्रिया में प्रकाश तरंगों को कोनों पर टकराकर उछलने दिया जाता था ताकि जो वस्तुएं आंखों की सीध में नहीं हैं उन्हें भी देखा जा सके। हाल ही में इसी से प्रेरित एक प्रयोग में वैज्ञानिकों के एक अन्य समूह ने प्रकाश तरंगों की बजाय ध्वनि का प्रयोग किया। माइक्रोफोन और कार में उपयोग किए जाने वाले छोटे स्पीकरों की सहायता से एक खंभे जैसा हार्डवेयर तैयार किया गया है।
ये स्पीकर ध्वनियों की एक शृंखला उत्सर्जित करते हैं जो एक दीवार पर एक कोण पर टकराने के बाद दूसरी दीवार पर छिपी हुई वस्तु पर पड़ती है। वैज्ञानिकों ने दूसरी दीवार पर H अक्षर का एक पोस्टर बोर्ड रखा था। इसके बाद उन्होंने इस उपकरण को धीरे-धीरे घुमाया और हर बार अधिक ध्वनियों की संख्या बढ़ाते गए। हर बार ध्वनियां एक दीवार से परावर्तित होकर दूसरी दीवार पर रखे पोस्टर बोर्ड से टकराकर माइक्रोफोन में वापस आई।
भूकंपीय इमेजिंग एल्गोरिदम का उपयोग करते हुए उनके यंत्र ने H अक्षर की एक मोटी-मोटी छवि बना दी। शोधकर्ताओं ने एल (L) और टी (T) अक्षरों के साथ भी प्रयोग किया और अपने परिणामों की तुलना प्रकाशीय विधि से की। प्रकाशीय विधि, जिसके लिए महंगे उपकरणों की आवश्यकता होती है, अधिक दूरी के L की छवि बनाने में विफल रही। इसके साथ ही ध्वनि-आधारित विधि में केवल 4-5 मिनट लगे जबकि प्रकाशीय विधि में एक घंटे से अधिक समय लगता है। शोधकर्ता अपने इस कार्य को कंप्यूटर विज़न एंड पैटर्न रिकॉग्निशन काफ्रेंस में प्रस्तुत करेंगे।
इस तकनीक की व्यावहारिक उपयोगिता में अभी काफी समय है, लेकिन शोधपत्र के लेखकों का ऐसा मानना है कि आगे चलकर इस तकनीक का उपयोग वाहनों में अनदेखी बाधाओं को देखने के लिए किया जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)