विगत 9 फरवरी को वुहान में आयोजित पत्रकार वार्ता में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) की टीम ने कोरोनावायरस की उत्पत्ति पर महीने भर की जांच के अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं। अपनी रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला से वायरस के गलती से लीक होने के विवादास्पद सिद्धांत को निरस्त कर दिया है। उनका अनुमान है कि सार्स-कोव-2 ने किसी जीव से मनुष्यों में प्रवेश किया है। यह अन्य शोधकर्ताओं के निष्कर्षों से मेल खाता है। टीम ने अपनी रिपोर्ट में चीन सरकार और मीडिया द्वारा प्रचारित दो अन्य परिकल्पनाएं भी प्रस्तुत की हैं: यह वायरस या इसका कोई पूर्वज चीन के बाहर किसी जीव से आया और एक बार लोगों में फैलने पर यह फ्रोज़न वन्य जीवों और अन्य कोल्ड पैकेज्ड सामान में भी फैल गया।
अलबत्ता, रिपोर्ट पर अन्य शोधकर्ताओं की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है। वाशिंगटन स्थित जॉर्जटाउन युनिवर्सिटी की वायरोलॉजिस्ट एंजेला रैसमुसेन के अनुसार वायरस उत्पत्ति सम्बंधी निष्कर्ष दो सप्ताह में दे पाना संभव नहीं है। हालांकि ये निष्कर्ष चीन सरकार के सहयोग से एक लंबी जांच का आधार तो बनाते ही हैं। कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार चीनी और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की इस टीम ने गंभीर सवाल उठाए हैं और व्यापक रूप से डैटा का भी अध्ययन किया है। आने वाले समय में अधिक विस्तृत रिपोर्ट की उम्मीद की जा सकती है।
लेकिन कुछ अन्य वैज्ञानिकों के अनुसार यह जांच कोई नई जानकारी प्रदान नहीं करती। इस रिपोर्ट में वायरस के किसी जंतु के माध्यम से फैलने के प्रचलित नज़रिए की ही बात कही गई है। इसके अलावा रिपोर्ट में चीनी सरकार द्वारा प्रचारित दो परिकल्पनाओं पर ज़ोर दिया गया है। साथ ही चीन में ‘कोल्ड फूड चेन’ के माध्यम से शुरुआती संक्रमण फैलने का विचार भी सीमित साक्ष्यों पर आधारित है। हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि टीम के पास अभी भी ऐसी जानकारी हो सकती है जिसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। इस विषय में डबल्यूएचओ टीम के सदस्य और मेडिकल वायरोलॉजिस्ट डोमिनिक डायर का अनुमान है कि कोरोनावायरस का संक्रमण चीनी बाज़ारों में दूषित मछली और मांस के कारण फैला है जिसकी अधिक जानकारी लिखित रिपोर्ट में प्रस्तुत की जाएगी।
डबल्यूएचओ ने वायरस के प्रयोगशाला से लीक होने के विचार पर भी अध्ययन किया है। इस बारे में अध्ययन के प्रमुख और खाद्य-सुरक्षा एवं ज़ूनोसिस विशेषज्ञ पीटर बेन एम्बरेक ने इस संभावना को खारिज किया है। क्योंकि वैज्ञानिकों के पास दिसंबर 2019 के पहले इस वायरस की कोई जानकारी नहीं थी इसलिए प्रयोगशाला से लीक होने का विचार बेतुका है। इसके साथ ही टीम को प्रयोगशाला में किसी प्रकार की दुर्घटना के भी कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। हालांकि टीम ने प्रयोगशाला की फॉरेंसिक जांच नहीं की है।
कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार यह निष्कर्ष वुहान में हुई घटनाओं को तो ठीक तरह से प्रस्तुत करते हैं लेकिन महामारी के बढ़ने और इसके राजनीतिकरण होने की वजह से प्रयोगशाला से वायरस के लीक होने और प्राकृतिक उत्पत्ति के सिद्धांतों के बीच टकराव अधिक गहरा हो गया है और टीम इसे सुलझाने में नाकाम रही है।
गौरतलब है कि टीम द्वारा अधिकांश जांच वुहान में वायरस के फैलने के शुरुआती दिनों पर केंद्रित है और रिपोर्ट में शहर के शुरुआती संक्रमण के समय को चित्रित करने का प्रयास किया गया है। टीम ने वर्ष 2019 की दूसरी छमाही में वुहान शहर और हुबेई प्रांत के स्वास्थ्य रिकॉर्ड का अध्ययन किया है। इसमें इन्फ्लुएंज़ा जैसी बीमारियों के असामान्य उतार-चढ़ावों पर ध्यान दिया गया है और यह देखा गया कि वहां खांसी-जुकाम की औषधियों की बिक्री में किस तरह के बदलाव आए थे। विशेष रूप से निमोनिया से सम्बंधित मौतों की तलाश की गई है। इसके अलावा टीम ने सार्स-कोव-2 वायरल आरएनए का पता लगाने के लिए 4500 रोगियों के नमूनों की जांच की और वायरस के विरुद्ध एंटीबॉडी के लिए रक्त के नमूनों का विश्लेषण किया। इन सभी जांचों में शोधकर्ताओं को वायरस के दिसंबर 2019 के पहले फैलने के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं।
फिर भी डायर का मानना है कि संक्रमण के स्पष्ट संकेतों की कमी का मतलब यह नहीं कि वायरस समुदाय में पहले ही फैल नहीं चुका था। देखा जाए तो टीम का विश्लेषण सीमित डैटा और एक ऐसी निगरानी प्रणाली पर आधारित था जो किसी नए वायरस के फैलाव को पकड़ पाने के लिए तैयार नहीं की गई थी। वायरस के फैलाव का सही तरह से आकलन करने के लिए शोधकर्ताओं को न केवल स्वास्थ्य केंद्रों में, बल्कि समुदाय स्तर पर अध्ययन करना होगा।
इसके अलावा टीम ने इस वायरस के पीछे एक जंतु को ज़िम्मेदार तो ठहराया है लेकिन संभावित जंतुओं की पहचान नहीं कर पाई है। चीनी शोधकर्ताओं ने देश के कई घरेलू, पालतू और जंगली जीवों का परीक्षण किया था लेकिन ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिल पाया था कि इन प्रजातियों में वायरस मौजूद है। लेकिन यदि इस महामारी को प्राकृतिक संचरण की घटना मानते हैं तो भविष्य में भी जीवों से मनुष्यों में वायरस संचरण की घटनाओं की संभावना बनी रहेगी।
टीम ने कहा है कि वुहान और आसपास के क्षेत्रों में जांच जारी रखना चाहिए। इसमें विशेष रूप से शुरुआती मामलों को ट्रैक करने का प्रयास करना चाहिए ताकि महामारी की शुरुआत का पता लगाने में मदद मिले। टीम के मुताबिक, ज़रूरत इस बात की है कि वुहान प्रांत और अन्य क्षेत्रों में ब्लड बैंक से पुराने नमूनों का विशेषण किया जाए जिनमें संक्रमण का पता लगाने के लिए एंटीबॉडी परीक्षण भी शामिल हों। इसके साथ ही फ्रोज़न वन्य जीवों की संभावित भूमिका का पता लगाने के लिए और अधिक अध्ययन करने की ज़रूरत है। जंतु स्रोत की संभावना का पता लगाने के लिए भी व्यापक परीक्षण करना होंगे।
हाल ही में जापान, कंबोडिया और थाईलैंड के चमगादड़ों में सार्स-कोव-2 से सम्बंधित कोरोनावायरस के मिलने की खबर है। ऐसे में डबल्यूएचओ की टीम ने चीन के बाहर वायरस उत्पत्ति की खोज करने की भी सिफारिश की है। इस विषय पर नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार जून 2020 में थाईलैंड की गुफाओं में पाए जाने वाले हॉर्सशू चमगादड़ में नया कोरोनावायरस मिला है जिसे RaTG203 नाम दिया गया है। इस वायरस का 91.5 प्रतिशत जीनोम सार्स-कोव-2 से मेल खाता है। इसी तरह के नज़दीक से सम्बंधित अन्य वायरसों का पता चला है। इससे यह कहा जा सकता है कि दक्षिण-पूर्वी एशिया में इस महामारी वायरस के करीबी सम्बंधी अभी भी उपस्थित है।
इसके अलावा शोधकर्ताओं ने कंबोडिया और जापान में संग्रहित फ्रोज़न चमगादड़ों के नमूनों में सार्स-कोव-2 से सम्बंधित कई अन्य कोरोनावायरस की पहचान की है। सार्स-कोव-2 का सबसे करीबी सम्बंधी RaTG13 चीन में पाया गया है। इसका लगभग 96 प्रतिशत जीनोम सार्स-कोव-2 से मेल खाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि चीन में किए गए अध्ययन जितना पैसा और मेहनत दक्षिण-पूर्वी एशिया में लगाए जाएं तो वायरस का और अधिक गहराई से पता लगाया जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)