मार्च 2021 में डबल्यूएचओ द्वारा वित्तपोषित एक व्यवस्थित समीक्षा (कार्ल हेनेगन और साथी) के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है कि कोविड वायरस हवा के माध्यम से नहीं फैलता। यह निष्कर्ष जन स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
यदि यह वायरस श्वसन के दौरान संक्रमित ड्रॉपलेट्स से फैलता है, जो काफी तेज़ी से नीचे बैठ जाती हैं, तो इनको नियंत्रित करने के लिए शारीरिक दूरी, मास्क का उपयोग, श्वसन स्वच्छता, सतहों की सफाई, और मात्र उन स्वास्थ्य प्रक्रियाओं के दौरान सुरक्षा देने वाले साधनों का उपयोग करना होगा जिनमें एयरोसोल उत्पन्न होते हैं। इस स्थिति में खुली और बंद जगहों में कोई अंतर नहीं होगा क्योंकि दोनों जगहों पर संक्रमित बूंदें एक समान समय में ज़मीन पर गिर जाएंगी।
लेकिन यदि कोई संक्रामक वायरस हवा के माध्यम से फैलता है तो किसी संक्रमित व्यक्ति द्वारा सांस छोड़ने, बोलने, चिल्लाने, गाने, छींकने-खांसने के बाद वहां की हवा में सांस लेने से अन्य लोग संक्रमित हो सकते हैं।
इस स्थिति में संक्रामक एयरोसोल को सांस के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने से रोकना ज़रूरी है। इसमें हवा की आवाजाही, फिल्टरेशन, भीड़-भाड़ और अंदर रहने से बचना, अंदर रहें तो मास्क का उपयोग और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए उच्च-स्तरीय सुरक्षा साधनों का उपयोग करना शामिल होगा।
हवा के माध्यम से न फैलने सम्बंधी उक्त निष्कर्ष इस तथ्य पर आधारित है कि किसी जगह की हवा में वायरस नहीं मिले हैं। इस अध्ययन की विस्तृत समीक्षा विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा की गई है। त्रिशा ग्रीनहैलाग और उनके साथियों का मत है कि इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि यह वायरस हवा के माध्यम से भी फैलता है। उनके तर्कों का सार प्रस्तुत है।
वैसे तो यह दर्शाना मुश्किल होता है कि कोई श्वसन सम्बंधी वायरस हवा के माध्यम से फैलता है। दशकों से हुए शोध, जिनमें जीवित रोगजनक कीटाणुओं को हवा में प्राप्त करने के प्रयास नहीं किए गए थे, यह दर्शाते हैं कि जिन रोगों को श्वसन ड्रॉपलेट्स द्वारा फैलने वाला माना गया था, वे दरअसल हवा-वाहित थे। यहां दस ऐसे प्रमाण प्रस्तुत हैं जो सार्स-कोव-2 वायरस को मुख्य रूप से हवा-वाहित होना दर्शाते हैं।
पहला, सार्स-कोव-2 संचरण में सुपर स्प्रेडिंग की घटनाएं काफी प्रमुख होती हैं। ऐसी घटनाओं के दौरान मानव व्यवहार और अंतर्क्रियाओं के अलावा कमरे के आकार, हवा की आवाजाही और अन्य कारकों के विश्लेषण से ऐसे पैटर्न (लंबी दूरी के संचरण और प्रजनन संख्या में वृद्धि) मिले हैं जो सार्स-कोव-2 के हवा-वाहित होने के संकेत देते हैं। इन पैटर्न्स को मात्र ड्रॉपलेट्स या संक्रमित वस्तुओं के माध्यम से प्रसार के आधार पर नहीं समझा जा सकता।
दूसरा, क्वारेंटाइन होटलों में पास-पास के कमरों में रह रहे लोगों के बीच लंबी दूरी के सार्स-कोव-2 संचरण के मामले दर्ज किए गए हैं जबकि वे कभी एक-दूसरे के प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं आए।
तीसरा, संभावना है कि सार्स-कोव-2 का एक-तिहाई (शायद 59 प्रतिशत तक) संक्रमण बिना खांसने या छींकने वाले (लक्षण-हीन या लक्षण-पूर्व) लोगों से हुआ है। यह सार्स-कोव-2 के फैलने का प्रमुख कारण है। यह मुख्य रूप से हवा के माध्यम से वायरस के फैलने का समर्थन करता है। प्रत्यक्ष मापन से यह पता चलता है कि मात्र बोलने से बड़ी संख्या में एयरोसोल कण उत्पन्न होते हैं जबकि ड्रॉपलेट्स की संख्या बहुत कम होती है। यह तथ्य भी हवा के माध्यम से वायरस का फैलाव दर्शाता है।
चौथा, सार्स-कोव-2 का संचरण बाहर की तुलना में घर के अंदर (इनडोर) अधिक होता है, और इसे उचित वेंटिलेशन से कम किया जा सकता है। यह तथ्य भी वायरस के हवाई मार्ग से फैलने का समर्थन करता है।
पांचवां, ऐसी परिस्थितियों में अस्पताल-जनित संक्रमण रिकॉर्ड किए गए हैं जहां ड्रॉपलेट्स से संपर्क से बचने के लिए सख्त उपाय लागू किए गए हैं। गौरतलब है कि ये उपाय एयरोसोल से बचाव करने में सक्षम नहीं होते हैं।
छठा, सक्रिय सार्स-कोव-2 हवा में पाया गया है। प्रयोगशाला में किए गए प्रयोगों से पता चला है कि सार्स-कोव-2 हवा में 3 घंटे तक संक्रामक रहता है। सक्रिय सार्स-कोव-2 वायरस कोविड-19 रोगियों के कमरों से प्राप्त हवा के नमूनों में पाया गया है जहां एयरोसोल उत्पन्न करने वाली स्वास्थ्य सेवा प्रक्रियाएं प्रयुक्त नहीं की गई थीं। संक्रमित व्यक्ति द्वारा उपयोग की गई कार से लिए गए हवा के नमूने में भी वायरस प्राप्त हुए हैं। वैसे हवा के नमूने में सक्रिय वायरस प्राप्त करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है।
सातवां, सार्स-कोव-2 वायरस कोविड-19 रोगियों का उपचार करने वाले अस्पतालों के एयर फिल्टर और विभिन्न परिवहन नलियों में भी पाए गए हैं जहां ये सिर्फ एयरोसोल के माध्यम से ही पहुंच सकते हैं।
आठवां, पिंजरे में कैद संक्रमित जीवों से संक्रमण दूसरे पिंजरों में रखे गए असंक्रमित जानवरों में भी पहुंच गया जिनके बीच संपर्क मात्र वायु नलियों के माध्यम से था। यह एयरोसोल द्वारा वायरस के संचरण का प्रमाण है।
नौवां, अब तक किसी भी अध्ययन ने सार्स-कोव-2 के हवा से फैलने की परिकल्पना का खंडन नहीं किया है। कुछ लोग अवश्य संक्रमित लोगों के साथ हवा साझा करते हुए भी सार्स-कोव-2 वायरस से बच पाए हैं। लेकिन इसकी व्याख्या कई परस्थितियों के आधार पर की जा सकती है। जैसे संक्रमित व्यक्ति द्वारा छोड़े गए वायरसों की मात्रा और विभिन्न पर्यावरणीय कारक ज़िम्मेदार हो सकते हैं।
दसवां, देखा जाए तो संक्रमण के अन्य संभावित रास्तों जैसे श्वसन ड्रॉपलेट्स या संक्रमित वस्तुओं के माध्यम से संचरण के समर्थन में प्रमाण सीमित हैं। निकट संपर्क में रहने वाले लोगों में संक्रमण के पीछे सार्स-कोव-2 वायरस की श्वसन ड्रॉपलेट्स के संचरण को कारण बताया गया है। लेकिन अधिकांश मामलों में निकट संपर्क से संचरण में संक्रमित व्यक्ति द्वारा सांस के साथ छोड़े गए एयरोसोल की अधिक संभावना प्रतीत होती है। दूर-दूर बैठे लोगों के बीच संक्रमण कम फैलने का कारण सिर्फ इतना हो सकता है कि एयरोसोल बहुत दूर तक नहीं पहुंचते।
यह धारणा गलत है कि निकट संपर्क से संक्रमण का फैलाव मात्र श्वसन की बूंदों या संक्रमित वस्तुओं के माध्यम से होता है। कई दशकों तक टीबी और खसरा के बारे में यही माना जाता था कि ये श्वसन बूंदों के माध्यम से फैलते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में यह एक रूढ़ि बन गई जिसमें एयरोसोल और ड्रॉपलेट्स के प्रत्यक्ष मापन को अनदेखा किया गया। मापन के अभाव में यह पता ही नहीं चला कि श्वसन के दौरान भारी मात्रा में एयरोसोल उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा एयरोसोल और ड्रॉपलेट्स के बीच की सीमा रेखा को मनमाने ढंग से 5 माइक्रोमीटर तय कर दिया गया जबकि यह 100 माइक्रोमीटर होनी चाहिए। कई बार यह तर्क भी दिया जाता है कि ड्रॉपलेट्स एयरोसोल की तुलना में बड़ी होती हैं इसलिए उनमें वायरसों की संख्या अधिक होगी। हालांकि, उन रोगों में जहां कण के आकार के आधार पर रोगजनकों की सांद्रता की मात्रा निर्धारित की गई है उनमें ड्रॉपलेट्स की तुलना में एयरोसोल में रोगजनकों की सांद्रता अधिक पाई गई है।
देखा जाए तो सार्स-कोव-2 के हवा से फैलने के सशक्त साक्ष्य मौजूद हैं। इसके फैलने के अन्य रास्ते भी हो सकते हैं, लेकिन हवा से फैलने की संभावना काफी अधिक है। इन संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए जन स्वास्थ्य समुदाय को बिना देर किए उसके अनुसार कार्य करना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)