अमिताभ मुखर्जी

ज़रूरी नहीं कि प्रयोग करने के लिए हमेशा प्रयोगशाला में जाने का इंतज़ार किया जाए। अगर कोशिश की जाए तो यहां वहां पड़ी चीज़ों से भी अच्छे प्रयोग बनाए और किए जा सकते हैं, उनके पीछे छिपे विज्ञान के तथ्यों को खोजा जा  सकता हैं, और इस दिशा में शुरुआत इन कुछ प्रयोगों से कर सकते हैं।

विज्ञान के कई ऐसे प्रयोग हैं जो घर पर मिलने वाली चीज़ों से या आसानी से उपलब्ध सामान से किए जा सकते हैं। हां, यह ज़रूर है कि इन प्रयोगों के परिणाम कभी-कभी किताबों के अनुरूप नहीं होते। फिर भी इन प्रयोगों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। अपेक्षित परिणामों में भी अक्सर कुछ मज़ेदार बातें छिपी होती हैं। और इसमें कोई शक नहीं कि इनको करने में बहुत मज़ा आता है। यहां मैंने भौतिकी और रसायन से जुड़े कुछ ऐसे प्रयोगों के बारे में लिखा है जो मैंने खुद करके देखे हैं।

चुम्बक के खेल

किताबों में छड़ चुम्बकों से किए जाने वाले प्रयोगों के बारे में काफी कुछ लिखा होता है। होशंगाबाद विज्ञान में छड़ चुम्बकों से कई प्रयोग भी किए जाते हैं। मुझे बचपन में एक नाल चुम्बक मिला था। उसके साथ एक साधारण लोहे का आयताकार टुकड़ा था, जो दोनों ध्रुवों पर पुल बांधकर बैठ सकता था (चित्र-1)।
जब चुम्बक को लोहे के बुरादे के पास ले जाते तो बुरादा उस पर चिपक जाता। ध्रुवों पर लोहे का पुल लगाने से बुरादा बहुत कम चिपकता1 एक कागज़ पर थोड़ा-सा बुरादा रख कर उसके नीचे (चित्र-4) की तरह चुम्बक को पकड़ा और उंगली से कागज़ को हल्के-हल्के ठोका तो बुरादे से एक सुन्दर आकृति बन गई।

यह आकृति चुम्बक के प्रभाव क्षेत्र को या चुम्बकीय क्षेत्र को दर्शाती है।

वैसे एक मज़ेदार बात और हुई। जब लोहे के टुकड़े को चुम्बक के ध्रुवों पर पुल की तरह लगाया तो उसमें बुरादा नहीं चिपक रहा था। लेकिन चित्र-5 की तरह लगाने पर उसके सिरे पर ज़्यादा बुरादा चिपका।
ऐसा क्यों हुआ?

साबुन बनाना

किसी ने मुझे थोड़ा-सा कॉस्टिक सोड़ा दिया था। मैंने पढ़ा था कि तेल और कॉस्टिक सोड़ा की क्रिया से साबुन बनता है।

तेल +  कास्टिक सोड़ा → साबुन + ग्लिसरीन

मैंने एक कटोरी में थोड़ा-सा मीठा तेल लिया। उसमें बहुत ध्यान से कॉस्टिक सोड़ा के कुछ रवे डाले (क्योंकि यह एक खतरनाक रसायन है)। थोड़ी ही देर में धुनी हुई रूई की तरह साबुन बनता दिखाई दिया। मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि साबुन बनने के अलावा एक और क्रिया हो रही थी - छोटे-छोटे बुलबुले बन रहे थे। जिनके बारे  में किताब में कुछ नहीं था। वहां एक रसायनविद् मौजूद थे। उन्होंने इस रहस्य का समाधान किया। कटोरी एल्यूमिनियम की थी, और कॉस्टिक सोड़ा की एल्यूमिनियम से सीधी क्रिया होती है जिसमें हाइड्रोजन निकलती है। तो ये बुलबुले हाइड्रोजन के थे। जल्दी से प्रयोग को रोका, पर तब तक कटोरी में छेद हो चुका था।

इस प्रयोग को अगर घर पर करना चाहें तो कुछ सावधानियां बरतें:

- कॉस्टिक सोड़ा को हमेशा कांच की बोतल में रखें। इस को हाथ से न छुंए। इसे इस्तेमाल करते हुए थोड़ी-सी सावधानी बरतना अच्छा है।
- तेल ज़्यादा और कॉस्टिक सोड़ा कम लें, ताकि साबुन बनने के बाद ज़रा भी सोड़ा न बचे। इससे साबुन अति-क्षारीय नहीं होगा, और आप उसको इस्तेमाल कर सकते हैं।
- एल्यूमिनियम की कटोरी में प्रयोग न करें! कांच या चीनी का बरतन ठीक रहेगा।

पानी का विद्युत अपघटन

पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है। विद्युत अपघटन से इन तत्वों को अलग किया जा सकता है, ऐसा किताबों में लिखा मिलता है। लेकिन पानी विद्युत का कुचालक है। अत: इसमें विद्युत धारा बहाने के लिए पहले इसको चालक बनाना होगा।

पानी में अम्ल (जैसे नींबू का रस) या क्षार (जैसे कॉस्टिक सोड़ा) डालने से यह चालक बन जाता है। लेकिन घर में करने के लिए सबसे आसान तरीका है इसमें नमक डालना।

मैंने एक गिलास पानी में थोड़ा-सा नमक घोला। फिर एक सेल के दोनों छोरों से तार जोड़कर तारों के सिरे नमक के घोल में डुबो दिए। (चिद्ध-6क) कुछ नहीं हुआ। फिर याद आया,
किताब में पढ़ा था कि पानी के विद्युत अपघटन के लिए कम-से-कम 2.2 वोल्ट जाहिए। जबकि एक सेल केवल 1.5 वोल्ट देता है। इसलिए कम से कम दो सेल जोड़ने होंगे। मैंने दो सेल लगाए (चित्र-6ख)। लम्बे इंतज़ार के बाद लगा कि कोई क्रिया हो रही है। दो-तीन बुलबुले निकले।

क्रिया इतनी धीमी क्यों थी? मुझे लगा कि इसके तीन कारण हो सकते हैं। एक तो सेल पुराने हो चुके थे, शायद 1.5 वोल्ट से कम दे रहे थे। अत: मैंने तीन सेल लगाए। दूसरा संभव कारण था कि चुटकी भर नमक से शायद पानी में चालकत्व कुछ कम आया था। इसलिए मैंने थोड़ा-सा नमक और डाल दिया। इन दोनों परिवर्तनों के बावजूद क्रिया बहुत तेज़ नहीं हुई। इससे लगा कि एक तीसरा कारण भी हो सकता है। जिन तारों के सिरे मैंने घोल में डुबोए थे, उनका बाहरी क्षेत्रफल बहुत कम था। दो-तीन बुलबुले सिरे से लगे रहते तो तार का पानी से संपर्क टूट जाता और परिपथ अधूरा रह जाता।

क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए मैंने दो ब्लेड इस्तेमाल किए (चित्र-7क)। तार के प्लास्टिक को छील कर करीब सात-आठ सेंटीमीटर निकाल दिया। तार के नंगे सिरे को ब्लेड पर अच्छी तरह लपेट दिया (चित्र-7ख)। यही प्रक्रिया दूसरे तार के साथ दोहराई।

अब प्रयोग बहुत अच्छी तरह चला। दोनों ब्लेड पर काफी तेज़ी से बुलबुले बनते दिखाई दिए। एक पर हाइड्रोजन के बुलबुले थे, दूसरे पर ऑक्सीजन के।

किताबों में लिखा होता है कि सेल के धन सिरे से जुड़े हुए तार पर ऑक्सीजन बनती है। इस बात को कैसे जांचे? ज़रा सोचिए।

इस प्रयोग से जुड़े हुए कई प्रयोग हैं जो घर पर किए जा सकते हैं, जैसे वैद्युतिक कलई या इलेक्ट्रोप्लेंटिंग।

लेंस से कागज़ जलाना

एक लेंस से कई प्रयोग किए जा सकते हैं। सबसे आसान है उसके सहारे किसी सतह पर सूर्य की किरणों को केन्द्रित करना।

किरणों के केन्द्रित होने से सतह पर बहुत छोटा-सा सूर्य का बिम्ब दिखाई देता है। इससे, एक छोटे-से हिस्से पर केंद्रित की गई ऊष्मा से कागज़ जला सकते हैं ऐसा किताबों में लिखा होता है।

जब मैने एक सफेद कागज़ पर लेंस से सूर्य की किरणों को केन्द्रित किया तो कुछ नहीं हुआ। हाथ से परखा तो बहुत गर्म पाया। (सावधान! इससे हाथ पर छाले पड़ सकते हैं)। जब इसी प्रयोग को अखबार के टुकड़े से दोहराया तो वह सुलग उठा हालांकि थोड़ी देर इन्तज़ार करना पड़ा। मैंने ध्यान से देखा तो लगा कि आम स्याही-वाले हिस्से में लगी थी।
क्या स्याही वाजा कागज़ ज़्यादा आसानी से जलता है? क्या यह स्याही का गुण है या काले रंग का? मैंने काले कागज़ से प्रयोग किया, उसमें काफी जल्दी आग लगी। फिर मैंने सफेद कागज़ का थोड़ा-सा हिस्सा साधारण पेंसिल से काला किया। जब किरणों को काले अंश पर केन्द्रित किया तो वह थोड़ी देर बाद सुलगने लगा।

अगर आप इस प्रयोग को दोहराना चाहते हैं तो इसको खुली जगह पर करें, ताकि जलते हुए कागज़ से कोई खतरा न हो। लेंस द्वारा केन्द्रित किरणों को शरीर के किसी भी अंश पर डालना खतरनाक है। इसकी गर्मी को परखना चाहें तो सावधानी से हाथ पर डाल सकते हैं, पर एक सेकेंड से ज़्यादा नहीं।

इन प्रश्नों के उत्तर खोजने की कोशिश कीजिए।

- लाल, नीले या दूसरे रंग का कागज़ कितनी आसानी से जलता है?
- क्या मोटे और पतले कागज़ में कोई फर्क है?
- कागज़ को सपाट रखने से वह जल्दी जलता है या फिर उसकी पुड़िया बनाने से?

मोमबत्ती की लौ

पाठ्यपुस्तकों में मोमबत्ती की लौ का कुछ ऐसा चित्र मिलता है:

सुना है कि बाहरी अदृश्य हिस्से में तापमान सबसे ज़्यादा होता है।

मैंने एक बुझी हुई माचिस की तीली को लौ के ऊपर रखा (चित्र-10क)। ऐसा लग रहा था कि तीली से एक या डेढ़ सेन्टीमीटर नीचे लौ खत्म हो गई है। लेकिन तीली बहुत जल्दी सुलग उठी। इससे ज़ाहिर हुआ कि पीली लौ को घेरे हुए लौ का एक अदृश्य हिस्सा है जो बहुत गर्म है। जब मैंने तीली को नीचे से लौ के अन्दर के काले हिस्से में डाला (चित्र-10ख), तब वह बहुत देर बाद जली। और उसका सिरा नहीं जला। इससे लगा कि लौ के काले हिस्से का तापमान बहुत ज़्यादा नहीं है।

एक किताब में मुझे एक प्रयोग का विवरण मिला था जिसके लिए कांच की नली की आवश्यकता थी। मेरे पास कांच की नली तो थी नहीं, इसलिए मैंने सोड़ा पीने के नली (स्ट्रॉ) से यह प्रयोग किया।

मैंने लौ के काले अंश में नली का एक सिरा डाला (चित्र-11) और ध्यान से देखा कि दूसरी तरफ क्या हो रहा है। नली में धुएं जैसा कुछ निकलता दिखाई दिया। नली के दूसरे छोर पर जलती हुई माचिस की तीली लगाई तो वहां भी एक छोटी-सी लौ बन कर जलने लगी। इससे ज़ाहिर हुआ कि धुएं जैसी चीज़ ज्वलनशील थी। शायद वह मोम का ही वाष्पित रूप था।

मैंने यह प्रयोग लौ के पीले अंश के साथ किया। इस बार भी लगा कि धुएं जैसा कुछ निकल रहा है। लेकिन पहले से कुछ कम। इस धुएं को जलाने की कोशिश की, पर वह नहीं जला।

अन्त में मैंने नली को लौ के अदृश्य हिस्से में डाला, यानी पीले अंश के एक या डेढ़ सेन्टीमीटर ऊपर। नली के दूसरे छोर से कुछ निकला कि नहीं, यह कहना मुश्किल है; मुझे दिखाई तो नहीं दिया। गौर से देखने की कोशिश भी की लेकिन इतने में नली ही जलने लगी। वह नली कागज़ की थी।

आजकल ज़्यादातर प्लास्टिक  की नलियां मिलती हैं। मालूम नहीं इनसे यह प्रयोग कैसा होगा।

अगर आप इस प्रयोग को घर पर करना चाहते हैं तो इन बातों पर ध्यान दीजिए:

- क्या आप की मोमबत्ती की लौ में नीला अंश दिखाई देता है? यदि हां, तो उसके साथ भी यह प्रयोग दोहराइए।
- धुएं जैसी चीज़ लौ में से ही निकल रही है, नली में कोई क्रिया नहीं हो रही, यह पक्का कैसे करेंगे? अगर दो अलग-अलग किस्म की नलियां मिलें, तो बहुत अच्छा होगा।
- नली बाहर वाले मुंह को ऊपर-नीचे करने से कोई अंतर पड़ता है?
- नली के मुंह को एक चम्मच से ढक दीजिए। चम्मच सूखा होना चाहिए, पर गर्म नहीं। कुछ सेकेण्ड रखने के बाद चम्मच की सतह को गौर से देखिए। कुछ दिखाई दिया?

आशा है कि आप भी इन में से कुछ प्रयोगों को घर पर करने का आनन्द ले पाएंगे। हो सकता है कि आपके अवलोकन मुझसे अलग हों, क्योंकि हमारी सामग्री और उपकरण एक जैसे नहीं होगें। अगर आपको कोई नई या अनपेक्षित बात दिखाई देती है, तो ज़रूर हमें लिख भेजिए।


(अमिताभ मुखर्जी - दिल्ली विश्वविद्यालय के भौतिक शास्त्र विभाग में पढ़ाते हैं।)

ज़रा सिर तो खुजलाइए

तस्वीर में दिखाए मुताबिक थर्मामीटर को चल रहे पंखे के सामने रखा और उसका तापमान नोट किया। फिर उसी थार्मामीटर को उस चलते हुए पंखे के पीछे रखा और उसका तापमान लिख लिया।

आपको बताना है कि कौन-सी स्थिति में तापमान कम या ज़्यादा होगा या दोनों अवलोकन बराबर होंगे। जवाब के साथ अपना तर्क ज़रूर लिखिए।