ग्रीष्म लहर यानी लू का रिश्ता तीन कारकों - हवा की दिशा, गति और उसके तापमान से जुड़ा है। जब किसी क्षेत्र का तापमान कई दिनों तक सामान्य से ज़्यादा रहे अथवा चरम पर पहुंच जाए, तो उसे ‘ग्रीष्म लहर’ कहते हैं। आम बोलचाल की भाषा में बेहद गर्म हवाओं को लू कहा जाता है। इस दौरान आर्द्रता (ह्यूमिडिटी) बहुत ज़्यादा रहती है। दरअसल आम आदमी की दिलचस्पी ग्रीष्म लहर के वैज्ञानिक कारणों में नहीं बल्कि इसके प्रभावों से बचने के वैज्ञानिक और कारगर उपायों में होती है।
भारत में लू का कहर अब सामान्य घटना है। पहले लू कुछ इलाकों में और अप्रैल-मई के महीनों के दौरान ही चलती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों से मार्च के महीने में ही लू चलने लगी है। इसके प्रकोप से कुछ लोगों की मौत भी हो जाती है।
भारतीय मौसम विभाग के मानदंडों के अनुसार किसी भी क्षेत्र में अगर तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है, तो उसे ग्रीष्म लहर अथवा लू से प्रभावित क्षेत्र कहा जाता है। जब यह 47 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है तो गंभीर ग्रीष्म लहर मानी जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि तापमान और आर्द्रता जैसे कारकों के आधार पर ग्रीष्म लहर की आपातकालीन परिस्थिति को परिभाषित करना चाहिए। वर्तमान में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग केवल तापमान के आधार पर लू को परिभाषित करता है, जो ऊष्मागत तनाव को स्पष्ट करने के लिहाज से पर्याप्त नहीं है।
दरअसल ग्रीष्म लहरों की अधिकता व प्रचंडता जलवायु में हुए बदलावों की देन है। जलवायु परिवर्तन एक दिन की घटना नहीं है। विकास के नाम पर जारी हमारी अवैज्ञानिक गतिविधियां और कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार हैं। जलवायु में बदलाव के चलते दुनिया के कई देशों में औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है।
भारत और पाकिस्तान सहित पूरे दक्षिण एशिया में ग्रीष्म लहर से लोगों का बुरा हाल है। अनुमान है अगले पांच सालों में चरम तापमान तक पहुंचने की स्थिति ज़्यादा बार आएगी। जानकारों का कहना है कि कार्बन उत्सर्जन अधिक रहता है तो 2036-2065 के दौरान भारत में ग्रीष्म लहर के पच्चीस गुना अधिक समय तक रहने की संभावना है। अध्ययनों में पता चला है कि जिन देशों में अभी तक एयर कंडीशनर (एसी) की ज़रूरत नहीं रहती थी, अब वहां भी राहत के लिए एसी लगाना पड़ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक 250 करोड़ लोगों के पास एसी होंगे।
ग्रीष्म लहर का आकलन ‘बायोलॉजिकल इंडीकेटर’ से भी किया जा सकता है। जिन इलाकों में ग्रीष्म लहर आने की संभावना होती है, वहां से पशु-पक्षी, जीव-जंतु आदि पलायन करने लगते हैं।
जलवायु परिवर्तन के छोटे-बडे़ सभी सम्मेलनों में आने वाले दिनों में ग्रीष्म लहर की चिंताजनक स्थिति की ओर इशारा तो किया गया है, लेकिन इस चुनौती का प्रभावी तरीके से सामना करने की दिशा में कोई एक्शन प्लान अथवा कार्य योजना नहीं बनाई गई है। हमारे देश में लू के प्रकोप से निपटने के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। सरकार राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत लू को प्राकृतिक आपदा नहीं मानती है। सच तो यह है कि ग्रीष्म लहर से निपटने के लिए शहरों को नया स्वरूप प्रदान करना होगा। ग्रीष्म लहर को लेकर चेतावनी और सार्वजनिक जगहों पर राहत के प्रावधानों की ज़रूरत है। इसी प्रकार अस्पतालों में इमरजेंसी सेवाओं को लेकर स्पष्ट निर्देश होना चाहिए।
हाल के वर्षों में कुछ देशों की सरकारों ने अपने लोगों को ग्रीष्म लहर से बचाने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की है। यह एक अभिनव और सराहनीय पहल है।
अमेरिका में अप्रैल 2021 में जेन गिल्बर्ट को मियामी डेड काउंटी का मुख्य हीट वेव अधिकारी नियुक्त किया गया। वे दुनिया की पहली हीट वेव अधिकारी हैं। उन्होंने ग्रीष्म लहर का सामना करने के लिए एक कार्य सूची तैयार की है। इसमें ग्रीष्म लहर के प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करना, गर्मी से सुरक्षा के उपायों को गति देना, समुदाय स्तर पर क्लाइमेट रेजिलिएंस हब (बहुत ज़्यादा गर्मी के दौरान शरण स्थल) बनाना आदि शामिल हैं। इसके बाद एक साल के भीतर तीन और शहरों में हीट वेव अधिकारी नियुक्त किए गए हैं।
जुलाई 2021 में ग्रीस की राजधानी एथेंस ने एलेनी मायरिविली को चीफ हीट वेव ऑफिसर नियुक्त किया था। वे एक ऐसी कार्य योजना बना रही हैं जिसमें स्वास्थ्य डैटा, बीमारी और मृत्यु दर के साथ मौसम सम्बंधी डैटा को एक साथ प्रस्तुत किया जा सकेगा और इसके आधार पर ग्रीष्म लहरों को वर्गीकृत किया जा सकेगा। एथेंस में एक्सट्रेमा ग्लोबल नाम से एक मोबाइल एप्लीकेशन भी लांच किया गया है, जो उपयोगकर्ताओं को गर्मी के स्वास्थ्य जोखिम का आकलन करने में सहायता करता है। यह एप बहुत ज़्यादा गर्मी की स्थिति में सुरक्षित स्थानों का एक नक्शा भी बताता है। हीट वेव से बचाव के लिए छायादार सार्वजनिक स्थानों का निर्माण किया जाएगा और परंपरागत ज्ञान की मदद से भवनों को ठंडा करने के उपाय किए जाएंगे।
अक्टूबर 2021 में यूजेनिया कारगबो को फ्री टाउन सिएरा लियोन में मुख्य हीट वेव अधिकारी नियुक्त किया गया था। उन्होंने अपनी विस्तृत रूपरेखा में कार्यबल का गठन और शहर के तापमान का नक्शा तैयार करने का विचार व्यक्त किया है। फ्री टाउन में गर्मी के तनाव के विशेष पैटर्न को समझने के लिए एक हीट वेव मैपिंग असेसमेंट करने की योजना भी है। वे हीट वेव नीति भी तैयार करने वाली हैं, जिसे आगे चलकर पूरे अफ्रीका में दोहराया जा सकता है। हेल्थ अलर्ट जारी करने के लिए एप्लीकेशन विकसित करने का भी इरादा है।
हमारे यहां सरकार ने नई तकनीकों के बल पर मौसम के हर पल बदलते मिज़ाज को समझने और सटीक पूर्वानुमानों की दिशा में कुछ प्रगति की है। लेकिन चंद शहरों को छोड़ दें, तो भीषण और लगातार पड़ रही अत्यधिक तीखी गर्मी से उत्पन्न चुनौती का सामना करने के लिए अभी तक शुरुआती चेतावनी से लेकर आम लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए एक्शन प्लान या कार्य योजना नहीं बनाई है। दरअसल यही हमारी चिंता का अहम विषय है। ग्रीष्म लहर को लेकर आम लोगों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। सार्वजनिक स्थानों पर बहुभाषी पोस्टर लगाए जा सकते हैं। ग्रीष्मकालीन शिविरों में शैक्षिक कार्यक्रमों की शुरुआत की जा सकती है।
हमारे देश के नीति निर्माताओं ने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने अथवा लोगों तक विज्ञान की सार्थक बातें पहुंचाने के लिए अपनी सूची में जिन कुछ मुद्दों और विषयों को सम्मिलित किया है, उनमें अब लू को भी जोड़ने की ज़रूरत नज़र आ रही है। (स्रोत फीचर्स)