कुछ साक्ष्यों से पता चला है कि कोरोनावायरस के नए संस्करण टीकों और पिछले संक्रमणों से उत्पन्न प्रतिरक्षा को चकमा दे सकते हैं। फिलहाल शोधकर्ता प्रयोगशाला से प्राप्त अध्ययनों की मदद से इस वायरस के उभरते हुए संस्करणों और उत्परिवर्तनों को समझने का प्रयास कर रहे हैं। इम्पीरियल कॉलेज लंदन के प्रतिरक्षा विज्ञानी डेनियल ऑल्टमन के अनुसार कोविड-19 टीकों की प्रभाविता में कमी आ सकती है।
लेकिन ऑल्टमन और अन्य वैज्ञानिकों के अनुसार डैटा अभी तक पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। अध्ययनों में टीका प्राप्त या कोविड-19 से स्वस्थ हो चुके लोगों में मात्र एंटीबॉडीज़ द्वारा विभिन्न संस्करणों को बेअसर करने की ही जांच की गई है। प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के अन्य घटकों के प्रभावों पर अध्ययन नहीं किया गया है। इसके अलावा अध्ययनों में इस सम्बंध में कोई संकेत नहीं मिले हैं कि एंटीबॉडी की गतिविधियों में परिवर्तन के कारण टीके की प्रभाविता या पुन:संक्रमण की संभावना पर कोई असर होगा या नहीं।
शोधकर्ता सबसे अधिक चिंतित 2020 के अंत में दक्षिण अफ्रीका में पाए गए संस्करण से है। डरबन स्थित युनिवर्सिटी ऑफ क्वाज़ूलू-नेटल के जैव-सूचना विज्ञानी टूलियो डी ओलिवेरा के नेतृत्व में एक टीम ने नए संस्करण (501Y.V2) को पूर्वी केप प्रांत में सबसे तेज़ी से फैलने वाला प्रकोप बताया है। यह दक्षिण अफ्रीका से अन्य देशों में भी फैल गया है। इसकी मुख्य विशेषताओं में स्पाइक प्रोटीन में उत्परिवर्तन हैं जो वायरस को मेज़बान कोशिकाओं की पहचान करने और संक्रमित करने में मदद करते हैं। इसमें कुछ बदलाव ऐसे भी हुए हैं जो वायरस के विरुद्ध एंटीबॉडी को भी कमज़ोर करते हैं।
अधिक गहराई से जांच करने के लिए ओलिवेरा की टीम ने 501 Y.V2 को अलग किया। फिर उन्होंने इस संस्करण के नमूनों का परीक्षण रक्त में उपस्थित एंटीबॉडी युक्त भाग से किया जिसे सीरम कहते हैं। ये नमूने 6 ऐसे लोगों से लिए गए थे जो वायरस के किसी अन्य संस्करण से बीमार हुए थे और अब स्वस्थ हो चुके थे। उम्मीद थी कि स्वस्थ हो चुके लोगों की सीरम (उपशमक सीरम) में ऐसी एंटीबॉडीज़ होंगी जो संक्रमण को रोकने में सक्षम होंगी। लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया कि यह उपशमक सीरम महामारी के शुरुआती वायरस संस्करणों की तुलना में 501 Y.V2 के विरुद्ध बेअसर रहा। हालांकि, कुछ लोगों के प्लाज़्मा ने 501 Y.V2 के विरुद्ध बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन क्षमता काफी कम पाई गई।
एक अन्य अध्ययन में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्यूनिकेबल डिसीसेज़ के विषाणु विज्ञानी पेनी मूर के नेतृत्व में एक टीम ने 501 Y.V2 में पाए जाने वाले स्पाइक उत्परिवर्तनों के विभिन्न संयोजनों में इस उपशमक सीरम के प्रभावों की जांच की। यह उन्होंने एक ‘कूट-वायरस’ (यानी एच.आई.वी. का एक रूप जो स्पाइक प्रोटीन की मदद से कोशिका में प्रवेश करता है) की मदद से किया। इन प्रयोगों से पता चला कि 501 Y.V2 में ऐसे उत्परिवर्तन हुए हैं जो न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडी के प्रभावों को कमज़ोर करते हैं। 501 Y.V2 उत्परिवर्तन वाले कूट-वायरस 44 में से 21 प्रतिभागियों के उपशमक सीरम से अप्रभावित रहे और अन्य लोगों के सीरम के लिए भी आंशिक रूप से प्रतिरोधी रहे। इन परिणामों के बाद ओलिवेरा का अनुमान है कि दक्षिण अफ्रीका में पुन:संक्रमण के पीछे 501 Y.V2 संस्करण मुख्य कारण हो सकता है।
फिलहाल दोनों ही टीमें जल्द ही कोविड-19 टीका परीक्षण में शामिल लोगों के सीरम से 501 Y.V2 संस्करण का परीक्षण करने वाली हैं। गौरतलब है कि इन लोगों को जो टीका लगा था वह वायरस के मूल संस्करण के लिहाज़ से बना था। इसके अलावा अन्य प्रयोगशालाओं में भी फाइज़र या मॉडर्ना mRNA टीका प्राप्त लोगों के सीरम एकत्रित कर इस तरह के परीक्षण किए जा रहे हैं। अब तक के प्रयोग बताते हैं कि इन व्यक्तियों के सीरम की एंटीबॉडी कुछ हद तक नए संस्करण पर भी प्रभावी हैं। लेकिन अन्य उत्परिवर्तनों पर जांच करना ज़रूरी होगा।
कोविड-19 टीके उच्च स्तर की एंटीबॉडी जारी करते हैं जो स्पाइक प्रोटीन के विभिन्न क्षेत्रों को लक्षित करती हैं। ऐसे में कुछ अणु तो वायरस के संस्करणों को अवरुद्ध करने में सक्षम हो सकते हैं। और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के अन्य घटक (जैसे टी-कोशिकाएं) शायद वायरस में उत्परिवर्तनों से प्रभावित न हों।
फिलहाल चल रहे प्रभाविता परीक्षण और विभिन्न देशों के टीकाकरण अभियान वायरस के अलग-अलग संस्करणों पर टीकों के प्रभावों को उजागर कर पाएंगे। दक्षिण अफ्रीका में कई टीकों के परीक्षण चल रहे हैं और शोधकर्ता काफी गंभीरता से 501 Y.V2 संस्करण वाले कोविड-19 की क्षमता में गिरावट की उम्मीद कर रहे हैं।
इसके साथ ही यूके में तेज़ी से फैल रहे B.1.1.7 संस्करण के बारे में भी सुराग मिलने लगे हैं। बायोएनटेक द्वारा कूट-वायरस प्रयोगों से पता चला है कि B.1.1.7 के उत्परिवर्तित स्पाइक पर 16 लोगों के सीरम का बहुत कम प्रभाव पड़ा है। इन 16 लोगों को फाइज़र का टीका लगा था। इसी दौरान कैंब्रिज विश्वविद्यालय के विषाणु विज्ञानी रवीन्द्र गुप्ता ने 15 लोगों के सीरम पर अध्ययन किया, जिनको यही टीका लगा था। उन्होंने पाया कि 10 लोगों का सीरम अन्य सार्स-कोव-2 संस्करणों की तुलना में B.1.1.7 के विरुद्ध कम प्रभावी रहा।
देखा जाए तो हाल में प्राप्त परिणाम अभी काफी अस्पष्ट हैं। फिलहाल शोधकर्ताओं की पहली प्राथमिकता यह पता लगाने की है कि 501 Y.V2 उत्परिवर्तन पुन:संक्रमण के लिए ज़िम्मेदार है या नहीं। यदि है तो झुंड प्रतिरक्षा का विचार एक कल्पना मात्र ही रह जाएगा। (स्रोत फीचर्स)