साल 2011 में स्टेम सेल चिकित्सक पाओलो मैककिएरिनी तब सुर्खियों में छा गए थे, जब उन्होंने दुनिया का पहला कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण कर लिया था। उन्होंने प्लास्टिक की श्वास नली पर उसी मरीज़ की स्टेम कोशिकाओं का अस्तर बनाकर प्रत्यारोपित किया था। उम्मीद थी कि ये स्टेम कोशिकाएं धीरे-धीरे श्वास नलिका बन जाएंगी।
अब वे दोबारा सुर्खियों में हैं। लेकिन इस बार वजह है तीन मरीज़ों में असफल उपचार के मामले में दोषी पाया जाना। मैककिएरिनी को हाल ही में स्टॉकहोम की अपील कोर्ट ने तीन लोगों के असफल उपचार के मामले में दोषी ठहराया है और उन्हें ढाई साल की सज़ा सुनाई है। इसके पहले यह मुकदमा स्वीडन की ज़िला अदालत में चला था, जिसने मैककिएरिनी को दो मरीज़ों के असफल उपचार के मामले में बरी कर दिया था और एक मामले में दोषी पाते हुए निलंबन की सजा सुनाई थी। इसके बाद दोनों ही पक्षों ने अपील कोर्ट में मुकदमा दायर किया था; अभियोजन पक्ष ने सज़ा बढ़ाने की मांग की थी जबकि मैककिएरिनी इल्ज़ाम से मुक्त होना चाहते थे।
मामला 2011-2012 का है जब मैककिएरिनी ने केरोलिंस्का इंस्टीट्यूट में काम रहते हुए तीन मरीज़ों की सर्जरी की थी। उन्होंने स्वयं मरीज़ों की अस्थि मज्जा से स्टेम कोशिकाएं लेकर उन्हें कृत्रिम विंडपाइप पर बिछाया और उन्हें मरीज़ों में प्रत्यारोपित किया था, इस उम्मीद से कि समय के साथ ये स्टेम कोशिकाएं वृद्धि करके स्थायी उपचार देंगी। 
लेकिन प्रत्यारोपण विफल हो गया और तीनों मरीज़ों की मृत्यु हो गई। एक मरीज़ की मृत्यु भारी रक्तस्राव के चलते 4 महीने के भीतर हो गई थी। दो अन्य मरीज़ तकरीबन ढाई साल और पांच साल तक जीवित रहे थे, लेकिन इस दौरान उन्होंने सर्जरी के कारण कई तकलीफें झेली थीं।
गौरतलब है कि 2011 से 2014 के बीच मैककिएरिनी ने श्वासनली के 8 प्रत्यारोपण किए थे। जिनमें से तीन केरोलिंस्का इंस्टीट्यूट में किए गए थे, जिन पर उक्त फैसला आया है। इसके बाद 2013 में केरोलिंस्का इंस्टीट्यूट ने मैककिएरिनी की सेवाएं समाप्त कर दी थीं। बाकी 5 प्रत्यारोपण रूस में किए गए थे। इनमें से एक भी प्रत्यारोपण सफल नहीं रहा था। यहां तक कि प्रत्यारोपण का पहला मामला जिसके लिए मैककिएरिनी ने सुर्खियां बटोरी थीं, वह भी सफल नहीं रहा था। हालांकि उन्होंने अपने पेपर में मरीज़ की स्थिति सामान्य बताई थी लेकिन लेंसेट में पेपर के प्रकाशित होने तक उसकी मृत्यु हो गई थी।
अपील कोर्ट के न्यायाधीशों ने ज़िला अदालत के फैसले से असहमति जताते हुए कहा है कि पहले दो मरीज़ों का मामला ‘इमरजेंसी केस’ नहीं था। ये दोनों मरीज़ सर्जरी के बिना भी काफी समय तक जीवित रह सकते थे। हां, तीसरा मामला ‘इमरजेंसी केस’ था, लेकिन इसके आधार पर मैककिएरिनी द्वारा दिए गए उपचार को सही नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उपचार के समय तक मैककिएरिनी इस उपचार की समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ हो चुके थे, फिर भी उन्होंने उपचार किया। (इस उपचार से एक मरीज़ की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी और दूसरा मरीज़ गंभीर समस्याओं से जूझ रहा था।)
इसलिए कोर्ट ने इसे मैककिएरिनी के ‘आपराधिक इरादे’ की तरह देखा है। कई सर्जन्स और श्वासनली विशेषज्ञों को अदालत का फैसला तर्कसंगत और उचित लगता है। उनका मत है कि मैककिएरिनी जानते थे कि यदि एक बार मरीज़ की अपनी श्वासनली निकल गई और कृत्रिम नली ठीक से प्रत्यारोपित नहीं हुई तो मरीज़ की मृत्यु तय है। और जिस तकनीक से उन्होंने उपचार किया है उसके सफल होने के मैककिएरिनी के पास कोई सबूत नहीं थे, सिवाय उम्मीद के। अभियोजन पक्ष ने भी फैसले पर संतुष्ट जताई है।
मैककिएरिनी के वकील का कहना है कि वे इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे। उनके अनुसार तीनों ही मामले ‘इमरजेंसी केस’ थे। मैककिएरिनी का यह भी कहना है कि उनका इरादा मरीज़ों को नुकसान पहुंचाने का नहीं था बल्कि मदद करने का था। मरीज़ों के पास किसी अन्य उपचार का विकल्प भी नहीं था। ये प्रत्यारोपण यूं ही आनन-फानन में या चुपके से नहीं किए गए थे बल्कि सहकर्मियों और निरीक्षकों से मंज़ूरी ली गई थी। 20-25 लोगों की टीम ने मिलकर सर्जरी की थी। इसलिए सिर्फ मुझ पर आरोप क्यों? उनका कहना है कि एक डॉक्टर पर अपराधिक इरादे का ठप्पा लगना उसके लिए सबसे शर्मनाक बात है। अब तो उच्च न्यायालय के फैसले का इन्तज़ार है। (स्रोत फीचर्स)