हमारे द्वारा प्रकृति के साथ किए जा रहे अनैतिक क्रियाकलापों के फलस्वरुप पृथ्वी की जलवायु पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है और यही कारण है विश्व में चक्रवातों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। चक्रवात समुद्र से ऊर्जा ग्रहण करता है और फिर पृथ्वी की ओर आक्रामक रूप से बढ़ता है। इसमें अत्यधिक प्रचंड वेग और ऊर्जा होती है। इसकी संरचना अंग्रेजी के V अक्षर जैसी होती है। जब यह 150 से 300 कि.मी. के वेग से पृथ्वी की सतह से टकराता है तो भीषण आंधी और तूफान के साथ धरती को अत्यधिक प्रभावित करता है।
तापमान अधिक होने से समुद्र की सतह भाप में परिवर्तित होकर भंवर के रूप में सीधे आकाश की ओर जाती है; इस बवंडर से समुद्र की सतह पर कम दबाव का क्षेत्र बनता है जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया और तेज़ हो जाती है। हवा गरम होकर जैसे ही ऊपर उठती है आसपास की ठंडी हवा खाली जगह भरने को आ जाती है, यह हवा भी गरम हो जाती है और अपने साथ पानी लेकर ऊपर उठती है। इस तरह लगातार ऊपर उठती हवाएं पानी के बादलों का कुंडली की तरह एक वृत्त बना लेती हैं जो एक चक्र की तरह घूमने लगता है। चक्रवात तेज़ी से घूमती हवा होती है इसलिए इसका मध्य बिंदु हमेशा रिक्त होता है क्योंकि घूमती हुई हवा उस बिंदु के चारों ओर घूमती है लेकिन उस बिंदु तक नहीं पहुंचती। इस बिंदु को चक्रवात की आंख कहते हैं।
हाल ही में बंगाल की खाड़ी में आया तूफान ‘आसानी’ गंभीर चक्रवात में बदल गया था। भारत में चक्रवाती तूफान अधिकांशत: मई और अक्टूबर के बीच आते है। ज़्यादातर चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उठते हैं और पूर्वी तटरेखा पर उनका असर दिखता है। वर्ष 1999 में उड़ीसा में आए सुपर साइक्लोन के अलावा आइला, पाइलिन, हुदहुद, गज, तितली और फानी जैसे तूफान पिछले 20 साल में बंगाल की खाड़ी में आए है। साल 2021 में अरब सागर में उठा चक्रवाती तूफान ‘ताऊ ते’ अनुकूल मौसमी कारकों की वजह से विनाशकारी हुआ था लेकिन अब अरब सागर में भी लगातार चक्रवाती तूफानों का संख्या में वृद्धि हो रही है।
चक्रवाती तूफान का नामकरण
ट्रॉपिकल चक्रवात एक बार में एक हफ्ते या उससे अधिक समय तक बने रह सकते है। ऐसे में एक समय में एक से अधिक चक्रवाती तूफान होने की आशंका बनी रहती है। इसलिए तूफान को एक नाम दिया जाता है जिससे पूर्वानुमान करते समय वैज्ञानिकों में भ्रम की स्थिति नहीं रहे।
भारत के मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने हाल ही में भविष्य के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के 169 नामों की एक सूची जारी की है, जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उत्पन्न होंगे। दुनिया भर के हर महासागरीय बेसिन में बनने वाले चक्रवातों का नाम क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों (RSMCs) और उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्रों (TCWCs) द्वारा रखा जाता है।
वैसे तूफानों का औपचारिक नाम रखने की परंपरा 1950 में अमेरिका से शुरू हुई थी। इससे पहले तूफानों के नाम नाविक अपनी प्रेमिकाओं के नाम पर रखते थे। इसलिए शुरुआत में औपचारिक रूप से तूफानों के नाम महिलाओं के नाम पर होते थे। 70 के दशक से यह परंपरा बदल गई और तूफानों के नाम महिला और पुरुष दोनों के नाम पर रखे जाने लगे। सम संख्या वाले वर्षों में तूफानों के नाम महिलाओं के नाम और विषम संख्या वाले वर्षों में पुरुषों के नाम पर होते थे। वर्ष 2004 से विश्व मौसम संगठन और संयुक्त राष्ट्र की प्रशांत एशियाई क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग की चरणबद्ध प्रक्रिया के तहत चक्रवात का नाम रखा जाता है। आठ उत्तरी हिंद महासागरीय देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका व थाईलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवाती तूफान के 64 (हर देश आठ) नाम तय करते हैं। जब चक्रवात इन आठों देशों के किसी हिस्से में पहुंचता है, सूची से अगला दूसरा सुलभ नाम रख दिया जाता है। इन आठ देशों की ओर से सुझाए गए नामों के पहले अक्षर के अनुसार उनका क्रम तय किया जाता है और उसके हिसाब से ही चक्रवाती तूफान के नाम रखे जाते है।
फ्लोरिडा के तट से उठने वाले तूफान को हरिकेन कहते है जबकि फिलीपींस के तट पर यह टायफून हो जाता है। हरिकेन अटलांटिक महासागर से उठते हैं और टायफून प्रशांत से। हरिकेन और टाइफून जलीय तूफान है जो पानी की सतह से उठते हैं, वहीं ज़मीन पर उठने वाले तूफान को टॉरनेडो कहते हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता तापमान समुद्र सतह का तापमान भी बढ़ा रहा है जिससे चक्रवात अधिक शक्तिशाली और विनाशकारी हो रहे हैं। अरब सागर में समुद्र सतह का तापमान 28-29 डिग्री सेल्सियस तक रहता है किंतु ताऊ ते तूफान के समय यह 31 डिग्री था। एक अनुमान के आधार पर सबसे शक्तिशाली तूफानों की ताकत हर दशक में करीब 8 प्रतिशत तक बढ़ रही है।
पुणे के भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार 2001 से 2019 के बीच अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति में 52 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि ‘अत्यंत गंभीर’ चक्रवातों में 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अध्ययन के अनुसार, 1982 से 2000 के बीच 92 उष्णकटिबंधीय चक्रवात आए थे जिनमें से 30 प्रतिशत अत्यंत गंभीर तूफान श्रेणी में बदल गए थे। जबकि 2001 और 2019 के बीच संख्या बढ़कर 100 हो गई थी, जिनमें से 36 प्रतिशत अत्यंत गंभीर रहे।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की असेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज ओवर दी इंडियन रीजन नामक रिपोर्ट के अनुसार यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए बड़े कदम नहीं उठाए गए तो ग्रीष्म लहरों में 3 से 4 गुना की बढ़ोतरी हो सकती है और समुद्र का जलस्तर 30 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार मौसमी कारकों की वजह से उत्तरी हिन्द महासागर में अब और अधिक शक्तिशाली चक्रवात तटों से टकराएंगे।
अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन, प्रिंसटन युनिवर्सिटी और यूके में युनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के वैज्ञानिकों ने उष्णकटिबंधीय चक्रवातों पर बदलती जलवायु की समीक्षा करके निष्कर्ष निकाला है कि यदि वर्ष 2100 तक दुनिया का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो चक्रवाती हवा की अधिकतम गति में 5 फीसदी की वृद्धि हो सकती है जिससे चक्रवाती हवा की गति 300 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक हो जाएगी जो पृथ्वी पर बड़ी आपदा के लिए पर्याप्त है।
चक्रवाती तूफानों को कम करने एवं उनसे होने वाले विनाश से बचने के लिए हमें जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से लेना होगा और बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए सभी राष्ट्रों को पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करना, नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन तक पहुंचना, प्रदूषण पर नियंत्रण एवं वनों की कटाई को रोकना जैसी कई योजनाओं पर कार्य करना होगा। (स्रोत फीचर्स)