भारत सरकार, कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) की तर्ज़ पर, विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक सामाजिक दायित्व (Scientific Social Responsibility) के लिए एक नई नीति लागू करने जा रही है। इस नई नीति का प्रारूप तैयार कर लिया गया है जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की वेबसाइट (www.dst.gov.in) पर टिप्पणियों के लिए उपलब्ध कराया गया है।
अगर यह नीति लागू हो जाती है तो विज्ञान के क्षेत्र में सामाजिक दायित्व के लिए ऐसी नीति बनाने वाला भारत दुनिया का संभवत: पहला देश होगा।
यह नीति भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत संस्थानों और वैज्ञानिकों को विज्ञान संचार और प्रसार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करेगी। ऐसा होने से वैज्ञानिकों और समाज के बीच संवाद बढ़ेगा जिससे दोनों के बीच ज्ञान आधारित खाई को भरा जा सकेगा। इस नीति का मुख्य उद्देश्य भारतीय वैज्ञानिक समुदाय में सुप्त पड़ी क्षमता का भरपूर उपयोग कर विज्ञान और समाज के बीच सम्बंधों को मज़बूत करना और देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना है जिससे इस क्षेत्र को नई ऊर्जा मिल सके।
यह नीति वैज्ञानिक ज्ञान और संसाधनों तक जनमानस की पहुंच को सुनिश्चित करने और आसान बनाने के लिए एक तंत्र विकसित करने, वर्तमान और भावी सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विज्ञान के लाभों का उपयोग करने, तथा विचारों और संसाधनों को साझा करने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने, और सामाजिक समस्याओं को पहचानने एवं इनके हल खोजने के लिए सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में भी मार्गदर्शन करेगी। इस ड्राफ्ट नीति के अनुसार देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी  से सम्बंधित सभी संस्थानों और व्यक्तिगत रूप से सभी वैज्ञानिकों को उनके वैज्ञानिक सामाजिक दायित्व के बारे में जागरूक और प्रेरित करना होगा।
भारत सरकार ने पहले भी विज्ञान से सम्बंधित कुछ नीतियां बनाई हैं। वैज्ञानिक नीति संकल्प 1958, प्रौद्योगिकी नीति वक्तव्य 1983, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति 2003 और विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति 2013 इनमें प्रमुख हैं। वर्तमान वैज्ञानिक सामाजिक दायित्व नीति का प्रारूप भी इन नीतियों को आगे बढ़ाता है। हालांकि इस नई नीति में कुछ व्यावहारिक और प्रासंगिक प्रावधान हैं जिससे विज्ञान व प्रौद्योगिक संस्थानों और वैज्ञानिकों (यानी ज्ञानकर्मियों) को समाज के प्रति अधिक उत्तरदायी और ज़िम्मेदार बनाया जा सकता है।
ड्राफ्ट नीति के अनुसार प्रत्येक वैज्ञानिक को व्यक्तिगत रूप से अपने वैज्ञानिक सामाजिक दायित्व को पूरा करने के लिए कम से कम 10 दिन प्रति वर्ष अवश्य देने होंगे। इसके अंतर्गत विज्ञान और समाज के बीच वैज्ञानिक ज्ञान के आदान-प्रदान में योगदान देना होगा। इस दिशा में संस्थागत स्तर पर और व्यक्तिगत स्तर पर सही प्रयास हो सकें और ऐसे प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहनों के साथ-साथ आवश्यक आर्थिक सहायता प्रदान करने का भी प्रावधान होगा। वैज्ञानिक सामाजिक दायित्व के क्षेत्र में जो वैज्ञानिक व्यक्तिगत प्रयास करेंगे उन्हें उनके वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन में उचित श्रेय देने का भी प्रस्ताव किया गया है।
इस नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि किसी भी संस्थान को अपने वैज्ञानिक सामाजिक दायित्व से सम्बंधित गतिविधियों और परियोजनाओं को आउटसोर्स या किसी अन्य को अनुबंधित करने की अनुमति नहीं होगी। अर्थात सभी संस्थानों को अपनी SSR गतिविधियों और परियोजनाओं को लागू करने के लिए अंदरूनी क्षमताएं विकसित करना होगा।
जब भारत में लगभग सभी विज्ञान व प्रौद्योगिक शोध करदाताओं के पैसे से चल रहा है, तो ऐसे में वैज्ञानिक संस्थानों का यह एक नैतिक दायित्व है कि वे समाज और अन्य हितधारकों को कुछ वापस भी दें। यहां पर हमें यह समझना होगा कि SSR न केवल समाज पर वैज्ञानिक प्रभाव के बारे में है, बल्कि यह विज्ञान पर सामाजिक प्रभाव के बारे में भी है। इसलिए SSR विज्ञान के क्षेत्र में ज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करेगा और समाज के लाभ के लिए विज्ञान का उपयोग करने में दक्षता लाएगा।
इस नीति दस्तावेज़ में समझाया गया है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में कार्यरत सभी ज्ञानकर्मियों का समाज में सभी हितधारकों के साथ ज्ञान और संसाधनों को स्वेच्छा से और सेवा भाव एवं जागरूक पारस्परिकता की भावना से साझा करने के प्रति नैतिक दायित्व ही वैज्ञानिक सामाजिक दायित्व (SSR) है। यहां, ज्ञानकर्मियों से अभिप्राय हर उस व्यक्ति से है जो ज्ञान अर्थव्यवस्था में मानव, सामाजिक, प्राकृतिक, भौतिक, जैविक, चिकित्सा, गणितीय और कंप्यूटर/डैटा विज्ञान और इनसे सम्बंधित प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में भाग लेता है।
ड्राफ्ट नीति के अनुसार देश में SSR गतिविधियों की निगरानी और कार्यान्वयन के लिए DST में एक केंद्रीय और नोडल एजेंसी की स्थापना की जाएगी। इस नीति के एक बार औपचारिक हो जाने के बाद, केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, राज्य सरकारों और S&T संस्थानों को अपने कार्यक्षेत्र के अनुसार SSR को लागू करने के लिए अपनी योजना बनाने की आवश्यकता होगी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्बंधित सभी संस्थानों को अपने ज्ञानकर्मियों को समाज के प्रति उनकी नैतिक सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में संवेदनशील बनाने, SSR से सम्बंधित संस्थागत परियोजनाओं और व्यक्तिगत गतिविधियों का आकलन करने के लिए एक SSR निगरानी प्रणाली बनानी होगी और SSR गतिविधियों  पर आधारित एक वार्षिक रिपोर्ट भी प्रकाशित करनी होगी। संस्थागत और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर SSR गतिविधियों की निगरानी एवं मूल्यांकन के लिए उपयुक्त संकेतक विकसित किए जाएंगे जो इन गतिविधियों के प्रभाव को लघु-अवधि, मध्यम-अवधि और दीर्घ-अवधि के स्तर पर मापेंगे।
नीति को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए, एक राष्ट्रीय डिजिटल पोर्टल की स्थापना की जाएगी जिस पर ऐसी सामाजिक समस्याओं का विवरण होगा जिन्हें वैज्ञानिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है। यह पोर्टल कार्यान्वयनकर्ताओं के लिए और SSR गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिए एक मंच के रूप में भी काम करेगा।
नई नीति के अनुसार सभी फंडिंग एजेंसियों को SSR का समर्थन करने के लिए:
क) व्यक्तिगत SSR परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करनी होगी,
ख) हर प्रोजेक्ट में SSR के लिए वित्तीय सहायता के लिए एक निश्चित प्रतिशत तय करना होगा,
ग) वित्तीय समर्थन के लिए प्रस्तुत किसी भी परियोजना के लिए उपयुक्त SSR की आवश्यकता की सिफारिश करनी होगी।
यदि इसे ठीक से और कुशलतापूर्वक लागू किया जाता है, तो यह नीति विज्ञान संचार के मौजूदा प्रयासों को मज़बूत करते हुए, सामाजिक समस्याओं के लिए वैज्ञानिक और अभिनव समाधान लाने में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभाएगी। इस के साथ-साथ, क्षमता निर्माण, कौशल विकास के माध्यम से सभी के जीवन स्तर को ऊपर उठाने, ग्रामीण नवाचारों को प्रोत्साहित करने, महिलाओं और कमज़ोर वर्गों को सशक्त बनाने, उद्योगों और स्टार्ट-अप की मदद करने आदि में यह नीति योगदान दे सकती है। सतत विकास लक्ष्यों, पर्यावरण लक्ष्यों और प्रौद्योगिकी विज़न 2035 की प्राप्ति में भी यह नीति योगदान दे सकती है।  (स्रोत फीचर्स)