ताज़ा अनुसंधान बताता है कि कॉकरोचों ने मीठे के प्रति नफरत पैदा कर ली है और इसके चलते हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कई कीटनाशक नुस्खे नाकाम साबित होने लगे हैं।
जब भी कोई नर कॉकरोच किसी मादा से संभोग करना चाहता है तो वह अपना पिछला भाग उसकी तरफ करके अपने पंख खोलता है और पंखों के नीचे छिपा मीठा भोजन उसे पेश कर देता है। यह भोजन एक रस होता है जिसे नर की टर्गल ग्रंथि स्रावित करती है। मादा जब इस भोजन को चट करने में व्यस्त होती है, उस दौरान नर उसे अपने एक शिश्न से पकड़े रखता है और दूसरे से अपने शुक्राणु मादा के शरीर में पहुंचा देता है। इस प्रक्रिया में लगभग 90 मिनट का समय लगता है।
लेकिन वर्ष 1993 में नॉर्थ कैरोलिना स्टेट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पता लगाया था कि जर्मन कॉकरोच में ग्लूकोज़ नामक शर्करा के लिए कोई लगाव नहीं होता। यह थोड़ा अजीब था क्योंकि ग्लूकोज़ इन जंतुओं के लिए ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है। तो सवाल उठा कि ऐसे कॉकरोच क्यों और कहां से पैदा हुए।
ऐसा लगता है कि हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मीठे पावडरों और द्रवों ने यह असर किया है। इन मीठे पदार्थों में विष मिलाकर कॉकरोच पर नियंत्रण के प्रयास होते हैं। मिठास से आकर्षित होकर कॉकरोच इसका सेवन करते हैं और मारे जाते हैं। लेकिन कुछ कॉकरोच कुदरती रूप से ग्लूकोज़ के प्रति इतने लालायित नहीं थे; वे जीवित रहे, संतानोत्पत्ति करते रहे और यह गुण अगली पीढ़ी को सौंपते रहे।
अब कहानी में नया मोड़ आया है। नॉर्थ कैरोलिना स्टेट विश्वविद्यालय की कीट विज्ञानी आयको वाडा-कात्सुमाता ने कम्यूनिकेशंस बायोलॉजी में बताया है कि जो गुणधर्म मादा कॉकरोच को मीठे ज़हर से दूर रहने को उकसाता है, वही उसे सामान्य कॉकरोच नर के साथ संभोग करने से भी रोकता है।
कारण यह है कि कॉकरोच की लार नर के रस में उपस्थित जटिल शर्कराओं को तोड़कर उन्हें ग्लूकोज़ जैसी सरल शर्कराओं में बदल देती है। जैसे ही ग्लूकोज़ से नफरत करने वाली मादा कॉकरोच इस तोहफे का पहला निवाला लेती है, वह उसके मुंह में कड़वा हो जाता है और वह मैथुन से पहले ही भाग निकलती है।
आप शायद सोच रहे होंगे कि यह तो अच्छी बात है। कॉकरोच की आबादी स्वत: कम होती जाएगी। लेकिन ग्लूकोज़ से चिढ़ने वाले ये कॉकरोच प्रजनन का जुगाड़ जमा ही लेते हैं।
प्रयोगों के दौरान वाडा-कात्सुमाता ने देखा कि जंगली कॉकरोच के मुकाबले ग्लूकोज़ से दूर भागने वाले मादा कॉकरोच नर कॉकरोच से दूर रहना पसंद करते हैं। लेकिन साथ ही यह भी देखा गया कि ऐसे नर कॉकरोच अपने शुक्राणु कम समय में मादा को देने में माहिर हो गए हैं। और तो और, इन आबादियों में नर द्वारा मादा को पेश की जाने वाली पोषक सामग्री के रासायनिक संघटन में भी बदलाव आया है।
स्पष्ट है कि मनुष्य जंतुओं के विकास पर महत्वपूर्ण असर डालते हैं। और जंतु इस तरह के दबाव से निपटने की नई-नई रणनीतियां भी विकसित करते रहते हैं। (स्रोत फीचर्स)