बच्चे भ्रम में भी पड़ जाते हैं कि “अरे! यह कैसे हो गया?' हालांकि हमें लगता है कि बच्चे भ्रम की स्थिति में भी सीखते हैं। अपना तर्क रखने की कोशिश करते हैं। यह जरूरी इसलिए भी है क्योंकि हम मानते हैं कि बच्चा बहुत तर्कशील व कल्पनाशील होता है। लेकिन इस बात की स्पष्टता होनी चाहिए कि कथा आखिर बताना क्या चाह रही है? इसे क्यों गढ़ा गया है? क्या विरोधाभास ऐसे हैं कि बच्चा अपना तर्क रख पाएगा? यह ज़रूरी होता है कि कथा इस तरह से रची गई हो कि बच्चा अपना तर्क रख पाए या कथा में उसे तर्क रखने में मदद मिले।
जब बच्चों को हम स्वतंत्र रूप से सोचने वाला बनाना चाहते हैं तो हमें उनकी सामग्री पर भी काफी ध्यान रखना होगा। नहीं तो बच्चों में भी एक तरह की चीज़ों की छवि' सी बन जाती है जो बाद में उनके लेखन व सोच में व्याप्त रहती है। इसलिए हम कहते हैं कि बच्चों के लिए विभिन्न तरह की सामग्री तो उपलब्ध हो, लेकिन बच्चों को ध्यान में रखते हुए।
इस बात को कहने में कोई हर्ज नहीं कि बच्चों के शुरुआती स्कूली दिनों में भाषा विकास के लिए इनका उपयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे हमें अपने शिक्षण में उपयोग करना चाहिए और बच्चों को इस तरह की सामग्री से परिचित कराना चाहिए।


कमलेश चंद्र जोशी: लखनऊ की नालंदा संस्था से जुड़े हैं। बच्चों के साथ काम करने में विशेष दिलचस्पी है।
चित्र: ‘एक्की-दोक्की' और 'ईचा पूचा' किताबों से साभार।
समीक्षित पुस्तकों के प्रकाशकः तुलिका, 7, पृथ्वी एवेन्यू, अभिरामपुरम, चैन्नई, 600018


ज़रा सिर खुजलाइए  

इस बार का सवालः
दस-दस सिक्कों की दस डेरियां हैं। पहली ढेरी में सब सिक्के एक ग्राम के हैं, दूसरी में दो ग्राम के, तीसरी में तीन ग्राम, ... और इसी तरह दसवीं ढेरी में दस-दस ग्राम के सिक्के हैं।
इनमें से एक ढेरी के सब सिक्के नकली हैं और उनका वज़न जितना होना चाहिए। उससे 0.1 ग्राम कम या ज्यादा है। आपको एक तराजू दी गई है। आपको बताना है। कि कम-से-कम कितनी बार तोल कर आप नकली ढेरी का पता लगा सकते हैं। साथ ही आपने जो तरीका अपनाया उसका विवरण भी देना है। दस बार में तो पता लगाया ही जा सकता है, क्या नौ बार में संभव है, आठ में, सात, छ, ....! अपने जवाब हमें लिख भेजिए।
 
जरा सिर खुजलाइए 
पिछली बार का सवाल: कांच की बोतल के मुंह के थोड़े भीतर एक कागज़ की गोली रखकर फेंकना था और यह बताना था कि गोली के साथ क्या हुआ? गोली बोतल के भीतर गई या बाहर गिर गई? और ऐसा क्यों हुआ होगा? इस सवाल के काफी सारे जवाब मिले हैं। उन जवाबों का संक्षिप्त जबाब कुछ इस प्रकार है:

प्रयोग करके देखने पर समझ में आता है कि गोली अंदर नहीं जाती बल्कि बाहर आ जाती है। सबसे पहले तो यह स्पष्ट है कि बोतल कतई खाली नहीं है बल्कि उसमें पहले से ही हवा है। बोतल के भीतर की हवा का दबाव जितना है उतना ही बोतल के बाहर की हवा का भी है, इसलिए जब गोली बोतल के मुंह पर रखी हो और हम फूक न मारें तब भी गोली न तो बोतल में गिरती है न ही बाहर गिरती है।

जब हम गोली पर फूक मारते हैं तो हवा की काफी सारी मात्रा बोतल के भीतर जाने की कोशिश करती है जिससे बोतल के भीतर हवा का दबाव बढ़ जाता है। इस वजह से हवा बोतल के भीतर से बाहर की ओर निकलती है। जाहिर है कि हवा जब बाहर आएगी तो कागज़ की गोली को भी बाहर ढकेलती हुई आएगी; और गोली बाहर गिर जाएगी।

इस प्रयोग को और आगे बढ़ाते हुए आप देख सकते हैं कि अलग-अलग आकार (साइज) की बोतलों, अलग-अलग आकार की कागज़ी गोलियों के साथ क्या होता है? इसी तरह कागज़ की गोली पर खाली रीफिल की मदद से फेंकने पर क्या होता है? बोतल के मुंह पर अलग-अलग दिशाओं से फूकने पर क्या होता है? उम्मीद है आप इस प्रयोग को आगे बढ़ाकर अपने अवलोकन हमें ज़रूर भेजेंगे।

इस सवाल के सही जवाब रमेश कुमार जांगिड, हनुमानगढ़, राजस्थान: प्रमोद मैथिल, इटारसी; मुकेश त्रिवेदी, शाजापुर, म. प्र. ने दिए हैं।