पृथ्वी पर जीवन लगभग 3.7 अरब साल पहले से मौजूद है। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि इस शुरुआती जीवन की वंशानुगत सामग्री राइबोन्यूक्लिक एसिड यानी आरएनए थी। हालांकि आरएनए एक अन्य आनुवंशिक पदार्थ डीएनए जितना जटिल तो नहीं होता, फिर भी यह समझ पाना मुश्किल ही है कि उस वक्त आरएनए की लंबी शृंखलाएं कैसे बनी होंगी जो आनुवंशिक सूचनाओं को सहेजने व हस्तातंरण हेतु ज़रूरी हैं?
अब, शोधकर्ता इसके एक संभावित जवाब तक पहुंचे हैं। प्रयोगशाला में किए गए प्रयोगों में उन्होंने दिखाया है कि किस तरह बेसाल्टिक ग्लास नामक चट्टानों की मदद से एक-एक आरएनए अक्षर जुड़कर लगभग 200 अक्षरों की लंबी शृंखलाएं बना लेते हैं। आरएनए अक्षरों को न्यूक्लियोसाइड ट्राइफॉस्फेट कहा जाता है। और, बेसाल्टिक ग्लास तब बनते हैं जब ज्वालामुखी का लावा हवा या पानी के संपर्क से अचानक ठंडा हो जाता है या जब क्षुद्रग्रहों की टक्कर से पिघली चट्टानें तेज़ी से ठंडी हो जाती हैं। शुरुआती पृथ्वी पर ऐसा ‘ग्लास’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता था।
वैसे, जीवन की उत्पत्ति पर शोध करने वाले शोधकर्ताओं की दिलचस्पी आरंभिक ‘आरएनए आधारित जीवन’ में इसलिए अधिक है क्योंकि ये चार रासायनिक अक्षरों से बने डीएनए की तरह आनुवंशिक सूचना के वाहक भी हो सकते हैं और स्वयं एंज़ाइम की तरह जीवन के लिए आवश्यक रासायनिक अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित भी कर सकते हैं।
बेसाल्टिक ग्लास उस समय पृथ्वी पर हर जगह मौजूद थे। ये मैग्नीशियम और लौह जैसी धातुओं से समृद्ध होते हैं जो कई रासायनिक अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं। इसलिए कोलेराडो विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी स्टीफन मोज्ज़िस का अनुमान था कि न्यूक्लिओसाइड शृंखला बनाने में बेसाल्टिक ग्लास की भूमिका हो सकती है।
मोज्ज़िस के अनुरोध पर फाउंडेशन फॉर एप्लाइड मॉलिक्यूलर इवॉल्यूशन की आणविक जीव विज्ञानी एलिसा बायोन्डी के दल ने पांच अलग-अलग बेसाल्ट ग्लास के नमूनों के महीन पावडर बनाए और इन्हें सूक्ष्मजीव-रहित किया। फिर इन्हें न्यूक्लियोसाइड ट्राइफॉस्फेट के घोल के साथ मिलाया। एस्ट्रोबायोलॉजी में प्रकाशित नतीजों के मुताबिक ग्लास पावडर की उपस्थिति में अणुओं ने मिलकर सैकड़ों अक्षर लंबी शृंखलाएं बनाई जबकि ग्लास पावडर की अनुपस्थिति में ऐसी शृंखलाएं नहीं बन सकी। शोधकर्ता बताते हैं कि शृंखलाएं बनने के लिए न तो ऊष्मा की ज़रूरत पड़ी और न ही प्रकाश की। लगा तो बस समय। छोटी आरएनए शृंखला तो एक दिन बाद ही बनना शुरू हो गई थी, लेकिन शृंखला की लंबाई महीनों तक बढ़ती रही।
लेकिन इस परिणाम से कई सवाल भी उठे हैं। अव्वल तो न्यूक्लियोसाइड फॉस्फेट कैसे बने? बायोन्डी के सहयोगी स्टीवन बेनर का कहना है कि हालिया शोध बताता है कि कैसे उसी बेसाल्टिक ग्लास ने आरएनए अक्षरों (न्यूक्लियोसाइड) के निर्माण और स्थिरीकरण दोनों को बढ़ावा दिया होगा।
एक और बड़ी दिक्कत है लंबी आरएनए शृंखलाओं की आकृति। आधुनिक कोशिकाओं में एंज़ाइम सुनिश्चित करते हैं कि अधिकांश आरएनए लंबी रैखिक शृंखला में विकसित हों। लेकिन आरएनए अक्षर आपस में जुड़ते हुए शाखाएं भी बना सकते हैं। अन्य शोधकर्ता जानना चाहते हैं कि बेसाल्टिक ग्लास की उपस्थिति में बनी आरएनए शृंखलाएं किस तरह की हैं।
बायोन्डी स्वीकारती हैं कि आरएनए शृंखलाओं में थोड़ी-बहुत शाखाएं भी निकली हैं। लेकिन वे यह भी ध्यान दिलाती हैं कि वर्तमान जीवों में भी कुछ शाखित आरएनए होते हैं। बहरहाल यह प्रयोग इस महत्वपूर्ण विषय में आगे के अध्ययन का रास्ता तो खोलता ही है। (स्रोत फीचर्स)