थाइलैंड खाड़ी में पानी में प्रदूषण काफी अधिक है और ऑक्सीजन बहुत कम हो गई है। यहां रहने वाली ब्रााइड्स व्हेल ने ऐसे पर्यावरण में भोजन प्राप्त करने की एक नई तकनीक अपना ली है।
आम तौर पर बैलीन व्हेल भोजन प्राप्त करने के लिए अपने जबड़े को पूरा खोलती है और फिर पानी में तेज़ी से गोता लगाती है। जो पानी मुंह में अंदर जाता है उसे छाना जाता है और छोटे-मोटे जीव-जंतुओं को निगल लिया जाता है। छानने का काम बैलीन प्लेट्स में होता है और आम तौर पर छोटी मछलियां, झींगे वगैरह पकड़ में आ जाते हैं। इस तकनीक का उपयोग करने वाली प्रजातियों में पंखदार व्हेल, साइ व्हेल, ब्लू व्हेल और कूबड़वाली व्हेल शामिल हैं।

मगर जापान और थाइलैंड के शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट किया है कि ब्रााइड्स व्हेल नामक रार्कल व्हेल इस तकनीक को त्यागकर एक नयी भक्षण तकनीक का इस्तेमाल करने लगी है। ये ब्रााइड्स व्हेल जबड़ों को फैलाकर पानी में आगे बढ़कर भोजन पाने की बजाय सतह पर आकर अपना मुंह खोलकर स्थिर बनी रहती हैं। समुद्र का पानी इनके मुंह में प्रवेश करता है। बैलीन प्लेट्स में से गुज़रते हुए इस पानी में से भोज्य पदार्थ छान लिए जाते हैं और पानी को वापिस समुद्र में बहने दिया जाता है। पानी के मुंह में प्रवेश को सुगम बनाने के लिए ये व्हेल अपनी पूंछ को हिलाती-डुलाती रहती हैं ताकि पानी की धारा बनती रहे।

तकाशी इवाता और उनके साथियों ने करंट बायोलॉजी में प्रकाशित शोध पत्र में बताया है कि थाइलैंड की खाड़ी में प्रदूषण और ऑक्सीजन की कमी समुद्र में बहकर आने वाली नदियों के पानी में मल-जल प्रदूषण की वजह से है। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह संभव है कि ऑक्सीजन की कमी के चलते व्हेल के भोज्य जीव ज़्यादातर सतह पर ही बने रहते हैं। और यदि सारा भोजन सतह पर ही है तो पानी के अंदर गोता लगाने से क्या फायदा?

इवाता और उनके साथियों ने एक और बात पर ध्यान दिया। इस तरह की भक्षण रणनीति वयस्क व्हेल और उसके बच्चों को एक साथ अपनाते ज़्यादा बार देखा गया। इसके आधार पर शोधकर्ताओं का विचार है कि शायद यह रणनीति उनकी कुदरती रणनीति नहीं है बल्कि सामाजिक रूप से सीखी गई रणनीति है जिसे माता-पिता अपने बच्चों को सिखाते हैं। यदि यह सही है तो ब्रााइड्स व्हेल में एक सामाजिक व्यवस्था की उपस्थिति का संकेत है। (स्रोत फीचर्स)