गिबन छोटे शरीर और लंबी बाहों वाले, पेड़ों पर छलांग लगाने वाले कपि हैं जो उत्तरपूर्वी भारत, पूर्वी बांग्लादेश और दक्षिणपूर्वी चीन से लेकर इण्डोनेशिया के कई द्वीपों में पाए जाते हैं। लेकिन इनके उद्विकास की कहानी को समझना वैज्ञानिकों के लिए मुश्किल रहा है। अब, दक्षिण-पश्चिमी चीन के एक गांव के पास मिले एक जीवाश्म से बात कुछ पकड़ में आई है। इस जीवाश्म में ऊपरी जबड़े का हिस्सा और सात अलग-अलग दांत हैं। इससे इस पूर्व निष्कर्ष की पुष्टि हुई है कि सबसे पहले ज्ञात गिबन लगभग 70 से 80 लाख साल पहले इस इलाके में रहते थे।
चीन के कुनमिंग नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम ऑफ ज़ुऑलॉजी के पुरा-मानवविज्ञानी ज़्युपिंग जी और उनके साथियों का कहना है कि यह जीवाश्म और इस क्षेत्र व इसके पास के क्षेत्र से मिले 14 दांत युआनमोपिथेकस शाओयुआन नामक एक प्राचीन हाइलोबैटिड प्रजाति के हैं। हाइलोबैटिड्स कपियों का एक कुल है जिसमें वर्तमान गिबन्स की लगभग 20 प्रजातियां और पूर्वोत्तर भारत से इण्डोनेशिया तक के उष्णकटिबंधीय जंगलों में पाए जाने वाले सियामांग गिबन शामिल हैं।
2006 में वाई. शाओयुआन के बारे में पता चलने के बाद जी और उनके दल का मानना था कि यह एक प्राचीन गिबन है। लेकिन इसकी पुष्टि के लिए अतिरिक्त जीवाश्मों की आवश्यकता थी।
लगभग एक दशक पूर्व एक स्थानीय निवासी को वाई. शाओयुआन का ऊपरी जबड़े का हिस्सा मिला था। इस जबड़े में चार दांत और दाढ़ का कुछ हिस्सा था। इसकी मदद से शोधकर्ता यह समझ सके थे कि यह एक शिशु गिबन का जबड़ा है जो 2 वर्ष की उम्र के पूर्व ही मर गया था।
आधुनिक कपियों और प्राचीन प्राइमेट्स के जीवाश्मों की तुलना करने पर पाया गया कि वाई. शाओयुआन सबसे प्राचीन ज्ञात गिबन है। ये नतीजे दो साल पूर्व की एक रिपोर्ट को झुठलाते हैं जो कहती है कि उत्तरी भारत में हाइलोबैडिट कुल की लगभग 1.3 करोड़ वर्ष पुरानी दाढ़ मिली थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में मिला जीवाश्म कैपी रगनेगेरेंसिस प्रजाति का है जो दक्षिण एशियाई प्राइमेट्स के विलुप्त हो चुके समूह का है, और वह वर्तमान कपियों का करीबी सम्बंधी नहीं था।
वर्तमान प्राइमेट्स के पूर्व में किए गए डीएनए विश्लेषण से पता चलता है कि हाइलोबैटिड्स अफ्रीका में अन्य कपियों से लगभग 2.2 करोड़ से 1.7 करोड़ वर्ष पूर्व अलग हो गए थे। लेकिन यह अभी एक रहस्य ही है गिबन के पूर्वज युरेशिया कब पहुंचे। एशिया में वाई. शाओयुआन के साक्ष्य मिलने और अफ्रीका या उसके आसपास के क्षेत्रों में हाइलोबैडिट्स की उत्पत्ति के बीच लगभग एक करोड़ वर्ष का अंतर है।
आनुवंशिक साक्ष्य यह भी इंगित करते हैं कि वर्तमान गिबन प्रजातियों के साझा पूर्वज लगभग 80 लाख वर्ष पूर्व पृथ्वी पर रहते थे, इसी समय वाई. शाओयुआन भी पृथ्वी पर निवास करते थे। तो हो सकता है कि इसके बाद के सभी गिबन्स के पूर्वज वाई. शाओयुआन हों, या यह भी हो सकता है कि आधुनिक गिबन के पूर्वज और वाई. शाओयुआन निकट सम्बंधी हों।
जर्नल ऑफ ह्यूमन इवॉल्यूशन में शोधकर्ता बताते हैं कि दांत की चबाने वाली सतह पर बने उभार और गढ्डों के निशान और दांतों व जबड़े की अन्य विशेषताएं काफी हद तक वर्तमान गिबन की तरह हैं। इसके अलावा वाई. शाओयुआन के अश्मीभूत दांत की कुछ विशेषताएं आधुनिक गिबन के दांतों की विशेषताओं की पूर्ववर्ती लगती हैं।
दाढ़ के आकार के आधार पर शोधकर्ताओं का अनुमान है कि वाई. शाओयुआन का वज़न लगभग छह किलोग्राम था, यह भी आधुनिक गिबन्स के समान है। इनके दाढ़ की संरचना इंगित करती है कि यह भी वर्तमान गिबन की तरह मुख्यत: फल खाता था।
बहरहाल के. रगनेगेरेंसिस के विकास की कहानी अभी अस्पष्ट ही है क्योंकि इसका केवल एक ही दांत मिला है, जिसके आधार पर पुख्ता तौर पर कुछ कहना मुश्किल है। (स्रोत फीचर्स)