जिराफ की गर्दन इतनी लंबी क्यों है? यह सवाल सदियों से वैज्ञानिकों को हैरान करता आया है। चार्ल्स डार्विन का मत था कि लंबी गर्दन की वजह से प्राकृतिक चयन में जिराफ को लाभ मिला होगा क्योंकि वह ऊंचे पेड़ों की पत्तियों तक पहुंच बना सका होगा जहां अन्य जीवों का पहुंच पाना संभव नहीं होता। हाल ही में प्राचीन जिराफ के एक निकट सम्बंधी के जीवाश्म के विश्लेषण से कुछ अन्य संभावनाओं के संकेत मिले हैं। इस अध्ययन के अनुसार संभोग-साथी के लिए प्रतिस्पर्धा ने भी गर्दन के विकास को प्रभावित किया है।
1996 में चीन के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र की 1.5 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टानों में वैज्ञानिकों ने एक असामान्य जीवाश्म खोजा था जिसमें खोपड़ी और कुछ कशेरुक थे। इस जीवाश्म की खोपड़ी का आधार मोटा था जो रीढ़ की गर्दन वाली हड्डी से जुड़ा था और वह हड्डी भी थोड़ी बड़ी थी। शुरुआत में शोधकर्ताओं को यह जीवाश्म गाय या भेड़ के किसी निकट सम्बंधी का लगा था लेकिन इसके दांत और हड्डियों के बड़े आकार को देखते हुए ठोस निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल था। वर्षों बाद जब इस जीवाश्म के सीटी स्कैन से इसकी कान की हड्डियों का खुलासा हुआ तब समझ में आया कि यह एक जिराफनुमा जीव समूह (जिराफॉइड) के जीव का जीवाश्म है जिसके अंतर्गत वर्तमान जिराफ, ओकेपी और अन्य विलुप्त जिराफनुमा प्रजातियां शामिल की जाती हैं।
चाइनीज़ अकेडमी ऑफ साइंसेज़ (सीएएस) के जीवाश्म विज्ञानी ताओ डेंग और उनके सहयोगी शी-क्वी वांग ने हड्डियों की बनावट और जमावट को समझने के लिए सीटी स्कैन का सहारा लिया। गर्दन की असामान्य रूप से मोटी हड्डियों के अलावा शोधकर्ताओं को इस जीव के सिर के ऊपर हाथ के बराबर सींगदार हेलमेटनुमा डिस्क भी मिली। उन्होंने कशेरुकों के आपसी जुड़ाव का विश्लेषण किया और कंप्यूटर सिमुलेशन की मदद से यह समझने की कोशिश की कि सिर एवं गर्दन झटके लगने पर कैसी प्रतिक्रिया देंगे। इसके अलावा उन्होंने इस जीव के दांतों के एनेमल के रसायन की जांच करके इसके आहार का भी पता लगाया।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने इस डैटा की तुलना अन्य जिराफॉइड प्राणियों के अलावा भेड़ एवं कस्तूरी बैल जैसे जीवों के साथ की जो संभोग-साथी के लिए प्रतिस्पर्धा में सींग लड़ाते हैं या सिर से चोट करते हैं। जीवाश्म की कशेरुकें अन्य जीवों की तुलना में न केवल अधिक मोटी थीं बल्कि उनकी आपस में जुड़ने वाली तथा खोपड़ी के आधार से जुड़ने वाली सतह का क्षेत्रफल भी अधिक था। इस विश्लेषण में कशेरुकों की मोटाई सबसे असामान्य विशेषता रही। सिमुलेशन से पता चला कि कशेरुक में इस तरह के परिवर्तनों से टकराव के दौरान झटका लगने पर सिर बहुत आगे नहीं जाता होगा।
साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि इस जीव का सींगनुमा हेलमेट अन्य नर जिराफों से द्वंदयुद्ध के दौरान मज़बूत सुरक्षा प्रदान करता होगा। शोधकर्ताओं ने इस जीवाश्म का नाम सींग वाले चीनी पौराणिक जीव के नाम पर डिस्कोकैरिक्स ज़ाइज़ी रखा है।
गौरतलब है कि अन्य विलुप्त जिराफॉइड्स में भी कई प्रकार के हेडगियर हुआ करते थे। आधुनिक जिराफ में भी हड्डीयुक्त हेडगियर होता है। डी. ज़ायज़ी के हेडगियर में पाई जाने वाली हड्डियां छोटे सींगों का निर्माण करती हैं, जिन्हें ऑसिकोन कहते हैं। इनका उपयोग नर जिराफ प्रतिद्वंदियों की गर्दनों पर हमला करने के लिए किया करते थे। जिराफॉइड जीवों में डी. ज़ायज़ी ऐसा पहला उदाहरण है जो हमला करने के लिए अपने सिर का उपयोग करता था।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि डी. ज़ायज़ी में विशेष हेडगियर संभोग में प्रतिस्पर्धा करने के लिए विकसित हुआ है तो संभव है कि लैंगिक चयन ने इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी। यदि ऐसा है तो ऊंचे पेड़ों की पत्तियों को खाने की क्षमता मुख्य कारक नहीं बल्कि संयोगवश मिला लाभ हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)