हमारे शिक्षा तंत्र  में सामाजिक द्वन्द्व को स्वीकार करने में बड़ी हिचकिचाहट व्याप्त है। यह भी आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता कि चलिए सामयिक उदाहरणों को शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका के चलते पढ़ाई में ज़्यादा तूल न दी जाए तो कम-से-कम ऐसे मामले जिनका कोई तात्कालिक महत्व नहीं है वे तो पाठ्यक्रम में उठाए जा सकते हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण होगा ऐसी ऐतिहासिक घटना जो सामाजिक द्वन्द्व की पैदाईश हो और आज भी बच्चों की उत्सुकता और जिज्ञासा की पात्र हो। हाल ही घटना न होकर पुरानी होने के कारण इसका विस्तृत और निष्पक्ष अध्ययन किया जा सकता है। महात्मा गांधी की हत्या एक ऐसी घटना है। इस तरह के अध्ययन के लिए शायद ही इससे बेहतर कोई उदाहरण अपने इतिहास से हमें मिले।

ऐसी शायद ही और कोई घटना होगी जिसके बारे में बच्चों की जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से जागृत होगी और वे उसकी तह तक जाना चाहेंगे। भारतीय इतिहास में गांधीजी की वृहद भूमिका और अहिंसा के सिद्धांत के अनुसार व्यवहार को देखते हुए एक हत्यारे के हाथों मारे जाने की बात बच्चों के लिए एक पहेली बन जाती है। बच्चे यह जानने को उत्सुक होते हैं कि एक ऐसा महान भारतीय जिसने शांति और प्रेम का संदेश दिया, उसे गोली से क्यों  मारा गया।

शैक्षणिक दृष्टि से यह घटना ऐतिहासिक अध्ययन के लिए काफी उपयुक्त लगती है। गांधीजी की हत्या से संबंधित बच्चों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए हमारे बच्चों को अपनी पाठ्य-पुस्तकों को क्या मदद मिलती है, देखते हैं।

"भारत के स्वतंत्र होने के कुछ ही दिनों बाद भारतीय जनता को एक महान विपत्ति का सामना करना पड़ा। गांधीजी ने भारतीय जनता की जागृति में महान भूमिका अदा की थी। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में भारतीय जनता का अनेक सालों तक नेतृत्व किया था। वे आधुनिक भारत के महानतम मानव थे और मानवता के इतिहास के एक श्रेष्ठत पुरुष थे।" उनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में भारत ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी और अंत में आज़ादी प्राप्त की। इसीलिए उन्हें राष्ट्रपिता माना जाता है। जिन कार्यो के लिए उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया था उनमें से एक प्रमुख था हिन्दु-मुस्लिम एकता का कार्य। जब सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे तो उन्होंने दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया और शांति तथा सांप्रदायिक मैत्री स्थापित करने के लिए प्रेम तथा बंधुत्व का उपदेश दिया। जिस दिन भारत स्वतंत्र हुआ उस दिन गांधीजी कलकत्ता के दंगों से प्रभावित क्षेत्र में थे। हिन्दुओं तथा मुसलमानों की हत्याओं में और देश विभाजन से उन्हें बेहद पीड़ा हुई थी। कुछ लोग प्रेम और बंधुभाव के उनके संदेश को पसंद नहीं करते थे। दूसरे समुदायों के प्रति उनके दिमागों में नफरत का ज़हर भरा था। 30 जनवरी, 1948 ई. को एक हिन्दू धर्मांध ने गांधीजी को, जब वे प्रार्थना सभा में जा रहे थे, गोली मार दी। भारतीय विग साल में हुई सांप्रदायिक हत्याओं तथा विनाश के आघात से जैसे-तैसे अपने को संभालने का प्रयास कर रही थी, पुन: गहन शोक में डूब गई। जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि, “हमारे जीवन से प्रकाश गायब हो गया है।"  गांजीजी कलह से भरे विश्व में प्रेरणा के रुाोत और प्रकाश स्तंभ थे। वे सारे संसार में महात्मा के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने हर व्यक्ति के आंसू पोंछने  और हर जगह से दुख दूर करने के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया था। उनके सपने को पूरा करना हम सबका कत्र्तव्य है।

(एन.सी.आर.टी. की कक्षा-8 की किताब से लिया गया गांधीजी की हत्या संबंधित अंश, पृष्ठ 272-73)

पहली बात तो यह है कि जिस ‘महान विपत्ति’ को शुरूआत में इंगित किया गया उसकी चर्चा इस अंश के मध्य तक नहीं होती है। इस बीच हमें गांधी जी की महानता, राष्ट्रीय आंदोलन के संदर्भ में और फिर संपूर्ण मानवता के संदर्भ में बताई जाती है। फिर दंगों के कारण गांधी जी के दुखी होने की बात कही गई है। . . .

. . .  इस अंश में विशेष प्रयास किया गया है कि पाठक यह सरल बात न पकड़ पाए कि सांप्रदायिक दंगों में आम लोग खुद एक दूसरे को मारने पर तुल जाते हैं। बल्कि यह आभास दिलाने का प्रयास है कि किसी अज्ञात तीसरी ताकत ने हिन्दुओं व मुसलमानों में कत्लेआम मचाया। 30 जनवरी की घटना के ज़िक्र से ठीक पहले वाले वाक्य में ‘कुछ लोगों’ - जिन्हें गांधीजी के प्रेम और बंधुत्व की की बात पसंद नहीं थी - की बात की गई है। हमें यह नहीं बताया जाता है कि ये कौन लोग थे। हमें यह भी नहीं बताया जाता है कि ये ‘कुछ’ क्यों थे, ‘बहुत’ क्यों नहीं थे।

लेकिन इन सब बातों से अगले वाक्य में दी गई जानकारी को समझने में कोई मदद नहीं मिलती है। जानकारी यह कि एक हिन्दू धर्मांध ने गांधीजी की हत्या कर दी। अभी उभारे गए तर्क से दो सवाल खड़े हो जाते हैं:

पहला, ऐसा क्यों हुआ कि आदमी ने, जो उन ‘कुछ लोगों’ में से था जो ‘दूसरे’ समुदायों के प्रति घृणा करते थे, अपने ही समुदाय के गांधी जी को मार दिया?

दूसरा , गांधी जी ने ऐसा क्या किया कि उनके अपने समुदाय का व्यक्ति उनसे इतनी घृणा करे?  प्रस्तुत अंश से पाठक को केवल यह जानकारी मिलती है कि गांधी जी ‘प्रेम और बंधुत्व’ का प्रचार कर रहे थे और और उन्हें मारने वाला हिन्दू आदमी एक ‘धर्मांध’ था। ‘धर्मांध’ का क्या अर्थ हो सकता है, यह भी स्पष्ट नहीं किया जाता। . . .

. . . यहां तक पहुंचते-पहुंचते एक और महत्वपूर्ण सवाल उठ खड़ा होता है। गांधीजी अपने पूरे राजनैतिक जीवन के दौरान प्रेम और बंधुत्व का प्रचार करते रहे थे, लेकिन उस समय ऐसी खास क्या परिस्थति थी कि इस संदेश ने किसी को इस हद तक गुस्सा दिलाया कि उसने गांधीजी का हत्या कर दी? शायद इस प्रश्न का जवाब विभाजन के माहौलल में ढूंढा जा सकता है, लेकिन प्रस्तुत अंश इस दिशा में इशारा भी नहीं करता। . . . इसी अध्याय में पहले बताया जाता है कि विभाजन ‘साप्रंदायिक समस्याओं’ का नतीजा था। गांधीजी की हत्या के वर्णन से भी लगता है कि इस दुखद घटना के पीछे भी सांप्रदायिक समस्या थी। इससे तक तार्किक निष्कर्ष निकलता है कि गांधीजी का हत्यारा विभाजन के पक्ष में रहा होगा। तो सवाल उठता है कि उसने विभाजन होने के बाद गांधीजी को क्यों मारा? इस अंश में उभारी गई और दर किनार की गई बातों से इस तरह के कई सवाल स्वाभाविक रूप से उठते हैं। लेकिन पाठ में इन्हें संबोधित करने का कोई प्रयास नहीं दिखता। दरअसल हत्या की जानकारी के बाद हमें नेहरू की प्रतिक्रियाओं के बारे में बताया जाता है, और एक बार फिर गांधीजी का गुणगान। लेकिन अब सांप्रदायिक के मसले से हटकर, चर्चा हर व्यक्ति के दुख दूर करने की ओर मुड़ जाती है। इस तरह पाठक के ध्यान को गांजी जी की निर्मम हत्या के सवालों से हटाकर दूर ले जाने का प्रयास है।.....

इस अंश के संदर्भ में मैंने अभी तक संप्रेषण की उन समस्याओं का विश्लेषण किया जो शब्द चयन (Vocabulary), व्याकरण और तर्क के ढांचे से उत्पन्न होती हैं। इनके साथ-साथ हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि संप्रेषण की कुछ समस्याएं प्राथमिक स्तर के इतिहास पाठ्यक्रम की ढांचागत विशेषताओं से संबंधित हैं।

इन विशेषताओं के कारण . . . जरूरी हो जाता है कि इतिहास की पाठ्य-पुस्तक बारीकियों में न उलझकर धाराप्रवाह बहे। पाठ्यक्रम निर्धारित कर देता है कि पाठ्य-पुस्तक सारी घटनाओं को एक-सी जगह दे - न कि कुछ को अधिक महत्व दे। पाठ्यक्रम का उद्देश्य है। किसी काल के बारे में बुनियादी जानकारी देना, न कि महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत जानकारी के आधार पर विवेचना करना। इस पाठ्यक्रम के उद्देश्यों के अनुसार गांधी जी की हत्या राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित असंख्य घटनाओं में महज़ एक और घटना है।

. . . शायद यह कहा जा सकता है कि तेरह साल के बच्चे ऐसी घटनाओं को ग्रहण नहीं कर पाएंगे, और उनके मन में ऐसी घटनाओं को समझने के लिए ज़रूरी संबंधित अवधारणाएं पूर्णत: विकसित नहीं होती हैं। यह कथन काफी विडंबना पूर्ण है क्योंकि उद्धृत अंश में ऐसी कठिन अवधारणाओं का उपयोग है, जैसे - लोगों का जागरण, सांप्रदायिक दंगे, जुल्म, धर्मांधता आदि। शायद यह अपेक्षा ही नहीं है कि बच्चे ऐसी अवधारणाओं को समझते हुए पढ़े।

गांजी जी की हत्या के कारण खोजने चलें तो हम पाएंगे कि यह घटना हमारे समाज के एक बहुत गहरे द्वन्द्व से संबंधित है। हिन्दुओं ओर मुसलमानों के बीच द्वन्द्व। इस पाठ्य-पुस्तक में गांधी जी की हत्या के अधकचरे प्रस्तुतिकरण के पीछे शायद यही मुख्य कारण है।

हमारे इतिहास में गांधीजी की मृत्यु इस द्वन्द्व से उभरने के प्रयास का प्रतीक है। लेकिन चूंकि हमारा शिक्षा तंत्र संघर्ष के अस्तित्व को ही छुपाने में लगा हुआ है, हमारे बच्चे गांधीजी की शहादत के इस प्रतीतकात्मक महत्व को समझने से वंचित रह जाते हैं। हिन्दु-मुस्लिम द्वन्द्व के अस्तित्व को न स्वीकारने की नीति के कारण, इस द्वन्द्व से उपजी किसी भी घटना के विश्लेषण से बचा जाता है।. . .

अगर पाठ्य-पुस्तक सामग्री का उद्देश्य बच्चों को गांधी जी की हत्या की बात और उसके महत्व को बताना था तो हिन्दू मुस्लिम द्वन्द्व, विभाजन की राजनीति हिन्दूवादी संगठनों की राजनीति और अपने अंतिम दिनों में गांधी जी की निराशाएं - इन सबकी बारीकियों में जाना ज़रूरी हो जाता है।

क्या हम इन मुद् दों पर चर्चा आगे बढ़ा सकते हैं? आपके अपने अनुभव, मत और अहसास क्या कहते हैं? सामग्री के और भी कई प्रयोग हुए हैं, उनका रुख क्या रहा है?

उम्मीद है कि आप इन महत्वपूर्ण और संवेदनशील मसलों पर अपने मत और अनुभव लिखकर चर्चा आगे बढ़ाएंगे।

संपादक मंडल