डॉ. इरफान ह्यूमन

जननांग स्वायत्तता (Genital Autonomy) को लेकर आज दुनिया के हर देश में आवाज़ें उठने लगी हैं। जननांग स्वायत्तता को विशेषत: पुरुष-स्त्री खतना (Circumcision/mutilation) से जोड़कर देखा जाता है। इस प्रथा के विरुद्ध जर्मनी द्वारा 7 मई, 2013 को एक अभियान प्रारम्भ किया गया था। इस तिथि को इसलिए चुना गया है क्योंकि 7 मई, 2012 को कोलोन (जर्मनी) के ज़िला न्यायालय ने पहली बार घोषणा की थी कि लड़कों का खतना किसी हमले के समान है।

पुरुषों का खतना उनके शिश्न (penis) की अग्रत्वचा को पूरी तरह या आंशिक रूप से हटा देने की प्रक्रिया है। मानव शिश्न संरचना के हिसाब से 3 भागों में बंटा होता है। जड़ भाग, मध्य भाग और शिश्न-मुंड। शिश्न के सबसे आगे का गोलाकार हिस्सा शिश्न-मुंड कहलाता है जो अग्रत्वचा से सुरक्षित रहता है। अग्रत्वचा एक ढीली-ढाली त्वचा संरचना है। शिश्न मुंड का वह भाग जहां से अग्रत्वचा जुड़ी रहती है फेरुनुलम कहलाता है।

देखा जाए तो खतना एक प्राचीन प्रथा है जिसके प्रारंभिक चित्रण गुफा चित्रों और प्राचीन मिरुा की कब्राों में भी मिलते हैं। यहूदी संप्रदाय में पुरुषों का धार्मिक खतना ईश्वर का आदेश (मित्ज़्वा असेह) माना जाता है। यहूदी के रूप में जन्म लेने वाले पुरुषों और यहूदी धर्म में धर्मांतरित होने वाले पुरुषों के लिए खतना अनिवार्य है। इसे केवल तभी टाला जा सकता है जब इससे बच्चे के जीवन या स्वास्थ्य पर कोई खतरा हो। सामान्यत: यह कार्य एक मोहेल (खतना करने वाला) द्वारा जन्म के आठवें दिन ब्रिात मिलाह नामक एक आयोजन में किया जाता है,जिसका हिब्राू अर्थ ‘खतने का रिवाज़’ है। मुसलमानों में यह व्यापक रूप से प्रचलित है और अक्सर इसे सुन्नत या सुन्नाह कहा जाता है। यहूदियों की तरह मुसलमानों में खतना का कोई नियत वक्त नहीं होता। शिशुओं और किशोरों का खतना संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूज़ीलैण्ड के अंग्रेज़ी-भाषी क्षेत्रों और कम व्यापक रूप से युनाइटेड किंगडम में अपनाया गया था।

वर्ष 1900 के आसपास संयुक्त राज्य अमेरिका में शिशुओं के खतने को क्यों स्वीकार किया गया इसके कई अनुमान हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि कई बीमारियां जीवाणुओं के द्वारा फैलती हैं। मानव शरीर को अनेक खतरनाक जीवाणुओं के वाहक के रूप में पहचाना गया, जिससे लोग जीवाणुओं के प्रति भयभीत और धूल-मिट्टी तथा शरीर से निकलने वाले पदार्थों के प्रति आशंकित हो गए थे। विशेषज्ञों का कहना है कि खतना किए गए पुरुषों में संक्रमण का जोखिम कम होता है क्योंकि लिंग की आगे की त्वचा न हो तो जीवाणुओं के पनपने के लिए नमी का अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाता। साथ ही इससे यौन सम्बंध के दौरान होने वाले संक्रमणों से भी बचा जा सकता है।

वि·ा स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), एचआईवी/एड्स पर जॉइंट युनाइटेड नेशंस प्रोग्राम और सेंटर्स फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रीवेंशन कहते हैं कि प्रमाण इस बात की ओर संकेत करते हैं कि पुरुषों में खतना करना शिश्न-योनि यौन सम्बंध के दौरान पुरुषों में एचआईवी होने के खतरे को कम कर देता है। लेकिन वे यह भी बताते हैं कि खतना केवल आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है। अत: इसे एचआईवी के प्रसार को रोकने के लिए प्रयुक्त अन्य अवरोधों का विकल्प नहीं मानना चाहिए।

आज खतने के लिए सर्जन का सहारा लिया जा रहा है, क्योंकि नीम-हकीमों से खतना करवाना खतरे से खाली नहीं होता। भारत में खतना के समय दावत आदि आयोजित करने का रिवाज़ अब लगभग समाप्त हो गया है, लेकिन अन्य कई देशों में खतना प्रथा को समारोहपूर्वक मनाया जाता है। दक्षिण अफ्रीका में किशोरों की देखभाल करने वालों को अमाखानकाथा कहा जाता है, जबकि पारंपरिक सर्जन को इंगसिबी कहते हैं। ये लोग अपने गीत और नृत्य के माध्यम से नए लड़कों को अपनी परंपरा बरकरार रखने और उसका सम्मान करने का संदेश देते हैं। असुरक्षित ढंग से खतना करने के कारण कई किशोरों की मौत हो चुकी है। इन मौतों के बाद खतना करने वाले पारंपरिक सर्जनों पर शिकंजा कसने की मांग उठ रही है क्योंकि ठीक से ना किए गए ऑपरेशनों के चलते सैकड़ों लोग अस्पतालों में भर्ती हो चुके हैं।

आज पूरी दुनिया में महिलाओं के खतना पर विवाद है। सभ्य समाज में स्त्री जननांग स्वायत्तता की बात की जाए तो स्त्री खतना को वि·ा में एक घिनौने सामाजिक/धार्मिक कृत्य के रूप में देखा जा रहा है। 8 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के चार मंत्रालयों से महिलाओं के खतना पर उनकी राय मांगी थी। महिलाओं के जननांग के खतना अर्थात जननांग भंग की प्रथा एशिया और अफ्रीका के बहुत से देशों में व्याप्त है, खासकर बोहरा समुदाय में। भारत में दाऊदी बोहरा समेत अन्य बोहरा समुदायों में इसका प्रचलन है। बोहरा समुदाय की कितनी लड़कियों का खतना हुआ है इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं है लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि तकरीबन 80-90 प्रतिशत बोहरा लड़कियों का खतना होता है।

ज्ञातव्य हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंत्रालयों की राय मांगने से कुछ दिन पहले अमेरिका के डेट्रायट में एक डॉक्टर को एक महिला का खतना करने के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया था। आम तौर पर महिलाओं का खतना करते समय उन्हें बेहोश या प्रभावित हिस्से को सुन्न नहीं किया जाता है और न ही कोई डॉक्टर निगरानी के लिए मौजूद होता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार अफ्रीका और एशिया के करीब 30 देशों में 20 करोड़ से अधिक लड़कियों का खतना हो चुका है।

महिलाओं का खतना करते समय उनकी योनि के एक हिस्से (क्लिटॉरिस) को आंशिक या पूरी तरह से काट दिया जाता है। इस प्रथा का पालन करने वाले कुछ समुदायों का मानना है कि इससे महिलाओं की कामेच्छा नियंत्रित रहती है। अलग-अलग देशों में महिलाओं का भिन्न-भिन्न तरीके से खतना किया जाता है। डब्ल्यूएचओ ने महिलाओं के चार तरह के खतनों को चिन्हित किया है। भारत में बोहरा लड़कियों का केवल पहले और चौथे प्रकार का खतना होता है। पहले प्रकार को क्लिटोरिडेक्टॉमी कहते हैं, जिसमें महिलाओं के क्लिटोरिस को आंशिक या पूरी तरह निकाल दिया जाता है और चौथे प्रकार में महिलाओं के जननांग में छेद करना, काटना, जलाना इत्यादि सम्मिलित है। दूसरे प्रकार के खतना को एक्सीजन कहते हैं। इसमें क्लिटोरिस और लेबिआ माइनोरा (योनि की अंदरूनी त्वचा) को आंशिक या पूरी तरह हटा दिया जाता है लेकिन इसमें लेबिआ मेजोरा (योनि की बाहरी त्वचा) नहीं हटाई जाती और तीसरे प्रकार को इनफिबुलेशन कहते हैं, जिसमें योनिमुख को संकरा बनाया जाता है। इसके लिए लेबिआ माइनोरा या लेबिआ मेजोरा को काटकर दोबारा लगा दिया जाता है या कई बार योनिमुख को आंशिक रूप से सिल दिया जाता है।

खतना से जहां पुरुषों में स्वास्थ्य और स्वच्छता सम्बंधी कई फायदे गिनाए जाते हैं, वहीं महिलाओं को इसके कारण कई दुष्परिणामों का सामना करना पड़ता है। इससे महिलाओं को रक्तरुााव, बुखार, संक्रमण, सदमा जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है और कुछ मामलों में उनकी मृत्यु तक हो सकती है। यही नहीं, महिलाओं का खतना करने से उन्हें पेशाब, संभोग या प्रजनन के समय दिक्कतें आ सकती हैं। भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे महिलाओं के विरुद्ध लैंगिक आधार पर भेदभाव के तुल्य बताया है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में इस प्रथा पर कानूनन रोक भी है। (स्रोत फीचर्स)