धबुक . . . और एक नली के खुले सिरे में से खून निकलकर शरीर के अंगों के बीच की खाली जगह में गिर जाता है। गिरकर फैलता हुआ खून सब अंगों को सरोबार करता हुआ धीरे-धीरे रिसता है और शरीर के पिछले हिस्से में इकट्ठा होता रहता है. . . विश्वास नहीं होता परन्तु यह सचमुच में मात्रा वर्णन है एक जीव के परिसंचरण तंत्र का। खुद में हम सब इतना डूबे रहते हैं कि खबर ही नहीं रहती कि आपने आसपास की दुनिया इतनी फर्क हो सकती है।

ये जीव हैं कीट समुदाय के - कॉकरोच, मच्छर, टिड्डे, झींगुर वगैरह वगैरह। हम इंसानों की तरह इनका खून नसों में नहीं बहता बल्कि शरीर में यूं ही भरा रहता है - अंदर के तमाम अंगों को सरोबार किए।

हर कोशिका तक ऑक्सीजन पहुंचने की ज़िम्मेदारी कीट के खून की नहीं होती; उसका तो काम है सिर्फ पचे हुए भोजन को ले जाना। इन खून को शरीर में आगे पीछे करने के लिए कीट शरीर के ऊपरी हिस्से में एक नलीनुमा रचना होती है। यही इसका दिल है - अब सोचिए कहां हमारा दिल और कैसा कीट का दिल!

इस नली के पीछक के हिस्से में कुछ छेदनुमा रचनाएं होती हैं, जिनमें वॉल्व लगे होते हैं। यही वॉल्व इस नलीनुमा रचना के अंदर खून को गति देने का काम करते हैं। यह नली लगातार सिकुड़ती फैलती रहती है। जब यह फैलती है तो खून पीछे बने छेदों से होकर इसमें घुस आता है। और जब ये सिकुड़ती है तो आगे की नलीनुमा रचनाओं से बाहर निकल जाता है। कॉकरोच में ये नलियां स्पष्ट दिख रही हैं। इनमें इस ह्यदय का यही काम है - खून को आगे पीछे करना।

अब कोई नस तो है नहीं इसलिए खून नली से बाहर निकलने के बाद शरीर के अंदर अंगों के बीच पड़ी खाली जगह में भर जाता है - अंगों को नहलाते हुए। और इस तरह शरीर की हर कोशिका तक पहुंच जाता है उसे भोजन पहुंचाने के लिए।

इस तरह का रक् त परिसंचरण तंत्र पद्धति (Circulatory System) कहलाती है, क्योंकि इसमें खून को दिल तक लाने ले जाने के लिए नसें आदि नहीं होतीं। इसीलिए बंद पद्धति वाले हम जैसे जीवों के मुकाबले इनमें खून के प्रवाह की गति भी धीमी होती है।