पुस्तक अंश                                                                                                                                                              दूसरी कड़ी

कक्षा में विज्ञान पढ़ाना एक चुनौती भरा काम होता है। प्रयोग और गतिविधियों की मदद से विज्ञान पढ़ाया जा सकता है लेकिन कई समस्याएं आ खड़ी होती हैं। जैसे - पाठ्य पुस्तकों में पर्याप्त प्रयोगों का अभाव, शिक्षकों को गतिविधियों की जानकारी नहीं होती, प्रयोगशाला के उपकरण महंगे होने की वजह से बच्चों को नहीं दिए जा सकते। इन सबका मिला-जुला असर यह होता है कि बच्चों को पढ़ाई नीरस लगने लगती है।

शिक्षकों की इन्हीं सब अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए वॉलंटरी सर्विसेज़ ओवरसीज़ ने दुनिया भर के शिक्षकों द्वारा किए गए प्रयोगों और गतिविधियों का इस पुस्तक के रूप में संकलन किया है।
पिछले अंक में हमने ध्वनि के कुछ प्रयोग देखे थे। इस बार हम विसरण और परासरण से संबंधित कुछ प्रयोगों की चर्चा करेंगे एवं उन्हें समझने का प्रयास करेंगे।
 
विसरण एवं परासरण
●    विसरण या बिखरना वह प्रक्रिया है जिसमें परमाणु सघन क्षेत्र से विरल की ओर जाते हैं।
●    एक अर्ध-पारगम्य झिल्ली में से केवल, छोटे परमाणु ही गुजर सकते हैं।
●    अगर कम सांद्र और अधिक सांद्र घोल के बीच एक अर्धपारगम्य झिल्ली होगी, तो पानी का रिसाव कम से अधिक सांद्रता की ओर होगा। इस प्रक्रिया को परासरण कहते हैं। परासरण को विसरण का ही एक विशिष्ट रूप समझा जा सकता है। वैसे तो सभी परमाणुओं में तब तक गतिशीलता बनी रहती है जब तक झिल्ली के दोनों ओर सांद्रता एक समान नहीं हो जाती है, परंतु पानी के छोटे परमाणु ही अर्ध-पारगम्य झिल्ली में से गुजरने में सफल हो पाते हैं।

विसरण का मॉडल 
आवश्यक सामान :
-- एक गिलास साफ पानी
-- स्याही
-- एक सोड़ा-स्ट्रॉ या पिपेट
एक गिलास पानी की तली में, स्याही की एक बूंद को, सावधानी से रखें। धीरे-धीरे स्याही पूरे गिलास में फैल जाएगी। अब पूरे पानी में स्याही का रंग और सांद्रता एक जैसी हो जाएगी।

अर्ध-पारगम्य झिल्लियां 
आवश्यक सामान :
-- एक कांच की चौड़े मुंह की बोतल
-- पारदर्शी प्लास्टिक की थैली
-- छोटे मोती या पत्थर
-- बड़े मटर के दाने या राजमा
-- जाली (जो छोटे मोतियों को निकलने दे)
मोतियों और बीजों को मिलाकर बोतल में डालें। बोतल के मुंह पर जाली और प्लास्टिक की थैली को बांधे। जब आप इस उपकरण को हिलाएंगे तब केवल मोती (छोटे परमाणु) ही जाली (अर्ध-पारगम्य) में से बाहर निकल पाएंगे।

झिल्ली के साथ तुलना 
जाली से बने थैले की तुलना एक अर्ध-पारगम्य झिल्ली से की जा सकती है। छोटी चीजें, थैले के छेदों में से बाहर निकलकर गिर जाएंगी, परंतु बड़ी चीजें अंदर टिकी रहेंगी। ऐसी जाली अर्ध-पारगम्य होगी।

अर्ध-पारगम्य झिल्ली के काम को दिखाना

आवश्यक सामान
-- एक कांच का बर्तन
-- पिपेट या सोड़ा-स्ट्रॉ
-- मक्के का मांड और पानी से भरी एक पारदर्शी प्लास्टिक की थैली।
-- आयोडीन का घोल |
सभी प्लास्टिक की थैलियां तो नहीं, परंतु कुछ थैलियां अवश्य अर्ध-पारगम्य होती हैं। आपको पहले थैली के इस गुण की जांच करनी पड़ेगी। खेलने वाले गुब्बारे अक्सर अर्ध-पारगम्य होते हैं। आप पाएंगे कि अंत में आयोडीन, मक्के के मांड को नीला-काला बना ही देगी। यानी आयोडीन अर्ध-पारगम्य झिल्ली में से पार हो चुका है। लेकिन बर्तन का पानी पहले जैसा साफ ही रहेगा। इसका मतलब यह निकलेगा कि थैली में से मांड बाहर नहीं निकला।

परासरण - अंडे के साथ 
आवश्यक सामान
-- अंडे का बाहरी खोल
-- सांद्र नमक का घोल
-- एक जार
-- पानी
अंडे के बाहरी खोल के निचले सिरे से, कठोर परत को, सावधानी से हटा दें। अब नीचे केवल अंदर वाली झिल्ली रह जाएगी। फिर अंडे के खोल को, लगभग आधी ऊंचाई तक, नमक के घोल से भरें। खोल को, पानी से भरे जार में, इस प्रकार रखें जिससे कि बाहर पानी का स्तर झिल्ली से ऊपर हो। कुछ घंटों तक ऐसे ही रहने दें। आप पाएंगे कि अंडे के अंदर पानी का स्तर कुछ ऊंचा उठ जाएगा। पानी, परासरण की प्रक्रिया के कारण ही, झिल्ली में से होकर अंडे के अंदर आया होगा।
छात्रों से कहें कि वे नमक के स्थान पर, शक्कर का घोल प्रयोग करें और और अपने नतीजों पर चर्चा करें। अंडे के साथ-साथ जार में भी अगर नमक का घोल डाल दिया जाए तो क्या होगा? इस बात पर शोध करें कि अगर अंडे के बाहर और अंदर नमक के घोल की अलग-अलग सांद्रता हो, तो क्या होगा?

मृत और जीवित झिल्लियों में परासरण
आवश्यक सामान
-- कंदमूल, पपीता या आलू
-- सांद्र शक्कर का घोल
-- एक बर्तन
-- पानी
 
कंदमूल या कच्चे पपीते के दो भाग करें और एक भाग को उबाल लें। ठंडा होने के बाद, कंद के दोनों हिस्सों को बीच से काटकर खोखला करें और एक मोटी दीवार वाले कटोरों का रूप दें। दोनों में शक्कर का घोल भरें। दोनों कटोरों की निचली सतहों को छीलें और उन्हें एक घंटे के लिए पानी के बर्तन में रखें। पानी केवल कच्चे कंदमूल से बने कटोरे में रिसकर अंदर आएगा। अगर पानी दोनों कंदमूलों के कटोरों में भर आता है तो आपको दूसरे कंद को कुछ और देर तक उबालना होगा।
उबालने से कंद की अर्ध-पारगम्य झिल्ली पर क्या प्रभाव पड़ता है? छात्रों से इस विषय पर चर्चा करें।
छात्रों से पूछे कि किस कंद में जीवित कोशिकाएं हैं? अगर कंद को नहीं छीला जाए तो क्या होगा?

पहरेदार कोशिकाओं में परासरण
आवश्यक सामान
-- दो खिंचे हुए लम्बे गुब्बारे
-- चौड़ा सेलो
-- टेप
-- रबर का छल्ला
परासरण के दबाव में बदलाव के कारण पहरेदार कोशिकाएं या तो फूल जाती हैं या फिर नरम होकर पिचक जाती हैं। इसे सूक्ष्मदर्शी से स्पष्ट देखा जा सकता है और दो गुब्बारों का मॉडल बनाकर समझा जा सकता है।
दोनों गुब्बारों में एक ओर, चित्र में दिखाए अनुसार, एक सेलो-टेप चिपकाएं। यहां गुब्बारे कोशिकाएं हैं और टेप से बना भाग गैसों आदि के आदान-प्रदान के लिए बना मुंह। जब दोनों गुब्बारे पूरी तरह फूले होंगे तो टेप से बनने वाला मुंह खुल जाएगा। परंतु
 
गारों में से थोड़ी-सी हवा निकलने से पहरेदार कोशिकाएं' नरम पड़ जाएंगी और मुंह या छेद बंद हो जाएंगे।

रसोईघर में परासरण
आवश्यक सामान
-- सूखे बीज या किशमिश
-- एक बर्तन
-- पानी
-- नमक का घोल
जब सूखे अंजीर, किशमिश, मटर, लोबिया और राजमा के बीजों को पानी में भिगोया जाता है तो वे पानी सोखने के कारण फूल जाते हैं।
क्या नमक के घोल में भी ऐसा ही होगा? छात्रों से कहें कि वे पता लगाएं।
क्या नमक के घोल की सांद्रता से बीजों के फूलने पर कुछ असर पड़ेगा?
सब्जियां पकाने से पहले कुछ लोग, कटी हुई सब्जी पर नमक क्यों छिड़कते हैं?