प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका दी प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसाइटी बी: बायोलॉजिकल साइंसेज़ का कहना है कि वह एनीमोन मछली के व्यवहार पर प्रकाशित एक शोध पत्र वापस नहीं लेगा, जबकि विश्वविद्यालय की एक लंबी जांच में यह पाया गया है कि यह मनगढ़ंत है।
डेलावेयर विश्वविद्यालय के एक स्वतंत्र खोजी पैनल ने पिछले साल एक मसौदा रिपोर्ट में कहा था कि 2016 के इस अध्ययन में विसंगतियां और दिक्कतें पाई गईं थीं। लेकिन पत्रिका ने अपने 1 फरवरी के संपादकीय नोट में कहा है कि उनकी अपनी जांच में इस अध्ययन में धोखाधड़ी के पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं, और कुछ जगहों पर लेखकों द्वारा किए गए सुधार ने शोध पत्र की प्रमुख समस्या हल कर दी है।
डीकिन युनिवर्सिटी के मत्स्य शरीर-क्रिया विज्ञानी टिमोथी क्लार्क का कहना है कि पत्रिका का यह निर्णय तकलीफदेह है। क्लार्क उस अंतर्राष्ट्रीय समूह का हिस्सा हैं जिन्होंने इस शोध पत्र में समस्याएं पाई थीं और उसके खिलाफ आवाज़ उठाई थी।
डेलावेयर विश्वविद्यालय के समुद्री पारिस्थितिकीविद डेनिएल डिक्सन और सदर्न क्रॉस युनिवर्सिटी की अन्ना स्कॉट द्वारा लिखित यह शोध पत्र वर्ष 2008 से 2018 के बीच प्रकाशित उन 22 अध्ययनों में से एक है जिन्हें क्लार्क और उनके साथियों ने फर्ज़ी बताया है। आरोप विशेषकर डिक्सन और उनके साथी फिलिप मुंडे पर हैं। लेकिन दोनों ने इस आरोप को गलत बताया है।
डेलावेयर विश्वविद्यालय के एक स्वतंत्र पैनल ने डिक्सन के काम की जांच में पाया था कि डिक्सन के कई शोध पत्रों में लगातार लापरवाही बरतने, रिकॉर्ड ठीक से न रखने, डैटा शीट में दोहराव (कॉपी-पेस्ट) करने और त्रुटियां करने का पैटर्न दिखता है। यह भी निष्कर्ष निकला था कि कई शोध पत्र में शोध कदाचार भी दिखता है। इसलिए डेलावेयर विश्वविद्यालय ने पत्रिकाओं से उनके तीन शोध पत्र वापस लेने को कहा था।
उनमें से एक 2016 में साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, जिसमें अध्ययन में लगा समय शोध पत्र में वर्णित प्रयोगों की बड़ी संख्या को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं लगता और उनके द्वारा साझा की गई एक्सेल डैटा शीट में 100 से अधिक आंकड़ों का दोहराव मिला था। इससे पता चलता है कि यह डैटा वास्तविक नहीं हो सकता। साइंस पत्रिका ने अगस्त 2022 में यह शोध पत्र वापस ले लिया था।
जांच समिति के अनुसार प्रोसीडिंग्स बी में प्रकाशित शोध पत्र भी इसी तरह की समस्याओं से ग्रस्त था। इस पेपर का निष्कर्ष है कि एनीमोन मछलियां “सूंघकर” भांप सकती हैं कि प्रवाल भित्तियां (कोरल रीफ) बदरंग हैं या स्वस्थ। उनका यह निष्कर्ष प्रयोगों की एक शृंखला पर आधारित था जिसमें मछलियों को एक प्रयोगशाला उपकरण (जिसे चॉइस फ्लूम कहा जाता है) में रखा गया था, जिसमें वे तय कर सकती थीं कि उन्हें किस दिशा में तैरना है।
ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार, डिक्सन ने 9-9 मिनट लंबे 1800 परीक्षणों से अध्ययन का डैटा एकत्रित किया था। जांच समिति का कहना है कि यदि डिक्सन ने एक ही फ्लूम इस्तेमाल किया है तो इतने परीक्षणों को पूरा करने के लिए उन्हें अविराम 12 घंटे काम करते हुए 22 दिन लगेंगे, जिसमें बीच में किसी तरह की तैयारी, उपकरणों को जमाना, सफाई, मछलियों को बाल्टी से उपकरण में स्थानांतरित करने आदि का समय शामिल नहीं है। (और इसी दौरान, डिक्सन को प्रयोग कक्ष के अंदर-बाहर 1800 लीटर समुद्री जल भी लाना ले जाना होगा।) लेकिन डिक्सन के शोध पत्र के अनुसार यह प्रयोग 12 से 24 अक्टूबर 2014 तक चला, यानी केवल 13 दिन में यह परीक्षण पूरा हो गया।
इस संदर्भ में प्रोसीडिंग्स बी के प्रधान संपादक स्पेंसर बैरेट का कहना है कि विश्वविद्यालय ने पिछले साल शोध पत्र वापसी का अनुरोध किया था लेकिन उन्होंने हमारे साथ समिति की जांच रिपोर्ट यह कहते हुए साझा नहीं की थी कि वह गोपनीय है। मैं जानना चाहता हूं कि उनके उक्त अनुरोध के पीछे सबूत क्या थे।
बैरेट आगे कहते हैं कि पत्रिका के तीन संपादकों ने स्वतंत्र विशेषज्ञों की मदद से 6 महीने में मामले की जांच की, जिसके परिणामस्वरूप 59 पन्नों की जांच रिपोर्ट तैयार हुई है। इसी बीच, स्कॉट और डिक्सन ने जुलाई 2022 में पेपर में एक सुधार किया, जिसमें उन्होंने कहा कि प्रयोग वास्तव में 5 अक्टूबर से 7 नवंबर 2014 के बीच यानी 33 दिन चला, और उन्होंने एक साथ दो फ्लूम का इस्तेमाल किया था। (डिक्सन ने अन्य अध्ययनों में भी दो फ्लूम उपयोग करने के बारे में बताया है। हालांकि विश्वविद्यालय की जांच समिति यह समझ नहीं पा रही है कि वे हर 5 सेकंड में एक साथ दो फ्लूम में मछली के व्यवहार को किस तरह देख और दर्ज कर सकते हैं।)
प्रोसीडिंग्स बी पत्रिका इन सुधारों पर विश्वास करती लग रही है। लेकिन सवाल है कि कोई 33 दिनों तक एक प्रयोग को चलाएगा और गलती से इस तरह क्यों लिख देगा कि यह 12 दिन में किया गया है।
इस पर बैरेट का कहना है कि प्रोसीडिंग्स बी के जांचकर्ताओं ने नई समयावधि की सत्यता की जांच नहीं की है। “मैं मानता हूं कि समयावधि में परिवर्तन और उपयोग किए गए फ्लूम की संख्या विचित्र है, लेकिन हमने इसे सुधार के तौर पर स्वीकार किया है।”
सुधार के आलवा डिक्सन और स्कॉट ने अध्ययन का डैटा भी अपलोड किया है, जो पहले नदारद था जबकि शोध पत्र में कहा गया था कि यह ऑनलाइन उपलब्ध है। लेकिन इस डैटा ने एक नई समस्या उठाई है। डैटा के विश्लेषण से पता चलता है कि साइंस पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र की तरह इसमें भी डैटा का दोहराव हुआ है।
जांच समिति को शिकायत है कि पत्रिका की जांच ने पेपर को स्वतंत्र ईकाई के रूप में जांचा है, जबकि साइंस पत्रिका द्वारा वापस लिए शोधपत्र में भी ऐसी ही समस्याएं थीं। इस पर बैरेट का कहना है कि पत्रिका की प्रक्रिया उन अध्ययनों की जांच करना है जिन्हें स्वयं उसने प्रकाशित किया है, अन्य पत्रिकाओं द्वारा प्रकाशित अध्ययन की जांच करना नहीं। प्रत्येक अध्ययन को स्वतंत्र मानकर काम किया जाता है।
डिक्सन ने इस संदर्भ में अभी कुछ नहीं कहा है।
समिति की मसौदा रिपोर्ट बताती है कि तीसरा समस्याग्रस्त शोध पत्र वर्ष 2014 में नेचर क्लाइमेट चेंज में मुंडे, डिक्सन और साथियों द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र है। जिसमें इसी तरह की समस्याएं दिखती हैं। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि वर्तमान में नेचर क्लाइमेट चेंज इस पेपर की जांच कर रहा है या नहीं। (स्रोत फीचर्स)